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न्याय के हथौड़े से हलचल

खेल-कूद देश को एक सूत्र में पिरोता है। लिहाजा अन्य खेलों में व्याप्त भ्रष्टाचार पर भी नकेल कसना चाहिए
अनुराग ठाकुर

देर-सबेर लोढ़ा कमेटी ने क्रिकेट के काले कुबेरों पर अपना हथौड़ा चला ही दिया। बीसीसीआई अध्यक्ष अनुराग ठाकुर और सचिव अजय शिर्के की बर्खास्तगी क्रिकेट ही नहीं अन्य खेलों के भविष्य को बेहतर करने में मील का पत्थर साबित होगी। बीसीसीआई और उनकी राज्य एसोसिएशनों के आपसी सांठगांठ को पूरी तरह समाप्त करने के लिए न्यायालय ने नया संशोधन किया जो राज्यएसोसिएशन या बीसीसीआई में सिर्फ नौ वर्ष तक कार्य करने की इजाजत देता है। बीसीसीआई को यह संशोधन धीरे से लगा जोरदार झटका बताया जा रहा है। कोर्ट ने पहले कहा था कि कुल नौ वर्षों की अवधि तक सिर्फ बीसीसीआई में कार्य किया जा सकता है। पहले के नियम के मुताबिक पदाधिकारी बीसीसीआई या उसके राज्य संघों में कुल 18 साल गुजार सकता था। पदाधिकारी इस नियम का पालन करते हुए अपने समीकरण तय करने लगे थे। लेकिन नए संशोधन ने राज्य और बीसीसीआई में कार्य करने के लिए कुल नौ साल की अवधि तय कर दी। यही संशोधन पदाधिकारियों के लिए सबसे घातक साबित हुुआ। नतीजन आज सभी राज्य एसोसिएशन के पद राजनीतिज्ञों ने खाली कर दिए हैं।

नए संशोधन के बाद मौजूदा प्रशासकों में बंगाल क्रिकेट संघ के अध्यक्ष सौरभ गांगुली और हैदराबाद क्रिकेट संघ के अध्यक्ष अरशद अयूब ही अपने पदों पर बने रह सकते हैं जबकि अधिकतर पदाधिकारी राज्य स्तर पर नौ साल से ज्यादा गुजार चुके हैं। इसका मतलब इन सबको जाना ही होगा। बीसीसीआई से संबद्ध 31 एसोसिएशन हैं। 21 एसोसिएशनों ने लोढ़ा कमेटी की सिफारिश को स्वीकार कर लिया है। फिलहाल बीसीसीआई के सीईओ राहुल जौहरी उच्चतम न्यायालय के आदेश के अनुसार बोर्ड का 19 जनवरी तक नेतृत्व करेंगे जब तक प्रशासकों का पैनल नियुक्‍त नहीं हो जाता।

सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ वकील अनिल दीवान तथा गोपाल सुब्रह्मïण्यम को प्रशासकों को तलाशने की जिम्‍मेदारी सौंपी है। प्रशासक पद के लिए पूर्व गृह सचिव जी.के. पिल्लई, पूर्व सीएजी प्रमुख गोपाल राय, पूर्व टेस्ट क्रिकेटर मोहिंदर अमरनाथ के नाम सुझाए गए हैंं। खिलाड़ी कीर्ति आजाद और बिशन सिंह बेदी का नाम प्रशासकों के लिए आगे बढ़ा रहे हैं। लिहाजा सुनील गावस्कर, जवागल श्रीनाथ, सौरव गांगुली का नाम भी प्रशासक की रेस में शामिल किया जा सकता है। कोर्ट को प्रशासकों की नियुक्ति के बाद जल्द-से-जल्द लोढ़ा समिति की सिफारिशें को एसोसिएशनोंं में लागू करवाकर चुनाव करा देने चाहिए।

अधिकार को लेकर चल रहे शह और मात के इस खेल में एक और समस्या खड़ी हो सकती है कि विभिन्न राज्य क्रिकेट एसोसिएशनों में लंबे समय से काबिज लोग अब अपने भरोसेमंद या परिवार के किसी सदस्य को बैठाकर पीछे से क्रिकेट का संचालन करना जारी रखें तो क्रिकेट का और ज्यादा नुकसान होगा। इसलिए अदालत को प्रशासकों की नियुक्ति और आगे की कार्यप्रणाली पर सावधान रहना होगा। लोढ़ा समिति की सिफारिशें लागू होने से पारदर्शिता आना स्वाभाविक है। लेकिन कोर्ट का डंडा चलने के बाद भी परिणाम बेहतर नहीं निकलेे तो तस्वीर और सुनहरी कैसेे हो पाएगी, यह यक्ष प्रश्न बना रहेगा।

अस्तित्व पर संकट से जूझ रहे बीसीसीआई के पूर्व पदाधिकारी अब मेलजोल बढ़ा रहे हैं। अनुराग ठाकुर और उनके धुर विरोधी रहे एन. श्रीनिवासन ने हाथ मिला लिए हैं। बेंगलुरू में बैठक में पूर्व सचिव अजय शिर्के, संयुक्‍त सचिव अमिताभ चौधरी और कोषाध्यक्ष अनिरुद्ध चौधरी और राजीव शुक्‍ला भी शामिल थे। सिफारिशें लागू होने के बाद बीसीसीआई के 30 में से 24 प्रशासकीय अधिकारियों को हटना पड़ा है। इन 24 में से 18 प्रशासक अब भी श्रीनिवासन के साथ हैं, ऐसे में अनुराग ठाकुर भी श्रीनिवासन को साथ लेकर ही आगे की रणनीति बना रहे हैं। मुंबई, एनसीसी, विदर्भ, डीडीसीए, रेलवे, सेना एसोसिएशन बैठक में शामिल नहीं थे जो एक और बड़ा संकट है। पूर्व पदाधिकारियों के बीच मतभेद बीसीसीआई के सुधार की दिशा में एक और अहम कदम होगा।

पहाड़ के नीचे आया ऊंट

कीर्ति आजाद

बीसीसीआई जैसे अडिय़ल और मनमानी पर उतारू संगठन पर इस तरह की कार्रवाई की प्रशंसा की जानी चाहिए। बीसीसीआई को लगता था कि कानून उसकी मुट्ठी में है लेकिन अब ऐसा नहीं है। ऊंट अब पहाड़ के नीचे आ गया है। राज्यों के कारोबारियों के सहयोग से बीसीसीआई और उनके एसोसिएशनोंं के मलाईदार पदों पर राजनीतिज्ञ सालोंं-साल राज करते आए हैं। पर अब क्रिकेट के भविष्य को एक नई ताबीर मिलेगी। सुधार सिर्फ बीसीसीआई में क्‍यों? अन्य खेल संगठनों पर नजर डालें तो दिखेगा कि कई में तो कुछ लोगों का दो दशक से कब्‍जा बना हुआ है। अध्यक्ष या सचिव की ही चलती है। खेल मंत्रालय ने इन सिफारिशों को अन्य खेल संगठनों में भी लागू करने के संकेत दिए हैं। देश में बैडमिंटन एसोसिएशन, नेशनल स्पोट्र्स फेडरेशन फॉर कबड्डी, रेसलिंग, बॉञ्चिसंग, बास्केटबॉल, हॉकी आदि में भी इसी तरह की पारदर्शिता लानी चाहिए। खेलकूद शिक्षा और मानव संसाधन विकास के बीच एक अहम कड़ी है। यह देश को एक रखने में अहम रोल निभाता है। जीवन की इस विधा को राजनीति और भ्रष्टाचार से दूर रखा जाना चाहिए। संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 19 [1] जी में खिलाडिय़ों के मौलिक अधिकारों की रक्षा का प्रावधान है। लिहाजा हमें क्रिकेट सहित अन्य सभी खेलों में पारदर्शिता लाने वाले हर कदम का स्वागत करना चाहिए।

बातचीत पर आधारित

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