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अंतरराष्ट्रीय हो चुका है किडनी के खरीद-फरोख्त‍ का जाल

भारत के प्रमुख शहरों के साथ ही नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, ब्रिटेन, अमेरिका और क्वयांमार तक कानून को धता बताने का खेल
दिल्ली पुलिस के जाल में किडनी रैकेट का सरगना

उसने कुछ साल पहले आर्थिक अभाव के चलते मात्र 75 हजार रुपये में खुद की किडनी बेची थी। आज की तारीख में उसके पास करोड़ों की संपत्ति है। अपनी किडनी बेचकर उसने जान लिया था कि इस कारोबार में जबरदस्त मुनाफा है। कुछ ही दिनों में वह किडनी तस्करी का किंगपिन बन गया। कोलकाता के राजारहाट के एक आलीशान मकान में रहने वाला टी. राजकुमार राव जब पकड़ा गया,तब दिल्ली और बंगाल जांच एजेंसियों को भी नहीं पता था कि अंतरराष्ट्रीय किडनी रैकेट का सरगना उनके हत्थे लगने जा रहा है। दिल्ली के पांच सितारा अपोलो अस्पताल में किडनी रैकेट का भंडाफोड़ होने के बाद कोलकाता से राजकुमार को पकड़ा गया। राजकुमार से पता चला है कि अपोलो अस्पताल में फल-फूल रहे किडनी रैकेट के जाल  कोलकाता, दिल्ली, जालंधर, कोयंबटूर, हैदराबाद जैसे भारत के प्रमुख शहरों के अलावा नेपाल, श्रीलंका, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, ब्रिटेन, अमेरिका, म्यां‍मार तक फैल चुका है। यहां तक कि भारत में विकास का मॉडल बन चुके राज्य गुजरात के कई गांवों में भी किडनी के तस्करों का जाल फैल चुका है। दिल्ली में जिन पांच लोगों को पकड़ा गया है उनमें से दो लोग अपोलो अस्पताल के कर्मचारी हैं। अपोलो के कुछ चिकित्सकों पर पुलिस ने नजर गड़ा रखी है। अपोलो अस्पताल ने एक बयान जारी कर इस बात से इनकार किया है कि पकड़े गए लोगों का अपोलो अस्पताल से कोई संबंध नहीं है।

कोलकाता के राजकुमार ने मात्र तीन साल में अपना नेटवर्क तैयार कर लिया। वह 2005 से सक्रिय हुआ। 2008 से 2012 तक वह पूरी तरह जम गया। राजकुमार ने राजारहाट के निम्न‍ मध्यवर्गीय इलाके शिवतला में छोटा एक मकान खरीदकर वहां से अपना कारोबार शुरू किया। पहले बंगाल और बांग्लादेश में नेटवर्क तैयार किया। बंगाल में आसान था। वहां के अस्पतालों में नेटवर्क और राज्य सरकार की उदासीनता के चलते राह आसान रही। बंगाल में किडनी के कथित दानकर्ता आसानी से उपलब्‍ध भी हैं। हकीकत में उनकी किडनी औने-पौने दामों में खरीदकर उन्हें कागजों पर दानकर्ता दिखाना आसान हुआ करता है। इसमें बंगाल के स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों-अधिकारियों का बड़ा नेटवर्क भी शामिल है।

बंगाल के उत्तर दिनाजपुर के कई गांव एक तरह किडनी बाजार में बदल चुके हैं। किडनी दलालों का नेटवर्क सक्रिय है, जिसे राजकुमार चलाया करता रहा। दलालों का गिरोह गांव वालों से 20 से 70 हजार रुपये में किडनी खरीदता और बड़े अस्पतालों को बेच देता। ऐसा ही एक गांव है बिंडोल। 11 मौजे की इस पंचायत के अधिकांश बाशिंदे मछुआरे हैं। गरीबी के चलते यहां मानव अंगों के दलालों को बाजार खोलने का मौका मिल गया। छह साल पहले गांव के संगलू मछुआरे ने 80 हजार रुपये में किडनी बेची थी। उसकी देखा-देखी गांव के ही कई और लोगों ने 70 हजार- 80 हजार रुपये में अपनी किडनियां बेच डालीं। अब आलम यह है कि इस गांव हर बालिग शख्स सिर्फ एक किडनी पर जीवित है।

अस्पतालों में किडनी ट्रांसप्लांट के मरीज से 10 से 12 लाख रुपये तक वसूले जाते हैं। बंगाल के उस गांव में एक-एक परिवार में चार-चार लोग ऐसे हैं, जिन्होंने अपनी किडनी बेच डाली है। गांव वाले और किडनी खरीदने वाले के बीच चार से पांच लोग होते हैं जो एक-एक लाख रुपये अपना कमीशन रखते हैं। कानूनन किडनी बेचने वाले को न तो किसी तरह का लालच, धमकी दी जा सकती है या मजबूर किया जा सकता है। अपने किसी रिश्तेदार को या विशेष परिस्थिति में किसी दोस्त को किडनी दान की जा सकती है। इसके लिए सरकार का स्वास्थ्य विभाग अनुमति देता है। अनुमति लेने के लिए अनुमोदन समिति के सामने निजी तौर पर पेश होकर हलफनामा देना होता है। मानवीय आधार पर मिली इसी छूट का लाभ दलालों का नेटवर्क उठाता है।

बंगाल के निजी अस्पतालों में हर महीने 160 किडनी ट्रांसप्लाट कराई जाती हैं। राजकुमार ने किडनी ट्रांसप्लांट के इस विशाल बाजार में खुद को सबसे बड़ा कारोबारी तो बना ही लिया, अपना नेटवर्क बाहर भी फैला लिया। महज तीन साल के भीतर उसने नेपाल, म्यां‍मार, श्रीलंका यहां तक कि इंडोनेशिया में भी ऐसे गांव और इलाके ढूंढ़ निकाले, जहां के गरीब लोग आसानी से किडनी दान करने को तैयार हो गए।

राजकुमार के नेटवर्क में सक्रिय दीपक  कर का काम था फर्जी कागजात तैयार कराना। दिल्ली पुलिस ने उसे राजारहाट के पास के एक इलाके बागुईहाटी से गिरफ्तार किया। 2008 से 2012 तक उसे टी राजकुमार राव ने किडनी प्रदाता ढूंढऩे के काम में लगा रखा था। अरसे तक वह काम नहीं ला पाया तो उसे राजकुमार ने दूसरा काम दे दिया। किडनी दाता और किडनी ट्रांसप्लांट कराने वाला- दोनों के ही जाली कागजात तैयार कराने का काम। इस काम के लिए अस्पताल के वार्ड ब्वॉय से लेकर अदालत के क्ल‍र्क  तक का नेटवर्क दीपक ने बना रखा था। हर बार 10 हजार रुपये का कमीशन दीपक को मिलता था। डोनर को कोलकाता के एक निजी अस्पताल में लाया जाता था। शारीरिक जांच कराकर उसकी मेडिकल रिपोर्ट बनवाई जाती थी। इस मामले में कोलकाता, दिल्ली, चेन्नई और बेंगलूरु के कई नामी चिकित्सकों के नाम राजकुमार ने पुलिस को बताए हैं। कोलकाता के एक नामी नेफ्रोलॉजिस्ट के नियमित चेन्नई यातायात और उनके संपर्क के दिल्ली और कोयंबटूर में कराए गए किडनी ट्रांसप्लांस की केस हिस्ट्री भी खंगाली जा रही है। राजकुमार और दीपक कर से पूछताछ के आधार पर अब तक 10 लोगों को पकड़ा गया है। इसमें भानु प्रताप को कानपुर से पकड़ा गया, जो दिल्ली में किडनी ट्रांसप्लांट कराने वालों और राजकुमार के नेटवर्क के बीच एक तरह से लिंक-मैन का काम करता था। भानु प्रताप की टीम के दंपति उमेश और नीलू, दिल्ली से मौमिता आदि को पकड़ा गया है, जिन्होंने अपनी किडनियां चार-चार लाख रुपये में बेची और बेशुमार दौलत के लालच में इस नेटवर्क में शामिल हो गए।

इंटरनेट पर किडनी की बिक्री: सुरक्षा एजेंसियों की आंखों में धूल झोंककर इंटरनेट पर किडनी की खरीद-बिक्री धड़ल्ले से जारी है। यहां एक किडनी के 70 लाख तक मिल जाते हैं। 35 लाख ऑपरेशन के पहले और बाकी ऑपरेशन के बाद। इंटरनेट की दुनिया में डॉञ्चटर रॉबर्ट परिचित नाम है, जो दिल्ली में किडनी ट्रांसप्लांट के लिए इंटरनेट पर डोनर का जुगाड़ करता है। बाकायदे फोन नंबर, ईमेल आईडी दे रखा है अपने कई द्ब्रलॉग्स पर। उसके  विज्ञापनों में दिल्ली के अपोलो अस्पताल का भी नाम प्रमुखता से रहता है। हालांकि अपोलो के प्रवञ्चता ने इस तरह के विज्ञापनों को अस्पताल का नाम खराब करने की साजिश बताया है।

इंटरनेट पर अधिकतम एक लाख 50 हजार अमेरिकी डॉलर का भुगतान करने की बात की जाती है। मलेशिया, इंडोनेशिया, अमेरिकी, ब्रिटेन के लिए किडनी हो तो उतने मिलेंगे। भारत में भुगतान 25 से 70 लाख है। बेंगलूरु से कोई डॉञ्चटर लुइस मॉरिस नाम व्यञ्चित किडनी के डोनर ढूंढऩे के लिए वेबसाइट चलाता है। इसी तरह मुंबई में डेविड ग्रे के नाम से इंटरनेट पर यह कारोबार चलता है। सरकारी नागरिक और सुरक्षा एजेंसियां अभी तक इंटरनेट पर किडनी के अवैध कारोबार को लेकर अंधेरे में हैं। बंगाल के स्वास्थ्य सचिव विश्वरंजन सत्पथी के अनुसार, 'अभी तक इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। हम जल्द ही पुलिस की साइबर सेल को जांच के लिए कह रहे हैं। यह जानकारी अन्य राज्यों को भी भेजी जाएगी।

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