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सडक़ों पर रौदे सैकड़ों टन टमाटर

किसानों के लिए अभिशाप बना सर्जिकल स्ट्राइक और नोटबंदी
मंड‌ियों में क‌िसानों को फसल के खरीदार नहीं ‌म‌िललि रहे

राष्ट्रीय स्तर पर सर्जिकल स्ट्राइक और नोटबंदी भले ही सरकार और देश के लिए नाक का सवाल रहा हो लेकिन छत्तीसगढ़ के टमाटर उत्पादक किसानों के लिए तो यह अभिशाप साबित हुआ। पिछले दो महीनों में राज्य के किसानों ने सैकड़ोंटन टमाटर या तो सडक़ों पर फेंककर रौंदे या फिर खेतों में मवेशियों को चरा दिए। यहां तक कि सब्‍जी उत्पादकों ने सरकारी फैसलों के विरोधस्वरूप राजधानी रायपुर में टनों सब्‍जी फ्री में बांटी जिसकी कीमत लगभग एक करोड़ रुपये से अधिक है।

दरअसल छत्तीसगढ़ के दो जिले जशपुर और दुर्ग ऐसे हैं जहां से टमाटर के अलावा शिमला मिर्च, लौकी और दूसरी सद्ब्रिजयां पाकिस्तान व नेपाल को निर्यात होती हैं। जिस समय खेतों में यह सद्ब्रिजयां लग चुकी थीं उसी समय भारत के कश्मीर के उरी सेक्‍टर में सेना के कैंप पर आतंकी हमला हुआ जिसमें 18 जवान शहीद हुए। देशव्यापी आक्रोश के चलते सरकार ने पीओके में सर्जिकल स्ट्राइक कर दिया। नतीजा यह हुआ कि कुछ समय के लिए पाकिस्तान के साथ व्यापार बंद हुआ और छत्तीसगढ़ से दिल्ली के रास्ते जाने वाले टमाटर और अन्य सद्ब्रिजयों के निर्यात पर रोक लग गई। कमोबेश कुछ ऐसा ही छत्तीसगढ़ से लगे विदर्भ के संतरा किसानों के साथ भी हुआ। हालांकि छत्तीसगढ़ के किसानों ने इससे निजात पाने को जैसे तैसे स्थानीय बाजार में संभावना टटोली थी लेकिन8 नवंबर 2016 को अचानक आए नोटबंदी के फैसले ने किसानों की कमर तोड़ दी। बाजार के मुहाने पर खड़ी फसल लेने वाले बिचौलियों ने हजार-पांच सौ के नोट नहीं चलने और बाजार से कैश गायब होने का हवाला देते हुए किसानों को खून के आंसू रोने को मजबूर किया। पहले तो जशपुर जिले के पत्थलगांव और बगीचा के किसानों ने विरोधस्वरूप सडक़ों पर टमाटर फेंके और उसे ट्रैक्‍टर से रौंदा। लगभग 20 दिनों बाद राज्य के दुर्ग जिले के धमधा के किसानों ने भी सैकड़ों टन टमाटर सडक़ों पर फेंककर रौंदा। विरोध का दूसरा तरीका किसानों ने तब निकाला जब लगभग सभी किस्म की सद्ब्रिजयां बाजार में आ गईं और भाव न मिलने के कारण सडऩे लगीं। तब सब्‍जी उत्पादक किसानों के संगठन छत्तीसगढ़ युवा प्रगतिशील किसान संघ ने फैसला लिया कि क्‍यों न सरकार की नाक के नीचे राजधानी रायपुर में सद्ब्रिजयंा फ्री में बांटी जाएं। फलत: किसानों ने 2 जनवरी को रायपुर के बूढ़ातालाब के पास सद्ब्रिजयां फ्री में बांट दीं। दरअसल यह उस राज्य के किसानों का हाल है जहा की सरकार को किसानों की बेहतरी के नाम पर चार बार राष्ट्रीय कृषि कर्मण पुरस्कार मिला हैं। राज्य के टमाटर उत्पादक किसानों की समस्या के मद्देेनजर राज्य के कृषि मंत्री बृजमोहन अग्रवाल का कहना है कि हम राज्य में सब्‍जी की बढ़ती पैदावार को देखते हुए कोल्डस्टोरेज बनाने के दिशा में काम कर रहे हैं और यदि बड़े किसान इसे बनाना चाहें तो सरकार उन्हें सद्ब्रिसडी देगी। गौरतलब है कि यूपीए की सरकार में छत्तीसगढ़ के डॉ. चरणदास महंत केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्री थे और उस समय टमाटर उत्पादक किसान उनसे बार-बार यही मांग कर रहे थे कि राज्य में टमाटर की बढ़ती फसल को देखते हुए फूड प्रोसेसिंग प्लांट के लिए कोशिश की जाए लेकिन ऐसा नहीं हो पाया और नतीजा यह है कि हर साल ही अब रबी के सीजन में टमाटर सडक़ो पर फेंके जा रहे हैं। इधर धान उत्पादक किसान पिछले दो साल से 300 रुपये बोनस की मांग कर रहे ही हैं। वैसे तो छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है लेकिन राज्य बनने के बाद पहले मुख्‍यमंत्री बने अजीत जोगी ने फसल चक्र परिवर्तन का नारा देकर किसानों को रबी की फसल की तरफ मोड़ा था। उसका नतीजा यह हुआ कि रबी की अन्य फसलों के अलावा नगद फसलों के रूप में सब्‍जी की पैदावार का रकबा तो बढ़ा लेकिन सरकारी खरीद की कोई सुविधा नहीं है। बाजार के मुहाने पर खड़ी फसलों के दाम का सौदा बिचौलियों के तय करने के कारण किसानों की हालत खराब है। गौरतलब है कि पिछले साल मध्यप्रदेश में प्याज की बढ़ी पैदावार के बाद सरकार ने किसानों से प्याज खरीद लिया था हालांकि मंडियों में वह प्याज सड़ गया और बाद में सरकार ने उसे एक रुपये किलो बेचा लेकिन किसानों को फौरी तौर पर राहत तो मिल गई थी।

छत्तीसगढ़ प्रगतिशील किसान संघ के प्रदेश अध्यक्ष हितेश वरू की मानेंं तो सरकार सब्‍जी उत्पादक किसानों के प्रति ज्यादा गंभीर नहीं है। सरकार ने किसानों को राहत देने के कोई ठोस उपाय नहीं किए। इसलिए राजधानी में मुक्रत में सब्‍जी बांट दी। वरू ने बताया कि हमने सरकार से मांग की है कि आने वाले चार माह के लिए सब्‍जी उत्पादक किसानों के बिजली बिल माफ किए जाएं क्‍योंकि हमारा राज्य सरप्लस बिजली वाला है। दूसरी मांग है कि हमारे ऋण पर ब्‍याज माफ किया जाए।

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