पटना में गुरु गोबिंद सिंह के 350 प्रकाशोत्सव पर आयोजित समारोह में जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक-दूसरे की तारीफ की उसके कई राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं। इससे पहले जब दोनों नेता पटना में मिले थे तब इनके चेहरे दूरियों की कहानी बता रहे थे। इस बार नजारा दूसरा था। दोनों ने एक-दूसरे की तारीफों के कसीदे काढ़े। इसकेबाद नीतीश के राजग के नजदीक आने और लालू से दूर होने की चर्चा सरगर्म होने लगी। मंच पर नेताओं की मौजूदगी को लेकर शुरू हुए विवाद ने और भी हवा दी। कार्यक्रम में नीतीश कुमार मंच पर थे तो उनके महागठबंधन के सहयोगी राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव अपने मंत्री बेटों तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव के साथ सामने नीचे बैठे हुए थे। कुल मिलाकर जो स्थिति है उससे दबी जुबान में यह चर्चा शुरू हो गई है कि क्या नीतीश एक बार फिर से राजग के नजदीक जाएंगे क्योंकि ये खबरें भी आ रही हैं कि लालू उन पर बेजा दबाव बना रहे हैं।
मोदी ने पिछले साल आठ नवंबर को नोटबंदी का फैसला किया था। जहां कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल इस फैसले के खिलाफ थे वहीं नीतीश कुमार ने इसे साहसिक कदम बताया और इससे देश को फायदा होने की बात कही। इतना ही नहीं जब मोदी टाइम पत्रिका के सर्वे के दौरान शीर्ष पर चल रहे थे तब भी नीतीश ने उन्हें बधाई दी थी। इसके बाद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से लेकर पार्टी प्रवक्ता और बिहार भाजपा के कद्दावर नेता शाहनवाज हुसैन तक के सुर बदल गए। स्थिति में बदलाव की पहली झलक 21 जनवरी को देखने को मिल सकती है। इस दिन बिहार सरकार ने शराबबंदी को लेकर मानव शृंखला आयोजित करने का निर्णय लिया है। इसमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सभी दलों से इसमें भाग लेने की अपील की है। दूसरी ओर नीतीश के कदम भी कुछ इसी तरह की बात कह रहे हैं। नोटबंदी का समर्थन करने की बात करने के बाद भी वह इसकी समीक्षा करना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने जदयू की बैठक 23 जनवरी को बुलाई थी। पर अब उन्होंने कहा है कि इस समीक्षा के बारे में उनकी पार्टी में कोई जल्दबाजी नहीं है। बैठक इस दिन के बाद भी की जा सकती है। अभी सारा ध्यान शराबबंदी पर जन समर्थन के लिए मानव शृंखला पर है। विद्यार्थी परिषद के रास्ते भाजपा में आए और दीघा के विधायक संजीव चौरसिया ने कहा कि नीतीश के साथ आने के बारे में कहना अभी जल्दबाजी होगी पर सरकार के अच्छे काम की तारीफ की जानी चाहिए चाहे वह सरकार किसी की भी हो। राज्य में शराबबंदी अच्छा फैसला है। पार्टी इसके लिए 21 जनवरी को होने वाले मानव शृृंखला कार्यक्रम में भाग लेगी।
जिस तरह से पटना में मोदी और नीतीश कार्यक्रम के दौरान गर्मजोशी से मिले वह हैरान करने वाला था। हालांकि जदयू महासचिव केसी त्यागी इसे सामान्य शिष्टाचार बताते हैं। उनके अनुसार दोनों नेताओं के वैचारिक मतभेद जस के तस हैं। अलग विचारधारा का होने के बाद भी प्रधानमंत्री का स्वागत किया जाना संघीय ढांचे की मर्यादा का हिस्सा है। दूसरी ओर भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह कहते हैं, 'मैं कोई ज्योतिषी नहीं लेकिन राजनीति में कब क्या हो जाए, यह मालूम नहीं।’ भाजपा ने जदयू को राजग से बाहर नहीं निकाला बल्कि नीतीश कुमार ने भाजपा का साथ छोड़ दिया था। राजद नेता और बिहार के मंत्री अब्दुल गफूर का मानना है कि राजनीति में कोई स्थायी दुश्मन नहीं होता। भाजपा और जदयू को लेकर जो कयास लगाए जा रहे हैं वे सच भी हो सकते हैं। इस मुलाकात पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि मंच पर हम दोनों के बीच कोई राजनीतिक चर्चा नहीं हुई थी।
महागठबंधन की सरकार के गठन के समय से ही लालू यादव सरकार पर अपना दबदबा कायम कायम रखे हुए हैं। दोनों बेटों को भारी मंत्रालय दिलाना इसका उदाहरण है। अब वह चाहते हैं कि उनके बेटे राज्य में निर्विवाद नेता के रूप में उभरें। इसके लिए उन्होंने कोशिश भी शुरू कर दी। इसी बीच बिहार में शराबबंदी लागू होने के बाद नीतीश कुमार का राजनीतिक कद तेजी से बढऩे लगा। इससे लालू परेशान हो गए। उन्होंने सरकार पर दबाव बढ़ाया। यह नीतीश को सचेत करने वाला था। ऐसे में नीतीश भी मौके की तलाश में थे। जब लालू ने नोटबंदी के खिलाफ जाने की बात कही तो नीतीश उसके समर्थन में आ गए। यानी वह भी इस मौके की तलाश में हैं कि अगर लालू से पल्ला झाडऩा पड़े तो उनके पास उचित कारण भी हो। गुरु गोबिंद सिंह के प्रकाश पर्व पर आयोजित कार्यक्रम में वे चाहते तो लालू की वरिष्ठता को ध्यान में रखते हुए उन्हें मंच पर बुला सकते थे पर उन्होंने चुप रहना ही बेहतर समझा। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि भोजन छीनने के बयान से शुरू हुई लड़ाई शराबबंदी पर तारीफ के बाद क्या मोड़ लेती है।