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योजनाओं का तिलिस्म

नोटबंदी के बाद सरकार ने कई योजनाओं की घोषणा की, लेकिन कुछ पहले से ही प्रचलन में
घोषणाएं तो कई लेक‌िन अाम अादमी के  ल‌िए राहत क‌ितनी?

गाहे-बगाहे कांग्रेस कहती रही है कि राजग (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) सरकार ऐसी कई योजनाओं को थोड़े-बहुत बदलाव या फिर नाम बदलकर लागू कर रही है जो संप्रग (संयुक्‍त प्रगतिशील गठबंधन) सरकार के समय से चल रही हैं। अब कुछ यही बात भाजपा की सहयोगी शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने भी कही है। दरअसल नोटबंदी के 50 दिन बाद 31 दिसंबर कोप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर राष्ट्र को संबोधित किया। अपने संबोधन के दौरान उन्होंने आम आदमी को राहत देने के लिए कई ऐलान किए। वरिष्ठ नागरिकों, किसानों, महिलाओं, उद्यमियों और छोटे कारोबारियों की सहायता के लिए प्रधानमंत्री ने कई तरह की छूटों की घोषणा की।

मसलन वरिष्ठ नागरिकों के लिए सरकार ने 7.5 लाख रुपये तक की राशि पर 10 साल तक के लिए वार्षिक ब्‍याज दर आठ प्रतिशत तय कर दी है। वरिष्ठ नागरिक चाहें तो ब्‍याज की राशि हर माह भी पा सकते हैं। सरकार ने यह कदम इसलिए उठाया है कि ब्‍याज दर घटने की स्थिति में वरिष्ठ नागरिकों पर इसका असर न पड़े। इसी तरह किसानों को कर्ज पर ब्‍याज में छूट देने का ऐलान भी किया है। डिस्ट्रिक्‍ट कॉपरेटिव सेंट्रल बैंक और प्राइमरी सोसायटी से खरीफ और रबी की बुआई के लिए जिन किसानों ने कर्ज लिया है उनके कर्ज पर लगने वाले 60 दिन का ब्‍याज सरकार वहन करेगी और सीधे किसानों के खाते में ट्रांसफर कर देगी।

इस तरह की राहतों पर तो किसी ने भी सरकार की आलोचना नहीं की, लेकिन कुछ योजनाओं पर जरूर शिवसेना और अन्य दलों ने सरकार को आड़े हाथों लिया है। खासतौर से गर्भवती महिलाओं के लिए शुरू की गई योजना पर। सरकार ने एक देशव्यापी योजना शुरू की है जिसके तहत गर्भवती महिलाओं को अस्पताल में पंजीकरण और डिलिवरी, टीकाकरण और पौष्टिक आहार के लिए 6 हजार रुपये की आर्थिक मदद की जाएगी। यह राशि गर्भवती महिलाओं के खाते में ट्रांसफर की जाएगी। सरकार के मुताबिक यह योजना अब तक देश के सिर्फ 53 जिलों में पायलट प्रोजेक्‍ट के तहत चलाई जा रही थी और आर्थिक मदद के तौर पर चार हजार रुपये दिए जा रहे थे। यह किसी से छिपा नहीं है कि गर्भवती महिलाओं को पर्याप्त पोषण नहीं मिल पाता है। मातृ मृत्यु दर को कम करने के लिए इस तरह की योजना की निश्चित ही दरकार है। लेकिन शिवसेना और अन्य दलों का तर्क है कि जच्चा को 6,000 रुपये देने की योजना खाद्य सुरक्षा कानून, 2013 के तहत पहले से ही चल रही है।

आलोचकों का कहना है कि सिर्फ यही नहीं, अन्य कई योजनाएं भी संप्रग सरकार के समय से या फिर राजग सरकार के कार्यकाल में पहले से ही चल रही हैं। एक बिजनेस अखबार ने तो इस बारे में तथ्यवार ब्‍यौरा भी दिया है। इसके तहत पिछली सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 (एनएफएसए) पारित कर गर्भवती महिलाओं को न्यूनतम 6,000 रुपये उपलब्‍ध कराना कानूनी रूप से बाध्यकारी बना दिया था। इसी तर्ज पर एक योजना -इंदिरा गांधी मातृत्व सहयोग योजना (आईजीएमएसवाई) 2013 से ही कार्यान्वित की जा रही है। एनएफएसए लागू होने के बाद भी एनडीए सरकार ने केवल चुनिंदा जिलों में दो

वर्षों तक इस योजना को जारी रखा और 6,000 रुपये (4,000 रुपये नहीं) उपलब्‍ध कराए लेकिन कई शर्तों के साथ। राजग सरकार ने 2016-17 में इस योजना के लिए सिर्फ  400 करोड़ रुपये आवंटित किए।

आलोचकों का कहना है कि कई तरह की शर्तों (जो कानून में पहले नहीं थी) की वजह से इस योजना का लाभ महज 20 फीसदी महिलाओं को मिल पा रहा है। 

हां, प्रधानमंत्री की 31 दिसंबर को की गई घोषणा ने इस योजना का देश भर में विस्तार जरूर कर दिया है। रही बात शर्तों की तो सरकार की दलील है कि इन शर्तों का मकसद लोगों के व्यवहार में बदलाव लाना है। एक मोटा अनुमान है कि अगर राजग सरकार सभी महिलाओं को यह सुविधा प्रदान करे तो हर वर्ष 15,000 करोड़ रुपये से लेकर 18,000 करोड़ रुपये का प्रावधान करना होगा। वैसे कई तरह की शर्तों की वजह से सरकार को अपने बजटीय खर्च में कमी करने की सुविधा जरूर मिल गई है। 

किसानों की सहायता के लिए घोषित योजनाओं में एक यह भी है कि सरकार 3 करोड़ किसान क्रेडिट कार्डों (केसीसी) को रुपे कार्ड में बदलेगी। जिन किसानों के पास क्रेडिट कार्ड हैं उन्हें अगले तीन महीनों में रुपे डेबिट कार्ड दे दिए जाएंगे। किसान क्रेडिट कार्ड में एक कमी यह थी कि पैसे निकालने के लिए बैंक जाना पड़ता था लेकिन रुपे डेबिट कार्ड का किसान कहीं भी इस्तेमाल कर पाएंगे। लेकिन तथ्य बताते हैं कि किसान क्रेडिट कार्ड के मुकाबले रुपे एवं अन्य डेबिट कार्डों का प्रावधान 2012 से ही अस्तित्व में रहा है। लेकिन इसे सभी किसानों को कर्ज लेने के लिए अनिवार्य रूप से उपलब्‍ध नहीं कराया गया था। मई 2012 से ही भारतीय रिजर्व बैंक ने प्रावधान किया है कि बैंक एटीएम के जरिये कर्ज की निकासी के लिए किसानों को डेबिट कार्ड दे सकते हैं। नवंबर 2012 में तत्कालीन वित्त मंत्री ने घोषणा की थी कि 19 बैंक रुपे कार्ड उपलब्‍ध कराएंगे। लोकसभा में दिया गया एक जवाब भी बताता है कि 2013-14 के दौरान किसान क्रेडिट कार्ड के मुकाबले 56.60 लाख रुपे कार्ड जारी किए गए।

शहरों में गरीबों के पास भी अपना घर हो इसके लिए प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत दो नई योजनाएं बनाई गई हैं। इन योजनाओं के तहत 2017 में घर बनाने के लिए 9 लाख रुपये तक के कर्ज पर ब्‍याज में 4 प्रतिशत और 12 लाख रुपये तक के कर्ज पर ब्‍याज में 3 प्रतिशत तक की छूट दी जाएगी।

जानकारों का मानना है कि प्रधानमंत्री आवास योजना उस इंदिरा आवास योजना का संशोधित संस्करण है जो पहले से ही चल रही है। सभी के लिए आवास की प्रतिबद्धता के साथ चलाई जा रही इस योजना के तहत सरकार का लक्ष्य 2022 तक 2 करोड़ घरों का निर्माण करना है। अभी तक 6 लाख रुपये तक के ऋण के लिए कई शर्तों के तहत 6.5 प्रतिशत तक की ब्‍याज छूट उपलब्‍ध थी।

सालाना तीन लाख रुपये तक कमाने वालों के लिए 30 वर्ग मीटर और तीन लाख रुपये से 6 लाख रुपये तक कमाने वालों के लिए 60 वर्ग मीटर के एक आवास की अनुमति दी गई है। देखा जाए तो यह घोषणा वर्तमान में दी जा रही राहत या सहायता का ही विस्तार है।

वस्तुत: नीतियों और योजनाओं को लेकर सरकार और विपक्ष के बीच श्रेय लेने की होड़ मची रहती है। संप्रग सरकार जब सत्ता में आई थी तो उसके बारे में भी ऐसा ही कहा गया था, जो आज राजग सरकार के बारे में कहा जा रहा है। मोदी सरकार जब पेंशन और बीमा योजनाओं को लेकर आई थी तब भी कांग्रेस ने कहा था कि सरकार ने कुछ नया नहीं किया है सिर्फ योजनाओं में कुछ बदलाव कर दिया है। मोदी सरकार के समर्थकों का दावा है कि अगर किसी पुरानी योजना में खामी है तो उसे बेहतर तो बनाया ही जाएगा। सरकार का मकसद जनकल्याण नीतियों को बेहतर तरीके से क्रियान्वित करना है ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग उससे लाभान्वित हो सकें। 

 

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