उत्तर प्रदेश का चुनावी समर जीतने के उद्देश्य से भारतीय जनता पार्टी ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक संगम तट पर आयोजित कर हिंदुत्व और विकास के मुद्दे के साथ चुनावी शंखनाद कर दिया। बैठक में पूरा ध्यान भी उत्तर प्रदेश पर ही केंद्रित रहा। पार्टी ने कांग्रेस मुक्त भारत के बजाय सपा-बसपा मुक्त उत्त प्रदेश का नारा दिया। इसलिए पार्टी में उपेक्षित उन नेताओं को भी महत्व दिया गया जो किनारे कर दिए गए थे। पार्टी के मार्गदर्शक मंडल के सदस्य लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को जिस तरह महत्व मिला उससे कार्यकर्ताओं को यह संदेश देने की पुरजोर कोशिश हुई कि किसी की उपेक्षा नहीं हो रही है। कार्यकारिणी की बैठक के संबोधन में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विशेष तौर पर मुरली मनोहर जोशी का नाम लिया और कहा भी कि 'पूरब का ऑक्सफोर्ड’ कहे जाने वाले इलाहाबाद विश्वविद्यालय से वह जुड़े रहे हैं। भाषण के दौरान मोदी ने जोशी का कई बार नाम भी लिया। इससे कयास लगाए जाने लगे कि आने वाले दिनों में जोशी को कोई महत्वपूर्ण जिम्मेवारी दी जा सकती है। इसी तरह केंद्रीय मंत्री कलराज मिश्र की भी मोदी ने जमकर तारीफ की। मोदी ने कहा कि कलराज मिश्र मेरे पुराने दोस्त हैं और वह ऐसे पहले राष्ट्रीय नेता हैं जिनसे मैं भाजपा और जनसंघ में मिला। इसको लेकर भी कयास लगना शुरू हो गया कि क्या मिश्र उत्तर प्रदेश में भाजपा का चेहरा होंगे। इसी तरह परिवर्तन रैली में भी मंच पर नेताओं को सियासी समीकरण के हिसाब से स्थान दिया गया। मंच पर लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, राजनाथ सिंह, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के अलावा अपना दल की सांसद अनुप्रिया पटेल के अलावा प्रदेश के पूर्व अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी को स्थान मिला। यह सब सियासी दांव था। इतना ही नहीं, पार्टी के साथ बगावती तेवर अपनाने वाले शत्रुघ्न सिन्हा और नवजोत सिंह सिद्धू को भी कार्यकारिणी की बैठक में महत्व मिला। पहली बार भाजपा कार्यकारिणी का हिस्सा बने उत्ताखंड के पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा को इस दौरान सक्रिय देखा गया। यह सारी कवायद उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के मद्देनजर हो रही थी। इतना ही नहीं, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने विशेष तौर पर प्रदेश के सांसदों के साथ बैठक की और निर्देश दिया कि किसी भी तरह चुनाव को भाजपा के पक्ष में करना है। सूत्र बताते हैं कि शाह ने सांसदों के प्रति नाराजगी जताई कि लोकसभा की 80 सीटों में से 71 भाजपा के पास है। इसके बावजूद प्रदेश में पार्टी के प्रति माहौल क्यों नहीं बन पा रहा है। शाह इस बात पर भी नाराज हुए कि प्रदेश में मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार कौन होगा इसको लेकर लॉबिंग की जा रही है। शाह ने साफ तौर पर निर्देश दिया कि अब सांसदों का अपने क्षेत्र में रहना अनिवार्य होगा। भाजपा अध्यक्ष ने एक सर्वेक्षण का हवाला देते हुए कहा कि सांसद अपने क्षेत्र में कम समय दे रहे हैं। कार्यकारिणी में नरेंद्र मोदी और अमित शाह का जो तेवर था उससे साफ तौर पर एक बात समझ में आ रही थी कि उत्तर प्रदेश के लिए रोडमैप तैयार है। इसलिए कई नेताओं के पूछे जाने पर कि प्रदेश का मुख्यमंत्री कौन होगा, शाह ने नाराजगी जताई। शाह ने साफ तौर पर कहा कि समय आने पर बता दिया जाएगा कि किसको क्या जिम्मेवारी दी जा रही है। इसके साथ ही पार्टी का एजेंडा भी तय हो गया कि हिंदुत्व और विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ा जाएगा। इसके लिए बार-बार कैराना, दादरी की बात होती रही और साथ ही यह भी बताया गया कि केंद्र सरकार की योजनाओं से आम जनता को कितना लाभ हुआ है।
कार्यकारिणी की बैठक में भाजपानीत एनडीए सरकार की दो साल की उपलब्धियों पर राजनीतिक प्रस्ताव भी पास हुआ जिसमें कहा गया कि आजादी के बाद पहली बार बड़े पैमाने पर गरीबों के लिए 21.81 करोड़ खाते, 31 करोड़ लाभार्थी को डीबीटी के माध्यम से 61 हजार 822 करोड़ रुपये का सीधा लाभ, मुद्रा योजना में 3 करोड़ 48 लाख लोगों को 1 लाख 37 हजार 449 करोड़ रुपये का वितरण सरकार की उपलब्धियों को दर्शाता है। बैठक में यह भी कहा गया कि आज भाजपा देश में एकमात्र राष्ट्रव्यापी पार्टी है। कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा गया कि कांग्रेस दिन-प्रतिदिन संकुचित हो रही है और दूसरी राजनीतिक पार्टियों का सीमित क्षेत्रीय आधार है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का एजेंडा भी इस कार्यकारिणी की बैठक के साथ शुरू हो गया। बैठक में तय किया गया कि मोदी सरकार के काम को हर घर तक पहुंचाया जाए। इसके साथ ही पंजाब में विधानसभा चुनाव के मद्देनजर श्यामा प्रसाद मुखर्जी, पंडित दीनदयाल के साथ ही गुरु गोविंद सिंह के नाम को भी संगठनात्मक अभियान का हिस्सा बनाया गया है। 23 जून से 23 जुलाई तक बूथ-बूथ अभियान चलाया जाएगा। सितंबर-अक्टूबर में संगठनात्मक कार्य किए जाएंगे। पार्टी के नए सदस्यों का डाटा बेस बनाया जाएगा ताकि उनको भाजपा की नीतियों से अवगत कराया जा सके। नरेंद्र मोदी ने कार्यकर्ताओं के आचरण और नीतियों की दृष्टि से सात सूत्र वाक्य भी दिए जिसमें सेवाभाव, संतुलन, संयम, समन्वय, सकारात्मकता, सद्भावना और संवाद के जरिये लक्ष्य प्राप्त करने का संदेश दिया गया।
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पूर्वी उत्तर प्रदेश में सवा सौ सीटों पर निगाहें
भारतीय जनता पार्टी की कार्यकारिणी की बैठक और परिवर्तन रैली में एक ही स्वर उभर कर सामने आया कि भाजपा मिशन यूपी 2017 और 2019 के लोकसभा चुनाव में जीत के लिए कोई भी कोर कसर नहीं छोड़ेगी।
सपा-बसपा मुक्त उत्तर प्रदेश के भाजपा के अभियान 2017 में विभानसभा का चुनाव अग्नि परीक्षा मानते हुए भाजपा का मुख्य लक्ष्य पूर्वी उत्तर प्रदेश की सवा सौ सीटों पर किसी भी तरह जीत हासिल करना है। भाजपा अध्यक्ष ने समाजवादी पार्टी से अपनी पार्टी की सीधी टक्कर मानते हुए पहले ही कह दिया, 'हमारा मुकाबला सपा से है।’ उन्होंने भाजपा के 14 साल के वनवास (भगवान राम की तरह) को समाप्त करने के लिए कार्यकारिणी बैठक में जो रोडमैप तैयार किया है, उसमें पूर्वी उत्तर प्रदेश को अत्यंत कठिन और चुनौती भरा क्षेत्र माना है। लोकसभा चुनावों में एनडीए को 73 सीटें देने वाले उत्तर प्रदेश के रास्ते ही नरेंद्र मोदी का प्रधानमंत्री पद तक पहुंचना सुगम हो सका था। भाजपा के लिए उत्तर प्रदेश का चुनाव जीवन-मरण का प्रश्न इसलिए भी है कि पिछले आम चुनाव 2014 में भाजपा को मिली एकतरफा जीत और विधानसभा की सीटों पर भी जीत में बदल पाना ही अगली लोकसभा में भाजपा की स्थिति का सूचक होगा।
भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में एक बड़ी दिक्कत यह उभर कर सामने आई कि यूपी में चेहरा कौन होगा। मुख्यमंत्री के भावी चेहरे को यूपी के अब तक के सबसे कम उम्र के युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती का सामना करना है। राजभवनों तक पहुंचे भाजपा के कई वरिष्ठ नेताओं, सांसदों, केंद्रीय मंत्रिमंडल के सदस्यों में यूपी चुनाव को लेकर रोमांच नहीं दिख रहा है। इनमें से कोई अपना कॅरिअर दांव पर नहीं लगाना चाहता है और केंद्रीय मंत्रिमंडल में ही बने रहना चाहते हैं। भाजपा के शीर्ष मंडल में केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह और लघु उद्योग मंत्री कलराज मिश्र को मैदान में उतारने की चर्चा जोरों पर है। ठाकुर लॉबी भी नहीं चाहती कि राजनाथ सिंह दिल्ली छोड़ें। कांग्रेस के चुनाव प्रबंधक प्रशांत किशोर की ब्राह्मण केंद्रित चालों के मुकाबले कलराज मिश्र को सटीक चेहरा माना जा सकता है।
भाजपा के सामने अपने 71 और अपना दल के दो सांसदों के कामकाज, खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय इलाके वाराणसी में हुए विकास कार्यों का लेखा-जोखा प्रस्तुत करने की बड़ी चुनौती है।
अमितांशु पाठक