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संघ के सहारे मिलेगी सत्ता

भाजपा की असली ताकत आरएसएस के संगठन ने चुनावी प्रदेशों में कमल खिलाने के लिए कस ली है कमर
भाजपा मुख्यालय पर टिकट के दावेदार

ग्यारह अशोक रोड का बंगला पिछले दिनों भूकंपी झटकों की तरह हिलता रहा। अल सुबह से देर शाम तक तरह-तरह के चेहरों से यह दफ्तर गुलजार रहा है। मेटल डिटेक्‍टर से गुजर रहे लोगों की आवाजाही से लगातार होने वाली आवाज भी इस शोर में गुम गई है। सफेद कुरता-पाजामा और केसरिया दुपट्टेधारियों को इस कमरे से उस कमरे तक दौड़ते अपनेसमर्थकों की फिर एक बार गिनती करते आसानी से देखा जाता रहा। दिल्ली की ओर आस लगाए बैठे उम्‍मीदवारों को जल्दी थी कि नाम तय हो तो वे अपने-अपने क्षेत्रों में लौटें और काम शुरू करें।

कार्यकर्ताओं, समर्थकों, स्थानीय नेताओं, बागियों और बाहरी उम्‍मीदवारों के बीच संतुलन बनाना इस बार भारतीय जनता पार्टी के लिए टेढ़ी खीर साबित हुआ। यूं तो उत्तर प्रदेश सहित गोवा, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर में भी विधानसभा चुनाव हैं जिसमें से पंजाब में अकाली दल के साथ और गोवा में खुद के दम पर भाजपा की सरकार है। इस बार भाजपा को मौजूदा दोनों सरकारों को बचाने के साथ उत्तराखंड की कांग्रेस सरकार को भी पटखनी देनी है। बिहार की करारी हार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अध्यक्ष अमित शाह दोहराना नहीं चाहते हैं और यही वजह है कि येन-केन प्रकारेण इन राज्यों में जीत चाहते हैं। लेकिन उनकी हालत अभी बिलकुल वैसी ही है, साहिल को मनाओ तो किनारा रूठ जाता है। चुनाव जीतने के लिए उन्हें जिताऊ उम्‍मीदवार चाहिए फिर चाहे कोई ऐसा नेता ही क्‍यों न हो जो सुबह भाजपा में शामिल होकर शाम को विधानसभा का टिकट ले जाए। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में बाहरी उम्‍मीदवारों के नाम की घोषणा से भाजपा के घर में मचे घमासान में अब पार्टी को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का ही सहारा है। उत्तराखंड के प्रांत प्रचारक युद्धवीर सिंह और क्षेत्र प्रचारक आलोक कुमार दिल्ली में आकर भाजपा नेताओं से मिले हैं ताकि उत्तराखंड में बागियों को संतुष्ट किया जा सके। कांग्रेस उत्तराखंड में भाजपा के 5 बागियों को टिकट दे चुकी है। हिसाब बराबर करने का यह खेल नामांकन भरने के बाद नाम वापसी तक चलता रहेगा। 

दरअसल भाजपा का डीएनए डबल हैलिक्‍स है। जिसका एक तार भाजपा है तो एक संघ। कहने का अर्थ यह कि भाजपा और संघ आपस में गुंथे हुए हैं। भाजपा को संघ के संगठन और जमीनी पहुंच का हमेशा से फायदा मिलता है। भाजपा में हर प्रदेश के संगठन महामंत्री अनिवार्य रूप से संघ से ही आते हैं। इस बार उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में बागियों के बढ़ते सुर पर काबू पाने के लिए एक बार फिर पार्टी संघ की शरण में है। संघ के सह कार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने तो लखनऊ में अपना केंद्र बना लिया और पिछले चार महीने से वहीं डेरा जमाए रहे। चुनाव की छोटी से छोटी गतिविधियों पर दत्तात्रेय होसबाले की नजर है। लेकिन बागियों की कलह से वह भी असहज महसूस कर रहे हैं। संघ से जुड़े सूत्र बताते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी ने खुद संगठन मंत्रियों के साथ बैठक की है। दिल्ली हाईकमान को भी लग रहा है कि पार्टी कार्यकर्ताओं का यह असंतोष बूथ स्तर तक जाएगा और हिसाब गड़बड़ा जाएगा। बूथ स्तर का प्रबंधन हमेशा की तरह इस बार भी संघ के पास है। बागियों की वजह से उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश को लेकर पार्टी खासी चिंतित है और अपने कार्यकर्ताओं को मनाने की कोशिश में जुट गई है।

जिला स्तर के असंतुष्ट बड़े नेताओं को मनाने के लिए संघ प्रयास में जुट गया है। दोनों प्रदेश के संगठन महामंत्रियों को जिम्‍मेदारी सौंपी गई है कि वे नेताओं के साथ कार्यकर्ताओं तक भी यह बात पहुंचाएं कि पार्टी की जीत में ही उनकी जीत है। भाजपा के एक बड़े नेता कहते हैं, जब कोई हमारे घर आ गया तो वह बाहरी कैसे होगा। बाहरी-बाहरी चिल्लाने से अच्छा है, सब मिल कर काम करें। किसी भी कार्यकर्ता की अनदेखी नहीं होगी। कार्यकर्ताओं के नाराज हो कर चुनाव प्रक्रिया से अलग हो जाने की चिंता के कारण यह संदेश भी अपरोक्ष रूप से है कि सरकार बनने पर संगठन में इन लोगों को जगह दी जाएगी। जबकि सभी को कहीं न कहीं जगह देना व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है यह सभी जानते हैं। लेकिन बड़े नेताओं, जमीनी स्तर पर अच्छी पकड़ वाले कार्यकर्ताओं को मनाने में संघ कोई कसर छोडऩे की भूल नहीं करना चाहता। यह पहली बार है कि भाजपा ने इतनी बड़ी संख्‍या में बाहरी लोगों के लिए अपने दरवाजे खोल दिए हैं। उत्तर प्रदेश में कुल 403 सीटों में से 15 सीटें भाजपा अपने सहयोगी दल, अपना दल और सुहेल देव भारती समाज पार्टी को देने के मूड में रही।  उत्तर प्रदेश में स्वामी प्रसाद मौर्य और रीता बहुगुणा जोशी, उत्तराखंड में यशपाल आर्य और विजय बहुगुणा को लेकर सबसे ज्यादा असंतोष है। उत्तर प्रदेश के प्रदेश कार्यालय में लगभग हर रोज, कांग्रेस में रहते हुए भाजपा पर हमला करती रीता जोशी की कभी मोबाइल फोन पर बनाई ‌िक्‍लपिंग तो कभी सीडी लेकर भाजपा कार्यकर्ता पहुंचते रहे। लेकिन भाजपा का गणित इन दोनों के लिए अलग है। स्वामी प्रसाद मौर्य की उत्तर प्रदेश की राजनैतिक जमीन पर अच्छी पकड़ है। वह कई दांव-पेच में भी माहिर हैं। लेकिन उनका विरोध इसलिए भी जोर पकड़ रहा है

क्‍योंकि वह अपने साथ अपने करीबियों के लिए भी टिकट चाहते हैं। इसी तरह रीता बहुगुणा जोशी से पार्टी एक तीर से दो शिकार करना चाहती है। उत्तर प्रदेश के पर्वतीय ब्राह्मण समाज पर उनकी पकड़ है और उत्तराखंड में उनके भाई विजय बहुगुणा के भाजपा में आने से वहां भी फायदा होगा। वहीं यशपाल आर्य उत्तराखंड का दबंग दलित चेहरा है। वह सन् 2012 के चुनाव में मुख्‍यमंत्री पद के दावेदार थे। वह सुबह भाजपा में शामिल हुए और शाम को उन्हें बेटे सहित टिकट देने पर संघ ने भी नाराजगी जताई है। इस बार चुनाव में भाजपा के पास अपने घोषणा पत्र से ज्यादा तो विरोध की सूची है। ब्रजेश पाठक, राजा अरिदमन सिंह, हेमलता दिवाकर, महावीर राणा, जितेंद्र वर्मा, राजपाल त्यागी, अनिल शर्मा उत्तर प्रदेश में, तो हरक सिंह रावत, सतपाल महाराज, रेखा आर्य, शैलेंद्र मोहन, कुंवर प्रणव सिंह उत्तराखंड में भाजपा की जान सांसत में डाले हुए हैं।

हालांकि संघ की भी अपनी सीमाएं हैं और अपने विचार भी। पार्टी में यह सभी मानते हैं कि नरेन्द्र मोदी अलग तरह की ताकत बन कर उभरे हैं। नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले संघ को लेकर भाजपा बैकफुट पर आती थी। लेकिन यह पहली बार है कि भाजपा को लेकर संघ बैकफुट पर आया है। यह बड़े बदलाव का संकेत है। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में आरक्षण पर अपनी राय जाहिर करने वाले संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख मनमोहन वैद्य के बयान पर सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले को एक संदेश जारी कर कहना पड़ा कि संघ किसी भी तरह के आरक्षण के खिलाफ नहीं है। वैसे संघ-भाजपा से जुड़े या लंबे समय से समझने वाले जानते हें कि आरक्षण की दशकों से चल रही व्यवस्था पर संघ के नेतृत्व एवं प्रचारकों की समान राय रही है। वे संवैधानिक प्रावधानों से आगे जातियों के आधार पर आरक्षण बढ़ाते रहने के पक्ष में नहीं हैं। मुस्लिम अथवा अन्य धर्मावलंबियों के लिए आरक्षण के तो बिलकुल विरोध में रहे हैं। 2014 के चुनाव से तीन महीने पहले संघ के नेता ने एक इंटरव्यू अपने संगठन से संबद्ध एक प्रकाशन को देकर आरक्षण को अनुचित बताया। लेकिन इंटरव्यू ऐन चुनाव अवधि में प्रकाशित करवाया गया। इस बार भी वैद्य की टिप्पणी असावधानी या पूर्वाग्रह से नहीं थी। हां, चुनावी दौर में ऐसी टिप्पणी से भाजपा के कुछ नेता अवश्य दु:खी हुए। उन्हें लगा कि इससे उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड राज्यों में पार्टी उम्‍मीदवारों को नुकसान हो सकता है। कुछ नाराज नेताओं ने मनमोहन वैद्य को हटाने तक की बातें की, लेकिन ऐसी कार्रवाई संभव नहीं है। दूसरी तरफ एक वर्ग का मानना है कि पिछड़ी जातियों के उम्‍मीदवारों को प्राथमिकता देने के साथ आरक्षण पर असहमति के तेवर दिखाकर ऊंची जातियों के मतदाताओं को भी खुश करने की कोशिश हुई है। इसी तरह भाजपा नेतृत्व ने 75 से 80 प्रतिशत ऐसे ही उम्‍मीदवार बनाए हैं, जो कभी संघ, विद्यार्थी परिषद या युवा मोर्चे से जुड़े रहे हैं। इसलिए भाजपा से अधिक संघ आगामी चुनावों में मोदी-शाह की बड़ी सफलता के लिए जी जान से जुटा रहेगा।

 

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