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हेमंत भोंसले: जिन्हें हम भूल गए

संगीत सरिता
पंकज राग

आशा भोंसले के पुत्र हेमंत भोंसले ऐसे संगीतकारों में से हैं जिनमें प्रतिभा तो बहुत थी पर वे फिल्म जगत में लंबी पारी नहीं खेल पाए। हालांकि आठवें दशक में उनके कुछ गीत न केवल उत्कृष्ट रचनाएं थीं, बल्कि उन्हें लोकप्रियता भी खूब मिली थी। अमोल पालेकर और जाहिरा अभिनीत टैक्‍सी-टैक्‍सी (1977) के गीतों से हेमंत भोंसले चर्चा में आ गए। फिल्म में किशोर कुमार के स्वर में 'जीवन में हमसफर मिलते तो हैं जरूर’ न सिर्फ बेहद मकबूल रहा, बल्कि अपनी लय, ताल और आधुनिक ऑरकेस्ट्रेशन के कारण इसे आठवें दशक की शैली का प्रतिनिधि गीत भी माना जा सकता है। हेमंत भोंसले संभवत: पारिवारिक रिश्ते के कारण आर.डी. बर्मन के संगीत से काफी प्रभावित रहे और आर.डी. की छाप उनके संगीत पर कई बार दिखती है।

टैक्‍सी-टैक्‍सी के आधुनिक शैली के 'लाई कहां से जिंदगी’ (लता, आशा) में राहुल देव बर्मन की शैली की छाप स्पष्ट है। टैक्‍सी-टैक्‍सी में हेमंत ने अपनी मां से एक सुंदर गजल 'हमें तो आज इसी बात पर हंसी आई’ भी गवाई थी, पर फिल्म का सबसे सुंदर गीत था बांसुरी, मैंडोलिन और पियानो के अच्छे फिल्टर्स तथा दूसरे अंतरे के पहले सितार और एकॉर्डियन के लुभावने प्रयोग के साथ कंपोज किया गया बेहद मधुर 'भंवरे की गुन-गुन गाए मेरी धुन’ (आशा)। इतना ही सुंदर था गजल शैली में जादूटोना (1977) का उनका येसुदास से गवाया  'आइने कुछ तो बता उनका हमराज है तू’। यह दुर्भाग्य ही है कि ये दोनों सुंदर गीत अधिक लोकप्रिय न हो पाए।

यह फिल्म-जगत की विडंबना ही है कि हेमंत भोंसले के कुछ बहुत अच्छे गीत लोकप्रिय नहीं रहे, पर अनपढ़ (1978) का बिलकुल साधारण दर्जे का संगीत और विशेषकर 'नगमे गाओ, कलियां बरसाओ, यारों के मिलन की रात है’ (किशोर, साथी) चल गया। रजत रक्षित निर्देशित हास्य फिल्म दामाद (1978) में हेमंत भोंसले ने पुन: एक बहुत अच्छी धुन दी थी 'जिंदगी के सफर में न जाने’ (रफी, आशा) जो लोकप्रिय भी रही। फिल्म का एक बहुत सुंदर गीत था 'जागे-जागे नैनों में’ (आशा) जिसकी शैली आर.डी. बर्मन से प्रभावित लगती है। रफी और आशा का 'मुझे तड़पाती रही, रोज मिलती रही’ जैसा तेज गति का चुलबुला गीत भी फिल्म में था पर दामाद में हेमंत भोंसले की विशिष्ट उपलब्धि 'जागे-जागे नैनों में’ की मेलोडी ही मानी जाएगी।

नजराना प्यार का (1980) में हेमंत भोंसले का संगीतबद्ध 'गम छुपाते रहो मुस्कराते रहो’ (रफी, आशा) अपने जमाने में अच्छा चला था। स्वीटी (1980) में भी हेमंत भोंसले ने आशा से कुछ अच्छे गीत गवाए थे-'आज अकेली मैं और जहां के सितम’, ï'ले के दिल कहां चला गया’, 'आइए और पास और पास’ जैसे एकल गीतों के अलावा अमित कुमार के साथ दो युगल गीत भी थे-'जलता है दिल जानेमन’ और 'आते-जाते तुझे देखा था’। हेमंत भोंसले अपनी हर फिल्म में एकाध सुंदर धुन अवश्य दे देते थे। बैरिस्टर के भी 'न तुम भूले’ (आशा) और 'आया रंगीला सावन’ (आशा) अन्य चलताऊ गीतों से अलग ही लगते हैं। श्रद्धांजलि (1981) का हेमंत भोंसले का संगीत वाकई प्रशंसनीय था, विशेषकर कोमल सुरों से सजा रूमानी गीत 'जाने क्‍यों ऐसा लगता है’ (आशा, भूपेंद्र) और पारंपरिक बंदिश 'सैंया डोली ले के आए’ (शोभा गुर्टू)। इसी प्रकार तेरी मेरी कहानी (1982) का सितार के लुभावने इंटरल्यूड्स के साथ 'इक सांस की डोरी है’ (आशा) की मेलोडी-भरी रवानगी और 'जिंदगी है चार दिन’ का तरन्नुम बहुत प्रभावशाली था। 'सनसनी’ के हॉन्टिंग सस्पेंस-भरे धुन वाले 'फिर तेरी याद आ गई’ को तो आशा भोंसले स्वयं अपने पसंदीदा गीतों में मानती हैं। बंधन कच्चे धागे का (1983) का शीर्षक गीत (लता, किशोर) भी हेमंत की उल्लेखनीय रचना है।

आठवें दशक की मेलोडी और ऑरकेस्ट्रेशन के समन्वय से निकली संगीत धाराओं का एक परिष्कृत और सुरुचिपूर्ण रूप हमें हेमंत भोंसले के संगीत में मिलता है। शास्त्रीय, लोक आधारित, गजल या सुगम रूमानी गीत-इन सभी विधाओं में भी हेमंत भोंसले ने अपने छोटे संगीत सफर में प्रभावित किया है। यह एक रोचक तथ्य है कि अपने इस दौर में हेमंत भोंसले ने मनोज कुमार और रवि को छोडक़र अन्य संगीतकारों द्वारा उपेक्षित महेंद्र कपूर से कुछ सुंदर युगल गीत गवाए। पंजाबी हीर शैली में बेटा (1983) में 'सावन के झूले पड़े’ (आशा के साथ) और बड़ी सुरीली-सी धुन लिए धरती आकाश (1982) में 'मुझे कुछ दिनों से ये क्‍या हो गया है’ (आशा के ही साथ) इसके प्रशस्त उदाहरण हैं। बेटा में हेमंत भोंसले द्वारा पंजाब के पारंपरिक लोक संगीत का उदाहरण आशा और साथियों के गाए 'मेरे माथे पे चमक उठी बिंदिया’ में भी बखूबी मिलता है। पर इस दशक की हेमंत भोंसले की सर्वश्रेष्ठ कृति चुननी हो तो धरती आकाश के 'पिया नहीं आए’ (आशा) को रेखांकित करना होगा। शास्त्रीय और पूरबी लोकरंग के सक्विमश्रण से रचित यह गीत इस तथ्य को प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त है कि हेमंत भोंसले जितने प्रतिभाशाली थे, उस मुकाबले उन्हें यदि और अवसर मिलते तो वे काफी आगे जा सकते थे। राजा जोगी (1983) का 'तू अंग लग जा मिलन संध्या’ (आशा) अधिक नहीं सुना गया, पर कोई भी कहेगा कि शास्त्रीय संगीत आधारित इस बंदिश में भी हेमंत भोंसले ने जान डाल दी है।

(लेखक भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी एवं संगीत विशेषज्ञ हैं।)

 

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