जयपुर में संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावती के सेट पर राजपूत करणी सेना द्वारा तोडफ़ोड़ मचाने से एक दफा फिर ऐतिहासिक कहानियों पर आधारित फिल्मों का विवाद सामने आया। इससे पहले जोधा अकबर फिल्म के सिलसिले में भी ऐसा हो चुका है। ताजा विवाद से इतिहास और मिथक के बीच फिल्मकारों की भूमिका के साथ-साथ समाज के एक तबके में फैली असहिष्णुता पर सवाल खड़े हुए हैं।
जहां तक बात रानी पद्मावती की है तो इस बारे में जेएनयू के प्रोफेसर पुष्पेश पंत का कहना है कि हो सकता है इतिहास में रानी पद्मावती नामक चरित्र हो लेकिन किंवदंती वाली रानी पद्मावती इतिहास का सच नहीं है। अलाउद्दीन खिलजी के होमोसेक्सुअल होने पर प्रोफेसर पंत का कहना है कि कुछ ऐतिहासिक तथ्य बताते हैं कि अलाउद्दीन खिलजी का झुकाव इस ओर था। करणी सेना द्वारा भंसाली के सेट पर हिंसक गतिविधियों को पंत बोलने की आजादी में रुकावट बताते हैं। उनका कहना है कि आज भी हम देश में ऐतिहासिक तथ्यों से संबधित फिल्म का जिफ् करें तो चाहे वो जोधा-अकबर हो या छत्रपति शिवाजी महाराज या बाबा साहेब अंबेडकर पर आधारित फिल्म, इस सिलसिले में लोग अंधभक्त हैं और अपने तरीके से इतिहास के रक्षक और देशभक्तबन जाते हैं।
पद्मावती फिल्म में इतिहास के साथ छेड़छाड़ हुई या नहीं यह प्रश्न सभी के मन में है लेकिन समस्या यह है कि इस प्रश्न का उत्तर सीधे तौर पर हां या न से जुड़ा हुआ नहीं है। सिर्फ हां या न में उत्तर देना कठिन भी है। इसका उत्तर इसकी कहानी में छुपा हुआ है। पहले जानना जरूरी है कि पद्मावती का इतिहास क्या है। लेकिन गौर करने लायक बात यह है कि यह फिर भी इतिहास नहीं है। यानी किसी भी मान्यता प्राप्त ऐतिहासिक दस्तावेज में कहीं दर्ज नहीं है। लेकिन हिंदी साहित्य ने इस प्रेम कहानी को इतने सालों भी मरने नहीं दिया है। आज भी हिंदी साहित्य के विद्यार्थी पद्मावत पढ़ते हैं। दरअसल 14वीं शताब्दी में मलिक मुहम्मद जायसी ने अपनी एक कल्पना की उड़ान को चरम पर पहुंचा कर एक महाकाव्य रचा, पद्मावत। इस महाकाव्य में जायसी ने रानी पद्मिनी नाम की एक स्त्री पात्र को गढ़ा जिसका सौंदर्य अद्वितीय था। आज भी यह किंवदंती चलती है कि जब रानी पद्मिनी पानी पीती थी तो उसके नाजुक कंठ से पानी की धार बहती हुई दिखाई देती थी। बहरहाल, पद्मावत में सिंहलद्वीप नाम का एक काल्पनिक राज्य भी है, जहां की राजकुमारी है पद्मिनी। वह साल में बस एक बार मंदिर के दर्शन करने अपने रजवाड़े से बाहर आती है। उसके सौंदर्य की कीर्ति पास ही के राजा रतन सेन को पता चलती है। जायसी ने यहां भी सौंदर्य के बखान के लिए अद्भुत कल्पना का प्रयोग किया है। एक तोता राजा रतन सेन को कहता है कि तुम्हें अपनी रानी नागमति पर गुमान है, यदि तुम एक बार पद्मिनी को देख लो तो जाने क्या हो। और सचमुच राजा तारीफ सुनते हुए मूच्र्छित हो जाता है। तब वह तय करता है कि वह पद्मिनी से विवाह करके रहेगा। वह सिंहल द्वीप जाता है और उसके इंतजार में मंदिर के सामने बैठ जाता है। तपस्या करता है और बैरागी का जीवन धारण कर लेता है। पद्मिनी पिघलती है और राजा रतन सेन से विवाह कर लेती है। पद्मावती काल्पनिक पात्र है, ऐसा इतिहासकार मानते हैं लेकिन राजपूतों की एक शाखा इसे अपनी जड़ों से जोड़ कर देखती है। अलाउद्दीन खिलजी को भी पद्मावती की सौंदर्य कीर्ति की वजह से उसे देखने की इच्छा है। वह राजा रतनसेन को पत्र लिखता है कि वह उससे संधि करने महल आएगा और दोस्ती का हाथ बढ़ा कर उसे धोखा दे देता है। दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी के प्राध्यापक राजीव रंजन गिरी कहते हैं, 14वीं सदी की इस प्रेम कहानी को इसलिए इतिहास से अलग नहीं देखा जा सकता क्योंकि यह कहानी वहां के रहन-सहन में रच-बस गई है। किसी पर हमला करना घोर निंदनीय है। लेकिन फिल्म माध्यम की सबसे बड़ी विडबंना ही यह है कि यदि सीधे-सपाट ढंग से किसी कहानी को दिखाया जाए तो ऐसी कहानी दर्शकों को नहीं बांधती। विरह फिल्म के क्लाइमेक्स की मांग है। लेकिन किसी की निजता की कीमत पर यह क्लाइमेक्स या मेलोड्रामा नहीं रचा जाना चाहिए। हाल ही में आई फिल्म दंगल में भी क्लाइमेक्स को रोमांचक बनाने के लिए गीता के कोच को खलनायक की तरह पेश किया गया। जबकि वास्तव में ऐसा नहीं था।