दिल्ली सरकार द्वारा चलाई जा रही मोहल्ला क्लीनिक योजना इन दिनों विवादों में है। हालांकि प्रयोग के स्तर पर योजना अच्छी है और जनता के हक में भी है लेकिन अभी भी इसमें कुछ खामियां हैं। इन्हीं खामियों को विरोधी मुद्दा बना रहे हैं। अप्रैल महीने में होने वाले नगर निगम चुनाव में भी भारतीय जनता पार्टी इसे मुद्दा बनाने के मूड में है। एक ओर जहां सरकार इसके फायदेगिनाते हुए इसकी संख्या बढ़ाने में लगी है वहीं विरोधी इसे जनता की आंखों में धूल झोंकना बता रहे हैं। दिल्ली सरकार के 31 मार्च तक 1000 मोहल्ला क्लीनिक खोलने की समय सीमा नजदीक आ रही है लेकिन अलग-अलग कार्यालय इसपर आपत्ति उठा रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग से जुड़े एक सूत्र ने बताया कि मोहल्ला क्लीनिक योजना इतने विवादों में है कि इसपर कोई ठोस काम ही नहीं हो पा रहा है। दिल्ली में अभी तक 105 मोहल्ला क्लीनिक खुल चुके हैं। ऐसे 895 क्लीनिक अभी और खोले जाने हैं। हालांकि इस बारे में दिल्ली के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री डॉक्टर हर्ष वर्धन, जो पहले स्वास्थ्य मंत्री थे, का कहना है कि मोहल्ला क्लीनिक मात्र प्रचार कार्यफ्म नहीं होना चाहिए। सही तरीके से मरीजों की जांच हो और उन्हें सुविधाएं मिलें और ऐसा नहीं होना चाहिए कि जांच ठीक तरीके से न हो और मरीजों को फायदा होने की बजाय नुकसान हो जाए। वहीं केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि मोहल्ला क्लीनिक के तौर पर एक सुनयोजित योजना होने पर केंद्र सरकार दिल्ली या अन्य राज्यों को भी यथासंभव वित्तीय सहयोग राशि दे सकती है।
नगर निगम पार्षद और भाजपा नेता शोभा विजेंद्र का कहना है कि मोहल्ला क्लीनिक के नाम पर सडक़ किनारे की जमीनों पर कब्जा किया जा रहा है। पर्याप्त स्टाफ नहीं है। यह महज एक शोशा है। शोभा के अनुसार यह मोहल्ला नहीं सिर्फ हल्ला क्लीनिक हैं। आने वाले एमसीडी के चुनावों में मोहल्ला क्लीनिक भाजपा की ओर से मुख्य मुद्दा होगा।
इस योजना का ऐलान वर्ष 2015 में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने किया था। दिल्ली नगर निगम ने इन क्लीनिक को सडक़ों और फुटपाथ पर खोलने पर आपत्ति उठाई थी। तब के उपराज्यपाल नजीब जंग के दफ्तर ने भी 300 स्कूलों में प्राइमरी हेल्थ केयर क्लीनिक खोले जाने पर आपत्ति जताई थी। उपराज्यपाल के दफ्तर ने सरकारी स्कूलों में डिस्पेंसरी खोलने के प्रस्ताव को कानूनी वजहें गिनाते हुए खारिज कर दिया था। कहा गया था कि दिल्ली स्कूल एजूकेशन एक्ट इस तरह के प्रावधानों की इजाजत नहीं देता है। सूत्र बताते हैं कि इसका आधार यह बनाया गया था कि अगर मोहल्ला क्लीनिक को सरकारी स्कूलों के अंदर चलाने की इजाजत दी जाती है, तो निजी स्कूल भी ऐसा ही कर सकते हैं। हालांकि इस संबंध में दिल्ली हाईकोर्ट का भी साफ आदेश है कि स्कूलों में डिस्पेंसरी नहीं खोली जा सकती है। वर्ष 2002 में दिल्ली हाईकोर्ट ने बवाना में एक स्कूल में चल रही डिस्पेंसरी बंद करने के लिए आदेश दिए थे। पता लगा था कि डिस्पेंसरी के कर्मचारी इस्तेमाल की गई सिरिंज समेत दूसरे मेडिकल कचरे को खेल के मैदान में फेंक देते थे। इलाज मोहल्ला क्लीनिक में ही हो सकेगा। लेकिन अब उपराज्यपाल अनिल बैजल ने दिल्ली के सरकारी स्कूलों के परिसर में 300 मोहल्ला क्लीनिक बनाने के संबंध में मंजूरी दे दी है। हालांकि, यह मंजूरी कुछ शर्तों के साथ दी गई है, जिसके अनुसार मोहल्ला क्लीनिक के कारण बच्चों की सुरक्षा शैक्षणिक व्यवस्था पर कोई आंच नहीं आनी चाहिए।
इस बारे में आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतुल्ला खान का कहना है कि मोहल्ला क्लीनिक में मध्यम और निम्न मध्यम वर्ग के रोजाना 70 से 100 के बीच लोग इलाज के लिए आते हैं। जहां 200 से ज्यादा लैब टेस्ट और दवाएं फ्री में दी जाती हैं। ये क्लीनिक उन मरीजों के लिए वरदान हैं जो प्राइवेट डॉक्टरों की फीस नहीं भर सकते और पांच सितारा अस्पतालों में जाने की हैसियत नहीं रखते हैं। भाजपा हल्ला मचा रही है कि स्कूलों में मोहल्ला क्लीनिक न खोले जाएं लेकिन हमारा कहना है कि जब कहीं जगह ही नहीं है, अनधिकृत कॉलोनियों में सडक़ें नहीं हैं तो कहीं तो मोहल्ला क्लीनिक खोले जाएंगे और गरीब जनता को स्वास्थ्य फायदे देने से भाजपा परेशान क्यों है।
सुल्तानपुरी में मोहल्ला क्लीनिक चला रहे डॉ. रमेश बंसल का कहना है कि योजना की खूबियों की बात करें तो इसमें योग्यता पूरी करने वाले डॉक्टर को प्रति मरीज भुगतान देने का प्रावधान है। जितना काम उतने पैसे। दूसरा कि लोगों को सरकारी डिस्पेंसरी की लाइन या बड़े अस्पताल जाकर धक्के नहीं खाने पड़ते हैं। वे अपने घर के पास ही छोटे-मोटे इलाज करवा लेते हैं। मोहल्ला क्लीनिक चलाने वाले एक डॉक्टर का कहना है कि इस योजना की सबसे बड़ी खामी यह है कि सरकारी डिस्पेंसरी में काम न करके भी वहां भुगतान मोहल्ला क्लीनिक चलाने वाले डॉक्टरों से ज्यादा किया जाता है। दूसरा छह महीने में छह छुट्टियों का प्रावधान है। अगर कोई इमरजेंसी है या बीमारी है तो महीने में एक छुट्टी तो बहुत कम है।
दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अनिल बंसल का कहना है कि हमारे देश में स्वास्थ्य सेवा में जीडीपी का महज एक फीसदी खर्च किया जाता है जबकि नियम है कि यह खर्च 10 फीसदी होना चाहिए। देश में जिस प्रकार जनसंख्या बढ़ रही है उस हिसाब से मोहल्ला क्लीनिक बहुत कारगर योजना है। लोगों को घर के पास जांच और दवाएं मिल जाती हैं। लेकिन इसकी सबसे बड़ी खामी यह है कि मोहल्ला क्लीनिक और सरकारी डिस्पेंसरी के खुलने का समय एक ही है। यहां तक कि कई जगहों पर तो दोनों आसपास हैं। जबकि होना यह चाहिए कि अगर सरकारी डिस्पेंसरी सुबह से दोपहर तक खुलती है तो मोहल्ला क्लीनिक शाम को खुलें। शाम के समय लोग प्राइवेट डॉक्टर के यहां जाने के लिए मजबूर रहते हैं। एक और खामी यह है कि इसमें प्रति मरीज के हिसाब से भुगतान होता है इसलिए डॉक्टर जल्दी-जल्दी मरीजों को देखते हैं। जबकि एक मरीज को कम से कम 5 से 7 मिनट देखा जाना चाहिए। ऐसे में जांच ठीक नहीं हो पाती है और गलत दवाएं भी दी जा सकती हैं। मोहल्ला क्लीनिक में कुछ डॉक्टरों ने कंपाउंडर रखे हुए हैं जबकि फार्मासिस्ट रखे जाने चाहिए।
चालू मोहल्ला क्लीनिक पर भी आपत्तियां उठाई गई हैं। दिल्ली नगर निगम ने फुटपाथ पर मोहल्ला क्लीनिक खोलने को कानून का उल्लघंन बताया और दिल्ली सरकार को नोटिस भी दिए हैं। इस सबके बावजूद दिल्ली सरकार मोहल्ला क्लीनिकखोलने के लिए एमसीडी से मंजूरी लेने पर अड़ी हुई है। दिल्ली स्वास्थ्य विभाग में मौजूद एक सूत्र ने बताया कि एमसीडी के बाद दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) ने भी अपनी जमीनों पर मोहल्ला क्लीनिक बनाने को लेकर आपत्ति उठाई है। डीडीए ने कहा है कि दिल्ली स्वास्थ्य विभाग उसकी मंजूरी लिए बगैर इस प्रोजेक्ट पर आगे नहीं बढ़ सकता है।
डॉ. अनिल बंसल के अनुसार इस योजना के तहत प्रति डॉक्टर 30 रुपये मिलते हैं और कंपाउंडर के 10 रुपये। डॉ. बंसल के अनुसार अगर कोई डॉक्टर एक मरीज पर एक मिनट लगाता है और एक दिन में लगातार 80 मरीज देखता है तो कहीं जाकर उसे हफ्ते में 60,000 रुपये मिल पाते हैं। जबकि एमबीबीएस डॉक्टर का शुरुआती वेतन 80,000 रु. के करीब होता है। इसके अलावा मोहल्ला क्लीनिक जनता की सेवा के तौर पर प्रचारित होना चाहिए। अगर इसके होर्डिंग पर नेताओं की तस्वीरें लगेंगी तो विपक्ष तो सवाल उठाएगा ही।