भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के शतक ने हर भारतीय का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया है। श्री हरिकोटा में 15 फरवरी को वैज्ञानिक अपने इस अभूतपूर्व कारनामे के बाद खुशी से झूम रहे थे। जब वे अपने मॉनीटर पर एक साथ रिकॉर्ड104 उपग्रहों को अंतरिक्ष में स्थापित होते देख रहे होंगे तो ऐसा नजारा होगा जैसा हम आतिशबाजी के दौरान एक रॉकेट से कई रंगों की रोशनी आकाश में फैलते देखते हैं। एक रॉकेट से एक साथ 104 उपग्रहों के प्रक्षेपण की सफलता ऐसी घटना थी जिसने पूरे विश्व को चौंका कर रख दिया। एक साथ 37 उपग्रह भेजने का रिकॉर्ड रूस का टूटा, पर भारत की तारीफ पूरी दुनिया में हो रही। अमेरिकी मीडिया ने सफलता को सलाम किया तो जर्मनी की मीडिया ने माना कि इसरो ने अब पूरी दुनिया को चुनौती दे दी है। प्रशंसा तो चीन ने भी की पर उसने कहा कि अभी भारत को बहुत दूरी तय करनी है।
इससे पहले 2013 में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने 2013 में एक साथ 29 उपग्रह प्रक्षेपित कर रिकॉर्ड बनाया था। इस रिकॉर्ड को अगले साल ही रूस ने 37 उपग्रह एक साथ प्रक्षेपित कर तोड़ दिया था। इसरो ने इस रिकॉर्ड को तो नहीं तोड़ा था पर 22 जून 2016 को एक साथ 20 उपग्रहों को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित कर अपनी जोरदार उपस्थिति दुनिया के सामने दर्ज कराई थी। पीएसएलवी-सी 37 से इन उपग्रहों को 15 फरवरी को सुबह नौ बजकर 38 मिनट पर प्रक्षेपित किया। इनमें दो कार्टोसैट-2 सीरीज के स्वदेशी उपग्रह हैं। सबसे गर्व करने वाली बात तो यह है कि 101 विदेशी अति सूक्ष्म नैनो उपग्रह में 96 उस देश अमेरिका के हैं जिसे सबसे उन्नत देश का दर्जा प्राप्त है। इतना ही नहीं इस देश की सीनेट ने कुछ साल पहले प्रस्ताव पारित किया था कि वह अपना कोई उपग्रह भारतीय जमीन से प्रक्षेपित नहीं कराएगा। इससे पहले इसरो के मंगलयान की महान कामयाबी ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा था। मंगलयान के पूरे सफर में उतना धन भी खर्च नहीं हुआ था जितना किसी बड़े बजट वाली हॉलीवुड फिल्म में खर्च होता है। यहां सबसे उल्लेखनीय यह है कि अपनी इस सफलता से पूरी दुनिया को आश्चर्य में डालने वाले इसरो ने अपने सफर की शुरुआत साइकिल और बैलगाड़ी से की थी। प्रख्यात वैज्ञानिक डॉ. विफ्म साराभाई द्वारा 15 अगस्त 1969 को इसरो की स्थापना की गई थी। तब वैज्ञानिक पहला रॉकेट साइकिल से प्रक्षेपण स्थल तक ले गए थे। दूसरा रॉकेट काफी भारी और बड़ा था इसलिए उसे बैलगाड़ी से प्रक्षेपण स्थल तक ले जाया गया। उस वक्त नारियल के पेड़ों को लॉन्चिंग पैड बनाया गया था। आज स्थिति यह है कि अमेरिकी मीडिया ने कहा कि तब किसी को नहीं पता था कि आगे चलकर इसरो का हाथ थामना दुनिया के किसी भी देश के लिए आसान नहीं रह जाएगा।
अमेरिका के प्रसिद्ध अखबार 'दि वाल स्ट्रीट जर्नल’ ने लिखा, इन उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण कर अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत ने रूस को मात दे दी है। 'वाशिंगटन पोस्ट’ ने इस अभियान की सफलता को 'सलाम इंडिया’ कहते हुए सराहना की। 'सीएनएन’ ने टिप्पणी की कि अब अमेरिका वर्सेस रूस को भूल जाइए क्योंकि मैदान में भारत आ चुका है। जर्मनी की रेडियो सेवा 'दाइचे वेले’ ने कहा कि भारत ने बड़ा जोखिम उठाया है क्योंकि असफलता आलोचना का तूफान लेकर आती, लेकिन इसरो ने सफलता का इतिहास रचकर दुनिया के ताकतवर देशों को चुनौती दे दी है। लंदन के 'टाइम्स’ समाचार-पत्र ने माना कि दुनिया के अंतरिक्ष क्लब में भारत ने जोरदार ढंग से एंट्री की है। यहां के 'गार्जियन’ समाचार-पत्र ने टिप्पणी की कि भारत अंतरिक्ष में एक साथ रिकॉर्ड उपग्रहों को छोडक़र निजी स्पेस बाजार में गंभीर खिलाड़ी के रूप में आगे बढ़ा है। 'बीबीसी’ ने कहा कि यह सफलता इस बात का संकेत है कि भारत अंतरिक्ष बाजार के अरबों डॉलर के व्यापार में तेजी से उभरेगा। दूसरी ओर चीन के सरकारी अखबार 'ग्लोबल टाइम्स’ ने संपादकीय में लिखा कि रूस के रिकॉर्ड को तोडऩे का श्रेय भारत को दिया तो जाना चाहिए, लेकिन अंतरिक्ष में भारत की ओर से कोई यात्री नहीं गया है और न ही उसका कोई अपना स्पेस स्टेशन है। ऐसी योजना अभी भारत में शुरू तक नहीं हुई है। हालांकि जब भारत ने मंगलयान का सफल मिशन पूरा किया था तो चीनी मीडिया ने उसे एशिया के लिए गौरव बताया था। कम खर्च इसरो के मिशनों की खूबी रही है। मंगल यान की कुल लागत 450 करोड़ रुपये थी, जो इस ग्रह पर भेजे गए किसी भी मिशन में सबसे कम है। 450 करोड़ रुपये 73 मिलियन अमेरिकी डॉलर के बराबर हैं। सबसे दिलचस्प आंकड़ा यह है कि हॉलीवुड की मशहूर फिल्म ग्रेविटी 100 मिलियन डॉलर में बनी थी।