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आकंड़ों की 'नोटबंदी’ से आंखों में धूल

पूर्व वित्तमंत्री ने नोटबंदी को सन् 2016 का न सिर्फ सबसे बड़ा घोटाला साबित किया बल्कि पुख्ता आंकड़ों के साथ राज्यसभा में बहस के दौरान पुरजोर ढंग से अपनी बात रखी
पी. च‌िदंबरम

नोटबंदी से भ्रष्टाचार, कालाधन, आतंकी गतिविधियों और नकली नोटों पर अंकुश का कोई लक्ष्य पूरा नहीं हो पाया। बजट का दिन सरकार के कैलेंडर में सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। लेकिन बजट सत्र शुरू होने के दस दिन बाद हमें सत्र के आखिरी दिन के अंतिम दो घंटे ही इस पर चर्चा के लिए मिले। मैं समझता हूं कि संसद में सरकार ने जिस तरीके से अपना कामकाज प्रबंधित किया है, उसकीव्याख्‍या बहुत दुखद है। चालू वित्त वर्ष में सरकार का लक्ष्य 20,14,407 करोड़ रुपये खर्च करने का है जबकि आगामी वित्त वर्ष के लिए सरकार ने 21,46,735 करोड़ रुपये खर्च करने का लक्ष्य रखा है। इतने कम समय में ही मुझे कुछ बड़े बिंदुओं की ओर सदन का ध्यान आकृष्ट कराना है। यह बहस सत्र के चार-पांच हफ्ते बाद भी जारी रहेगी और तब तक ज्यादातर लोगों की बजट से दिलचस्पी खत्म हो जाएगी। मैं नहीं चाहता कि भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति हो।

सरकार को एक ऐसी अर्थव्यवस्था की विरासत मिली है जिसे केंद्रीय सांक्चियकी संगठन (सीएसओ) के अनुसार संयुक्‍त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) के आखिरी दो साल के कार्यकाल में 6.1 प्रतिशत और 6.9 प्रतिशत की दर से गति मिली है। लेकिन मौजूदा सरकार के मंत्री सीओए के आंकड़े नहीं मानते हैं। यदि आप सीएसओ को नहीं मानते तो उसे बर्खास्त कर दीजिए जैसा कि अन्य कई लोगों को बर्खास्त किया है। यदि सीएसओ पर यकीन करते हैं तो अन्य गलत आंकड़े न दोहराएं। यूपीए सरकार के पहले पांच साल के कार्यकाल की औसत विकास दर 8.5 प्रतिशत थी और दस साल की अवधि में यह विकास दर 7.5 प्रतिशत रही। आपने 7.5 प्रतिशत विकास दर का लक्ष्य रखा है और इसके लिए मैं आपकी सराहना करता हूं। शुरुआती दो वर्षों के कार्यकाल में आपने विकास दर (जीडीपी) गणना की वही पद्धति अपनाई और दावा किया कि आपने 7.6 और 7.5 प्रतिशत विकास दर हासिल कर ली है। लेकिन इस पद्धति के अनुसार आपके शुरुआती दो साल के कार्यकाल की विकास दर लगभग 5.5 प्रतिशत और 5.7 प्रतिशत ही होगी। तीसरे साल में अर्थव्यवस्था में तेजी जरूर आई है। मैंने भी कई मौकों पर कहा है कि भारत सबसे तेजी से विकसित होने वाली विशाल अर्थव्यवस्थाओं में शुमार हो गया है। यह मुकाम हमने पहली बार हासिल नहीं किया है। यूपीए के कार्यकाल में भी ऐसा हो चुका है।

लेकिन वित्त वर्ष 2016-17 के दौरान आपने एक बड़ी चूक कर दी।  भारतीय अर्थव्यवस्था के इतिहास की सबसे भयानक भूल और वह थी नोटबंदी। नतीजतन, आपने भारतीय विकास गाथा को बाधित कर दिया। आप अपने इस कृत्य को जायज ठहराने के लिए जूझते रहे। एक अनाड़ी की तरह आप अनिश्चय की स्थिति को जायज ठहराते हुए नित नए-नए नियम बनाते रहे। इसका नतीजा आपके सामने है। एक निश्चित जीडीपी संख्‍या का अनुमान लगाते हुए न तो प्रधानमंत्री और न वित्तमंत्री जीडीपी विकास दर का सही आंकड़ा पेश करना चाहते हैं। क्‍योंकि आप खुद आश्वस्त नहीं हैं कि 2016-17 और 2017-18 में अर्थव्यवस्था किस दर से बढ़ेगी। आप सिर्फ जादुई आंकड़े से भारत की जनता को बरगलाने की कोशिश कर रहे हैं। मैं आपको बताता हूं कि 2016-17 की विकास दर क्‍या होगी। यह सर्वमान्य है कि इस दौरान जीडीपी एक से डेढ़ प्रतिशत तक प्रभावित होगी और यदि हम दुर्भाग्यशाली रहे तो दो प्रतिशत तक भी इसका असर हो सकता है और वित्त वर्ष में भी यह बना रह सकता है। 

आंकड़े बताते हैं कि अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी हो रही है, ऐसे में आपको ज्यादा खर्च करना चाहिए। इसके उलट आप सरकारी खर्च को समेट रहे हैं। दरअसल अर्थव्यवस्था सरकारी पूंजीगत खर्च या सरकारी राज्य खर्च के अभाव में ही प्रभावित हो रही है। विदेशी निवेश पोर्टफोलियो अक्‍टूबर तक सकारात्मक था लेकिन नवंबर-दिसंबर से यह एकदम से नकारात्मक हो गया। निवेशक हाथ खींचने लगे हैं, लोग निवेश नहीं करना चाहते। मैं नहीं समझ पा रहा हूं कि आपके उद्देश्य क्‍या हैं। यदि आपने अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए बजट में ओवरचार्जिंग लक्ष्य रखा है तो आपकी बजट रणनीति बिलकुल गलत है। आपकी यह भयंकर विफलता अगले साल से ही दिखने लगेगी। बजट में रोजगार सृजन की बात नहीं है। वित्त वर्ष 2015-16 में आपने सालाना दो करोड़ रोजगार देने के बजाय लगभग 1.50 लाख रोजगार सृजन किया। नोटबंदी के बाद छिन गए रोजगार के कारण इस चालू वर्ष में आप शायद डेढ़ लाख रोजगार सृजन नहीं कर सकते। इसके प्रमाण आप अपने ही भारतीय मजदूर संघ के बयानों में देख सकते हैं। सभी छोटे और मझोले आकार के 75 प्रतिशत उद्योग बंद हो चुके हैं। तिरुपुर, कोयंबटूर से लेकर पानीपत, मुरादाबाद और आगरा तक रोजगार छिन चुके हैं। बेरोजगारी ऐसी ही बढ़ती रही तो विस्फोटक स्थिति पैदा हो सकती है। यह देश और सुशासन के लिए अच्छा नहीं है। दूसरी चिंता किसानों को लेकर है। पिछले साल उनके लिए 9.5 लाख करोड़ रुपये कर्ज का प्रबंध था जिसे बढ़ाकर 10 लाख करोड़ किया गया है, अच्छा है। वैसे यह नैसर्गिक वृद्धि है और किसानों के लिए यह भरोसा जगाना ज्यादा जरूरी था कि खेती उनके लिए व्यवसाय है जिससे वह अपने परिवार को पाल सकते हैं। लेकिन आपके पूरे बजट में न्यूनतम समर्थन मूल्य का कहीं जिफ् नहीं है जिससे उन्हें यह संकेत मिल पाता। तपन कुमार सेन कहते हैं कि जब तक आपकी आय 12 प्रतिशत की दर से सालाना नहीं बढ़ती है तो पांच साल में किसानों की आय दोगुनी करना असंभव है। किसानों के लिए फसल बीमा योजना भी ठीक वैसा ही है कि जब उन्हें बच्चों की पढ़ाई या बेटी की शादी के लिए पैसों की जरूरत होगी तो वह उन्हें नहीं मिलेगा लेकिन अंतिम संस्कार के लिए सरकारी व्यवस्था जरूर है।

पूंजी कम हो रही है, निवेश की रुचि खत्म होती जा रही है, क्रेडिट ग्रोथ पिछले 40 साल के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया है, उद्योगों का क्रेडिट ग्रोथ शून्य से नीचे चला गया है, बैंकों ने कर्ज दर में कटौती से इनकार कर दिया है, रिजर्व बैंक ने नीतिगत ब्‍याज दर में कटौती से इनकार कर दिया है, ऐसे में आपका औद्योगिक विकास कहां हो रहा है? यदि ये सारी बातें सच हैं तो एक दृष्टिहीन अर्थशास्त्री भी बता देगा कि उद्योगों का विकास नहीं हो रहा है। नोटबंदी के बाद निजी खपत में व्यापक कमी आई है। समग्र मांग बढ़ाने के लिए अप्रत्यक्ष करों में कटौती होनी चाहिए। सभी क्षेत्रों में यह कटौती पहली फरवरी से ही हो जानी चाहिए। जीएसटी 1 अक्‍टूबर से पहले लागू नहीं हो सकता है। आपके पास मांग बढ़ाने के लिए अप्रत्यक्ष करों में कटौती करने का आठ महीने का वक्‍त था जिससे उपभोक्‍ताओं और उत्पादकों को मदद मिलती। इसके उलट आपने प्रत्यक्ष करों में ही कटौती कर दी। देश की 131 करोड़ की आबादी में सिर्फ 1.98 करोड़ लोग कर चुकाते हैं। प्रत्यक्ष करों में कटौती से 1.98 करोड़ व्यक्तियों को औसतन 5000 रुपये का ही फायदा होगा। फिर आप दावा करते हैं कि आपने छोटे और मझोले उद्योगों के लिए प्रत्यक्ष करों में कटौती कर दी। वित्तमंत्री के अनुसार देश में छोटे और मझोले उद्योगों की सिर्फ 2,85,000 संगठित इकाइयां हैं जो कंपनियों की तरह कर अदा करती हैं। लेकिन ज्यादातर छोटे और मझोले उद्योग कंपनियां नहीं है। अत: ये सभी इकाइयां छोड़ दी गई हैं। उन्हें घाटा उठाना पड़ रहा है इसलिए कॉरपोरेट टैक्‍स में कटौती से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। वित्त मंत्री कहते हैं कि इससे 96 प्रतिशत इकाइयों को लाभ होगा। इस लिहाज से 2.70 हजार छोटे और मझोले उद्योगों को कॉरपोरेट टैक्‍स 30 प्रतिशत से 25 प्रतिशत किए जाने का फायदा होना चाहिए। लेकिन आपने समुद्र से एक बूंद डालने निकालने का काम किया है।

8 नवंबर को नोटबंदी के भयानक फैसले का हमने विरोध किया और प्रधानमंत्री के भाषण को बाधित किए बिना वैधानिक तरीके से वॉकआउट किया। आपने रातों रात बाजार से 86 प्रतिशत मुद्रा वापस ले ली यानी 2400 करोड़ नोटों का विमुद्रीकरण कर दिया गया। प्रिंटिंग प्रेसों की नोट छापने की क्षमता प्रतिमाह सिर्फ 300 करोड़ के नोटों की है यानी इसकी भरपाई के लिए कम से कम आठ महीने लग जाएंगे। आप कहते हैं कि सब कुछ जल्दी सामान्य हो जाएगा। मैंने चार दिनों तक 500 किलोमीटर की यात्रा की, त्रिची से रामेश्वरक्वा तक सडक़ किनारे सभी एटीएम बंद पड़े थे। आज की तारीख तक आप 17 लाख करोड़ रुपये के नोटों के मुकाबले सिर्फ 9 लाख करोड़ रुपये के नोट ही सप्लाई कर पाए हैं। मैंने 2000 रुपये का पहला नोट नोटबंदी के चार दिन बाद ही देखा लेकिन इससे पहले ही देश के कई हिस्सों से ये नोट बरामद होने की खबरें आने लगीं। आतंकवादियों, भ्रष्ट अफसरों के पास कहां से ये नोट आए आपको नहीं पता। नोटबंदी साल 2016 का सबसे बड़ा घोटाला है। इस देश में 15 करोड़ लोग दिहाड़ी मजदूर हैं जिनमें से ज्यादातर खेतिहर मजदूर हैं। नोटबंदी के कारण 40 करोड़ लोगों की जिंदगी तबाह हो गई, कई परिवार भूखों मरने लगे। लगभग 70 से 80 प्रतिशत एसएमई बंद हो गए। सच कहें तो नोटबंदी से न तो भ्रष्टाचार कम हुआ, न कालाधन वापस आया और न ही नकली नोटों तथा आतंकवाद पर अंकुश लग पाया। यानी खोदा पहाड़ निकली चुहिया। शुरुआती आठ हफ्तों तक आप नोटबंदी की बात करते रहे और अब इसे पुर्नमुद्रीकरण का नाम दे दिया। आरबीआई अधिकारी मशीनों के बजाय हाथों से नोटों की गिनती करने में व्यस्त हैं जबकि मशीनें यह काम दो दिन में कर सकती हैं। डिजिटलीकरण का पहला पाठ आपको आरबीआई को ही पढ़ाना चाहिए। आपने एनआरआई को 31 मार्च तक नोट बदलने का वादा किया था लेकिन आज भी वे कतारबद्ध और दुखी हैं। पहले जहां 10 प्रतिशत बैंक अधिकारी बेईमान माने जाते थे आपकी नोटबंदी ने प्रत्येक बैंक अधिकारी को बेईमान बना दिया।

अब मैं कैशलेस अर्थव्यवस्था पर आता हूं। जर्मनी और ऑस्ट्रिया में सभी प्रकार के लेनदेन में 80 प्रतिशत नकद लेनदेन होता है जबकि ऑस्ट्रेलिया में 60 फीसदी, कनाडा में 56 फीसदी, फ्रांस में 50 फीसदी और अमेरिका में 46 फीसदी लेनदेन नकद से ही होता है। वे सभी खुले समाज में मौलिक अधिकार रखते हैं। यह मेरा अधिकार है कि मैं किसी चीज को खरीदने के लिए नकद या डिजिटल माध्यम अपनाऊं, आप जबरन थोप नहीं सकते। कोई युवती यदि अंर्तवस्त्र खरीदना चाहती है तो इसका डिजिटल रिकॉर्ड वह क्‍यों दे? कोई जोड़ा यदि निजी छुट्टियों पर खर्च करता है तो क्‍यों वह इसका डिजिटल रिकॉर्ड दर्ज कराए? दुनिया कैशलेस नहीं नकदी अर्थव्यवस्था की ओर मुड़ रही है। पिछले दस सालों में डॉलर नोटों की मात्रा दोगुनी होकर 1.48 खरब हो गई है जबकि यूरो भी दोगुना होकर 1.09 खरब यूरो हो गया है। युआन की मात्रा भी इन मुद्राओं से कम नहीं हुई है। नोटबंदी को तर्कसंगत ठहराने की कोशिश न करें। यह जितनी बड़ी भूल है, उतना ही आपको इस पर गर्व हो रहा है। इसका बहुत बुरा असर अर्थव्यवस्था पर होगा। एक प्रतिशत का मतलब है कि डेढ़ लाख करोड़ रुपये का नुकसान जबकि डेढ़ प्रतिशत मतलब 2.25 लाख करोड़ रुपये का नुकसान। यह नुकसान हो चुका है। आपको इससे उबरने में छह से आठ महीने लग जाएंगे लेकिन तब तक अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हो चुका होगा। मांग और विकास को बढ़ावा देने तथा रोजगार सृजन की कोई रणनीति नहीं है। ग्रामीण भारत की गंभीर विपदा तथा युवाओं की चिंता और आक्रोश का आकलन नहीं किया गया। गरीबों के लिए इस सरकार की कोई सहानुभूति नहीं है। इन सभी गतिविधियों के बाद, जीडी प्रतिशत के मुकाबले खर्च तय करने के बाद, उद्योग, कृषि, रोजगार में सुधार की रणनीति के बगैर, नोटबंदी के जरिये भयानक चूक करने के बाद हमने क्‍या हासिल कर लिया?

(बजट पर राज्यसभा में बहस के दौरान कांग्रेस सांसद एवं पूर्व वित्तमंत्री द्वारा व्यक्‍त विचारों के प्रमुख अंश)

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