टेलीविजन खबरों के क्षेत्र में बेहतर काम करने वाले लोगों को एक्सचेंज4मीडिया न्यूज ब्रॉडकास्टिंग अवाड्र्स (इएनबीए) प्रदान किए गए। इसमें 31 विभिन्न श्रेणियां शामिल की गई थीं। इन श्रेणियों में 300 से ज्यादा प्रविष्टियां प्राप्त हुई थीं। बेस्टइंग्लिश न्यूज चैनल ऑफ द ईयर का अवार्ड इंडिया टुडे टीवी, बेस्ट हिंदी न्यूज चैनल ऑफ द ईयर आजतक को मिला। बेस्ट हिंदी एडिटर-इन-चीफ ऑफ द ईयर का खिताब इंडिया टीवी के रजत शर्मा और इंडिया टुडे टीवी के राहुल कंवल को बेस्ट इंग्लिश एडिटर-इन-चीफ ऑफ द ईयर अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। स्टार इंडिया के मैनेजिंग डायरेक्टर संजय गुप्ता के नेतृत्व में एक जूरी का गठन किया गया। आउटलुक हिंदी के चीफ एडिटर आलोक मेहता, शी एंड निंजा गल्र्स बैग्स के संस्थापक जूनियर आनंद गुप्ता, ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन की पूर्व महानिदेशक अर्चना दत्ता, स्तंभकार देवी चेरियन, रेडञ्चिलफ कैपिटल के मैनेजिंग डायरेक्टर धीरज जैन, लेखिका जयश्री मिश्रा, वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग और ट्रस्ट लीगल, एडवोकेट्स एंड कंसलटेंट्स के संस्थापक और मैनेजिंग पार्टनर सुधीर मिश्रा जूरी में शामिल थे। इस मौके पर स्टार इंडिया के मैनेजिंग डायरेक्टर संजय गुप्ता ने पारंपरिक और डिजिटल मीडिया पर अपने विचार रखे। अंश यहां प्रस्तुत हैं:
हम इस साल खबर प्रसारण के क्षेत्र में हुए सबसे मौलिक कामों का उत्सव मनाने और इससे जुड़े उन लोगों का सम्मान करने जमा हुए हैं, जो इसका हिस्सा हैं। हमारे सामने कुछ बेहद उद्वेलित करने वाली पैनी रिपोर्ट आईं। मुझे स्वीकारना पड़ेगा कि मेरे दिल में हमारे पास खबर पहुंचाने के लिए लगातार अपना पसीना बहाने वाले लोगों की प्रतिभा एवं कुशलता के प्रति सम्मान बढ़ गया। मेरी सोच कहती है कि खबर के लिए अभी से बेहतर समय कभी नहीं रहा। मेरा यह विचार आम सोच या रेटिंग्स से उलट लग सकता है। अगर उन बातों को कुछ समय के लिए हटा दें तो देख रहे हैं कि दुनिया अभी जितनी तेजी से बदल रही है उतनी तेजी से कभी नहीं बदली। भारत और पूरी दुनिया में सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक रूप से जिस प्रवाह की स्थिति पैदा हुई है, वैसा पहले कभी नहीं था। हर व्यक्ति खास कर युवा, इस बात को लेकर चिंतित हैं कि देश के भीतर और बाहर हो रहे बदलाव उनके जीवन को किस तरह प्रभावित करेंगे। सूचना की इतनी आमद है कि यह अकेले आदमी के बूते की बात नहीं है। इस संदर्भ में मीडिया और प्रासंगिक हो गया है।
हम लगातार सुन रहे हैं कि टीआरपी या तो रुका हुआ है या घट रहा है। यह देख कर लगता है कि दर्शकों, खास कर युवा दर्शकों की संख्या कम हो रही है। दर्शकों की संख्या तय करने के टीआरपी जैसे पुराने मापदंड सच पर पर्दा डालते हैं। खबरों की खपत पिछले कुछ सालों में नाटकीय ढंग से बढ़ी है। भारत के लोगों ने पिछले साल टेलीविजन पर खबरें देखने में कुल 2800 अरब मिनट यानी हर सप्ताह लगभग डेढ़ घंटे खर्च किए। यह 6 साल पहले के 780 अरब मिनट से बहुत ज्यादा है। युवा अभी जितनी खबरों का उपयोग कर रहे हैं उतना पहले कभी नहीं करते थे। अगर विभिन्न स्क्रीनों पर खर्च किए गए समय को भी जोड़ दें तो खर्च किया गया कुल समय बढक़र कम से कम प्रति सप्ताह 5-6 घंटे हो जाता है। विडंबना है कि बेहतरीन पत्रकारीय प्रतिभा और संसाधन होते हुए भी अब खबरों की महत्वपूर्ण मंजिल वॉट्सऐप हो गया है। उन दिनों से अलग जब मुख्य स्रोत सबेरे के अखबार एवं रात 9 बजे के बुलेटिन हुआ करते थे। लगातार सूचनाओं एवं विचारों का रेला आता रहता है इसलिए सवाल है कि क्या सचमुच युवा मन के साथ संवाद हो रहा है? इसी स्थिति से मनोरंजन कारोबार में लगे हम लोगों का भी पाला पड़ा है।
दुख की बात है कि हम लोगों में से बहुतों ने इसका जो जवाब ढूंढ़ा वह वेबसाइट, मोबाइल ऐप बनाना या अपनी सामग्री यूट्यूब पर डाल देना है। इस रवैए का वास्तविक कारण डिजिटल और टीवी के बीच विलोम संबंध की समझ है। सिर्फ ऐप बना लेना डिजिटल हो जाना नहीं है। अगर मैं उस कारोबार पर नजर डालूं जिससे मैं ज्यादा परिचित रहा हूं यानी खेल-कूद जहां हमें इसी तरह की तब्दीली देखने को मिल रही है- 15 से 25 साल के युवा मैचों से जुड़ी सूचनाओं और विश्लेषण के लिए कभी-कभी मैच का सीधा प्रसारण देखने के लिए भी अब इन साधनों पर ज्यादा निर्भर रहने लगे हैं।