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फोन टेपिंग, जासूसी और वित्तीय घोटालों के खतरे

प्राइवेट सिक्योरिटी एजेंसी सेक्टर में 100 फीसद एफडीआई के प्रस्ताव का राजनीतिक हलकों समेत चहुंओर विरोध
एफडीआई से बढ़ जाएगा देश में बाहरी जासूसी का खतरा

दृश्य एक:

ठाणे के तीन हाथ नाका इलाके में हीरादीप सोसाइटी। हाल में 30 जून को एटीएम कैश हैंडलिंग कंपनी ‘चेकमेट प्राइवेट सर्विसेस लिमिटेड’ के दफ्तर में आठ डकैतों के एक गिरोह ने धावा बोला। 12 करोड़ रुपये लूट लिए। वहां कंपनी के गोदाम में एचडीएफसी, आईसीआईसीआई बैंक, एक्सिस बैंक समेत कई प्रमुख निजी बैंकों का कैश रखा हुआ था, जिन्हें विभिन्न एटीएम सेंटर्स तक पहुंचाने थे। तड़के तीन बजे पहुंचे डकैतों ने वहां के परिसर में लगाए गए सीसीटीवी का प्लग बंद कर दिया।

‘चेकमेट प्राइवेट सर्विसेस लिमिटेड’ का मुख्यालय गुजरात के वडोदरा में है और देश के 26 राज्यों में इसकी 60 शाखाएं हैं। यह कंपनी पिछले कुछ वर्षों से एक अमेरिकी कंपनी के साथ एफडीआई के लिए वार्ता कर रही है। हालांकि, अब तक दोनों कंपनियों के बीच बातचीत किसी नतीजे पर नहीं पहुंची है। जब तक निजी सुरक्षा एजेंसियों में भारत सरकार ने विदेशी पूंजी निवेश (एफडीआई) की सीमा 49 फीसद तक रखी थी, तब तक यह कंपनी अमेरिका, फ्रांस, नीदरलैंड्स समेत कई देशों की निजी सुरक्षा एजेंसी चलाने वाली कई कंपनियों से पूंजी निवेश को लेकर बातचीत कर रही थीं। अब जबकि भारत सरकार ने पूंजी निवेश की सीमा बढ़ाकर 100 फीसद कर दी है, इस कंपनी के बातचीत से पीछे हटने के संकेत हैं। जानकारों के अनुसार, अधिग्रहण और प्रबंधन नियंत्रण की आशंका को लेकर कंपनी के प्रमोटर ऐसा सोच रहे हैं। न सिर्फ कंपनी में, बल्कि कंपनी के बाहर भी सुरक्षा को लेकर भी कई आशंकाएं जताई जा रही हैं। क्योंकि नियमन को लेकर कोई दिशा निर्देश नहीं बने हैं। अगर नियुक्तियों में भी विदेशी निवेशक कंपनी नियंत्रण करने लगे तो हीरादीप सोसाइटी जैसी घटनाओं, काले धन को ले आने, ले जाने या फिर अन्य कई चुनौतियों से कैसे निपटा जाएगा?

 

दृश्य दो:

हीरादीप सोसाइटी के कांड के सात महीने पहले। नई दिल्ली का गोविंदपुरा इलाका। एक्सिस बैंक के कई एटीम में रकम डालने के लिए 22.5 करोड़ रुपये वैन में लेकर निकला वाहन चालक पूरी रकम लेकर भाग निकला। वैन का गार्ड लघुशंका के लिए गाड़ी से उतरा और चालक गाड़ी ले भागा। एक्सिस बैंक की विकासपुरी शाखा से कुल 38 करोड़ रुपये एटीएम में जमा करने के लिए भिजवाए गए थे। बीच रास्ते में कई एटीएम में रकम डाली गई। बीच रास्ते में चालक को वैन लेकर भागने का मौका मिल गया। बाद में सीसीटीवी फुटेज के आधार पर चालक को पकड़ लिया गया। छानबीन में मिली जानकारी के आधार पर बैंक के कुछ अधिकारियों और सिक्योरिटी एजेंसी ‘सिक्योरिटी एंड इंटेलीजेंस सर्विसेज (एसआईएस)’ समेत तीन कंपनियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई गई।

एसआईएस में बहुराष्ट्रीय प्राइवेट इक्विटी ग्रुप सीएक्स पार्टनर्स ने 2013 में लगभग तीन सौ करोड़ रुपये (यूएस डॉलर 46.15 मिलियन) का निवेश किया। आज की तारीख में निजी सुरक्षा सेक्टर में एसआईएस भारत की शीर्षस्थ कंपनी है, जिसका राजस्व 1054.11 (2014 के आंकड़ों के अनुसार) करोड़ रुपये है। वाणिज्यिक संगठन फिक्की की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस कंपनी का राजस्व (सीएजीआर) अगले पांच साल में 40 फीसद की दर से बढ़ जाएगा। इस भारतीय बहुराष्ट्रीय कंपनी की कई देशों में ब्रांच हैं। एसआईएस के रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया समेत कई संवेदनशीन संस्थान क्लाइंट हैं, जहां सुरक्षा का मु्द्दा बेहद अहम है।

 

दृश्य तीन:

जापान की घटना है। पिछले 15 मई को जापान के विभिन्न शहरों से एक साथ 1400 एटीएम मशीनों से 90 करोड़ रुपये जाली क्रेडिट कार्ड्स की मदद से निकाल लिए गए। दक्षिण अफ्रीका के स्टैंडर्ड बैंक द्वारा जारी किए गए डेटा को लीक करके नकली क्रेडिट कार्ड बनाए गए थे। अंतरराष्ट्रीय अपराधियों के एक सौ लोगों के गिरोह ने इस कांड को अंजाम दिया। एटीएम की सुरक्षा जाहिर तौर पर निजी सुरक्षा एजेंसियों के हवाले थी। उनके द्वारा तैनात गार्ड्स को भनक तक नहीं लगी। न ही बैंकों में लगाई गई हाईटेक प्रणाली ने साजिश की कोई गंध महसूस की।

 

उपरोक्त तीनों घटनाएं सुरक्षा के बेहद संवेदनशील पहलू को उजागर कर रही हैं। दुनिया भर में निजी सुरक्षा एजेंसियों का कारोबार बढ़ रहा है और कारोबार के मद्देनजर बड़े कारोबारी घरानों की नजर भी इस कारोबार पर पड़ रही है। लेकिन क्या निजी सुरक्षा एजेंसियों के काम को महज कारोबार के पहलू से देखना पर्याप्त होगा? देश में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कंपनियों के बीच पूंजी निवेश, प्रशिक्षण या तकनीक हस्तांतरण के करार होते हैं, लेकिन इस बात की कितनी पुख्ता जांच होती है कि बाहर से करार करने आ रही कंपनी का बैकग्राउंड क्या है? उस कंपनी के पर्दे के पीछे कौन है?

भारत में हाल में निजी सुरक्षा एजेंसियों में सौ फीसद विदेशी पूंजी निवेश की अनुमति देते हुए केंद्रीय कैबिनेट ने प्रस्ताव पारित किया है। इसके बाद से ही इस प्रस्ताव के औचित्य को लेकर बहस छिड़ गई है। सरकार का कहना है कि रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और भारत में निवेश बढ़ेगा। जिस तरह औद्योगिक संस्थान बढ़ रहे हैं, संस्थानों की जरूरतें बढ़ रही हैं- निजी सुरक्षा एजेंसियों का काम फैलेगा। अधिक से अधिक लोग और अत्याधुनिक संसाधनों की जरूरत बढ़ेगी। वाणिज्यिक संगठन फिक्की और सीआईआई की 2015 में आई सर्वे रिपोर्ट्स भी यही कहती हैं। दोनों संस्थानों की रिपोर्ट्स आने के बाद से निजी सुरक्षा एजेंसियों में विदेशी पूंजी निवेश की सीमा 49 फीसद से बढ़ाकर सौ फीसद करने के लिए लॉबिन्ग तेज हो गई थी। उदाहरण यह दिया जाने लगा कि विदेशों में कई संवेदनशील काम निजी सुरक्षा एजेंसियों के जिम्मे है। मसलन, यूरोप में जेलों की सुरक्षा और अपराधियों को लाने-ले जाने का काम निजी सुरक्षा एजेंसियों के पास है। अमेरिका में हवाई अड्डों, रेलवे, यात्रियों एवं सामान की जांच का काम, ऑस्ट्रेलिया में यातायात नियंत्रण का काम, कनाडा में पैसिफिक रेलवे और नेशनल रेलवे की सुरक्षा, ब्रिटेन में बंदरगाह पुलिस का काम, खाड़ी देशों में तो रेडियो संचार प्रणाली का काम भी निजी एजेंसियों के जिम्मे है। कुछ देशों में बेहद संवेदनशील काम निजी एजेंसियों के जिम्मे हैं। मसलन, ऑस्ट्रेलिया (कोस्ड गार्ड), जर्मनी और फ्रांस (परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की पहरेदारी), जर्मनी (सैनिक छावनी की पहरेदारी), बेल्जियम, इंग्लैंड, जर्मनी और स्वीडन (हवाई अड्डा सुरक्षा), ब्रिटेन (जेल और कैदियों की सुरक्षा)।

भारत में निजी सुरक्षा एजेंसियों का कारोबार 2014 में 40 हजार करोड़ रुपये का आंका गया था। 2020 तक इसके बढ़कर 80 हजार करोड़ रुपये हो जाने का अनुमान है। फिक्की के लिए सर्वे करने वाली संस्था ग्रांट थॉर्नटन इंडिया के पार्टनर राहुल कपूर के अनुसार, ‘भारत में सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर ढांचागत सेक्टर में निवेश, बैंकों की बढ़ती संख्या के साथ ही निजी सुरक्षा एजेंसियों की मांग बढ़ेगी। सरकारी सुरक्षा एजेंसियों में लोगों की कमी है। वैश्विक स्तर पर विकसित देशों की तुलना में विकासशील देशों में निजी सुरक्षा की मांग बढ़ रही है।’ एसआईएस ग्रुप इंटरप्राइजेज के ग्रुप सीओओ ऋतुराज सिन्हा के अनुसार, ‘भारत में ‘मेक इन इंडिया’ अभियान के चलते कोयला, ऊर्जा, खनन और ढांचागत क्षेत्र में विस्तार हो रहा है। इन क्षेत्रों के उपभोक्ताओं में निजी सुरक्षा एजेंसियों को लेकर सकारात्मक सोच है। अगले तीन साल में भारतीय सुरक्षा एजेंसियां मजबूत होंगी और वैश्विक स्तर पर करार करेंगी।’

ऋतुराज सिन्हा समेत कई अन्य हैं, जो भारतीय निजी सुरक्षा एजेंसियों के वैश्विक फैलाव की बात करते हैं, जो केंद्र सरकार द्वारा सौ फीसद एफडीआई के निवेश प्रस्ताव से ठीक उलट है। सेंट्रल एसोसिएशन ऑफ प्राइवेट सिक्योरिटी इंडस्ट्री के अध्यक्ष कुंवर विक्रम सिंह के अनुसार,‘सौ फीसद निवेश भारतीय कंपनियों के लिए हानिकारक होगा। क्योंकि, इससे एकाधिकारवाद बढ़ेगा और मालिकाना का झंझट शुरू होगा।

अरविंद मायाराम कमेटी ने जून में निजी सुरक्षा एजेंसियों में एफडीआई की सीमा 49 फीसद से बढ़ाकर सौ फीसद करने का सुझाव दिया। लेकिन ऐसा करने के लिए भारत सरकार को निजी सुरक्षा एजेंसी (नियमन) अधिनियम, 2005 में बदलाव करने की जरूरत होगी। कुंवर विक्रम सिंह के अनुसार ‘हमने सुझाव दिया है कि विदेशी पूंजी निवेश की सीमा 51 फीसद से ज्यादा न हो। विदेशी कंपनियों को निवेश के पहले फॉरेन इन्वेस्टमेंट प्रमोशन बोर्डसे अनुमति लेनी होगी।’ दूसरी ओर, लंदन की कंपनी टॉप्सग्रुप के सीईओ और वाइस चेयरमैन रमेश अय्यर का कहना है कि निवेश बढ़ने से प्रशिक्षण, तकनीक उन्नत होगी।

कारोबार जगत अपने नजरिये से एफडीआई प्रस्ताव की समीक्षा कर रहा है। दूसरी ओर, सुरक्षा के कई आयामों को लेकर चिंता भी है। बैंकों का कैश ले आने और ले जाने का काम निजी सुरक्षा एजेंसियों के भरोसे फुल प्रूफ नहीं है- यह पिछली कुछ घटनाओं से साबित हुआ है। जहां कैश रखा जाता है, वहां सीसीटीवी तो लगाए गए हैं, लेकिन पर्याप्त सुरक्षाकर्मी नहीं होते। या फिर, उनके पास ढंग के हथियार नहीं होते। ऐसे में देश भर में विभिन्न प्राइवेट बैंकों के लगभग 15 हजार करोड़ रुपये के कैश की रखवाली निजी सुरक्षा एजेंसियों के पास होना सुरक्षा के लिहाज से संवेदनशील माना जा रहा है। निजी एजेंसियों के सुरक्षाकर्मियों के लिए हथियारों की लाइसेंसिंग का मुद्दा भी है। क्या उन्हें पुलिस और अर्द्धसैनिक बलों की तरह के हथियार दिए जा सकते हैं? क्या उनकी कंपनियां वैसे हथियारों का खर्च वहन कर सकती हैं? क्या इस बात की गारंटी हो सकती है कि वैसे हथियारों का बेजा इस्तेमाल नहीं होगा? इन सवालों का हल ढूंढने के लिए शुरुआती स्तर-नौकरियों में रखने से काम शुरू करना होगा।

अन्य एक पहलू सीसीटीवी और इलेक्ट्रॉनिक जासूसी का है। जिस तरह विदेशों में परमाणु रिएक्टर और हवाई अड्डों या जेलों जैसे संवेदनशील स्थलों की सुरक्षा निजी एजेंसियों को देने का तर्क दिया जा रहा है, क्या भारत जैसे विकासशील देश में यह फुल-प्रूफ है? इलेक्ट्रॉनिक जासूसी को लेकर अहम सवाल उठ रहे हैं। परमाणु रिक्टर, कोस्ट गार्ड, जेल सुरक्षा, हवाई अड्डा सुरक्षा में लगी ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, फ्रांस, ऑस्ट्रिया, नीदरलैंड्स की निजी सुरक्षा एजेंसी चलाने वाली कंपनियां अगर एफडीआई के रास्ते भारतीय कंपनियों के प्रबंधन पर काबिज होने लगीं तो देश की आंतरिक और बाह्य सुरक्षा का क्या होगा?

इन सवालों पर अरविंद मायाराम कमेटी तो चुप है ही, भारत सरकार की एजेंसियां भी खामोश हैं। सरकारी स्तर पर अभी यही कहा गया है कि निजी सुरक्षा एजेंसियों को लेकर 2015 के अधिनियम में बदलाव करते वक्त संवेदनशील बिंदुओं का ध्यान रखा जाएगा। लेकिन इसी कानून के तहत नियमन का प्रावधान है। फिर भी पुणे की हीरादीप सोसाइटी जैसे कांड हो जाते हैं और गिरफ्तारियों के बावजूद रिकवरी एवं जांच अच्छा-खासा समय गुजरने के बावजूद किसी नतीजे पर नहीं पहुंचती।

यही कारण है कि राजनीतिक स्तर पर भी विरोध हो रहा है। न सिर्फ निजी सुरक्षा एजेंसियों में विदेशी निवेश की सीमा बढ़ाने को लेकर बल्कि, विदेशी निवेश की पहले की 49 फीसद की सीमा भी खत्म करने की मांग की जा रही है। अभी तो विरोध सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व की ओर से ही हो रहा है। भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी इस मोर्चे पर अरसे से सक्रिय हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय को पत्र लिखकर इसके गहरे खतरों से आगाह किया है। वे संसद में इस मुद्दे पर व्यापक चर्चा की मांग कर रहे हैं। मुरली मनोहर जोशी का कहना है, ‘निजी जासूसी एजेंसियों द्वारा फोन टेपिंग कराने के मामले हों, सुरक्षा बलों की तरह मिलती-जुलती वर्दी का इस्तेमाल हो या फिर ऐसी कंपनियों में काम पर रखने के पहले कर्मचारी के बैकग्राउंड की जांच न करना ऐसे खतरे हैं, जिनपर कभी ध्यान नहीं दिया गया।’ हालांकि, गृह मंत्रालय के एक अधिकारी के अनुसार, निजी सुरक्षा एजेंसियों को लेकर सरकार एक कड़ा फ्रेमवर्क बनाने जा रही है। इसका मसौदा वार्षिक एफडीआई कंपेंडियममें छापा गया है। 2016 में भारत सरकार ने निजी सुरक्षा एजेंसी अधिनियम के दायरे में ‘आर्मर्ड कार सर्विस’ (कैश ढोने वाले वाहन) को भी शामिल किया है। 2005 के अधिनियम के तहत इस तरह के वाहन की सेवाएं देने वाली कंपनियों को सौ फीसद एफडीआई की इजाजत नहीं दी जा सकती। तब कंपनियां खुद को महज लॉजिस्टिक या अन्य कारोबारी कैटेगरी में नहीं रख सकती। इस बारे में गृह मंत्रालय समय के अनुसार फैसले करेगा।

जाहिर है, निजी सुरक्षा एजेंसियों के कारोबार में सरकार ने सौ फीसद एफडीआई का एलान तो कर दिया है लेकिन इसका रोडमैप तैयार करना अब भी दूर की कौड़ी है। कंपनियों पर प्रबंधन नियंत्रण से लेकर सुरक्षा के संवेदनशील मुद्दों तक पर तस्वीर स्पष्ट नहीं है। अपराध से कैसे बचा जाए और अपराध होने की स्थिति में सरकारी एजेंसियों के साथ समन्वयन कैसे हो- इसकी तस्वीर साफ नहीं है। ऐसे में कारोबार के इस तेजी से बढ़ते सेक्टर को महज व्यावसायिक नफा-नुकसान के आंकड़ों के आईने में देखना ठीक नहीं होगा।      

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