Advertisement

मायावती ने अकेले ही संभाला मोर्चा

चुनाव मैदान में बसपा प्रमुख ने अकेले सपा, कांग्रेस, भाजपा पर साधा निशाना
रैली को संबोध‌ित करतीं मायावती

प्रचार-प्रसार और मीडिया से दूरी बनाने वाली बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने इस बार के चुनाव में कई मिथक तोड़े और मीडिया में सक्रियता बनाए रखी। मायावती ने सोशल मीडिया से लेकर अन्य प्रचार माध्यमों का भी सहारा लिया। उसका प्रमुख कारण यही रहा कि बसपा के मुकाबले सपा, कांग्रेस और भाजपा की आक्रामक प्रचार रणनीति रही। जिसे लेकर बसपा ने भी वही फार्मूला अपनाया। हालांकि जितना पैसा सपा और भाजपा ने खर्च किया उसके मुकाबले बसपा ने खर्च नहीं किया। क्‍योंकि बसपा प्रमुख को एक बात पता है कि जो उनके समर्थक हैं वे प्रचार-प्रसार के भ्रम में नहीं आते। लेकिन इस बार इस मिथक को तोड़ते हुए प्रचार-प्रसार में सक्रियता दिखाई। क्‍योंकि इस बार साल 2007 के चुनाव की तरह सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला उतना नहीं गूंज रहा था। हालांकि टिकट बंटवारे में बसपा ने सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला अपनाया साथ ही सर्वाधिक अल्पसंख्‍यकों को टिकट देने का भी रिकार्ड कायम किया। लेकिन इस रिकार्ड से कितना झुकाव बसपा की ओर अल्पसंख्‍यकों का हुआ यह तो बाद में पूरे विश्लेषण से ही पता चलेगा। लेकिन मायावती ने एक साथ सपा और भाजपा पर निशाना साधते हुए पूरे चुनाव में अपनी सक्रियता बनाए रखी।

मायावती बसपा की सबसे स्टार प्रचारक रही हैं मगर उनके लिए हर विधानसभा तक पहुंच पाना संभव नहीं था। इसलिए उन्होंने कई विधानसभाओं को मिलाकर चुनावी रैलियां कीं। सबसे बड़ा संकट यह रहा कि बसपा प्रमुख मायावती के बाद सतीश चंद्र मिश्रा और नसीमुद्दीन सिद्दकी के अलावा कोई ऐसा नाम नहीं था जो पूरे प्रदेश में पहचाना जाता हो। इसलिए मतदाताओं के बीच जान फूंकने का काम केवल मायावती ने किया। मायावती अकेले दम पर ही पूरे चुनाव प्रचार में विपक्षी दलों के हमलों का बखूबी जवाब देती रहीं। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में मिली बुरी हार के बावजूद बसपा समर्थकों में एक उम्‍मीद जगी कि विधानसभा चुनाव में पार्टी बेहतर प्रदर्शन करेगी। इसी उम्‍मीद में माया के समर्थक चुनाव मैदान में डटे रहे।  

Advertisement
Advertisement
Advertisement