यूपी के चुनावी महासंग्राम के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 'न्यू इंडिया’ को उभरते देखने और उत्तर प्रदेश को 'उत्तम प्रदेश’ बनाने के संकल्प के परिदृश्य में देश के सबसे बड़े प्रांत में पिछले रविवार को सत्तासीन आदित्यनाथ योगी सरकार की राह सपाट नहीं, यकीनन उबड़-खाबड़ है। इसी उबड़-खाबड़ पगडंडी पर 'सबका साथ, सबका विकास’ संकल्प को चलना है। अब तक कभी भी प्रशासनिक दायित्व से दो-चार नहीं होने वाले मुख्यमंत्री योगी का विजय जयघोष भले ही उत्तर प्रदेश और देश की जनता को लुभावना लगे मगर सच यह है कि सभी चमकीली चीजें सोना नहीं होतीं। गोया, चुनौती ठीक उसी तरह की है जैसे सरल सपाट रूप में, शायराना अंदाज में यह कहा जाता है 'ये इश्क नहीं आसां’। उत्तर प्रदेश का विकास महज नारेबाजी, जुमलेबाजी नहीं बल्कि भारी-भरकम चुनौती है। हालांकि निर्वाचित सरकार की संवैधानिक मियाद पांच सालों की है लेकिन यूपी में विकास की चुनौती से जूझने के लिए समय बहुत ही कम है। उत्तर प्रदेश के विकास की बात 2019 के परिपेक्ष्य में देखना सही होगा। यूपी कांग्रेस के समय से और कांग्रेस के अवसान के बाद क्षेत्रीय शक्तियों के कब्जे में आने से लेकर अब तक एक 'बीमारू’ प्रदेश बना हुआ है यानी उत्तर प्रदेश अभी भी प्रति व्यक्ति कम आय वाला राज्य है, प्रदेश में साक्षरता दर कम है, शिशु मृत्यु दर अधिक है, औद्योगिक गतिविधियों में पीछे है और शिक्षा, कानून-व्यवस्था तथा अन्य मोर्चों पर लडख़ड़ाता हुआ प्रदेश है।
पंचवर्षीय योजनाओं के चश्मे से यूपी को देखें तो जाहिर होता है कि आर्थिक नियोजन के पहले 25 वर्षों में प्रदेश का आर्थिक विकास सालाना दो से ढाई फीसदी की दर से हुआ। पांचवीं योजना में प्रदेश की विकास दर में तेजी आई और छठी तथा सातवीं योजना अवधि में प्रदेश की विकास दर राष्ट्रीय औसत के करीब पहुंची। लेकिन 90 के दशक में प्रदेश की विकास दर गिरी और आठवीं तथा नौवीं योजना में विकास दर 3 फीसदी रह गई।
प्रति व्यक्ति आय के लिहाज से उत्तर प्रदेश का पश्चिमी क्षेत्र अधिक विकसित है। यहां प्रति व्यक्ति वार्षिक आय मध्य, बुंदेलखंड और पूर्वी क्षेत्र की तुलना में अधिक यानी 17273 रुपये है। प्रति व्यक्ति आय मध्य क्षेत्र में 13940 रुपये, बुंदेलखंड क्षेत्र में 12737 रुपये और पूर्वी क्षेत्र में 9859 रुपये है। राज्य की 40 प्रतिशत आबादी पूर्वी भाग में है जबकि बुंदेलखंड क्षेत्र में, जहां जनसंख्या घनत्व सबसे कम है, आबादी 9.5 फीसदी है। जनसंख्या के कम दबाव के बावजूद यह क्षेत्र सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा है। इसकी वजह भौगोलिक और जलवायु संबंधी परिस्थितियां हैं। कृषि क्षेत्र की बात करें तो जाहिर होता है कि कृषि की तस्वीर विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग है। किसानी के मामले में पश्चिमी क्षेत्र प्रगतिशील है। यह क्षेत्र लगभग 50 प्रतिशत कृषि उत्पादन का योगदान करता है। कृषि के मामले में पूर्वी क्षेत्र का योगदान 28 प्रतिशत है और बुंदेलखंड का योगदान 4 फीसदी का है। कृषि पैदावार के मामले में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पैदावार प्रति हेक्टेयर 2577 किलो ग्राम है जो राज्य के अन्य क्षेत्रों से ज्यादा है।
उद्योग पर नजर डालें तो मालूम होता है कि पश्चिमी यूपी में एक लाख की आबादी पर औद्योगिक कर्मियों की संख्या 812 है। यह संख्या पूर्वी उत्तर प्रदेश में प्रति लाख 96 है। पश्चिमी यूपी में पंजीकृत उद्योगों की संख्या प्रति लाख की आबादी पर 12.7 है तो पूर्वी क्षेत्र में यह 1.8 है। बिजली खपत के मामले में भी पश्चिमी क्षेत्र में प्रति व्यक्ति खपत 360 किलोवाट है जबकि पूर्वी क्षेत्र में महज 156 किलोवाट है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में 86 फीसदी भूमि पर किसानी का काम मझोले किसान करते हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यह 74 फीसदी है। रोजगार के मामले में पांचवें रोजगार-बेरोजगार सर्वे के आधार पर यह कहा जा सकता है कि प्रदेश में बेरोजगारी काफी अधिक है। स्थिति इतनी खराब है कि श्रमिक बल में महिलाओं की भागीदारी महज 11.2 प्रतिशत है जबकि यह भागीदारी पिछड़ा कहे जाने वाले बिहार में 14.2 फीसदी और हरियाणा में 14.5 फीसदी है। उत्तर प्रदेश में हर तीसरे परिवार की मासिक आय 5 हजार रुपये से भी कम है।
सुधार कार्यफ्मों को लागू करने में भी प्रदेश पिछड़ता रहा है। औद्योगिक नीति और संवर्धन विभाग के आंकड़े बताते हैं कि कार्यफ्मों को लागू करने में प्रदेश 2015 में 10वें स्थान पर था और 2016 में प्रदेश फिसल कर 14वें स्थान पर चला गया। सुधार शांति के माहौल में होता है, अपराध के माहौल में नहीं। भारत के विभिन्न राज्यों में हत्याओं के मामले में भी यूपी अव्वल है। प्रदेश में प्रति वर्ष 4 हजार हत्याएं होती हैं। ऐसा नहीं कि बड़ी आबादी की वजह से प्रदेश में अपराध अधिक है। तथ्य यह है कि वहां की सरकारें अपराध को काबू करने में विफल रही हैं। इस परिदृश्य को देखते हुए 'न्यू इंडिया’ और 'उत्तम प्रदेश’ का नरेन्द्र मोदी का सपना पूरा करना आसान नहीं। खासकर उस उत्तर प्रदेश में जहां काम की तुलना में नौकरशाही की निष्ठा किसी न किसी दल के प्रति अधिक रही है और पुलिस प्रशासन जातीय चंगुल में है, विभिन्न तरह के माफिया कुकुरमुîो की तरह हैं। गाजियाबाद से गाजीपुर तक अपराध की छतरी चहुंओर फैली हुई है। राह बेहद कठिन है। इस बात को नई सरकार, प्रशासन, मीडिया और आम जन को समझना होगा। दिन-रात एक करना होगा, संकल्प के प्रति समर्पित होना होगा, जातीय, क्षेत्रीय, राजनीतिक मनमुटाव सब को पीछे छोड़ कर।
तमाम बुराइयों को दरकिनार किए बिना सबका साथ और सबका विकास संभव नहीं।
यही योगी की परीक्षा है, यही मोदी के संकल्प का इम्तहान है। उत्तर प्रदेश की अग्निपरीक्षा है। इस इम्तहान में पास होने पर ही उत्तम प्रदेश के नारे को साकार कर पाएगा उत्तर प्रदेश।
(लेखक प्रिंट और टी.वी. से जुड़े वरिष्ठ संपादक एवं संगीत विशेषज्ञ हैं)