उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में कांग्रेस की बुरी तरह से हुई हार के बाद संगठन के कामकाज और पार्टी के नेतृत्व को लेकर सवाल उठने लगे हैं। कोई कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की कार्यशैली पर सवाल उठा रहा है तो कोई संगठन में हुई खामियों को लेकर सवाल उठा रहा है। पूर्व सांसद संदीप दीक्षित से लेकर पूर्व केंद्रीय मंत्री मणिशंकर अय्यर, राज्यसभा सांसद सत्यव्रत चतुर्वेदी तक कांग्रेस में कामकाज की शैली को लेकर सवाल उठा चुके हैं। कांग्रेस में हार की समीक्षा के बजाय रार मचने लगी है और उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष राज बब्बर ने तो इस्तीफे की पेशकश तक कर डाली। कोई गठबंधन को हार का कारण मान रहा है तो कोई पार्टी की गलत नीतियों को। पूर्व सांसद संदीप दीक्षित आउटलुक से बातचीत में कहते हैं कि जब उत्तर प्रदेश में पार्टी ने अकेले दम पर अभियान शुरू किया और कार्यकर्ताओं से अच्छा जुड़ाव हो रहा था तो उस समय उसको रोकने की जरूरत नहीं थी। दीक्षित कहते हैं कि जिन लोगों ने भी सलाह दी वो सलाह गलत थी। गठबंधन के सवाल को सीधे-सीधे पूछे जाने पर दीक्षित टाल जाते हैं और कहते हैं कि जो हो गया उसके बारे में कुछ नहीं कहना। लेकिन एक बात सही है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के कई नेताओं में दम-खम नहीं है और वे गठबंधन के सहारे ही चुनाव जीतने का मन बना चुके थे। दीक्षित सीधे-सीधे किसी का नाम नहीं लेते हैं और कहते हैं कि 27 साल यूपी बेहाल का नारा जब कांग्रेस ने दिया तो उस नारे को लेकर आगे बढऩा चाहिए था। लेकिन पार्टी ने नेता की बजाय एक मैनेजर को ही नेता बनाना शुरू किया। इसकी वजह से नुकसान हुआ। संदीप युवा नेताओं को पार्टी में आगे लाने की वकालत भी करते हैं। वे कहते हैं कि जिस तरह से अन्य दलों में युवा नेतृत्व को बढ़ावा मिला है कांग्रेस में यह परंपरा कमजोर होती दिख रही है। कुछ नेता कुंडली मारकर बैठे हुए हैं जिससे पार्टी का नुकसान हो रहा है।
ऐसा नहीं है कि पार्टी में इस तरह के सवाल पहली बार उठ रहे हैं इससे पहले भी कई बार इस तरह के सवाल कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को लेकर उठते रहे हैं। लेकिन इस बार की हार ने कांग्रेस उपाध्यक्ष के फैसले को लेकर सवाल उठाना शुरू किया है। हालांकि कांग्रेस ने पंजाब में बेहतर प्रदर्शन किया और सरकार भी बन गई लेकिन उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड में बुरी तरह पराजय, मणिपुर और गोवा में सर्वाधिक विधायक होने के बावजूद सरकार न बना पाने जैसे फैसले भी पार्टी के लिए मुश्किल पैदा कर रहे हैं। राज्यसभा सांसद सत्यव्रत चतुर्वेदी कहते हैं कि लंबे समय से सुनता आ रहा हूं कि बदलाव होगा लेकिन यह बदलाव कब होगा यह तय नहीं हो पा रहा है। कांग्रेस का राज्यों में बुरा प्रदर्शन लगातार जारी है और केंद्रीय नेतृत्व में बदलाव की बातें होती रहती हैं। चतुर्वेदी कहते हैं कि अगर बदलाव करना है तो समय से करना चाहिए, अब बदलाव से कोई फायदा नहीं है। क्योंकि हार के बाद बदलाव का कोई मतलब नहीं है। चतुर्वेदी के मुताबिक पार्टी में किसी प्रकार का मंथन नहीं हो रहा है। सभी लोग स्वतंत्र तरीके से काम कर रहे हैं जिसका खामियाजा हार है। पार्टी में नेतृत्व परिवर्तन की मांग वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर भी करते हैं। वे कहते हैं कि देश की राजनीति में कांग्रेस का जनाधार कम होता जा रहा है। इसके लिए मंथन करने की जरूरत है। अय्यर कहते हैं कि पार्टी में अब युवाओं को महत्व दिया जाना चाहिए और संगठन में महत्वपूर्ण जिम्मेवारी भी युवाओं के हाथ होनी चाहिए। हालांकि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के बयान पर पार्टी प्रवक्ता निजी राय बताकर पल्ला झाड़ लेते हैं लेकिन उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने हार के बाद कहा था कि निराश होने की जरूरत नहीं है। हार-जीत लगी रहती है लेकिन उत्साह के साथ आगे बढऩे की जरूरत है।