पिछली बार थिएटर से किस गीत को गुनगुनाते हुए बाहर आए थे, किसी नई फिल्म के गाने को कार चलाते हुए एफएम पर सुन कर कब उत्साह में आकर आवाज थोड़ी तेज कर दी थी। ऐसे कितने नए गाने हैं जो मन को सुकून देते हैं। जबान घुमा ऊटपटांग शब्दों को या तेज बीट पर किसी गाने को पूरा याद रखने की तमाम कोशिश के बाद कितनी बार सोचा है, 'छोड़ो यार एक ही लाइन से काम चला लेते हैं।’ नई फिल्मों में संगीत का दौर ऐसा ही है, शोर-शराबे से भरा हुआ। और इसे ही अब संगीत मान लिया गया है।
पब-क्लब और शादी-ब्याह
फिल्मी गानों की सबसे भरोसेमंद जगहें यही हैं। शादी, डांस फ्लोर पर ऐसे गाने खोजे जाते हैं जिस पर पैर थिरक सकें। 'वेयर इज पार्टी टुनाइट’ से लेकर 'लडक़ी कर गई चुल’ जैसे गाने ही 'अप मार्केट’ गाने हैं। चर्चित फिल्म अनारकली ऑफ आरा में दो गीत लिखने वाले, गीतकार राजकुमार सिंह कहते हैं, 'अब गाने और उनके शब्द सिनेमा की पैकेजिंग का हिस्सा हैं। कई बार होता है कि एक गाना सिर्फ प्रमोशन के लिए होता है। उसका फिल्म से कोई लेना-देना नहीं होता। यदि निर्माता को लगता है, दर्शक इसे पसंद करते हैं तो ठीक है। पर ऐसा कब तक चलेगा यह देखना होगा।’ हिंदी फिल्मों में संगीत का यह वह दौर है जब गीतकार की जरूरत नहीं और संगीतकार की तो बिलकुल भी नहीं। सुन रहा है न तू... जैसे इक्का दुक्का गाने आते हैं और श्रोताओं के बाद किसी म्यूजिक रियलिटी शो तक सिमट कर रह जाते हैं। गाने तो वही हैं जिनके बोल से कोई लेना-देना न हो लेकिन जिनकी बीट फास्ट हो। लुंगी डांस... हाई पिच पर 'मस्त’ लगता है और साड़ी के फॉल सा... तो हर पार्टी की जान है। अगर किसी को पुराने गीतों से प्रेम है तो उसे उन लोगों का दिल तोडऩे के लिए रही सही कसर रीमिक्स गीतों ने पूरी कर दी है। राजकुमार सिंह कहते हैं, 'अब गाने में हुक लाइन का बहुत महत्व है। हुक लाइन यानी एक पंक्ति या कोई खास शब्द का रिपीटेशन और इसी से गाना हिट होता है। जैसे- 'बेबी को बेस पसंद है’, 'लैला मैं लैला’, 'बापू हानीकारक है।’ बड़े गीतकार इस स्थिति से डील कर लेते हैं लेकिन नए गीतकारों पर हुक लाइन के लिए बहुत दबाव रहता है। किसी हिट गाने के रेफरेंस में नया गाना लिखना भी बड़ी चुनौती होता है।’
बोल हुए मद्धम, शोर बजने लगा
प्रसिद्ध संगीतकार आनंद जी कहते हैं, 'पहले फिल्मों में सिचुएशन होती थी। उसी हिसाब से गाना होता था। अब सिचुएशन हो न हो गाना बन जाता है। जब शब्दों पर ही ध्यान नहीं है तो रिदम का क्या विचार करें।’ आजकल के गाने कभी-कभी दो से ढाई घंटे में तैयार हो जाते हैं। इस प्रक्रिया को गीतकार-संगीतकार गर्व से सुनाते हैं कि फलां जगह में बोल सूझे और दस मिनट में गाना बन गया। अनुराग कश्यप की आने वाली फिल्म मुक्केबाज के लिए गाने लिख चुके हुसैन हैदरी कहते हैं, 'गाने के शब्द खो चुके, ये सिर्फ काले-सफेद के संदर्भ में नहीं देखा जा सकता। यह सच है कि कुछ रीमिक्स आ रहे हैं, कुछ निर्माता चाह रहे हैं कि यूट्यूब पर लाइक्स मिलें, गाना हर जगह सुनाई दे लेकिन सिर्फ ऐसा ही नहीं है। अच्छे गाने लिखे जा रहे हैं और गीतकार, संगीतकार के साथ ही कभी-कभी अभिनेता, निर्माता सब की मिली-जुली चेतना से कोई गीत तैयार होता है। फिल्मों में गीतों के प्रति ढर्रा जरूर बदल रहा है लेकिन बदलाव कहां नहीं है।’ बदलते दौर में संगीत प्रेमी तो बस इतना ही चाहते हैं कि संगीत से ये मोह-मोह के धागे कभी न टूटें।
नए रूप में लौटा बीता जमाना
जब फिल्मों की कहानी ही बिना सिर-पैर की होने लगी है तो फिर गानों की कौन कहे। जब पुराने गाने हैं तो फिर भला नए गाने बनाने की किसे फिक्र होगी। हिंदी फिल्म उद्योग में एक वक्त ऐसा आया था जब पुरानी फिल्मों के नए संस्करण बन रहे थे। अब वही दौर गानों में आ गया है। तेज संगीत की धुनों में पुराने गानों के मुखड़ों पर नई पीढ़ी थिरक रही है। 1981 में आई याराना का गाना 'सारा जमाना हसीनों का दीवाना,’ 1980 में आई कुर्बानी का 'लैला मैं लैला,’ 1995 में बॉम्बे का 'हम्मा हम्मा,’ 1990 में थानेदार का हिट गीत 'तम्मा तम्मा,’ 1994 में मोहरा का 'तू चीज बड़ी है मस्त मस्त’ और 1970 में आई द ट्रेन का सदाबहार गीत 'गुलाबी आंखें जो तेरी देखी’ तक नई फिल्मों में पुराने गानों के रीमिक्स की भरमार है। पुरानी पीढ़ी भड़ाभड़ संगीत के बीच अपने प्यारे मनपसंद गाने के शब्द खो जाने से दुखी है तो क्या डिस्को थेक का क्रलोर तो ऐसे गानों से ही गुलजार है।
कभी अलविदा न कहना...
विविध भारती के उद्घोषक और ब्लॉगर यूनुस खान को संगीत से लगाव है और गीतों के शब्दों से उससे भी ज्यादा। अब जबकि हिंदी फिल्मों के गीतों में शब्द खोते जा रहे हैं, संगीत शोर में बदल रहा है, ऐसे में उन्होंने एक प्रयास शुरू किया है, लिरिक्स ग्राफिटी। यूनुस लोकप्रिय और अपने जमाने में कर्णप्रिय रह चुके गीतों की चंद सतरें ग्राफिटी की तरह सजा रहे हैं। उन्होंने इसकी संख्या तय नहीं की है कि वह ऐसे कितने पिक्चर पोस्टकार्ड बनाएंगे। बस अभी तो वह खोज-खोज कर गीतों की पंक्तियां निकालते हैं और एक मौजूं तस्वीर के साथ शब्द पिरो देते हैं। नीचे गीतकार के नाम के साथ अपने दोस्तों को व्हाट्स ऐप पर भेज देते हैं। उनका उद्देश्य सिर्फ इतना है कि पुराने सदाबहार और इनमें से कुछ तो कालजयी भी, गीतों को लोग दोबारा याद करें और गुनगुनाएं। उनका उद्देश्य, नए गीतों की पुराने गीतों से तुलना करना भी नहीं है। बस वह इतना चाहते हैं कि फिल्मी गीतों की बेहतर पंक्तियां फिर से लोगों के दिमाग में बस जाएं। वह जल्द ही अपनी लिरिक्स ग्राफिटी का फेसबुक पेज भी बनाने वाले हैं। ताकि मनपसंद गीतों की पंक्तियों को दोबारा याद करना चाहें तो आसानी से उन पंक्तियों तक पहुंच सकें। उनका कहना है, 'मित्रों के लिए और दिलचस्प होता है गानों के बीच की पंक्तियों के सहारे गाने को बूझना और उस तक पहुंचना।’