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‘नो इंग्लिश’ वाला फ्रांस

कान फेस्टिवल वाला फ्रांस भले ही अंग्रेजी न जानता हो पर इस समारोह से खुलती हैं कई राहें
फ्रांस में कान के रेड कारपेट पर अभिनेत्री हास्फिया हेर्जी

बचपन में जब शम्मी कपूर का गाना एन इवनिंग इन पेरिस (पेरिस की एक शाम) चित्रहार में देखा करते थे, तभी मन बना लिया था कि पेरिस जाना है। जब मुझे कान फिल्म फेस्टिवल के दौरान यूरोपियन फिल्म कंपनियों के साथ बी2बी (बिजनेस टू बिजनेस) मीटिंग्स करने का फिक्की द्वारा न्योता मिला तो मैंने तुरंत नीस शहर जाने का फैसला कर लिया। आवेदन देने के मात्र तीन दिन बाद ही मुझे बिजनेस वीजा मिल गया और मैं फ्रांस रवाना होने के लिए तैयार था।

18 मई, 2017 की सुबह एमिरेट्स की उड़ान से कुछ देर दुबई रुकते हुए मैं फ्रांस के खूबसूरत शहर नीस में उसी दिन देर शाम पहुंच गया। मैं जल्द से जल्द कान पहुंचना चाहता था। होटल पहुंचते ही 45 मिनट में ट्रेन से मैं कान स्टेशन पर था। कान स्टेशन से मात्र एक किलोमीटर की दूरी पर कान रेड कारपेट का प्रवेश द्वार है। मैं अपने मीटिंग स्थल जेडब्ल्यू मेरिएट होटल से कान के उन फैशनेबल नजारों का लुत्फ उठाते हुए चल पड़ा, जिन नजारों की चर्चा पूरी दुनिया में होती है। मीटिंग के साथ मेरे मन में वह रेड कारपेट देखने की इच्छा सबसे ज्यादा थी जिसके फोटो पत्र-पत्रिकाओं में हमेशा छाए रहते हैं। होटल में मीटिंग खत्म कर मैं सीधे कान के फेमस रेड कारपेट प्रवेश द्वार पर दुनिया के संपन्न फिल्मी सितारों की फैशन परेड को निहार रहा था। फेस्टिवल के बाहर का माहौल बहुत खुशनुमा था, धनाढ्य वर्ग के लोग महंगी कारों में अपने लंबे-खूबसूरत गाउनों और फैशन की दुनिया के सबसे ताजे ट्रेंड्स के सूट में पैदल पहुंच रहे थे। समुद्र के किनारे मनोरंजन के लाइव कार्यक्रम चल रहे थे और युवा लड़कियां वहां नाच रही थीं।

फेस्टिवल द कान का यह 70 वां साल था। इस उत्सव पर भी आतंक की छाया आसानी से देखी जा सकती थी। उत्सव स्थल के हर कोने पर सुरक्षाकर्मी मौजूद थे। सुरक्षा अधिकारी अपनी ऑटोमैटिक बंदूकें लेकर घूम रहे थे। लेकिन उत्सव की जिंदादिली पर इसका कोई असर नहीं दिख रहा था। सेलेब्रिटी शेफ विकास खन्ना, अभिनेत्री कोंकणा सेन शर्मा, बॉबी बेदी, फ्रांस में भारत के राजदूत डॉ. मोहन कुमार, भारत सरकार के वाणिज्य मंत्रालय की संगीता सक्सेना, ज्वाइंट सेक्रेटरी (फिल्म) अशोक कुमार परमार, ट्रिनिटी पिक्चर्स के सीईओ अजीत ठाकुर, दृश्यम फिल्‍म्स के संस्थापक और मुखिया मनीष मूंदड़ा जैसी कई हस्तियां यहां भारतीय फिल्मकारों का उत्साहवर्द्धन करने के लिए मौजूद थीं।

फेस्टिवल द कान केवल फिल्में देखने और उनकी प्रशंसा करने का मंच नहीं है बल्कि यहां व्यापार के लिए भी बहुत संभावनाएं हैं। हॉलीवुड, बॉलीवुड और दूसरे पश्चिमी देशों के लोग यहां आते हैं और को-प्रोडक्शन, प्रोग्रामिंग, फिल्म फंड्स, फिल्मों के अधिकार, पब्लिक रिलेशन, फैशन से संबंधित जानकारी, फिल्मों के रीमेक के अधिकार आदि पर बात होती है। माल्टा जैसा देश अपने यहां की खूबसूरत लोकेशंस के बारे में वहां आए फिल्मकारों को अवगत कराते हैं। फेस्टिवल द कान फिल्म उद्योग के लिए प्रतिष्ठित समारोह है जो फिल्मों से इतर फिल्म संबंधी व्यापार को बढ़ावा देता है।

रेड कारपेट के अलावा जिस बात ने मुझे बहुत रोमांचित किया वह था रात साढ़े नौ बजे भी चमकता हुआ सूरज। फ्रांस और यूरोप के कई देशों में रात नौ- साढ़े नौ तक भी सूरज चमकता रहता है। यह अपने आप में अनूठा अनुभव था। दूसरी जिस बात ने मुझे प्रभावित किया वह है फ्रांस के लोगों का अपनी भाषा पर गर्व करना। अंग्रेजी न आने का उन्हें कोई मलाल नहीं है। फ्रांस के किसी भी शहर, खास तौर से नीस शहर में अगर आप किसी भी रेलवे कर्मचारी या सहायकों से अंग्रेजी में बात करेंगे तो यकीन मानिए ज्यादातर फ्रांसिसी लोगों का जवाब, ‘नो इंग्लिश’ होगा। इसे इंग्लैंड और फ्रांस के इतिहास के परिप्रेक्ष्य में समझा जा सकता है। ऐसे में इंग्लैंड में बसे एक भारतीय दंपती का फ्रांस में घूमने के दौरान मिलना और अपनी भाषा को सुनना सुखद अहसास था। कान से रेल द्वारा आधे घंटे की दूरी पर बसे मोंटे कार्लो अलग ही नजारा देता है। इस शहर में दुनिया की बेशकीमती कारें, आधुनिक नावें और क्रूज दिखाई पड़ते हैं। शानदार संग्रहालय, कैसिनो, बोट राइड्स जैसी कई चीजें हैं जो किसी भी पर्यटक का दिल लगाने के लिए काफी हैं।

काम के बीच समय चुरा कर घूमना वाकई रोमांचक अनुभव होता है। आप काम के सिलसिले में लोगों से मिलते हैं और काम के साथ घूमने की जानकारी भी जुटा लेते हैं। फ्रांस में भारत के राजदूत और अन्य भारतीयों के साथ रात्रि भोज और अगली सुबह मैं फिर बिजनेस डेलिगेट से पेरिस का आम पर्यटक बन गया। एफिल टावर की सबसे ऊपरी मंजिल से पेरिस का नजारा बहुत आकर्षक दिखता है। वापस आते हुए मन में डर था, यदि किसी फ्रांसिसी से मेट्रो का रास्ता पूछना पड़ा तो फिर ‘नो इंग्लिश’ सुनना पड़ेगा। लेकिन इस बार मुझे इसकी जरूरत नहीं पड़ी। एफिल टावर के पास बह रही साइन नदी के किनारे अचानक मेरे कानों में ‘बोनजोर’ (अभिवादन के लिए फ्रेंच शब्द) सुनाई पड़ा। एक व्यक्ति अंग्रेजी में किसी को रास्ता समझा रहा था। साफ अंग्रेजी में भी पंजाबी उच्चारण की झलक मिल रही थी। कुछ ही देर बाद मैंने पाया कि हम दोनों पहले इंग्लिश से पंजाबी और फिर पंजाबी से हिंदी में बात करने लगे थे! पता लगा जनाब जसवीर राम एफिल टावर के पास साइन नदी के किनारे पर्यटकों का स्केच बनाते हैं। पंजाब के नवां शहर के रहने वाले हैं और कोई भारतीय मिल जाए तो बस कहने ही क्या। उन्होंने जिद कर मेरा भी स्केच बनाया।

अगर आप इस चमक-दमक की दुनिया में खो गए हैं और आपको भारत की गुरबत याद आने लगी है तो जरा ठहरिए। पेरिस की सबसे महंगी शॉपिंग स्ट्रीट पर जब पर्यटक अरमानी, गूची, लई विटोन जैसे अति महंगे ब्रांड्स को निहारने में मशगूल रहते हैं तब उन भव्य शोरूम के आगे भिखारी आपसे कुछ मदद करने की गुहार कर रहे होते हैं। यह पेरिस का दूसरा रंग है जो उसकी चकाचौंध का दूसरा रूप दिखाता है। अगर किसी को प्रिंसेस डायना का वह दर्दनाक एक्सीडेंट याद है तो इसके आगे ही वह सड़क है जहां कार एक्सीडेंट में प्रिंसेस डायना की मृत्यु हो गई थी। इस मोड़ का नाम ही डायना प्वाइंट पड़ गया है। पेरिस के विविध रंग देख कर मैं खुश हूं और मेरा मन कह रहा है हां, यह वही पेरिस है, शम्मी कपूर जिसके लिए थिरकते हुए गाते थे, एन इवनिंग इन पेरिस।

(लेखक ब्रांड एंड मार्केटिंग एक्सपर्ट हैं)

 

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