Advertisement

दूध और मांस में संतुलन की चुनौती

भैंस के मांस का निर्यात बढ़ाने की होड़ में दूध पर कितना ध्यान
भैंसों की खरीद-फरोख्त

मेरठ के रहने वाले अनवर कुरैशी अमेरिका के कृषि विभाग (यूएसडीए) की उस रिपोर्ट से अनजान हैं जिसमें बताया गया है कि भारत पूरी दुनिया में भैंस का मांस निर्यात करने वाले अव्वल देशों में एक है। यूएसडीए की ताजा रिपोर्ट बताती है कि भारत में स्लॉटर हाउस की तादाद और वहां हो रहे मांस उत्पादन की दर यही रही तो जितने दूध का उत्पादन इस समय भारत में हो रहा है वर्ष 2023 के बाद उसमें कमी आएगी। एक प्रकार से मांस उत्पादन और दूध उत्पादन उद्योग में भारी असंतुलन पैदा होगा।

हालांकि अभी तक भारत दूध उत्पादन में भी अव्वल है। सरकार के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार वर्ष 2013-14 में भारत में कुल 137.60 मिलियन टन और 2014-15 में 146.3 मिलियन टन दूध का उत्पादन रहा। लेकिन यह भी सच है कि भारत से जिस तादाद में भैंस के मांस का निर्यात बढ़ रहा है उस हिसाब से यह कहीं दूध उत्पादन पर असर न डाले। भैंस के मांस का घरेलू प्रयोग भी बढ़ा है। वजह है कि अलग-अलग राज्यों में गाय के मांस संबंधी सख्त कानून लागू होने से कई राज्यों में इसकी बिक्री पर पाबंदी लगी है। इस वजह से भैंस के मांस का घरेलू उपयोग बढ़ा है। भारत सरकार के पशुपालन- डेयरी और मछलीपालन विभाग के आंकड़े बताते हैं कि भारत में लोग पोल्ट्री 45 फीसदी, भैंस 19 फीसदी, बकरा 16 फीसदी, सूअर 8 फीसदी और भेड़ का मांस सात फीसदी खाते हैं।

वर्ष 2009-10 और 2014-15 में यह इसका निर्यात चार गुणा तेजी से बढ़ा। वर्ष 2014 की अपेक्षा भारत भैंस के मांस का निर्यात करने वाला दुनिया का सबसे बड़ा देश बन गया। कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के आंकड़ों पर गौर करें तो वर्ष 2013-14 में भारत ने 14,49,785.64 मिट्रिक टन, 2014-15 में 14,75,526 मिट्रिक टन, वर्ष 2015-16 में 13,14,158.05 मिट्रिक टन भैंस के मांस का निर्यात रहा। बात किए जाने पर अल फहीम मीटेक्स प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक इमरान याकूब बताते हैं कि वर्ष 2014 में भारत भैंस के मांस के निर्यात में पहले नंबर पर था। अभी ब्राजील है लेकिन भारत भी अव्वल देशों में शुमार है। जहां तक भविष्य में दूध की कमी की बात है तो वह इसलिए कम नहीं होगी कि अब खेती के बजाय लोग पशुपालन में जा रहे हैं। दुधारू पशु कमाई का बेहतर जरिया बन रहे हैं। जहां तक भैंस के मांस के घरेलू खपत की बात है तो अब भी यहां चिकेन और बकरे का मीट ही ज्यादा खाया जाता है। भैंसें पूरी दुनिया में अब भी भारत में ही सबसे ज्यादा हैं।

वर्ष 2015 में भारत में भैंस के मांस का कुल उत्पादन 37.96 लाख टन हुआ। इसमें से 20 लाख टन निर्यात किया गया। बाकी घरेलू खपत में गया। पश्चिमी देशों में साफ निर्देश हैं कि मीट के लिए वही जानवर काटे जाएंगे जो दूध देने के लायक नहीं हैं। मुजफ्फरनगर के रहने वाले मिराज कुरैशी का कहना है कि देश में मीट के लिए प्रयोग होने वाले जानवरों संबंधी दिशा-निर्देशों से ज्यादातर लोग अनजान हैं। इसके लिए जरूरी है कि मीट के लिए या तो उन जानवरों को काटा जाए जो दूध देने लायक नहीं रहे या फिर बैल या बछड़े को। इनका यह भी कहना है कि जिस प्रकार से सरकार की पोल्ट्री और मछली पालन उद्योग के लिए योजनाएं हैं उसी प्रकार मीट वाले जानवरों को पालने के लिए भी योजनाएं होनी चाहिए। पश्चिमी देशों में ऐसा है। ऐसा होने से आने वाले समय में दूध की कमी नहीं होगी। इस बारे में कांग्रेस के मीडिया पैनेलिस्ट चंदन यादव बताते हैं कि एक जमाना था कि हम अपने डेयरी सेक्टर पर गर्व किया करते थे। हमारे यहां दूध का उत्पादन भी काफी था। श्वेत क्रांति का आगाज भी हुआ लेकिन सरकार ने इसे हरित क्रांति की तर्ज पर विकसित नहीं किया। यादव का कहना है कि आज भी देश में जितने दूध की खपत हो रही है और जितनी मांग है उस हिसाब से मैं सोचता हूं कि पता नहीं यह दूध कहां से आ रहा है और कैसा है। लेकिन आने वाले सालों में हालात खराब न हों इसके लिए सरकार को ठोस रणनीति बनानी होगी। धर्म और गाय के आधार पर देश में माहौल बिगाड़ने के बजाय पशुपालन सेक्टर को मजबूत कैसे किया जाए, दूध उत्पादन कैसे बढ़ाएं और भैंस के मांस के निर्यात संबंधी दिशा-निर्देश बनाने होंगे। बेशक भारत भैंस के मांस का बड़ा निर्यातक है लेकिन फिर भी दूध की कमी नहीं होगी।

Advertisement
Advertisement
Advertisement