देश की एक नहीं, दो नहीं, लगभग सभी नवरत्न कंपनियों के साथ-साथ सार्वजनिक उपक्रम की कंपनियों में नियुक्तियों को लेकर ऐसा घालमेल है कि आप भौंचक्क रह जाएंगे। आउटलुक ने अपनी पड़ताल में पाया कि किसी भी कंपनी के डायरेक्टर पर्सनल/एचआर के पद को लेकर जो विज्ञापन दिया जाता है उसमें योग्यता के नाम पर केवल स्नातक उत्तीर्ण होना जरूरी है। जबकि आमतौर पर एचआर मैनेजर की पोस्ट के लिए एमबीए की डिग्री की उम्मीद की जाती है। जबकि डायरेक्टर पर्सनल/एचआर के पद के लिए स्नातक के साथ यह जोड़ा जाता है कि अगर व्यक्ति ने स्नातकोत्तर या इसके साथ कुछ अतिरिक्त अनुभव हो तो प्राथमिकता दी जाएगी। उदाहरण के तौर पर सार्वजनिक उपक्रम की कंपनी एमएमटीसी (मेटल्स एंड मिनरल ट्रेडिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया) ने एक अप्रैल 2016 को निदेशक पर्सनल के पद के लिए विज्ञापन दिया। जिसमें कहा गया कि इस पद पर बैठा व्यक्ति सीधे कंपनी के अध्यक्ष को रिपोर्ट करेगा, साथ ही, वह एचआर प्रबंधन, प्रशासनिक कार्यों का भी सर्वेसर्वा होगा। इसके अलावा इस पद पर बैठे व्यक्ति को व्यावसायिक संबंधों को प्रगाढ़ बनाने में भी भूमिका निभानी होगी। इसके लिए 45 साल की उम्र सीमा रखी गई और शैक्षिक योग्यता गुड अकादमिक रिकॉर्ड के साथ स्नातक। अगर कैंडिडेट ने कहीं से एमबीए या फिर एचआर प्रबंधन में कोई डिग्री-डिप्लोमा लिया है तो उसको उसकी योग्यता में शामिल किया जाएगा। एक और शर्त है कि आवेदन करने वाला उम्मीदवार पिछले दस वर्षों में दो वर्ष तक एचआर में काम करने का न्यूनतम अनुभव होना चाहिए।
इस तरह के विज्ञापन केवल एमएमटीसी ही नहीं बल्कि देश की बड़ी कंपनियों जिनमें बीएचईएल (भारत हैवी इलेक्ट्रिक लिमिटेड), ईआईएल (इंजीनियर्स इंडिया लिमिटेड) से लेकर एनटीपीसी, गेल जैसी कंपनियों के लिए भी इसी तरह के विज्ञापन दिए जाते हैं। हैरानी की बात यह है कि सार्वजनिक उपक्रम की कई कंपनियां केवल देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी परचम लहरा रही हैं लेकिन जिस तरह दुनिया की अन्य कंपनियां अपने डायरेक्टर पर्सनल/एचआर को लेकर संवेदनशील रहती है उस तरह सार्वजनिक उद्यम की ये कंपनियां नहीं होतीं। किसी भी कंपनी के प्रबंध निदेशक के बाद डायरेक्टर पर्सनल/एचआर सबसे महत्वपूर्ण पद होता है। जो कि प्रबंध निदेशक का सबसे बड़ा विश्वासपात्र होता है। लेकिन सरकार और प्रबंध निदेशक से नजदीकी के चलते इस पद का विज्ञापन ऐसा दिया जाता है ताकि नियुक्ति को सही ठहराया जा सके। डायरेक्टर पर्सनल/एचआर एक ऐसा पद है कि वह पूरी कंपनी में अधिकारियों से लेकर तमाम पदों की पदोन्नति, नियुक्ति आदि में सीधा हस्तक्षेप करता है और कंपनी के कर्मचारियों पर पूरा नियंत्रण रखता है। लेकिन योग्यता को लेकर इन कंपनियों के कई वरिष्ठ पदाधिकारियों को दिक्कतें होती रही हैं।
दरअसल, भारत सरकार के लोक उद्यम चयन बोर्ड के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने एक तय मानक बना रखा है और उसी मानक के आधार पर ही नियुक्तियां की जाती हैं। इसके पीछे की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है। आउटलुक ने अपनी पड़ताल में जब कई कंपनियों के डायरेक्टर पर्सनल/एचआर के पद के बारे में जानकारी जुटाई तो कई दिलचस्प तथ्य सामने आए। एक नवरत्न कंपनी के पदाधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि उनकी कंपनी का प्रदर्शन तेजी से बढ़ रहा था लेकिन अचानक डायरेक्टर पर्सनल/एचआर के पद पर ऐसे व्यक्ति की नियुक्ति हो गई कि उसके सीधे हस्तक्षेप से कंपनी के उत्पाद से लेकर कार्यक्षमता पर भी असर पड़ने लगा लेकिन उस व्यक्ति की नियुक्ति में सरकार, मंत्री और प्रबंध निदेशक का हाथ था इसलिए कोई विरोध नहीं हो सकता। इसी तरह एक अन्य कंपनी के अधिकारी ने बताया कि बड़ी कंपनियों में डायरेक्टर पर्सनल/एचआर की नियुक्तियों में बड़ी भूमिका होती है। ऐसे में सरकार ने इस तरह के नियम बनाने में प्राथमिकता जताई की अपने लोगों को ऐसे पदों पर बिठा दिया जाए जहां से लोगों को नौकरियां देना आसान हो जाए। साथ ही, इस पद को इतना महत्वपूर्ण बना दिया गया कि डायरेक्टर पर्सनल/एचआर सीधे कंपनी के अध्यक्ष को रिपोर्ट करेगा और कंपनी की तमाम तरह की नीतियों में उसकी भूमिका होगी। सीधे तौर पर कहा जाए तो एक तरह सरकार की विचारधारा के साथ खड़े लोगों को नियुक्तियों में प्राथमिकता दी जाएगी।
जबकि देश की सार्वजनिक उपक्रम की ये बड़ी कंपनियों से उम्मीद यह रहती है कि जिस तरह का व्यावसायिक प्रदर्शन कर रही हैं उसमें और बढ़ोत्तरी होगी। कई कंपनियों के एचआर से जुड़े लोगों ने माना कि डायरेक्टर पर्सनल/एचआर का जो पद निकाला जाता है उसमें सरकार के करीबी लोगों को मौका दिया जाता है। जबकि इतने महत्वपूर्ण पद के लिए एचआर प्रबंधन करके आए लोग या इससे लंबे समय तक जुड़े लोगों को कोई महत्व नहीं दिया जाता है। मौजूदा समय में भी कई कंपनियों में डायरेक्टर पर्सनल/एचआर जो कार्यरत हैं वह भी इस पेशे से नहीं आए हैं लेकिन कंपनी की कई नीतियों में उनकी विशेष भूमिका होती है। एक बड़े नवरत्न कंपनी के एचआर मैनेजर ने यह स्वीकार भी किया कि नियुक्ति संबंधी सारी योग्यता उनके पास होने के बावजूद उनको इस पद के योग्य नहीं समझा गया। लेकिन उनसे कम अनुभवी व्यक्ति को यह पद दे दिया गया। डायरेक्टर पर्सनल/एचआर अपने हस्ताक्षर से योग्य उम्मीदवारों का चयन करते हैं लेकिन खुद की उनकी योग्यता कोई मायने नहीं रखती। क्योंकि इसमें कहीं न कहीं सरकारी हस्तक्षेप का मामला साफ तौर पर दिखाई पड़ रहा है।
इस क्षेत्र से जुड़े व्यावसयिक लोगों ने कई बार हस्तक्षेप करने की पहल भी की लेकिन इस दिशा में किसी सरकार ने बड़ा कदम नहीं उठाया। हाल ही में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पर्सनल मैनेजमेंट (एनआईपीएम) ने भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, कैबिनेट सचिव, सार्वजनिक उपक्रम विभाग के सचिव को पत्र लिखकर एचआर मैनेजर या निदेशक के पद की न्यूनतम योग्यता और अनुभव को बढ़ाने का आग्रह किया है। क्योंकि किसी भी कंपनी के लिए यह सबसे महत्वपूर्ण पद होता है। एनआईपीएम के राष्ट्रीय अध्यक्ष सोमेश दास गुप्ता के मुताबिक एचआर का काम विशिष्ट प्रकार का होता है और इसमें व्यावसायिक रूप से लंबा अनुभव रखने वाले व्यक्ति को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि आज जिस तरह अनुभवी लोगों को दरकिनार कर दिया जाता है उससे साफ तौर पर जाहिर होता है कि योग्यता के कोई मायने नहीं है। एचआर से जुड़े कई और अधिकारियों ने बताया कि किस तरह इस पद का सीधे-सीधे दुरुपयोग हो रहा है। एनआईपीएम के पूर्व अध्यक्ष आरपी सिंह कहते हैं कि केवल स्नातक को पात्र मानना इसलिए सही नहीं कहा जा सकता कि जब अनुभवी लोग हैं तो उन्हें प्राथमिकता दी जानी चाहिए। लेकिन जिस तरीके का फॉर्मूला कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग द्वारा बनाया गया है उससे व्यावसायिक अनुभव रखने वालों को निराशा है। एक नवरत्न कंपनी के जनरल मैनेजर नाम नहीं छापने की शर्त पर आउटलुक से कहते हैं कि इस तरह का निर्णय बिल्कुल ही निराश कर देने वाला है कि अनुभवी व्यक्तियों को दरकिनार कर ऐसे लोगों को इस पद पर बिठा दिया जाता है जिनको कोई अनुभव नहीं है। वह कहते हैं कि जब कंपनी को व्यावसायिक स्तर पर कारोबार बढ़ाना है और बेहतर रिजल्ट देना है तो इस तरह की नियुक्तियां क्यों की जाती हैं। मामला साफ है कि आज जिस तरीके से डायरेक्टर पर्सनल/एचआर की नियुक्तियां की जा रही हैं वह अपनों को लाभ देने के लिए है। इसलिए किसी भी सरकार ने चयन की प्रक्रिया में बदलाव करना जरूरी नहीं समझा।