कहते हैं अच्छाई और बुराई एक ही सिक्के के दो पहलू होते हैं। कोई चीज या आविष्कार किसी समय इनसान के लिए अच्छा होता है और बाद में वही बुरा बन जाता है। यह तथ्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों पर बिलकुल सही लागू होता है। तकनीकी क्रांति ने दुनिया को एक छोटी सी कॉलोनी में बदल दिया है मगर इसी तकनीक से बने इन उपकरणों ने लोगों को बीमार बनाना भी शुरू कर दिया है। हालिया घटनाएं, दुनिया भर में हुए अध्ययन और चिकित्सकों के पास पहुंच रहे मरीजों के आंकड़े साफ बताते हैं कि इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स मसलन स्मार्टफोन, टैबलेट, लैपटॉप और टीवी भी किसी हद हमें बीमार बना रहे हैं। मनोचिकित्सक अब मानने लगे हैं कि दरअसल इन उपकरणों का अत्यधिक इस्तेमाल लत से कहीं आगे बढ़कर खुद में एक बीमारी बन गया है। इसे कुछ उदाहरणों से समझ सकते हैं।
दिल्ली के आनंद कुमार अपने 28 वर्षीय नौकरीपेशा बेटे को लेकर सब्जी लेने मंडी पहुंचे। वह सब्जी वाले से मोल भाव कर रहे थे और इतने में उनके बेटे ने जेब से स्मार्टफोन निकाला और उस पर लोकप्रिय गेम कैंडीफ्श खेलने लगा।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मोबाइल का इस्तेमाल करते हुए रेलवे लाइन पार करने के दौरान कई युवकों की रेल से कटकर मौत हो चुकी है।
दिल्ली से सटे गाजियाबाद में वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. भारती झा के पास एक मां अपने पांच साल के बेटे को लेकर आईं। उनकी शिकायत थी कि उनका बेटा जरा-सी भी रौशनी बर्दाश्त नहीं कर पाता है और तुरंत अपनी आंखें बंद कर लेता है। डॉ. भारती झा ने सुझाव दिया कि बच्चे को स्मार्टफोन से दूर रखा जाए तो यह शिकायत खुद दूर हो जाएगी।
दरअसल, पिछले 20 वर्षों में दुनिया में तकनीक के क्षेत्र में हुई क्रांति का खामियाजा हम अब भुगत रहे हैं। जिस तकनीक से संसार का भला होना था वह दरअसल, अब दुनिया की आबादी के बड़े हिस्से के लिए नासूर का रूप लेती जा रही है। घर, बाजार, मेट्रो, रेल, बस या पार्क कहीं भी नजर दौड़ाएं आपको हर उम्र के व्यक्ति किसी न किसी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण में सिर झुकाए दिखेंगे। हद तो यह है कि सुबह जॉगिंग के लिए निकलें तो उस समय भी हाथ में स्मार्टफोन और उसके साथ जुड़े स्पीकर लोग कानों में लगाए नजर आते हैं।
इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के अत्यधिक इस्तेमाल से नुकसान पर भारत में अभी आधिकारिक अध्ययन होना है, मगर दुनिया के दूसरे देश इस मामले में पहले ही जाग चुके हैं। जापान में हुआ एक शोध बताता है कि वहां हाईस्कूल के ऐसे बच्चे जो प्रतिदिन कम से कम चार घंटे स्मार्टफोन पर बिताते हैं, उनमें से 53.5 फीसदी आधी रात से पहले सोने नहीं जाते जबकि जो बच्चे मोबाइल फोन का इस्तेमाल बिलकुल नहीं करते उनमें देर से सोने वालों का प्रतिशत सिर्फ 14.9 है। सिर्फ यही नहीं, इस अध्ययन से यह तथ्य भी सामने आया है कि ऐसे बच्चे जो दो घंटे से ज्यादा पढ़ते हैं और इतना ही समय स्मार्टफोन भी इस्तेमाल करते हैं उनका गणित का प्रदर्शन बेहद खराब रहा है जबकि ऐसे बच्चे जो आधे घंटे पढ़ते हैं मगर स्मार्टफोन बिलकुल इस्तेमाल नहीं करते उनका प्रदर्शन ज्यादा बढ़िया रहा है।
दिल्ली में फोर्टिस अस्पताल समूह के साइकिएट्रिक विभाग के निदेशक और वरिष्ठ मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. समीर पारेख आउटलुक से कहते हैं कि दरअसल, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के इस्तेमाल की अति अब दिखने लगी है। लोग घर और बाहर के हर हिस्से में इन उपकरणों के आदी बन गए हैं जिसके कारण मानसिक तो छोडि़ए, हर तरह की परेशानी बढ़ने लगी है।
डॉ. पारेख के अनुसार, ‘लोग सोचते हैं कि स्मार्टफोन या कंप्यूटर के बदले वे टीवी देखते हैं तो उनका शरीर और मस्तिष्क रिलैक्स होता है मगर यह सिर्फ भ्रम है। दरअसल, टीवी देखने से भी शरीर की थकान और बढ़ती है। कई अध्ययन इसे साबित कर चुके हैं।’डॉक्टर पारेख मानते हैं कि उनके पास आने वाले मरीजों में कई ऐसे होते हैं जिनकी परेशानी दरअसल इन इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के अत्यधिक इस्तेमाल से जुड़ी होती है।
दिल्ली के आई-7 अस्पताल के वरिष्ठ नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. राज आनंद आउटलुक से बातचीत में मानते हैं कि उनके पास आने वाले कई बच्चों में दूर की नजर खराब होने की शिकायत आम हो गई है जबकि पहले ऐसा नहीं था। राज आनंद के अनुसार इनसान की आंखें इस तरह बनी होती हैं कि दूर की चीजें देखने के लिए उसका फोकस दूर बनता है। मगर अब जो बच्चे उनके पास आ रहे हैं उनमें यह प्रक्रिया उलटी हो गई है यानी लगातार स्मार्टफोन या अन्य किसी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण में घंटों आंखें गड़ाए रखने के कारण उनकी आंख अब दूर के बजाय नजदीक देखने की अभ्यस्त होती जा रही हैं और आंखों का फोकस भी नजदीक बनने लगा है। इससे उन्हें दूर की चीजें साफ नहीं दिखतीं। यही नहीं, आंखों में प्राकृतिक रूप से नमी बनाए रखने के लिए आंखों को थोड़ी-थोड़ी देर पर झपकना पड़ता है। मगर इलेक्ट्रॉनिक उपकरण में आंखें गड़ाए रहने और पलक भी नहीं झपकाने से यह प्रक्रिया थम जाती है जिसके कारण आंखों की नमी खत्म हो जाती है। इससे आंखों को बड़ा नुकसान पहुंचता है।
डॉ. राज आनंद की बातों से डॉ. भारती झा सहमति जताती हैं। डॉ. झा बताती हैं कि उनके पास कई बच्चे ऐसे आते हैं जो आंख की किसी न किसी परेशानी से पीड़ित होते हैं। दरअसल, एकल परिवार में बच्चे को संभालने के लिए बहुत छोटी उम्र में ही उसे मोबाइल फोन दे दिया जाता है। बच्चा उससे खेलता रहता है या वीडियो देखता है और मां घर का काम निबटाती रहती है। परिणाम यह होता है कि बच्चा फोन का लती बन जाता है।
राज आनंद कहते हैं कि सवाल सिर्फ आंख का नहीं है, दरअसल, इन उपकरणों के ज्यादा इस्तेमाल से ऐसी कोई परेशानी नहीं है जो नहीं होती है। घंटों फोन, टीवी, कंप्यूटर से चिपके रहने से सबसे पहले तो शारीरिक गतिविधियां थम जाती हैं जिसके कारण वजन बढ़ता है, इसके बाद ब्लड प्रेशर, मधुमेह, हृदय रोग, सांस की बीमारी, हड्डियों की बीमारी, नर्व्स की परेशानी, अनिद्रा और इससे जुड़ी अन्य परेशानियां यानी पूरा शरीर ही बीमारियों से ग्रसित हो जाता है। ये सारी समस्याएं 40 की उम्र पार होने के बाद दिखने लगी हैं जबकि पहले ये समस्याएं लोगों को आमतौर पर 60 की उम्र के बाद होती थीं। डॉ. पारेख के अनुसार इन उपकरणों का सबसे बड़ा नुकसान तो यह है कि लोगों की आउटडोर गतिविधियां सीमित हो गई हैं।
डॉक्टरों का कहना गलत नहीं है। अगर हम अपने आस-पास देखें तो अंतर पता चल जाता है। पहले लोग किराने या घर का अन्य जरूरी सामान लेने, बैंक का काम करने, बच्चों के साथ खेलने या दोस्तों के साथ मस्ती करने घर से बाहर जाते ही थे। अब ऐसा देखने को नहीं मिलता। लोग फोन पर एप के जरिये किराना, कपड़ा आदि मंगाने लगे हैं। बैंकिंग तो पहले ही ऑनलाइन हो चुकी है। बच्चों के पार्क में खेलने का जहां तक सवाल है तो सिर्फ छोटी उम्र के बच्चे ही अब पार्कों में दिखते हैं। इस संवाददाता का इस बारे में अनुभव बेहद खराब रहा है। करीब 15 साल पहले पटना की एक आवासीय कॉलोनी में शाम के समय पार्क को बच्चों से भरा-पूरा देखने के बाद इस वर्ष जब उसी कॉलोनी में जाने का मौका मिला तो यह देखकर बेहद आश्चर्य हुआ कि शाम के समय उस पार्क में गिनती के चार-पांच बच्चे खेल रहे थे। ऐसे में यह सवाल स्वाभाविक है कि यह तकनीकी क्रांति इनसान के भले के लिए है या उसके विनाश के लिए?
इन बातों का रखें ध्यान
सोने से पहले टीवी न देखें। भले ही आपको लगे कि इससे आराम मिल रहा है मगर हकीकत में इससे दिमाग पर जोर पड़ता है
स्मार्टफोन कितना भी स्मार्ट हो उसे हमसफर न बनाएं, काम खत्म तो फोन को बंद कर रख दें
शयनकक्ष में इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का इस्तेमाल करने से बचें और सोते समय तो अपने नजदीक बिलकुल न रखें
क्योंकि इससे नींद उचटती रहती है जो कई बीमारियों को न्योता दे सकता है
टैबलेट पर लगातार देखने से गर्दन पर जोर पड़ता है, इसलिए इसका इस्तेमाल कम से कम करें
कंप्यूटर पर काम करते समय सही तरीके से बैठें क्योंकि गलत पोश्चर आपको पीठ की ऐसी बीमारियां दे सकता है जिनका इलाज सिर्फ ऑपरेशन से ही होता है
सोशल मीडिया को सोशली ही इस्तेमाल करें। कई अध्ययन साबित कर चुके हैं कि सोशल मीडिया पर लिखी टिप्पणियां आपका मूड खराब कर देती हैं। बेहतर ये है कि हमेशा नकारात्मक लिखने वालों को ब्लॉक कर दें।
खास बात यह है कि अगर घंटों कंप्यूटर पर काम करना है तो बीच-बीच में पांच से 10 मिनट का ब्रेक लें