विश्वविद्यालयों को सिर्फ बहुत पढ़े-लिखे और डिग्री होल्डर ही चलाएं या छात्रों को पढ़ाएं, ये अब जरूरी नहीं है। नई जरूरतों के अनुसार विश्वविद्यालयों का पुराना ढांचा बदल रहा है। वहां अब शिक्षा को नई दिशा देने के लिए बिना किसी अकादमिक पृष्ठभूमि के लोग महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभा रहे हैं। अगर देश के निजी विश्वविद्यालयों की बात करें तो पिछले कई सालों से यहां एक चलन देखने को मिल रहा है कि ये विश्वविद्यालय अपने यहां बड़े और उच्च पदों पर उन लोगों को रख रहे हैं जिनके पास न तो ज्यादा एकेडमिक डिग्रियां हैं और न ही रिसर्च का कोई लंबा अनुभव है, लेकिन वे अपने-अपने क्षेत्र के दिग्गज जानकार रहे हैं।
लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी के चांसलर अशोक मित्तल के पास भी शिक्षक की कोई पृष्ठभूमि नहीं रही है लेकिन आज वे देश के एक बड़े निजी विश्वविद्यालय के चांसलर हैं। बजाज और मारुति का शोरूम चलाने वाले अशोक मित्तल अपने स्कूली दिनों में विश्वविद्यालय के टॉपर रहे हैं इसीलिए काफी वक्त से अपने पुश्तैनी काम में बेचैनी महसूस कर रहे थे। तमाम सलाहों को दरकिनार करते हुए उन्होंने 2001 में लवली इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट शुरू किया। मित्तल कहते हैं कि अनुभव से भी जरूरी आपकी सोच है, अगर आपकी दृष्टि ठीक है तो आप सफल जरूर होंगे।
मानव रचना इंटरनेशनल विश्वविद्यालय, फरीदाबाद के वाइस चांसलर एन.सी. बाधवा का कहना है कि इंडस्ट्री और शिक्षा का आपस में सामंजस्य होना बहुत जरूरी है। अगर इनके बीच बेहतर सामंजस्य होगा तो छात्रों को इसका काफी फायदा मिलेगा, इसलिए हम अपने साथ उन लोगों को भी जोड़े रखते हैं जिनकी कोई अकादमिक पृष्ठभूमि नहीं होती है लेकिन उन्हें इंडस्ट्री का व्यावहारिक ज्ञान बहुत होता है। वह कहते हैं कि बात केवल डिग्री लेने तक की ही नहीं है बल्कि उससे भी आगे ट्रेनिंग और प्लेसमेंट तक की है जहां हमें इन लोगों का फायदा मिलता है। बाधवा कहते हैं कि हम अपने यहां कॉरपोरेट, आईटी, इलेक्ट्रॉनिक और इलेक्ट्रिक सहित मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र के दिग्गज लोगों को गेस्ट शिक्षक के रूप में बुलाते हैं। उनका कहना है कि हमने अपनी एकेडमिक काउंसिल में नवदीप चावला (फरीदाबाद इंडस्ट्री एसोसिएशन के अध्यक्ष), डीएलएफ, इंडस्ट्री एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे जे.पी. मल्होत्रा के साथ-साथ एस.के. जैन को भी रखा है
वहीं, सुभारती यूनिवर्सिटी के संचालक डॉ. अतुल कृष्ण कहते हैं कि हम बिना अकादमिक पृष्ठभूमि के लोगों को स्थायी तौर पर नहीं रखते हैं लेकिन हमने एक पैनल ऑफ एक्सपर्ट बना रखा है जिसमें विभिन्न क्षेत्रों के एक्सपर्ट रखे हैं। ये लोग शनिवार या रविवार को हमारे यहां आकर छात्रों को पढ़ाते हैं। डॉ. अतुल कहते हैं कि हर क्षेत्र में आपको बहुत सारे लोग मिल जाएंगे जिनके पास प्रोफेशनल डिग्री तो नहीं होती है लेकिन वह अपने क्षेत्र के लीडर होते हैं। उनकी दी गई जानकारियां छात्रों के लिए बहुत जरूरी होती हैं, इसलिए हम उनको अपने यहां बुलाते हैं।
एमिटी विश्वविद्यालय, नोएडा, यूपी की वाइस चांसलर बलविंदर कौर शुक्ला कहती हैं कि चाहे रिसर्च हो, सिविल सर्विसेज हों या एकेडमिक सभी क्षेत्रों के बेहतरीन लोगों को सरकार 60-65 साल की उम्र में रिटायर कर देती है। वह सवाल करती हैं कि क्या यह ठीक है कि इन लोगों को अपनी बाकी की जिंदगी खाली बैठ कर बिता देनी पड़े। उनका कहना है कि यह नियम ठीक नहीं है। हमारे यहां रिसर्च में डीआरडीओ में रहे वैज्ञानिक हैं तो एडमिनिस्ट्रेशन में सेना और सिविल सर्विस से रिटायर लोग भी। वह कहती हैं कि रिसर्च तो ऐसा क्षेत्र है जिसमें वैज्ञानिक का अनुभव बहुत महत्वपूर्ण होता है इसलिए हम सरकारी संस्थानों से रिटायर वैज्ञानिकों को अपने यहां रखते हैं।
सिर्फ एसी कमरों में बैठकर किताबें पढ़ने से ही नौकरी नहीं मिलती है, यह कहना है संस्कृति विश्वविद्यालय के कार्यकारी निदेशक पी.सी. छाबड़ा का। छाबड़ा कहते हैं कि जब तक शिक्षक को खुद मार्केट की जरूरतों का पता नहीं होगा तब तक वह छात्रों को क्या दिशा देंगे। इसलिए हमने अपने यहां 75 फीसदी शिक्षकों के पदों पर उन लोगों को रखा है जिनके पास व्यावहारिक अनुभव रहा हो। शोभित यूनिवर्सिटी के चेयरमैन शोभित कुमार का मानना है कि बिना अकादमिक पृष्ठभूमि के लोगों का अनुभव छात्रों के लिए लाभदायक तो है लेकिन केवल इनकी वजह से विश्वविद्यालयों में शिक्षा के महत्व को कम नहीं किया जाना चाहिए।
वहीं दूसरी तरफ कुछ लोगों का मानना है कि निजी विश्वविद्यालय बिना अकादमिक अनुभव वाले लोगों को अपने यहां दूसरे मकसदों को पूरा करने के लिए रखते हैं। महाराजा अग्रसेन विश्वविद्यालय बद्दी, हिमाचल प्रदेश के महासचिव मोहन गर्ग कहते हैं कि बिना अकादमिक पृष्ठभूमि के लोगों को रखने के पीछे बेहतर शिक्षा के अलावा और भी कई वजहें हैं। उनका कहना है कि कुछ विश्वविद्यालय तो इन लोगों के जरिए अपना प्रचार-प्रसार करके अपनी मार्केट वैल्यू बढ़ाते हैं।