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खतरे में प्राचीन धरोहर

ऐतिहासिक इमारतों के सौ मीटर के दायरे में निर्माण करने की मंजूरी से जीवंत प्रतीकों पर खतरे के बादल
तस्वीरों में धरोहरः विकास की कीमत पुरातात्विक महत्व की धरोहरों को चुकानी पड़ी, कई धरोहरों की बस तस्वीरें बाकी

आधुनिक भारत की राजधानी दिल्ली की नाल गहरे अतीत में गड़ी है और न जाने कितनी बार इसकी किल्ली ढीली हुई और कितनी ही बार उखड़ी। दिल्ली में यहां-वहां बिखरे खंडहर मानो इसकी गवाही देने के लिए आज भी लुटे-पिटे से खड़े हैं। कई को सरकारी उपेक्ष्‍ाा तबाह कर रही है तो कुछ जमीन हड़पने की निजी लालचों में दफन हो गए। कुछ विकास की मौजूदा जरूरतों की आंख में खटक रहे हैं। और अब सरकार का एक फरमान भी इनकेवजूद के लिए गंभीर खतरे की तरह मंडरा रहा है। केंद्र सरकार पुरातत्व स्थलों संबंधी कानून में संशोधन ला रही है, जिसके बाद इन धरोहरों के सौ मीटर के दायरे के अंदर सार्वजनिक निर्माण करने की मंजूरी मिल जाएगी। अभी कानून इसकी इजाजत नहीं देता था।

प्रस्तावित संशोधन ने पुरातत्ववेत्ताओं और इतिहासकारों की पेशानी पर बल डाल दिया है। उन्हें इसमें पहले ही सरकारी उपेक्षा से तबाहहाल ऐतिहासिक धरोहरों के लिए खतरा दिखाई पड़ रहा है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में पुरातत्व विभाग के पूर्व निदेशक हाजी डॉ. सैयद जमाल हसन कहते हैं, “कानून में संशोधन से देश की कई नामचीन धरोहरों का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा।"

दरअसल, संसद में पेश किए गए प्राचीन स्मारक एवं पुरातत्व स्थल और अवशेष (संशोधन) विधेयक, 2017 के अनुच्छेद दो में सार्वजनिक निर्माण की नई व्याख्या जोड़ी गई है। उसकी धारा 20 ए के तहत केंद्र की मंजूरी प्राप्त राष्ट्रीय महत्व वाली परियोजनाओं को प्राचीन और पुरातात्विक महत्व वाले संरक्षित क्षेत्रों से सौ मीटर की दूरी में भी निर्माण की मंजूरी दी गई है। जानकारों के मुताबिक यह सारा मामला करीब दो साल पहले आगरा एक्सप्रेस-वे परियोजना को लेकर शुरू हुआ। आगरा में सिकंदरा के मकबरे के पास एक फ्लाईओवर बनाने की योजना पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने आपत्ति उठाई। पुरातत्वविदों का कहना था कि फ्लाईओवर से मकबरे का वजूद खतरे में पड़ जाएगा इसलिए सरकार चाहे तो अंडरपास बना ले। लेकिन उसमें खर्च ज्यादा आता। जानकारों का मानाना है कि पुरातत्व सर्वेक्षण की जरूरी अनुशंसा से पार पाने के लिए कानून में संशोधन करने का फैसला कर लिया गया। जमाल हसन कहते हैं, "सिकंदरा के मकबरे की अहमियत सिर्फ अकबर की कब्र के नाते ही नहीं है, इसी के बाद  उत्तर और पूर्वी भारत में मीनारों के अद्भुत वास्तुशिल्प का दौर शुरू होता है।”

मामला सिर्फ इतना ही नहीं है। कुछ दूसरे लोग संशोधन को पुरातत्व स्‍थलों के प्रति उपेक्षा के वर्षों के नजरिए का ही विस्तार मानते हैं। ये स्मारक सरकारी उपेक्षा ही नहीं, निजी लालच के भी शिकार हुए हैं, जिसकी मिसाल दिल्ली से बेहतर और कहीं नहीं मिल सकती। दिल्ली हेरिटेज सिटी के तौर पर भी जानी जाती है। यहां पुरातत्व विभाग की 174 धरोहर हैं जिनमें 12 का वजूद पहले ही मिट चुका है। दिल्ली के मंत्री राजपाल गौतम का कहना है, “राज्य सरकार ने कई स्मारकों को चुना है जिनका संरक्षण किया जाना जरूरी है लेकिन केंद्र के संशोधन से सांस्कृतिक विरासत को नुकसान जरूर होगा। छोटे-मोटे स्मारक तो विकास के नाम पर उजाड़ ही दिए जाएंगे।”

राज्य सरकार के स्मारकों का रख-रखाव गैर-सरकारी संस्था इंटेक वगैरह करती है। इंटेक दिल्ली चैप्टर के अजय कुमार बताते हैं, “यूं तो स्थानीय निकायों के अधिकार क्षेत्र में भी काफी संख्या में धरोहर हैं और अलग से हेरिटेज कमेटी भी है लेकिन निकायों ने कभी संरक्षण की दिशा में ठोस प्रयास नहीं किए। हेरिटेज कमेटी पुराने मकानों में निर्माण वगैरह की मंजूरी तक सीमित है।” इसी संस्था के ए.जी.के. मेनन कहते हैं, “यह अच्छी बात है कि दिल्ली सरकार ने गैर-संरक्षित स्मारकों के रख-रखाव का जिम्‍मा उठाया है। हालांकि उसने 19 स्मारक ही अधिसूचित किए हैं जबकि 217 स्मारक संरक्षण करने लायक पाए गए हैं। कुछ का अता-पता ही नहीं है।”

पुरातत्व विभाग के मुताबिक देश में 35 महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्मारक गायब हैं और इसमें 24 का तो अब पता ही नहीं लगाया जा सकता। यह संसद में एक जवाब में केंद्रीय संस्‍कृति मंत्री महेश शर्मा ने भी माना है।

दिल्ली के गायब 12 स्मारकों में पांच तो गदर के दौरान के हैं। निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन के पास का मकबरा भी गायब हो गया। शेरशाह का मोतीगेट भी 1928 से गायब है। पूल चादर स्मारक जीटी करनाल रोड बनने के कारण 1970 में गिरा दिया गया। अलीपुर का कब्रिस्तान भी 1980 में जीटी करनाल रोड पर बाइपास बनने के दौरान गिरा दिया गया। शम्सी तालाब, बाराखंभा समाधि, कोटला मुबारकपुर स्थित इचला वाली गुमटी भी लुप्त हो गई।

दिल्ली के शालीमार गांव, अलीपुर, जौंती और आजादपुर जैसे कई ऐसे गांव हैं जहां ऐतिहासिक धरोहर मौजूद हैं लेकिन अतिक्रमण, गंदगी और कब्जे से बेजार हैं। दिल्ली हरियाणा सीमा पर स्थित जौंती गांव 17वीं शताब्दी की इमारतों के लिए मशहूर है। यहां मौजूद मुगलकालीन शिकारगाह पर पुरातत्व विभाग का कोई ध्यान नहीं है। यहां बादशाह अकबर से लेकर शाहजहां तक शिकार के लिए आते थे। आज यह अतिक्रमण की चपेट में है और मवेशियों का अड्डा बन गया है। कई इमारतों पर लोगों ने कब्जा करके  मकान बना लिए हैं। शालीमार गांव का शीशमहल भी खंडहर में बदल गया है। इस महल का निर्माण 1639 में मुगल बादशाह शाहजहां ने करवाया था। इसमें 25 कुएं और एक तालाब था जो मीठे पानी का स्रोत था।

जमाल हसन कहते हैं, “पुरातत्व विभाग का असल काम संरक्षण है लेकिन उसे लगा दिया गया है किसी और काम में। अब विभाग हेरिटेज इमारतों के आसपास होने वाले अवैध निर्माण को रोकने के लिए नोटिस देने जैसे काम ही कर रहा है जबकि यह उसका काम नहीं है।”

पुरातत्व विभाग के एक अधिकारी का कहना है, “जमीनी हकीकत कुछ उलट ही है। किसी हेरिटेज इमारत के तीन सौ मीटर के दायरे में निर्माण के लिए पुरातत्व विभाग से मंजूरी लेनी जरूरी है लेकिन सरकारी महकमे विकास के नाम पर यह मंजूरी भी नहीं लेते। लालकिले और कश्मीरी गेट से मेट्रो लाइन का गुजरना इसका उदाहरण है।” इंटेक के  मेनन कहते हैं, “स्मारकों से विकास में बाधा नहीं पड़ती, विकास और संरक्षण साथ-साथ चल सकते हैं।”

कुछ इतिहासकारों का कहना है कि शायद भाजपा की मौजूदा सरकार के लिए विकास का जो मतलब है उसमें धरोहरों के संरक्षण की कोई खास जगह नहीं है। दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर डॉ. सुनील कुमार बताते हैं, “नए संशोधन से कानूनी अधिकार मिलेगा, पहले भी सरकारी योजनाओं में कानून की अनदेखी की जा रही थी।” एक पुरातत्व विशेषज्ञ ने बताया, “दिल्ली की धरोहर की दुनिया में खास पहचान है।”

एजीके मेनन कहते हैं, “दिल्ली को शंघाई या सिंगापुर जैसा बनाने की बात की जाती रही है लेकिन दिल्ली को कभी दिल्ली बनाने के बारे में नहीं सोचा गया। दिल्ली को वर्ल्ड हेरिटेज का दर्जा मिलता तो फिर धरोहर से जुड़ी मानसिकता में बदलाव लाया जा सकता था। दिल्‍ली सरकार के प्रस्ताव के बावजूद  इसी जुलाई के पहले पखवाड़े में अहमदाबाद को यह दर्जा मिल गया। वह भारत का ऐसा पहला शहर है। यूनेस्को दुनिया की सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहरों को चुनती है और इससे इन स्थलों के संरक्षण में मदद मिलती है। लेकिन दिल्ली को क्यों नहीं चुना गया, यह सोचने वाली बात जरूर है।”

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