जहां मासूम सांस लेने को तड़प-तड़प कर काल के गाल में समा जाएं, वह समाज और देश सभ्य कहलाने का भला कैसे हकदार हो सकता है! और जो सरकार महज अधिकारियों और आपूर्तिकर्ताओं पर दोष मढ़कर अपने चेहरे से शर्म को भी झाड़कर फेंक दे, उसे लोकतांत्रिक कहलाने का क्या हक है! मगर गोरखपुर के बाबा राघवदास (बीआरडी) मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की कमी और पांच दिनों के भीतर 60 से अधिक बच्चों की मौत के बाद यही हुआ। इससे उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार की कलई तो खुली ही, राज्य में दशकों पुरानी सड़ी-गली व्यवस्था और स्वास्थ्य क्षेत्र की उपेक्षा भी उघड़कर सामने आ गई। भ्रष्टाचार, कमीशनखोरी जैसी बीमारियों से ग्रस्त इस क्षेत्र में बड़े सुधारों की जरूरतों पर कभी ध्यान नहीं दिया गया। इससे उत्तर प्रदेश में चिकित्सकों, अस्पतालों, पैरामेडिकल जैसी अन्य सुविधाओं की बड़े पैमाने पर कमी होती चली गई। मौजूदा सरकार भी यथास्थितिवाद के सिद्धांत पर ही चलती दिख रही है, जिससे बीमारी लाइलाज होती जा रही है।
बीआरडी मेडिकल कॉलेज सिर्फ पूर्वी उत्तर प्रदेश ही नहीं, बल्कि गोरखपुर से सटे बिहार और नेपाल वासियों के लिए भी बड़ा अस्पताल माना जाता है। इसलिए यहां की हृदयविदारक घटना की गंभीरता और बढ़ जाती है। लेकिन इस हादसे के बाद राज्य सरकार और खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का मासूम-सा जवाब आया कि अधिकारियों ने उन्हें यह बताया ही नहीं कि अस्पताल को ऑक्सीजन आपूर्ति करने वाले के 68 लाख रुपये बकाया हैं।
कथित तौर पर बकाये बिल के बारे में लखनऊ स्थित पुष्पा सेल्स ने बीआरडी अस्पताल को कई पत्र भी लिखे थे, लेकिन प्रशासन बहरा बना रहा। इसके कारण 10 अगस्त को ऑक्सीजन की आपूर्ति अचानक रोक दी गई। इसी दिन क्रिटिकल वार्ड में भर्ती 23 बच्चों की मौत हो गई। राज्य सरकार आखिर तक ऑक्सीजन की कमी को बच्चों की मौत की वजह मानने से इनकार करती रही। स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह के पास हर मौत का कारण मौजूद था। अब तक की जांच में यह साफ हो चुका है कि अस्पताल प्रशासन ने पर्याप्त धन होते हुए भी ऑक्सीजन का भुगतान नहीं किया था। जांच चल रही है कि क्या इसके पीछे कमीशनखोरी थी? लापरवाही बरतने के आरोप में मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल आरके मिश्रा पहले ही निलंबित किए जा चुके हैं। सीएम योगी ने मुख्य सचिव की जांच रिपोर्ट के बाद प्रिंसिपल मिश्रा समेत छह लोगों के खिलाफ एफआइआर दर्ज करने के निर्देश दिए हैं।
लेकिन असल मामला इससे भी ज्यादा गंभीर है। जिन बच्चों की मौत हुई वे सब जापानी इंसेफेलाइटिस (जेई) या एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) से पीड़ित थे। इस रोग से गोरखपुर क्षेत्र में पिछले तीन दशकों में करीब 50,000 बच्चे असमय मौत के शिकार हो चुके हैं। बीते सालों में जहां जेई का प्रकोप कुछ कम हुआ है, वहीं एईएस ने चिकित्सा और स्वास्थ्य तंत्र के लिए नई चुनौती खड़ी कर दी है। सरकार का दावा है कि सबसे ज्यादा प्रभावित 38 जिलों में 80 लाख बच्चों को जेई का टीका लगा दिया गया है। इसके बावजूद बीमारी नियंत्रण में नहीं है। इसकी रोकथाम के लिए केंद्र सरकार अब गोरखपुर में एक वायरल रिसर्च सेंटर स्थापित करने जा रही है।
लाइलाज होता तंत्र
प्रदेश में चिकित्सा व्यवस्था की लाचारी को इसी से समझा जा सकता है कि यहां एक चिकित्सक पर करीब 20,000 की आबादी निर्भर है। ताजा आंकड़ों के अनुसार, उत्तर प्रदेश में पांच वर्ष से कम प्रति 1000 बच्चों की मौत का स्तर 78 है, जो देश में सबसे अधिक है। सरकारी अस्पतालों में न केवल चिकित्सकों की कमी है, बल्कि उनके लिए सुख- सुविधाओं का भी टोटा है। यही वजह है कि डॉक्टर दूरदराज के इलाकों में जाना पसंद नहीं करते हैं। नाम न छापने की शर्त पर एक रिटायर सीएमओ ने बताया कि हालांकि उत्तर प्रदेश में स्वास्थ्य सुविधाएं कई राज्यों के मुकाबले काफी बेहतर हैं, फिर भी जनसंख्या के भारी दबाव के चलते ये अपर्याप्त प्रतीत होती हैं। उनके अनुसार, “समय पूर्व रिटायरमेंट की मांग इस बात का सुबूत है कि उत्तर प्रदेश में सरकारी चिकित्सकों और अधिकारियों को अनुकूल माहौल नहीं मिल रहा है।” जन स्वास्थ्य के प्रति शासन के ढुलमुल रवैए का पता इसी से चल जाता है कि प्रदेश के 14 मेडिकल कॉलेजों में से केवल पांच में ही स्थाई प्रिंसिपल हैं।
यही नहीं, प्रदेश में सरकारी चिकित्सकों का निजी प्रैक्टिस करना आम बात है। पिछली सरकारों द्वारा इस बारे में कड़ी चेतावनी देने के बावजूद इस पर लगाम नहीं लग पाई है। दवाइयों और उपकरण को लेकर भी प्रदेश में भ्रष्टाचार व्याप्त है। बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की सप्लाई कथित रूप से बकाये बिल और कमीशनखोरी के कारण ही बाधित हुई। स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने भी इसमें कमीशनखोरी की बात स्वीकारी है।
सरकार का दावा
इस बीच, योगी सरकार ने दावा किया है कि प्रदेश में चिकित्सा और स्वास्थ्य सेवा में सुधार के लिए बजट की पर्याप्त व्यवस्था की गई है। वित्त वर्ष 2017-18 में प्रदेश के मेडिकल कालेजों के संचालन हेतु राजस्व मद में लगभग 494 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी की गई है। सरकार ने यह भी कहा है कि चिकित्सा शिक्षा विभाग में निर्माण कार्यों एवं मशीनों के क्रय की आवश्यकता होने पर अनुपूरक बजट में व्यवस्था की जाएगी।