उत्तर प्रदेश में मेरठ की मवाना तहसील के 50 वर्षीय राम कुमार एक छोटे किसान हैं। पिछले साल मार्च में उन्होंने अपने पुराने फसली ऋण की अदायगी करके नया फसली ऋण लिया था। योगी आदत्यिनाथ सरकार की किसान कर्ज-माफी योजना छोटे और सीमांत किसानों के एक लाख रुपये तक के फसली ऋण-माफी के अंतर्गत राम कुमार भी आते हैं, लेकिन अब तक उन्हें सही सूचना प्राप्त नहीं हो पाई है। उनके पास आधार नंबर भी है, जो बैंक खाते से लिंक भी है। उन्हें सूचना इसलिए नहीं मिल पा रही है, क्योंकि न तो बैंक के और न ही जिले के प्रशासनिक अधिकारियों को ही फसली ऋण-माफी की संपूर्ण जानकारी है। राम कुमार कहते हैं, “उत्तर प्रदेश सरकार की ऋण-माफी योजना और इसकी प्रक्रिया में अभी बहुत कुछ स्पष्ट नहीं है और किसान परेशान हैं। उन्हें यह मालूम ही नहीं है कि उनका कर्ज इसके अंतर्गत आएगा कि नहीं, वहीं संबंधित अधिकारी भी संशय में हैं।”
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा के संकल्प पत्र में किसानों की कर्ज-माफी का वादा किया गया था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रचार के दौरान कहा था कि मंत्रिमंडल की पहली बैठक में ही किसानों के कर्ज माफ होंगे। उसी के तहत उत्तर प्रदेश सरकार ने 2015-16 में छोटे और मझोले किसानों द्वारा लिए गए फसली ऋण को एक लाख रुपये की सीमा तक माफ करने का फैसला लिया था। सीएम योगी ने यह फैसला अपनी पहली ही मंत्रिमंडलीय बैठक में चार अप्रैल, 2017 को लिया था। इस योजना में सरकार ने पुराने फसली ऋण संबंधी एनपीए (नॉन परफार्मिंग एसेट) को भी शामिल किया था। जहां फसली ऋण-माफी में सरकार ने करीब 30,729 करोड़ रुपये माफ करने का अनुमान लगाया था, वहीं पुराने कृषि क्षेत्र के तहत एनपीए में राहत देने के लिए सात लाख किसानों को करीब 5,630 करोड़ रुपये की मदद देने का अनुमान था। दोनों मदों में राज्य सरकार के खजाने से करीब 36,729 करोड़ रुपये की मदद की योजना है, जिससे प्रदेश के 86 लाख छोटे और सीमांत किसान लाभान्वित होंगे। उत्तर प्रदेश में कुल किसानों की संख्या करीब 2.33 करोड़ है। इनमें 92 प्रतिशत से अधिक यानी 2.15 करोड़ छोटे और सीमांत किसान हैं, जिनकी जोत पांच एकड़ से कम है। राज्य में सीमांत किसानों की संख्या करीब 1.85 करोड़ है।
दूसरी तरफ, कुछ लोगों का मानना है कि योगी सरकार की इस योजना में केवल छोटे और सीमांत किसानों को शामिल करने से अन्य किसान इस लाभ से वंचित रह जाएंगे। इसलिए सरकार को सभी किसानों को इसमें समायोजित करना चाहिए। गन्ना किसानों का नेतृत्व करने वाले अवधेश कुमार मिश्रा ने कहा कि उन्होंने इस बाबत मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पहले ही एक पत्र लिखा था कि सभी किसानों को लाभ मिलना चाहिए। वह इस सिलसिले में जल्द ही योगी जी से मिलने का प्रयास भी करेंगे। वहीं राम कुमार के अनुसार, “कई किसानों को तो अभी तक यह भी जानकारी नहीं है कि फसली ऋण 2015-16 का माफ होगा, या कि 2016-17 का। इस कारण कई किसान ऋण अदायगी नहीं कर रहे हैं और सरकारी सूची में अपने नाम के शामिल होने का इंतजार कर रहे हैं। इससे आने वाले दिनों में उनके ऋण में ब्याज जुड़ जाएगा और उनको पहले से ज्यादा पैसा बैंक को अदा करना होगा।”
प्रदेश में मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी ऋण-माफी योजना को लेकर योगी सरकार पर हमला बोला है। उन्होंने कहा है कि प्रदेश सरकार ने बड़ी चालाकी से किसानों के एक बड़े तबके को इस योजना से वंचित कर दिया है। अखिलेश ने कहा, “योगी सरकार ने किसानों को छोटे और सीमांत किसानों में बांट दिया, जबकि सारे किसानों की अपेक्षा थी कि उन सभी के फसल ऋण को माफ किया जाएगा। बड़े किसानों ने भी बड़े पैमाने पर बैंकों से खेती के लिए कर्ज लिया है।”
एक अन्य मुद्दा सहकारी बैंकों का भी है जो अपने टारगेट को पूरा करने के लिए नए ऋण को ज्यादातर अप्रैल से ही देना शुरू करते हैं, चाहे उनके लिए पहले से आवेदन क्यों न हो। ऐसे में जिन किसानों ने मार्च 2016 में आवेदन किया था, उनके ऋण का अनुमोदन अप्रैल में ही हुआ होगा। फलस्वरूप वे भी इस योजना से वंचित रह गए, क्योंकि उनका ऋण 2016-17 के लिए मान्य होगा, जो मानकों के आधार पर कर्ज-माफी पर खरा नहीं उतरता।
उत्तर प्रदेश के पूर्व कृषि उत्पादन आयुक्त (एपीसी) और सेवानिवृत आइएएस अधिकारी अनीस अंसारी ने कहा कि प्रदेश में पूर्व सरकार के दौरान बुनकरों को बिजली बिल में छूट की घोषणा हुई थी, पर मानकों को पूरा न करने वाले बुनकरों ने भी बिजली के बिल नहीं भरे। बाद में उन बुनकरों को असल बिल और उस पर लगने वाले ब्याज सहित तीन-चार गुना ज्यादा भुगतान करना पड़ा। उनके अनुसार, सूचना के अभाव में कई किसान ऐसे भी होंगे जिन्हें कर्ज-माफी के बारे में पूरी जानकारी नहीं है, और वह बाद में कई तरह की मुसीबत से रूबरू होंगे। उनके अनुसार, “सरकार को चाहिए कि वह गांव स्तर पर बड़े पैमाने पर सूचना का संचार करे जिससे किसानों को इस योजना के बारे में पूरी जानकारी मिल सके और वे इसका लाभ उठा सकें।”
दूसरी ओर, योगी सरकार ने इस योजना के क्रियान्वयन के लिए लाभार्थी किसान का आधार संख्या उसके बैंक खाते से लिंक होना आवश्यक कर रखा है। इसलिए प्रथम चरण में केवल उन्हीं किसानों को ऋण-माफी प्रमाणपत्र देने की शुरुआत हुई है जिनके आधार नंबर उनके खातों से जुड़ चुके हैं। लेकिन दूरदराज के गांवों में कई सीमांत किसान ऐसे हैं, जिनका अभी तक आधार कार्ड ही नहीं बना है। अगर बना भी है तो वह बैंक खातों से लिंक नहीं है। अंसारी ने कहा, “फसली ऋण के अलावा किसान अन्य मदों में मध्यावधि ऋण जैसे पंप इत्यादि के लिए बैंकों से लेते हैं। वह सब इस योजना से बाहर हैं।”
मार्च 2016 के अंत तक प्रदेश में कुल बकाया कृषि ऋण करीब 1,21,000 करोड़ रुपये था। यह मार्च 2017 में बढ़कर 1,30,000 करोड़ रुपये हो गया। इस प्रकार सरकार की फसल ऋण-माफी कुल कृषि ऋण का केवल 25 प्रतिशत भर ही है।
हालांकि योगी सरकार ने ऋण-माफी योजना की विधिवत शुरुआत 17 अगस्त को लखनऊ में कर दी है। इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में लखनऊ के स्थानीय सांसद और केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह भी उपस्थित थे।
योगी और राजनाथ ने संयुक्त रूप से लखनऊ जिले के 7500 किसानों को प्रमाणपत्र वितरित किए। इस मौके पर योगी ने कहा कि सरकार किसानों के हक में ऐसी व्यवस्था करने जा रही है जिसमें किसानों के राजस्व खाते, खतौनी जैसे आवश्यक विवरण उनके आधार नंबर से जोड़े जाएंगे। ऐसा होने से उनकी जमीनों को हड़प पाना मुश्किल होगा। उन्होंने वादा किया कि राज्य सरकार किसानों को हर प्रकार की सुरक्षा प्रदान करेगी।
वैसे अनुमानित 86 लाख लाभार्थियों में से अभी केवल करीब 28 लाख किसानों के दस्तावेजों का ही सत्यापन हुआ है, जबकि राज्य सरकार के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार कुल 66.50 लाख किसान इस योजना के अंतर्गत पत्र पा गए हैं। इस कारण अनुमान है कि राज्य सरकार को
कुल ऋण-माफी राशि में अंत में काफी बचत हो सकती है।
प्रदेश के अतिरिक्त मुख्य सचिव (वित्त) अनूप चंद्र पांडेय ने स्वीकार किया कि 36,000 करोड़ रुपये का आंकड़ा अनुमानित है और यह बढ़-घट भी सकता है। अभी, किसानों के दस्तावेजों का सत्यापन हो रहा है और पांच सितंबर से जिले और तहसील स्तर पर लखनऊ जैसे कार्यक्रम आयोजित किए जाने की योजना है। इस महत्वाकांक्षी योजना का आधिकारिक नाम ‘फसल ऋणमोचन योजना’ रखा गया है, जिसके अंतर्गत योगी सरकार ने पहले ही 36,000 करोड़ रुपये का प्रावधान अपने 2017-18 के सालाना बजट में कर रखा है।
बहरहाल, इस योजना को सफलतापूर्वक पूरा करना राज्य सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती होगी। सरकार जानती है कि चुनौती बहुत बड़ी है और अगर वह इसमें असफल रहती है तो 2019 में होने वाले लोकसभा के चुनाव में भाजपा के लिए समस्या पैदा हो सकती है।