साहब, आप पहले व्यक्ति हैं जो इस बारे में बात कर रहे हैं। दो महीने से ज्यादा का समय पूरा हो चुका है, पर आज तक हमसे किसी ने भी संपर्क नहीं किया है। हमें तो ऐसा आभास था कि मुख्यमंत्री से मिलेंगे तो शायद मौके पर ही हमारी समस्या का हल हो जाएगा। अब करें भी तो क्या करें? यह पीड़ा है किसान रामचरण पाटीदार की। वह भोपाल जिले के हजूर तहसील के ग्राम तूमड़ा में रहते हैं। रामचरण उन 700 किसानों में से एक हैं जिन्होंने मध्यप्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान से 10 जून को भोपाल में उनके उपवासस्थल भेल दशहरा मैदान में उनके खुले आमंत्रण को स्वीकार करते हुए भेंट की थी।
जून में शुरुआती दस दिनों तक मध्यप्रदेश के पश्चिमी और मालवा क्षेत्र में अफरा-तफरी का आलम था। किसान सारे काम छोड़कर सड़क पर उतर आए थे। वे सरकार से कर्जमाफी का वादा निभाने की मांग कर रहे थे। किसान मंडियां बंद पड़ी थीं। लोगों के लिए रोजमर्रा की मामूली जरूरतें तक पूरी नहीं हो पा रही थीं। लेकिन नौकरशाह और नेता चैन की नींद ले रहे थे। नींद टूटी तो छह जून को, जब मंदसौर में पुलिस फायरिंग में छह किसानों की मौत हो गई। घटना के बाद आंदोलन बेकाबू हो गया। ऐसे में मुख्यमंत्री ने भावुक अपील का सहारा लिया और 10 दिन के लिए घोषित किसान आंदोलन से ठीक एक दिन पहले यानी 10 जून को अनिश्चितकालीन उपवास शुरू कर दिया। यहां उन्होंने किसानों से सीधा संवाद स्थापित किया।
उपवासस्थल पर पहले दो दिनों में भोपाल, विदिशा, रायसेन, सीहोर, बैतूल, गुना, आगर, शाजापुर, राजगढ़, शुजालपुर जिलों के कई किसान और उनके प्रतिनिधिमंडलों से खुलकर चर्चा हुई थी। किसानों के सुझावों और समस्याओं पर समुचित निराकरण का भरपूर भरोसा दिलाया गया। एक दिन बाद यानी 11 जून को मुख्यमंत्री का उपवास खत्म हो गया। शायद यह मान लिया गया कि उपवास पर बैठने के बाद संकट टल गया। लेकिन हकीकत तो यह है कि समस्याएं लेकर पहुंचे किसानों की परेशानी आज भी जस की तस बनी है।
कथनी-करनी में फर्क
उपवास के दौरान मुख्यमंत्री ने कहा था कि उनकी हर सांस प्रदेश के विकास के लिए और किसानों के कल्याण के लिए समर्पित है। उन्होंने कहा था कि किसानों के लिए जीवन भी दे सकते हैं लेकिन उन्हें परेशान नहीं होने देंगे। सरकार प्रभावित किसान परिवारों के साथ है और उनकी वेदना और दर्द को समझती है। लेकिन मुख्यमंत्री कार्यालय और उनके सचिवालय के अधिकारी अभी तक इन आश्वासनों पर बात करने को राजी नहीं हैं। हालांकि भोपाल के सांसद और भाजपा प्रवक्ता आलोक संजर का कहना है कि सभी किसानों की समस्याओं का निराकरण जल्द ही हो जाएगा। मुख्यमंत्री किसानों के प्रति बहुत संवेदनशील हैं। उनके हित में सरकार कई योजनाएं चला भी रही है। रहा सवाल किसानों की समस्याओं के निराकरण का तो सरकार इनको लेकर गंभीर है।
फसल बीमा का रोना
रामचरण कहते हैं, “हमने तो उन्हें आवेदन भी दिया था, पर अब तक कुछ भी नहीं हुआ है। हम सबका कहना था कि पटवारी के गलत सर्वे के चलते ज्यादातर किसान फसल बीमा का मुआवजा नहीं ले पाए हैं। अफसोस कि अब तक कुछ भी नहीं हुआ।”
रामचरण की उपवासस्थल पहुंचने की कहानी उतनी ही दिलचस्प है, जितनी हजूर तहसील के सबसे ज्यादा आबादी वाले इस गांव की। दरअसल नौ जून को जब रामचरण ने अखबार में पढ़ा कि मुख्यमंत्री कल से उपवास पर बैठने जा रहे हैं और वहां किसानों से बातचीत कर उनकी समस्याओं का निराकरण करेंगे, तो उन्होंने लोगों तक मुख्यमंत्री का संदेश पहुंचाया।
अगले दिन सात हजार से ज्यादा आबादी वाले इस गांव से 20 लोग एक मिनी बस से उपवासस्थल पहुंचे। मुख्यमंत्री से उनकी मुलाकात लगभग पांच-सात मिनट की रही। उन्होंने रामचरण की परेशानियों को ध्यान से सुना।
रामचरण का गांव भोपाल-नरसिंहगढ़ स्टेट हाइवे से कट कर लगभग छह किलोमीटर की दूरी पर है। हालांकि मानसून में यानी एक जून से 14 अगस्त की गणना में भोपाल का नाम प्रदेश के 21 कम वर्षा वाले जिलों में शुमार है, लेकिन तूमड़ा गांव पहुंचते ही सड़क के दोनों तरफ खेतों में सोयाबीन की लहलहाती फसल दिख जाती है। इस गांव में बनी सड़क की रफ्तार अपनी मंजिल से दूर होती साफ नजर आ रही है। दुर्दशा की शिकार इन सड़कों का एक फायदा भी हुआ है। वह यह कि अभी तक यहां के खेतों में कारोबारियों-बिल्डरों, नेताओं और नौकरशाहों की निगाहें नहीं पहुंची हैं। वरना आप भोपाल के 20-30 किलोमीटर के दायरे में बसे गांवों में जाएं तो वहां चकाचौंध करती रोशनियों में नेताओं-नौकरशाहों के अनगिनत फार्म हाउस नजर आएंगे।
लेकिन तुन्द्रा गांव चले जाएं तो वहां सरकार के दावों के विपरीत बिजली सिर्फ आठ घंटे ही रहती है। सरकार का कहना है कि फीडर सेपरेशन का कार्य पूरा हो चुका है। कृषि और घरेलू उपयोग की बिजली अलग-अलग सप्लाई हो रही है और अब किसानों को कृषि कार्य के लिए 10 घंटे बिजली दी जाती है।
तहसीलदार, पटवारी से हारे
सागर जिले के ग्राम बिजौरा के रहने वाले रामसेवक दुबे जमीन बंटवारे को लेकर उपवासस्थल पर पहुंचे थे। उन्हें उम्मीद थी कि मुख्यमंत्री से मिलने के बाद उनकी समस्या का हल निश्चित रूप से हो जाएगा। आज दो महीने बाद भी रामसेवक अपने साथ आश्वासन की पोटली लिए तहसील कार्यालय के चक्कर लगा रहे हैं। रामसेवक ने आउटलुक को बताया, “मेरी चार एकड़ जमीन को राजस्व रेकॉर्ड में तीन एकड़ दिखा दिया गया है। मैं तीन साल से तहसीलदार और पटवारी के चक्कर काट रहा हूं, पर कोई मेरी नहीं सुन रहा है। वे बिना पैसे लिए काम करने को तैयार नहीं हैं। अपनी मुलाकात में मैंने मुख्यमंत्री जी को आवेदन भी दिया था, पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।”
सीहोर के ग्राम बोरखेड़ा के किसान मदनलाल गहलोत अपने एटीएम से गायब हुए पैसों की समस्या लेकर पहुंचे थे। मदनलाल कहते हैं, “साहब दो बार साइबर पुलिस के कहने पर भोपाल आ चुका हूं, पर अभी तक मेरे खोए पैसे नहीं मिल पाए हैं और न ही पुलिस को सुराग हाथ लगा है।”
मुख्यमंत्री से मिले सात सौ किसानों में से कुछ किसान ऐसे भी थे जो उपवासस्थल पर उनके साथ खड़े भी नजर आए। पूर्व सरपंच और रायसेन जिले के सांची के वार्ड नंबर 11 के रहवासी गणपत सिंह राजपूत कहते हैं, “मैं पहले कांग्रेस कार्यकर्ता था, पर अब मंत्री गौरीशंकर शेजवार का कार्यकर्ता हूं। मैं साथियों के साथ उपवासस्थल पर पहुंचा था।”
वैसे इन बातों का दायरा कहीं ज्यादा बड़ा है, क्योंकि किसान इतनी बड़ी संख्या में कभी आंदोलित नहीं हुए थे। उन्होंने कभी निर्वाचित प्रतिनिधियों से जबाब नहीं मांगा था। अभी ‘देखो और इंतजार करो’ की नीति पर चुप बैठे किसान आगे इससे भी बड़ा आंदोलन खड़ा कर सरकार से अपने सवालों का जवाब नहीं मांगेंगे, इसकी कोई गारंटी नहीं है।