जहां तक नई और पुरानी पीढ़ी के हास्य में बदलाव की बात है, दुनिया बदली है, बाजार बदला, व्यापार बदला इसलिए हास्य भी बदला है। अब छोटी जरूरतों के लिए बड़े सामान का जमाना है। हास्य भी सामान ही है। अब इसमें गुणवत्ता कितनी है, यह देखना कठिन है। मेरी समझ से हास्य एक तरह की आजादी है। कुंठा से आजादी। समाज के विद्रूप पर उंगली उठाने की आजादी। सामाजिक बेतुकेपन, नकल या स्वांग से हास्य पैदा होता है। पहले हास्य अचार, पापड़, बड़ी की तरह था। लेकिन अब पूरी थाली ही हास्य से भर गई है। अब तो लतीफों की इतनी बार पुनरावृत्ति होती है कि अतिरेक हो जाता है। दरअसल हास्य वह है जो पहली बार हल्की मुस्कराहट ले आए, अगली बार थोड़ी बत्तीसी दिखे और फिर ठहाका लग जाए। हमारे यहां हास्य की परंपरा बहुत पुरानी है। होली के अवसर पर तो हास्य का अंत नहीं। पहले दूरदर्शन पर होली के वक्त एक कार्यक्रम होता था, उसमें हास्य की हर विधा जैसे-पैरोडियां, शायरी, कविताएं होती थीं। यह कार्यक्रम वर्षों तक चला। मैं इसका प्रस्तोता था और हम ध्यान रखते थे कि सभी का प्रतिनिधित्व हो। पहले हर बात में मर्यादा थी। हर बात कह कर समझाई जाए तो कैसा हास्य। चुटीली शैली में किसी की खिंचाई और सीधे तरीके से किसी का अपमान दो बातें हैं। किसी को नीचा दिखा कर तो हास्य पैदा करना बहुत आसान काम है। मैं किसी का दोष निकालना नहीं चाहता लेकिन आजकल चल रहे ढेर सारे स्टैंड-अप कॉमेडी शो में हंसोड़पन कम और बेतुकापन ज्यादा है। मजा तो तब है जब जिसकी निंदा की जा रही हो वह भी खुल कर हंस दे।
आज के हास्य में अशिष्टता, अनादर बढ़ गया है। अब तो लोग खिल्ली से दिल की बिजली जला रहे हैं। भाषा में भी बहुत बदलाव आया है। सीधे तौर पर बातें बोली जा रही हैं। अब सबकी रुचि के अनुसार कुछ न कुछ है। गौर कीजिए रेडियो जॉकी ऐसे ही हैं जो सभी की रुचि ध्यान में रख कर घंटों बात करते हैं। वे लोग लगातार कुछ न कुछ सुनाते रहते हैं। अब स्त्री-पुरुषों के संबंध पर चुटकुले भी बढ़ गए हैं। अब बस लतीफों पर लतीफे हैं। लाफ्टर शो में भी हंसी तब ही आती है जब किसी को खड़ा कर उसके बारे में बात करना शुरू की जाए। हमें सोचना होगा कि हास्य का मूल क्या है। हास्य में असहमतियां भी चलेंगी बशर्ते उसमें सकारात्मक सोच हो। हास्य तो वह विधा है जिसमें छोटे बड़ों को हंसी-हंसी में वह बात कह सकते हैं जो कहना मुमकिन नहीं होता। लेकिन जब ऐसी बात कही जाए तो जरूरी है कि हास्य और उपहास में अंतर मालूम हो। बड़ा बारीक अंतर है, जिसे पकड़ना कठिन है। जहां तक सोशल मीडिया की बात है तो यह सच है कि कभी-कभी इसी वजह से हास्य का अपच भी हो जाता है। लेकिन इस माध्यम में ट्विटर ने वन लाइनर को प्रचलित कर दिया है। कम शब्दों में अपनी बात कहना है और उस बात में पंच भी हो यह कठिन है, पर ट्विटर पर यह हो रहा है। पंच के साथ कम शब्दों ने धाक जमा ली है। जाहिर सी बात है इस वजह से लंबी हास्य कविताएं, लंबे लेख थोड़ा पीछे चले गए हैं। मैं भी अब छोटी-छोटी कविताएं करने लगा हूं। लंबी कविताओं से ‘खिली बत्तीसी’ जैसी छोटी कविता पर आ गया हूं।
मैं किसी भी तरह के बदलाव को बुरा या गलत नहीं समझता। जब भी हास्य की बात होती है हम पुराने से तुलना जरूर करते हैं। इन्हीं के बीच हास्य कलाकारों की भी बात होती है। पहले पूरी फिल्म में हर किसी का स्लॉट होता था। नायक का, नायिका का, खलनायक का। इसी तरह हास्य कलाकारों का भी एक स्लॉट तय था। लेकिन धीरे-धीरे जब नायक ही खलनायक भी बनने लगे तो हास्य कलाकार की भूमिका भी उन्होंने ले ली। फिल्म के बीच में अब वे ही लोग दर्शकों को हंसा लेते हैं तो फिर अलग से हास्य कलाकारों की किसे चिंता रहेगी। अब युवाओं को एक साथ सब चाहिए और स्टैंड-अप कॉमेडियनों को भी एक साथ सब सुनाना है। इस तरह के कार्यक्रमों से हुआ यह है कि भाषा का परदा जरा सरक गया है। पहले भी अश्लील बातें या मजाक होते थे लेकिन इस तरह की बातें दो-चार लोगों में हो कर रह जाती थीं। अब ऐसी बातें ऑडिटोरियम तक पहुंच गई हैं। धुआंधार अश्लील हास्य कॉमेडी के नाम पर परोसा जा रहा है। अब यह नहीं हो सकता कि लड़कियां मुंह पर दुपट्टा ढक कर दबी-दबी हंस रही हैं। अदिति मित्तल जैसी लड़कियां भी हैं जो दर्शकों के सामने हास्य का नया रंग दिखा रही हैं। मैं इसे गलत नहीं मानता। अदिति ने समाज के तय प्रतिमानों को तोड़ा है। अगर हास्य की दुनिया में आत्मविश्वास बढ़ा है तो उपहास और अपमान भी बढ़ा है। किसी को भी सिंगल आउट कर हंसाना बुरा है। ऐसे हंसाना आसान है। लेकिन बाजार है कि सब चलाए दे रहा है।
एक अच्छा हास्य कलाकार वह है जो किसी को अपमानित किए बिना दूसरों को हंसा सके। यह तभी होगा जब कलाकार निर्मल चित्त होगा, उसकी देखने और समझने की क्षमता तीक्ष्ण होगी, वह त्वरित प्रतिक्रिया दे सकता होगा। दूसरों को हंसाना संसार का सबसे कठिन काम है। हमारे यहां यही तो विशेषता है। हर राज्य के हास्य की अलग खूबी है। हरियाणा का चुटीलापन, राजस्थान का पैनापन ही हास्य की पूंजी है। यह तो एक उत्सव है जिसमें सभी को भागीदार होना चाहिए। किसी पर व्यक्तिगत आक्षेप लगाए बिना जब कोई किसी को हंसा ले तो समझो इस उत्सव में चार चांद लग गए।
(लेखक हास्य-व्यंग्य के प्रसिद्ध कवि हैं)
(आकांक्षा पारे काशिव से बातचीत पर आधारित)