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गेंदबाज गोल बल्लेबाज बुलंद

आइपीएल और बिग बैश जैसे टूर्नामेंटों और पैसे की चमक के कारण गेंदबाजी में मामूलीपन का दौर जबकि औसत बल्लेबाज भी बने शहंशाह
एंडी रॉबर्ट्स, बॉब विलिस, जैफ थॉमसन. कपिल देव और वकार यूनुस

वक्त बदल रहा है। लोगों का व्यवहार और चाल-चलन बदल रहा है। जिंदगी की रफ्तार बदल रही है। प्रतिस्पर्धा कड़ी हो गई है। मुकाबलों में व्यापारिक पूछ-परख बढ़ गई है। कामयाबी के साथ ही अनुबंधों की मांग और भूख में इजाफा हुआ है। खिलाड़ियों की छवि सितारों से आगे निकल रही है। कम से कम क्रिकेट का तो यही हाल-चाल है। क्रिकेट के व्यापारियों ने समझ लिया है कि खेल को पैसे के रूप में उपजाऊ बनाने के लिए बल्ले का गेंद पर दबदबा बनाना जरूरी है। इसीलिए हम देखते हैं कि अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट की दुनिया में बल्लेबाजों का स्तर तो बढ़ रहा है, पर गेंदबाजी का स्तर घट रहा है। बल्लेबाजों की चर्चा भी ज्यादा हो रही है और गेंदबाजों की बात होती है दबी जबान से! दुनिया के महानतम ऑल-राउंडरों में एक माने जाने वाले कपिल देव ने मुझसे एक बार कहा था कि क्रिकेट बल्लेबाजों का खेल बनता जा रहा है। “अगर किसी मैच में बल्लेबाज शतक लगाता है और उसी मैच में गेंदबाज पांच विकेट लेता है, तो ‘मैन ऑफ द मैच’ बल्लेबाज को ही दिया जाता है।” कपिल का दर्द दुनिया भर के गेंदबाजों का दर्द है।

विश्व क्रिकेट में ऐसे गेंदबाज कहां रह गए हैं, जो किसी तरह के विकेटों पर प्रतिस्पर्धी टीम को दो बार उखाड़ फेंकें। सब अपने-अपने घर के पहलवान हैं। एशियाई उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा पहलवान भारत बन गया है। ‌एशियाई उपमहाद्वीप की पिचों पर भारत को कोई नहीं हरा सकता। पाटा और बेजान पिचों पर रनों के पहाड़ खड़े कर देने में भारतीय बल्लेबाजों से ज्यादा काबिल कोई नहीं। यहां के स्पिन लेते विकेटों पर दुनिया भर के बल्लेबाजों को नचा देने वाले हमारे स्पिनर आर. अश्विन और रवींद्र जाडेजा एशियाई उपमहाद्वीप से बाहर जाते ही मामूली और बेअसर साबित हो जाते हैं। पिछली चैंपियन ट्रॉफी की ही बात करें तो हम पाते हैं कि आर. अश्विन और रवींद्र जाडेजा एक-एक विकेट के लिए तरसते रहे। फलस्वरूप श्रीलंका और पाकिस्तान तक ने हमें हरा दिया। इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका और न्यूजीलैंड के तेज गेंदबाज अपने घरों में तो तीखे और असरदार नजर आते हैं, पर एशियाई उपमहाद्वीप की गेंदपट्टियों पर आते ही भोथरे दिखाई पड़ते हैं। 1977 में ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के एक मैच में ऑस्ट्रेलिया के सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ तेज गेंदबाज डेनिस लिली ने अपनी गेंदबाजी पर नौ खिलाड़ी स्लिप में तैनात कर दिए थे। बाकी दो खिलाड़ी तो विकेटकीपर और गेंदबाज स्वयं थे। ऐसी दादागिरी थी गेंदबाजों की तब।

उसी दौर में क्रिकेट इतिहास के सबसे तेज गेंदबाजों की जोड़ियां क्रिकेट में हावी थीं। ऑस्ट्रेलिया में थॉमसन और लिली, इंग्लैंड में जॉन स्नो और बॉब विलिस, पाकिस्तान में इमरान खान, वसीम अकरम और वकार यूनुस, फिर सबसे खतरनाक वेस्टइंडीज के एंडी रॉबर्ट्स, माइकल होल्डिंग, मैलकम मार्शल और कॉलिन क्रॉफ्ट दुनिया भर के बल्लेबाजों के लिए शामत बने हुए थे। बाद में दक्षिण अफ्रीका के एलन डोनाल्ड, डेल स्टेन और मोर्ने मॉर्केल ने विपक्षी बल्लेबाजों को तबाह किया।

अब तो गेंदबाजी में मामूलीपन का दौर आ गया है। भारत के स्पिनर भी पहले हर तरह की पिचों पर विकेट लेते थे। गेंद को फ्लाइट कराने की कला में एरापल्ली प्रसन्ना और बिशन सिंह बेदी विश्व में अप्रतिम थे और दुनिया के किसी भी पिच पर विकेट ले लेते थे। तेज गेंदबाजों में आखिरी दहशत भरे गेंदबाज थे वेस्टइंडीज के जो गार्नर। जब वे किसी छोटे कद के खिलाड़ी को गेंदबाजी करते थे, तो अपने ऊंचे कद के कारण ऐसा प्रतीत कराते थे मानो हवा से जमीन पर मार करने वाला प्रक्षेपास्‍त्र छोड़ रहे हों। पाकिस्तान के शोएब अख्तर को दुनिया का आखिरी दहशत भरी रफ्तार का सौदागर कहा जा सकता है।

सवाल यह उठता है कि ऐसा क्या हुआ कि अचानक बल्लेबाज मस्त हो गए और गेंदबाज पस्त! विकेट से मदद न मिले, तो गेंदबाज विकेट ही नहीं ले पाते हैं। एशियाई उपमहाद्वीप में तो 50 ओवरों के मैंचों में 350 रन आसानी से बन रहे हैं और टेस्ट की पहली पारी में 600 रन ठोके जा रहे हैं। एक जमाना था, जब वेस्टइंडीज विश्व क्रिकेट पर हावी था। ऑस्ट्रेलिया भी काफी समय तक विश्व चैंपियन रहा।

सबसे बड़ा कारण है क्रिकेट में आइपीएल और बिग बैश जैसे टूर्नामेंट का पदार्पण। पैसों की चमक और जिंदगी की दमक के लिए दुनिया के श्रेष्ठतम गेंदबाज इनमें खेलने लगे हैं। अपने देश के लिए खेलने के बजाय आइपीएल और बिग बैश जैसे टूर्नामेंट खेलकर पैसा कमाना ज्यादा महत्वपूर्ण समझा जाने लगा है। ऑस्ट्रेलिया के कई बल्लेबाज भी टेस्ट क्रिकेट छोड़ कर इसमें शामिल हो गए। एडम गिलक्रिस्ट और मैथ्यू हेडन का नाम इनमें प्रमुख है। दक्षिण अफ्रीका के तेज गेंदबाज डेल स्टेन को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ तेज गेंदबाज माना जाने लगा था। 90 मील प्रति घंटे की रफ्तार के साथ गेंद को दोनों ओर स्विंग कराने की कला से दुनिया भर के बल्लेबाजों की नींद हराम कर दी थी उन्होंने। पर आइपीएल में पाटा विकेटों पर खेलकर वे समाप्तप्राय ही हो गए। उनके साथी मोर्ने मॉर्केल के साथ भी यही हुआ। श्रीलंका के लसित मलिंगा का भी हाल बेहाल हो गया। ‘स्लिंग’ ऐक्‍शन गेंद करने के कारण बल्लेबाजों को उनकी गेंद की लाइन और रफ्तार दोनों समझ नहीं पड़ती थी। आइपीएल खेलने के लिए उन्होंने श्रीलंका की टेस्ट टीम से संन्यास ले लिया। शायद उन्होंने सोचा होगा कि बना हुआ दम-खम आइपीएल में दिखाकर अपने लिए धन कूट लेंगे। लेकिन आज वे एक मामूली गेंदबाज बनकर रह गए हैं।

भारत में आइपीएल और ऑस्ट्रेलिया में बिग बैश की तर्ज पर अब श्रीलंका, बांग्लादेश और दक्षिण अफ्रीका में भी क्रिकेट लीग की शुरुआत हो गई है। रफ्तार के सौदागर और फ्लाइट करने की कला लुप्त होती जाएगी। रहेंगे सिर्फ लाइन और लेंथ के हिसाब से करने वाले मामूली रफ्तार के गेंदबाज। ऐसे में बल्लेबाजों की तो चांदी ही है। साधारण बल्लेबाज भी ऐसे खेल रहे हैं मानो डॉन ब्रेडमैन ने पुनर्जन्म ले लिया हो। इसीलिए लोग जब सुनील गावसकर से आज के बल्लेबाजों के औसत की तुलना करने लगते हैं तो बड़ी कोफ्त होती है। सुनील गावसकर ने इमरान, अकरम, वकार, थॉमसन, लिली, रॉबर्ट्स, होल्डिंग, मार्शल और रिचर्ड हेडली जैसे क्रिकेट इतिहास के महानतम तेज गेंदबाजों का सामना बिना हेलमेट के किया था और ढेरों रन बनाए थे। हम आज के सर्वसुविधायुक्त बल्लेबाजों द्वारा औसत श्रेणी के गेंदबाजों के खिलाफ बनाए गए रनों की तुलना उनसे कैसे कर सकते हैं?

पिचें भी लगातार ऐसी बनाई जा रही हैं, जो बल्लेबाजों के पक्ष में हों। विकेट पर हरी दूब तो अब देखने को मिलती ही नहीं है। क्रिकेट अब धार्मिक रीति-रिवाज और जीवन-जीने की कला के बजाय व्यावसायिक खेल बन गया है। ऐसे में देश और स्वाभिमान की चिंता कौन करता है।

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