यह ड्रग्स का काला संसार है। इंटरनेट के दौर में यहां पसंद का हर नशा उपलब्ध है। यह ठीक उसी तरह है जैसा बाजार की जानकारी देने वाली पत्रिका में लिखा होता है दुनिया ग्राहकों के लिए ‘बस एक क्लिक दूर’। अगर आप ‘अमेजन’ जैसी साइटों से खरीदारी कर थक चुके हैं तो आपकी इच्छा के अनुसार चीन या और कहीं से मनपंसद सामान मंगाने के लिए ‘अलीबाबा’ जैसी तेज सुविधा भी मौजूद है। वैसे, इंटरनेट का पारंपरिक तौर पर इस्तेमाल करने वाले अच्छी तरह से जानते हैं कि वे सरकारी और कॉरपोरेट संस्थाओं की सतर्क निगाहों की नोक पर रहते हैं। लेकिन इन सतर्क निगाहों के नीचे एक और तंत्र काम कर रहा है। इसका क्षेत्र व्यापक है, जड़ें गहरी हैं, यह ‘कानून के नीचे’ बहुत ही कुशलता से काम कर रहा है। इसे गणित के सवाल की तरह समझना संभव नहीं है।
जिन्न (इंटरनेट) से मधुरता से कहिए, एक फाइल डाउनलोड कीजिए और इसके चार या पांच स्टेप के बाद भारतीय पोस्ट ऑफिस आपके घर कोकीन और अन्य ड्रग्स पहुंचा देगा। इतना ही नहीं इसे लाने वाला भी नहीं जान पाएगा कि उसने आपके पास क्या पहुंचाया है। लेकिन हाल ही में, हैदराबाद में अधिकारियों को इस बात की जानकारी मिली कि ड्रग्स के सौदागर अंधेरी गलियों में बैठकर काम नहीं कर रहे हैं बल्कि कंप्यूटर के सामने बैठ कर एलएसडी या उन्मादित करने वाले पदार्थों का बड़ी मात्रा में ‘डार्क नेट मार्केट्स’ (डीएनएमएस) के माध्यम से ऑर्डर ले रहे हैं।
जिस रास्ते ऐसा हो रहा है वह ज्यादा उलझा हुआ नहीं है। वर्चुअल प्राइवेसी नेटवर्क (वीपीएन) से आप द ओनियन राउटर (टीओआर) इंस्टाल कर सकते हैं। यह ऐसा ब्राउजिंग सॉफ्टवेयर है जो आपकी क्लिक को निगरानी से दूर तो रखता ही है, पहचान भी छुपाता है। हेरोइन से लेकर सभी ड्रग्स के लिए कूट संदेश दिए जाते हैं और लेन-देन बिटक्वाइन जैसी गुप्त (क्रिप्टो) करेंसी के रूप में होता है।
डीएनएमएस से नियमित खरीदारी करने वाले रघुवीर के अनुसार, “टीओआर अकेले छल नहीं कर सकता है लेकिन वीपीएन से जुड़ने पर यह संभव है। यह आपके लिए सबसे जरूरी है क्योंकि यही डार्क नेट पर आपकी पहचान जाहिर नहीं होने देता।” रघुवीर डीएनएमएस से पहली बार तब जुड़ा जब वह किसी नए शहर में गया और वहां उसे कोई सही डीलर नहीं मिला। वह इस बात का खुलासा तो नहीं करता कि उसने क्या खरीदा लेकिन यह साफ है कि वहां वही चीज मिलती है जो आसानी से उपलब्ध नहीं है। यहां साइकेडेलिक्स, ओपीओइड्स, एस्टेसी, स्ट्रॉयड, बेंजोस, बारबिटुरैट्स जैसी दवाओं के खरीद के विकल्प मौजूद हैं। ये दवाएं बाहर डॉक्टर की पर्ची के बगैर नहीं मिलती हैं। डीएनएमएस के नियमित खरीदारी करने वाले एक अन्य ग्राहक आयुष कुकरेजा कहते हैं, “भारतीय विक्रेता डॉक्टरों की लिखी दवाइयों को ही ज्यादा बेचते हैं।” जबकि यहां एंटीडिप्रेशन (अवसादरोधी) एकस्नैक्स और वैलियम, प्रोमेथाजिन जैसा एंटीथिस्टेमाइंस और टाइडॉल और ट्रैमाडॉल जैसे दर्दनिरोधक सस्ते में उपलब्ध हैं।
दुकानों की तुलना में डीएनएमएस पर आश्चर्यजनक ढंग से कम कीमतों से कुकरेजा अचंभित हो जाते हैं। उन्हें एक सौ 251-एनबीओएमई स्टैंप, जिसे बाजार में एन बम के नाम से जाना जाता है, मात्र 15,000 रुपये मिल जाता है, जो बाजार दर से काफी कम है। इस खरीदारी से खुश होकर वह 6,000 रुपये में 10 ग्राम एस्टेसी का भी ऑर्डर देते हैं क्योंकि बाजार में एक ग्राम एस्टेसी का मूल्य करीब 3,000 रुपये है।
आउटलुक ने जब डीएनएमएस पर हाथ आजमाया तो इसे लॉगिन करने में दो मिनट से भी कम का समय लगता है। इसके बाद ड्रग और भुगतान का विकल्प चुनें, फिल्टर को जोड़ें और ऑर्डर के टैब को क्लिक करें। अगर आप भारतीय डीलर चुनते हैं तो आपके भारतीय पते पर निजी कूरियर सर्विस इसे पहुंचा देता है। अंतरराष्ट्रीय पैकेज के लिए विश्व का सबसे बड़ा पोस्टल सेवा प्रदाता इंडियन पोस्ट ड्रग तस्कर बन जाता है। यह काम सिर्फ भारत तक ही सीमित नहीं है। डीएनएमएस के सहारे ड्रग की तस्करी करने वाले अपने देश की पोस्टल सेवाओं का ही इस्तेमाल करते हैं क्योंकि ये अंतरराष्ट्रीय सौदों के लिए सस्ती होने के साथ ही विश्वस्त भी हैं। अधिकारियों के अनुसार ऑफर देने वाले नंबर कूट संदेशों के कारण पकड़े भी जाते हैं पर ये ज्यादा मूल्य या बड़ी खपत वाले ही होते हैं। अधिकांश मामलों में खोजी कुत्ते भी काम नहीं कर पाते। ये कोकीन या हेरोइन को तो सूंघ सकते हैं पर एलएसडी और एमडीएमए, जो रंगहीन और गंधहीन होते हैं, इनसे परे हैं।
हैदराबाद के पोस्टमास्टर जनरल डॉ. वी.पी.एस. रेड्डी कहते हैं, “जब लैटिन अमेरिका के देशों ब्राजील और कोलंबिया या पश्चिमी यूरोप के नीदरलैंड, जर्मनी या किसी और देश से पैकेट आता है तो हम प्रवर्तन शाखा को सूचित करते हैं। हम उनसे अनुरोध करते हैं कि वे जांच में 24 घंटे से अधिक का समय न लें। छह घंटे के अंदर प्रधानमंत्री जन शिकायत पोर्टल पर भी शिकायत दर्ज कराई जा सकती है।” जुलाई के बाद रोजाना तकरीबन 50 पार्सल जांच के लिए भेजे जा रहे हैं।
ऐसे में परेशानी यह है कि नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) तभी काम कर सकता है जब कोई ड्रग का सौदा पकड़ा जाए। हैदराबाद के बाद डार्क वेब और उनके बाहरी तंत्र पर पकड़ बनाने के लिए इसे बेहतर रास्ता मिला। इस बात का तो तर्क दिया जा सकता है कि एनसीबी पूरी तरह से कार्रवाई करने में सक्षम है पर इसके पास स्टाफ की कमी है और यह अफीम के अवैध रैकेट, हेरोइन और दूसरे ड्रग्स की तस्करी को ही पकड़ने में लगी रहती है।
करीब एक महीना पहले एफबीआइ ने यूरोपोल और छह देशों की प्रवर्तन एजेंसियों के साथ मिलकर डार्क वेब पर दुनिया के बाजार के बड़े हिस्से में काम करने वाले अल्फाबे और हंसा को बंद करने का दावा किया। ये दोनों ड्रग्स, बंदूक, पर्सनल डाटा और कंप्यूटर वायरस के व्यापार से जुड़े थे। लेकिन दो या तीन दिन में ही एजेंसियों ने पाया कि हंसा अपने नए अवतार के रूप में समान डीलरों के साथ लौट आया है। यूरोपोल के अनुसार डार्क वेब पर 40,000 हजार से ज्यादा वेंडर्स हैं। इसके अलावा यहां नारकोटिक्स की 2.5 लाख लिस्टिंग है। इसी तरह चोरी और फर्जी दस्तावेजों की पहचान, खोए सामान, कंप्यूटर हैकिंग के लिए एक लाख लिस्टिंग है। अल्फाबे के बारे में कहा जाता है कि उसके दो लाख से अधिक यूजर्स हैं।
वेंडर्स और यूजर्स की इस आश्चर्यजनक संख्या में काफी भारतीय हैं। एक भारतीय डार्क नेट नार्को मैडलीफुटेड, जिसे 4.8/ 5 की रेटिंग हासिल है, अपने विज्ञापन में कहता है, “चलो भारतीय डीएनएम की सीन को फिर उज्ज्वल बनाएं।” हैरीपॉटर नाम का अन्य वेंडर कहता है, “अगर आप कस्टम की जब्ती से परेशान हैं या लोकल वेंडर आप से पैसे की मांग कर रहा है, तो हम यहां यह वादा करते हैं कि ऐसा फिर कभी नहीं होगा।”
अक्टूबर 2013 में एफबीआइ ने सिल्कर रोड ड्रग के पहले डीएनएमएस में से एक को पकड़ा था। तब इसके संस्थापक रॉस विलियम अलब्रिट उर्फ ड्रेड पायरेट राबर्ट्स को गिरफ्तार किया गया था और उसके पास से 1,44,000 बिटक्वाइंस (करीब 2.85 करोड़ डॉलर) जब्त किए गए थे। कार्नेग मेलॉन के शोधकर्ता निकोलस क्रिस्टीन के अनुसार, सिल्क रोड की 2012 की पहली छमाही के दौरान मासिक कमाई 12 लाख डॉलर थी। इसके बाद साइट ने अपनी लिस्टिंग और खरीदारों की संख्या बढ़ाई तो वार्षिक कमाई की दर तीन करोड़ डॉलर पहुंच गई। सितंबर 2013 तक यह 4.5 करोड़ डॉलर पहुंच गई। हंसा की तरह की सिल्क रोड 2.0 तब ऑनलाइन हुआ जब पहले को बंद हुए एक माह ही हुए थे।
कुछ लोगों के लिए, यह केवल व्यापार या ड्रग्स का काम हो सकता है। राबर्ट्स के साथ इंटरव्यू के बाद पत्रकार एंडी ग्रीनबर्ग ने लिखा, “वह खुद को केवल गलियों में नशीली दवा बेचने वालों को सक्षम बनाने वाले के रूप में ही नहीं देखता था बल्कि वैसे कट्टरपंथी उदारवादी क्रांतिकारी के रूप में भी देखता था जिसने कड़ी मेहनत से कमाई कर डिजिटल स्पेस में जगह बनाई, जो टैक्स और सरकार की ताकतों के कारण उसकी पहुंच से बाहर थी।”
नशे की गोलियां
ये दशकों से शहर की गलियों में चल रही हैं। अब इन्हें डार्क वेब भी बेचता है।
एलएसडी/एसिड
(लाइसेरजिक एसिड डाइथिलामाइड)
1960 में अमेरिकी सेना ने साइकोट्रापिक रासायनिक मिश्रण का परीक्षण किया था। छोड़ी सफलता के बाद एलएसडी को शीघ्र ही प्रतिबंधित पदार्थ घोषित कर दिया गया। यह भ्रम में डालने वाला है, इसे लेने वाला खुद को मानसिक रूप से उग्र स्थिति में अनुभव करता है।
कोकीन
लैटिन अमेरिकी ड्रग विक्रेताओं ने ‘चार्ली’ को 1970 में सबसे लोकप्रिय बनाया। कोक एक ऐसा पदार्थ है जिसका इस्तेमाल मन के वेग को तेज करने के लिए किया जाता है। इस ड्रग के सस्ते और सड़कछाप रूप को ‘क्रैक’ कहा जाता है। यह कोकीन से ज्यादा खतरनाक है और इसने पश्चिम में भय का माहौल बना दिया है।
एमडीएमए/ एस्टेसी
(मेथिलेनेडिऑक्सिमेथम-फेटामाइन)
इसे पार्टी ड्रग के रूप में परिभाषित किया गया है जो संकोच को कम कर ‘खुशी का अनुभव’ कराता है। प्रतिबंध लगने से पहले कानूनी तौर पर 20 साल पहले बेचा जाता था। इसका असर बढ़ाने के लिए कभी-कभी इसमें खतरनाक रसायन भी मिलाए जाते हैं। यह गोली या तरल रूप में लिया जाता है।
मेथामफेटामाइन
एस्टेसी या कोकीन की तरह का एक पदार्थ, जिसका पार्टियों में जमकर इस्तेमाल होता है। यह दूसरों से सस्ता होता है और इसकी गोली कच्चे कैफीन पाउडर से नुकीली बनाई जाती है। इसे क्रिस्टल मेथ भी कहा जाता है, यह ग्लास पाइप से पिया जाता है और यह तेज लत लगाने वाला होता है। इसके हेरोइन की तरह ही खतरनाक प्रभाव हैं।