अरे चेटली चाचा, आपने ये जीएसटी क्या लगा डाला, हमारे तो घरवालों की चांदी ही चांदी हो गई। जो मुए पहले टैक्स के बारे में जानते भी नहीं थे, उन्हें इन कम्बख्त टीवी वालों ने दिन-दिनभर जीएसटी के मायने क्या समझाइ दिए, अपुन के तो लेने के देने पड़ गए हैं।
अब तो जब भी घर के लल्लू से कछु सामान मंगवाओ, मुआ पांच-सात रुपये तो यूं रख लेता है, अपुन ने एक-दो बार तो कछु नहीं कहा पर जब लगा कि अब तो दस-बारह रुपये तक पर हाथ मारने लगा है, तो हड़काते हुए कहा कि ये बाकी के बचे पैसे क्यों नहीं लौटाते हो? पहले तो पांच-सात रुपये ही रखते थे, अब तो दस-बारह बचे तो भी नहीं लौटाते हो।
इतना कहना था अपुन का कि अपुन का लल्लू अपुन पर ही चढ़ बैठा, बोला, ‘काम हमसे कराते हो, तो क्या हमें जीएसटी यानी गुड एंड सर्विस टैक्स नहीं दोगे। टीवी-अखबार नहीं देखते हो क्या, चेटली चाचा ने अब एक देश-एक टैक्स कर दिया है यानी हर काम या सर्विस पर अब जीएसटी देना पड़ता है। और टीवी वालों ने हमें इस बार ढंग से गुड और सर्विस टैक्स का मतलब भी समझाइ दियो है। इसलिए हम जो रोज सुबह-सुबह आपकी दातून से लेकर बाजार से सब्जी-फल तक लाते हैं, वो हमारी आपके लिए सर्विस है, इसलिए हम आपको टैक्स चोरी के फेर से बचाने के चक्कर में जीएसटी वाला टैक्स खुद ही रख लेते हैं।’
लल्लू जे कह ही रहा था कि उसकी अम्मा तुरंत बोल पड़ी, ‘अब तो हमारी भी पॉकेट मनी बढ़ा दीजिए लल्लू के बापूजी।’ हमने कहा कि ऐसा क्या हो गया, अभी पिछले साल ही तो बढ़ाया था तुम्हारा जेब खर्चा। पर लल्लू की अम्मा भी कहां कम है, तपाक से बोली, ‘अब जीएसटी जिस तरह स्टेट और सेंटर का अलग-अलग है, उसी तरह हम तो दिनभर आपका घर-द्वार साफ करते हैं, और फिर शाम को आपकी दुकान पर बैठकर दुकानदारी भी चमकाते हैं, तो हमें भी तो अलग काम का टैक्स अलग-अलग मिलना चाहिए।’
अबही लल्लू और उसकी अम्मा से निपट भी न पाए थे कि हमारी छोटी बिटिया चिन्नी ने भी अपने हिस्से का टैक्स हमें बताइ दियो। बोली, ‘बापू अब हर शर्ट की प्रेस करने पर एक रुपये का जीएसटी आपको मुझे देना होगा, अब फोकट में नहीं दूंगी मैं आपके कपड़ों पर प्रेस करने की ये सर्विस।’
ये तो हाल घर का था, पर जब पहुंचे हम दुकान तो वहां का नजारा तो अजीब ही था। दुकान पर घुसते ही नौकर घन्नू बोला, ‘मालिक आज तो सुबह से फोन पर फोन घनघना रहा है। गुड एंड सर्विस टैक्स के चलते सभी गुड लोग ही अब अपनी सर्विस के लिए रकम मांगने लगे हैं। और तो और कई तो बिल पर पचास पर्सेंट टैक्स लगाकर दे रहे हैं और कह रहे हैं कि 6 महीने बाद आधा टैक्स वापस कर देंगे।’ जब सरकार ने कई चीजों पर छब्बीस फीसदी टैक्स लगाया है और निर्मित वस्तु पर 6 फीसदी तो भी तो बाद में ही टैक्स वापस करेगी। ये तर्क दे-देकर आजकल बड़े व्यापारी खूब बड़ा-बड़ा बिल भेज रहे हैं और कह रहे हैं कि तीन महीने बाद जिस तरह सरकार को रिटर्न भरना होगा, वैसे ही हम भी फुल एंड फाइनल किया करेंगे और जो बचेगा वो आगे वाले बिल में एडजस्ट कर देंगे। तो भाई समझे अब आप की जीएसटी तो हम पर ही लागू हुआ है पूरी तरह।
और तो और जो कुछ बचा-खुचा है वो तो रात में लौटते वक्त चौकीदार ने कहकर पूरा कर दिया। बोला, ‘बाऊजी, आपकी दुकान और गोदाम दोनों की रखवाली की तनख्वाह अब अलग-अलग लगेगी। पहले मैं और बेटा दोनों मिलकर एक ही तनख्वाह में आपकी दुकान और गोदाम दोनों की रखवाली करते थे पर अब जीएसटी के तहत जैसे केंद्र और स्टेट का अलग-अलग है, वैसे ही मेरा और बेटे का भी हिसाब अब अलग-अलग ही करिएगा।’
मुंह के बिगड़े जायके को सुधारने पान वाले के यहां क्या गए, वहां भी ये मुआ जीएसटी ही मिला। पान वाले ने तुरंत कहा, ‘अरे बाऊजी ये जीएसटी क्या बला है, जरा हमें भी समझा दीजिए।’ बस उसके मुंह से ये निकला, तो हम उस पर पिल पड़े। बोले तू न समझ तो ही ठीक है, वरना तेरी समझदारी बढ़ गई, तो लेने के देने हमारे ही पड़ जाएंगे। तो जी देख लिया न आपने कि कैसे इस मुए जीएसटी ने आजकल हमारा बैंड बजाया हुआ है।