भारत में बिजनेस स्कूल चौराहे पर खड़े हैं। एक तरफ, एमबीए की प्रतिष्ठित डिग्री लेने का सपना देख रहे छात्रों की बढ़ती संख्या के लिए और भी ज्यादा बिजनेस स्कूलों की मांग बढ़ी है। दूसरी ओर, उद्योगों की ओर से धीरे-धीरे नौसिखिए मैनेजरों को लेने से इनकार करने के कारण एमबीए की चमक फीकी पड़ी है। इन सब के बीच पिछले साल उद्योग संगठन एसोचैम का बयान आया कि मात्र सात फीसदी एमबीए डिग्रीधारक ही नौकरी पाने लायक हैं। इस बयान ने कठिनाई और बढ़ा दी। यह अनुपात और भी खराब हो सकता है क्योंकि अधिकांश स्कूल एमबीए डिग्रीधारक ही निकालते हैं।
इस परिदृश्य में आइआइएम सरीखे अग्रणी बी-स्कूल दौड़ में बने रहने के लिए खुद में बदलाव ला रहे हैं और ऐसे स्नातक पैदा कर रहे हैं जो उद्योग के लायक हों। आइआइएम को स्वायत्तता देने संबंधी बिल लोकसभा में पारित हो चुका है। यह इन्हें ज्यादा ताकत देगा। अब ये अपना पाठ्यक्रम चुनने के लिए स्वतंत्र होंगे और उद्योग की जरूरत के अनुसार कदम मिला कर चलेंगे। इसके अलावा दूसरे बी-स्कूल भी यही राह पकड़ेंगे। लेकिन जो इस राह पर नहीं चल पाएंगे उनके लिए इस बारे में गंभीरता से सोचने की जरूरत है कि ये कैसे प्रासंगिक रहें और अपना वजूद कायम रखें।
ऐसे में जो सुधार नहीं करेंगे वे पीछे छूट जाएंगे और उनके छात्रों को नौकरी मिलने में काफी कठिनाई होगी। इनमें से कई को बंद हो जाना पड़ेगा। अभी स्थिति यह हो गई है कि छात्रों के लिए कई लुभावने ऑफर के बाद भी कई बी-स्कूलों को सीटें भरने तक में बहुत कठिनाई हो रही है। ऐसा इस कारण से हो रहा है कि छात्र अब यह जान गए हैं कि उद्योग क्या चाहते हैं और बी-स्कूल उन्हें क्या ऑफर दे रहे हैं। सरकार और तकनीकी शिक्षा से जुड़े अधिकारियों को सार्थक शिक्षा उपलब्ध नहीं कराने वाले स्कूलों को बंद करने के लिए आगे आना चाहिए।
इस परिदृश्य में, आउटलुक द्वारा भारत के श्रेष्ठ बिजनेस स्कूल की सालाना रैंकिंग का विशेष महत्व है। इसमें बी-स्कूल की जो बातें सामने लाई गई हैं वह इनके पूरे तंत्र को बताने वाली हैं। पिछले वर्ष की तरह पुराने आइआइएम ने अग्र स्थान बरकरार रखा है और टॉप 10 में हैं। खुशी की बात है कि कुछ गैर आइआइएम भी अपने पुराने स्थान से ऊपर आकर टॉप 10 में पहुंचे हैं। ये परिणाम कमोबेश उम्मीद के मुताबिक ही हैं। कुछ नए नामों ने जगह बनाई है और बहुत से पुराने बी-स्कूलों ने स्थिति में सुधार किया है।
दाखिला लेने वाले छात्रों को यह भी जानकारी दी गई है कि जब वे स्कूलों का चयन करें तो किस बात का ध्यान रखें। किस तरह के कोर्स और फैकल्टी उनके लिए ज्यादा सहायक हो सकते हैं इस पर नजर रखना बहुत जरूरी होता है। इतना ही नहीं, पढ़ाई खत्म होने के बाद उन्हें कैसा प्लेसमेंट मिलेगा, इस पर भी ध्यान देना चाहिए।
कैप्टन जीआर गोपीनाथ ने इंटरव्यू में अपने अनुभवों को साझा किया है। वे बता रहे हैं कि बिना बिजनेस स्कूल गए उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई। वह एविएशन क्षेत्र की जानकारी दे रहे हैं। उनकी नजर में भारत अब भी बड़ा बाजार है और स्वर्णकाल आगे आने वाला है। इसके अलावा हुनर हासिल करने में सहायक लेख भी हैं।
ऐसे में क्या बॉलीवुड दूर रह सकता है? यहां के बदलते परिवेश पर आधारित फीचर में बताया गया है कि बॉलीवुड में भी यहां के लोग पहुंच रहे हैं। महिलाओं का भारतीय व्यापार में विशेष स्थान रहा है। हाल के दशक महिला उद्यमियों की सफलता और उत्कृष्टता हासिल करने के उदाहरणों से भरे पड़े हैं। लेकिन क्या सफलता की सभी कहानियां सुखद हैं? हमारा एक लेख कई सफल महिलाओं के बारे में है जो विपरीत परिस्थितियों में उद्यमिता के क्षेत्र में आईं और उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। इनमें से अधिकांश ने धैर्य से प्रतिकूल स्थितियों पर विजय हासिल की।
जिस तरह से प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है उसके अनुसार उद्योग जगत में एमबीए स्नातकों और बी-स्कूल की मांग बढ़ रही है। ऐसे में स्कूलों को आगे आकर उद्योग की जरूरतों के साथ चलना होगा और रोजगार पाने लायक स्नातकों को पैदा करना होगा। सुरक्षित भविष्य के लिए बी-स्कूल का चयन एक महत्वपूर्ण काम है। आउटलुक की रैंकिंग इस दिशा में सहयोग करने वाली है। हर बार की तरह, हमारी आखिरी सलाहः बुद्धिमानी से चुनिए।