कहने को तो हम कहते हैं कि क्रिकेट गेंद और बल्ले का संग्राम है। पर दर्शकों की दिलचस्पी, ज्यादा गेट मनी की अदम्य इच्छा और क्रिकेट पर व्यापारिक तथा व्यावसायिक दखल ने कर यह दिया है कि बल्ला ही गेंद पर हावी है। यह भी लगने लगा कि गेंदबाजों के तो हाथ-पांव नियमों ने ही बांध दिए हैं और बल्लेबाज मस्ती में धुनाई करते हुए लोकप्रिय हुए जा रहे हैं। जैसे गेंदबाज एक ओवर में दो से ज्यादा बाउंसर नहीं कर सकता था एकदिवसीय खेल के पहले पॉवर प्ले में केवल दो ही क्षेत्ररक्षक 30 गज के दायरे के बाहर खड़े रह सकते हैं। ऐसे में बल्लेबाज तो गलत व ऊंचे स्ट्रोक लगा कर भी रनों की फसल काट रहे हैं और गेंदबाज व्यर्थ ही बदनाम हो रहे हैं। तिस पर बल्ले की चौड़ाई व मोटे किनारों ने गेंदबाजों की नींद ही खराब कर रखी है।
क्रिकेट खेल गेंदबाज व बल्लेबाज के लिए समान रूप से निरपेक्ष बने, इसकी सिफारिशें इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल (आइ.सी.सी.) से लगातार की जाती रही है। अब जाकर आइ.सी.सी. ने नियमों में कुछ परिवर्तन किए हैं। पर मुझे नहीं लगता कि इन बदलावों से क्रिकेट में कुछ आमूल-चूल परिवर्तन आएगा। फिर भी बदलावों की बात करना मुनासिब होगा।
रेड कार्ड जैसा नियमः फुटबॉल की तरह ही क्रिकेट में भी किसी खिलाड़ी द्वारा दुर्व्यवहार किए जाने पर रेड कार्ड दिखा कर उसे खेल से निकाला जा सकेगा। अब तक मैच के बाद रुपयों में फाइन या दो-एक मैचों से बाहर करने की कयावद होती है। पर अब चलते मैच में ही अंपायर ऐसा निर्णय ले सकेगा।
हैंडल्ड द बॉलः पहले बैट या पैड से लगने के बाद स्टंप की ओर जाती गेंद को हाथ से रोकने पर ‘हैंडल्ड द बॉल’ नियम के अधीन आउट दे दिया जाता था। पर इसे अब ‘ऑब्स्ट्रक्टिंग द फील्ड’ यानी क्षेत्ररक्षण में बाधा डालने के आरोप में आउट दिया जाएगा। रेड कार्ड का नियम तो बढ़िया है, पर ‘हैंडल्ड द बॉल’ को बदल कर ‘ऑब्स्ट्रक्टिंग द फील्ड’ आउट देने से क्या भला होगा, यह किसी की समझ के बाहर की बात है।
बल्ले का आकारः बल्ले की लंबाई-चौड़ाई तो पहले ही की तरह क्रमशः 96.52 सेंटीमीटर और 10.8 सेंटीमीटर रहेगी। पर कोना या एज या किनारे की मोटाई अब 40 मिलीमीटर से ज्यादा नहीं रह सकेगी। अभी खिलाड़ी काफी मोटे किनारे वाले बल्ले से खेलते हैं और कोने से लग कर भी गेंद रनों या चौके के लिए चली जाती है। बल्ले की कुल गहराई को भी 67 मिलीमीटर तक सीमित किया गया है। इसके कारण मिस टाइम हिट अब सिक्स के लिए नहीं जा सकेगी। अंपायरों को ये सब मापने के लिए गैजेस दिए जाएंगे जिसे बैट गैज कहा जाता है। अंपायर जब चाहे तब बल्ले को माप सकेगा।
बेल्स को स्टंप से बांधनाः अभी तक तो गिल्लियां स्टंप्स पर केवल टिकी रहती हैं। गेंद के टकराने के बाद गिल्लियां उड़ जाती थीं। इससे विकेटकीपर के चोटिल होने का बड़ा खतरा रहता था। एडम गिलक्रिस्ट और सबा करीम जैसे विकेटकीपर इसका शिकार हुए थे। समय रहते इसमें सुधार कर लिया गया है तो आइसीसी इसके लिए वास्तव में बधाई का पात्र है।
रन आउट और स्टंपिंगः पहले शरीर या बल्ले का कोई हिस्सा क्रीज में अंदर पहुंचने के बाद भी अगर बल्ला हवा में उठा हुआ हो और तब ही गेंद स्टंप पर लगी हो तो आउट करार दिया जाता था। पर नए नियम के अनुसार अब ऐसा नहीं होगा। मुझे याद है, पाकिस्तान के विरुद्ध एक टेस्ट मैच में शोएब अख्तर गेंदबाजी कर रहे थे। सचिन तेंडुलकर बल्लेबाजी पर थे। तेंडुलकर ने एक रन लेने के लिए नॉन स्ट्राइकर एंड पर जाना चाहा। क्रीज पर जैसे ही बल्ला लगाया, वह शोएब अख्तर से टकरा गए। टकराहट की ताकत के कारण वह फिर क्रीज के बाहर हो गए और तभी गेंद स्टंप पर लगी। तब तेंडुलकर रन आउट करार दिए गए क्योंकि गेंद के स्टंप से टकराने के ऐन वक्त वह क्रीज के अंदर नहीं थे। पर नए नियम के अनुसार अब ऐसे बल्लेबाज को आउट नहीं दिया जाएगा।
नॉन स्ट्राइकर का क्रीज में रहना जरूरीः एक और नए नियम के अंतर्गत अगर गेंद करते वक्त नॉन स्ट्राइकर क्रीज से पहले ही बाहर निकल जाता है तो उसे रन आउट किया जा सकता है। इससे होगा यह कि नॉन स्ट्राइकर पहले से स्टार्ट नहीं ले सकेगा। इससे गेंदबाज को राहत मिलेगी। अभी ऐसा किया जाता है तो रनों की संख्या में कमी आएगी।
टी-20 क्रिकेट में एक रिव्यूः डिसिजन रिव्यू सिस्टम (डीआरएस) का टी-20 क्रिकेट में पदार्पण हो गया है। यह एक उचित कदम है। क्रिकेट का प्रारूप कैसा भी हो, निर्णयों में शंका की स्थिति से बचना जरूरी है। डीआरएस लागू होने से दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा।
टेस्ट क्रिकेट में बदलावः टेस्ट क्रिकेट भी बदलावों के दौर से गुजर रहा है। टी-20 और एक दिवसीय क्रिकेट की लोकप्रियता ने टेस्ट क्रिकेट पर संकट खड़ा कर दिया है। इसी को ध्यान में रखकर गुलाबी गेंद और रात्रिकालीन क्रिकेट की भी शुरुआत की गई थी। अब नए नियमों में यह किया गया है कि 80 ओवरों के बाद रिव्यू को फिर से जीवित नहीं माना जाएगा।
यूं तो और भी कई छोटे-मोटे बदलाव किए गए हैं, पर मूल बदलाव तो बल्ले के आकार और ‘रेड कार्ड’ संबंधी ही हैं।
आजकल बल्लों की गुणवत्ता इतनी ऊंची हो गई है कि ‘स्वीट स्पॉट’ केवल बीच में ही नहीं होता। कई जगह होता है। इसीलिए बल्लेबाज ज्यादा निर्मम और गेंदबाज ज्यादा मासूम नजर आते हैं। मुझे तो ज्यादा उम्मीद नहीं है।