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नेपाल पर नए नजरिए की दरकार

आम चुनावों में वामपंथी गठबंधन की जीत के बाद बराबरी और पारस्परिक सम्मान के आधार पर द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ाने की जरूरत
कैसे रहेंगे रिश्तेः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ केपी ओली, जीत के बाद ओली के फिर से नेपाल के प्रधानमंत्री बनने की है उम्मीद

भारत को अब अपने हिमालयी पड़ोसी देश नेपाल को लेकर नीति में बदलाव की दरकार होगी क्योंकि वहां हाल में हुए आम चुनावों में वाम गठबंधन को एकतरफा जीत मिली और नेपाली कांग्रेस का लगभग सूपड़ा साफ हो गया। हिंसक चुनाव प्रचार के दौरान कुछ वामपंथी नेताओं ने तो खुलेआम भारत विरोधी भावनाओं को हवा दी। ऐसे में नेपाल की नई सरकार के साथ भारत को सधी कूटनीति का इजहार करना होगा।

संसदीय चुनाव में सीपीएन-यूएमएल और उसके गठबंधन सहयोगी माओवादी-केंद्र को 117 सीटें मिलीं जबकि उसके सबसे करीबी प्रतिद्वंद्वी नेपाली कांग्रेस को केवल 21 सीटों से संतोष करना पड़ा। नेपाली कांग्रेस परंपरा से भारत के साथ करीबी संबंधों का पक्षधर रहा है।

नेपाली संसद के 165 और प्रांतीय सभाओं के 330 सदस्यों के चुनाव के लिए दो चरणों में वोट डाले गए थे। वाम गठबंधन ने सात प्रांतों में से ज्यादातर में जीत हासिल की है। मधेसी समर्थक दल राष्ट्रीय जनता पार्टी मधेस प्रदेश में आगे है और उसके कुछ वरिष्ठ नेताओं ने संसदीय चुनाव में भी जीत हासिल की है। चुनाव आयोग ने एक बयान में कहा है कि सबसे अधिक अंक पाने वाले की जीत प्रणाली के तहत संसदीय और प्रांतीय सभाओं के नतीजे आने के बाद आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के तहत संसद के 110 सदस्यों के चुनाव के लिए गिनती शुरू होगी।

सत्ताधारी नेपाली कांग्रेस अब तीसरे स्‍थान पर पहुंच गई है, जो चार साल पहले त्रिशंकु संसद में सबसे बड़े दल के तौर पर उभरी थी। उसके कई दिग्गजों को भी चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है। इनमें पूर्व उप-प्रधानमंत्री, रामचंद्र पाडेल, केपी सितौला, बिमलेंद्र निधि और बिजय गच्छदार भी हैं।

दो पूर्व प्रधानमंत्री वाम गठबंधन के माधव कुमार नेपाल और नवशक्ति पार्टी के बाबूराम भट्टराई क्रमशः काठमांडो और गोरखा की अपनी सीट से जीते। वाम गठबंधन के अन्य पूर्व प्रधानमंत्री माओवादी प्रमुख पुष्प कमल दहल (प्रचंड), झालनाथ खनल और ओली भी चुनाव जीतने में सफल रहे हैं।

रिश्तों पर क्‍या असर

नेपाल का भारत के साथ विशेष रिश्ता रहा है। बिहार और उत्तर प्रदेश से लगी खुली सीमा के कारण सुरक्षा के लिहाज से भी नेपाल महत्वपूर्ण है। वहीं, नेपाल के लिए भारत दुनिया का प्रवेश द्वार है। समान, संस्कृति और विशेषकर हिंदूबहुल देश होना उसे सांस्कृतिक और रणनीतिक तौर पर भारत का करीबी बनाता है। नेपाली कांग्रेस परंपरागत रूप से भारत की आजादी के बाद से ज्यादातर समय सत्ता में रही कांग्रेस के बेहद करीब मानी जाती थी। नेपाल में पूर्ण लोकतंत्र की बहाली और सभी वर्गों का प्रति‌िनधित्व आश्वस्त करने वाले संविधान के निर्माण में भी भारत की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

केपी ओली के नेपाल के नए प्रधानमंत्री के तौर पर जल्द शपथ लेने की उम्मीद है। ऐसे में बराबरी और पारस्परिक सम्मान के आधार पर भारत-नेपाल संबंधों का नया प्रतिमान तैयार करने की जरूरत है। निहित स्वार्थों के कारण कुछ ताकतें तुच्छ मु्द्दों को उठाकर नई दिल्ली और काठमांडो के बीच वैचारिक विभाजन पैदा करने की कोशिश करती रहती हैं। वे एक बार फिर ऐसा करेंगी। नेपाल की नई सरकार के साथ सहज संबंध बनाकर नरेंद्र मोदी सरकार को ऐसी ताकतों को शुरुआत में ही बढ़ने नहीं देना चाहिए। नई सरकार के साथ संबंधों में गर्मजोशी के लिए मोदी सरकार को भारतीय राजनीति के उन लोगों की मदद लेने से परहेज नहीं करना चाहिए जिनके केपी ओली और उनकी गठबंधन सरकार में निर्णायक भूमिका रखने वाले पूर्व प्रधानमंत्री प्रचंड से अच्छे रिश्ते हैं।

आगे का रास्ता

हमारे रणनीतिक हित एक-दूसरे से इस कदर जुड़े हुए हैं कि नेपाल की नई सरकार के साथ भारत को खुले और व्यावहारिक सोच के साथ बढ़ने की जरूरत है। चुनाव में वाम गठबंधन की जीत को कई लोग चीन का दखल बढ़ने के तौर पर देख रहे हैं। ऐसे में भारत को अपनी नीत‌ि में बदलाव करके शीर्ष स्तर पर नए सिरे से ओली और नेपाल की नई सरकार के साथ संबंधों को सुनिश्चित करना होगा। भारत की प्राथमिकता नाकेबंदी की भ्रामक धारणाओं को पीछे छोड़ना और चिंताएं कम करना होनी चाहिए। विकास और कौशल विकास के क्षेत्र में नेपाल की नई सरकार के साथ शुरुआती स्तर पर ही भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए।

युवाओं को करें आकर्षित

लंबे समय से हम कूटनीतिक लालफीताशाही के मकड़जाल से बाहर निकलने में विफल रहे हैं, जो वैश्विक शक्ति समीकरण के लिहाज से नेपाल को भारत के लिए एक छोटे लक्ष्य के तौर पर देखता है। लेकिन, वैश्विक स्तर पर भारत की ताकत में स्‍थायित्व के लिए उसे पड़ोसियों के साथ दोस्ताना संबंध तय करने होंगे और सरकार को इसे शीर्ष प्राथमिकता देनी होगी। नेपाल के करीब 40 फीसदी मतदाता युवा हैं। यह देश नई शुरुआत की ओर देख रह‌ा है। चीन के बढ़ते प्रभाव को भारत रोकना चाहता है तो उसे इस वर्ग को आकर्षित करना होगा। नेपाल को लेकर अपने दृष्टिकोण और पहल में युवाओं की भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी। मोबाइल, सोशल मीडिया और अन्य डिजिटल माध्यमों से नेपाली युवाओं से जुड़कर दोस्ती के नए संदेशों को बढ़ावा देना होगा। लंबे समय से भारत-नेपाल के संबंध पुराने कूटनीतिक तरीकों से जुड़े हैं। अब इसमें बदलाव लाकर खेल, संस्कृति और संगीत के जरिए इसे युवाओं के दिलोदिमाग में उतारना होगा। उन्हें बेहतर तरीके से जोड़ना होगा। बड़े भाई वाले रवैये जैसे दुष्प्रचारों से उन्हें मुक्त करना होगा।

सुरक्षा पर फोकस

महत्वपूर्ण वैश्विक शक्तियों के साथ मिलकर भारत को यह आश्वस्त करना होगा कि उसकी पहल नेपाल में लोकतंत्र और मानवाधिकारों को लेकर है। वह नेपाल की विकास की आकांक्षाओं में मददगार बनना चाहता है। चुनाव परिणाम के बाद नेपाल में चीन की दखल बढ़ने की आशंकाओं को देखते हुए भारत को उन पहलों को आगे बढ़ाना चाहिए जो बीजिंग के असर को संतुलित करना चाहती हैं। नेपाल के इस्लामी कट्टरपंथ का केंद्र बनने का भी खतरा है। पाक खुफिया एजेंसी आइएसआइ वहां भारत विरोधी भावनाओं को उकसा सकती है। इसके अलावा भारत को यह देखना चाहिए कि सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए वह नेपाल को नया रोडमैप बनाने में कैसे मदद करेगा। खासकर, साइबर सुरक्षा और बुनियादी सुरक्षा ढांचे के आधुनिकीकरण में सक्रिय मदद करेगा।

(लेखक कूटनीतिक मामलों के वरिष्ठ पत्रकार और न्यूजमोबाइल डॉट इन के एडिटर इन चीफ हैं।)

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