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कौन समझेगा खिलाड़ियों का दर्द

कोहली ने उठाई भारतीय क्रिकेटरों के थकान की बात, लेकिन बीसीसीआइ का नहीं है इस ओर ध्यान
मैच के दौरान अपील करते कप्तान विराट कोहली

बस खेलते जाओ, यहां से वहां भागते रहो। इस हफ्ते यहां तो उस हफ्ते किसी और शहर में। आज यही भारतीय क्रिकेटरों की नियति सी बन गई है। इन क्रिकेटरों के अतिव्यस्त दौरों के लिए कोई तय नियम नहीं है और न ही भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआइ) में कोई इनकी शरीर तोड़ने वाली थकान जैसे मुद्दे पर सोचने वाला है। ऐसा वर्षों से चलता आ रहा है। खिलाड़ियों पर मैच खेलने का जरूरत से ज्यादा दबाव या कार्यक्रमों को लेकर उठते सवालों की या तो साफ तौर पर अनदेखी की जाती है या टालमटोल कर दिया जाता है। कभी-कभी तो यह जवाब अत्यंत ही हास्यास्पद होता है। नौवें दशक के मध्य में जब बीसीसीआइ के सचिव से एक दौरे की तारीखों के ऐलान में हो रही देरी के बारे में पूछा गया तो उन्होंने पूरी गंभीरता के साथ कहा कि बोर्ड अभी यह पता लगा रहा है कि अगले फरवरी माह में 28 दिन होंगे या 29 दिन!

ऐसे में कप्तान विराट कोहली का श्रीलंका के खिलाफ सीरीज खत्म होने के तत्काल बाद कठिन दक्षिण अफ्रीकी दौरे पर रवाना होने के बीच बिलकुल समय नहीं होने का सवाल उठाना पूरी तरह से जायज और गंभीर है। कोहली कहते हैं,  “दुर्भाग्यवश, इस सीरीज के खत्म होने के बाद हमें दक्षिण अफ्रीका के लिए उड़ान भरने के लिए केवल दो दिन का समय मिलेगा। ऐसे में हमारे पास खेल की परिस्थितियों और सामने क्या चुनौती आने वाली है जैसी बातों के लिए सोचने तक का वक्त नहीं मिलेगा।” नागपुर टेस्ट से पहले जब उनसे पूछा गया कि क्या उन्होंने ग्रीन टॉप की मांग की है तो उन्होंने इसका जवाब सवाल के लहजे में दिया, “क्या हमें एक महीने का समय मिला। आदर्श स्थिति तो यह है कि हमें किसी भी दौरे के पहले सही ढंग से तैयारी करनी पड़ती है।” यह पहला मौका है कि जब किसी भारतीय कप्तान ने इतनी दृढ़ता के साथ मैच कार्यक्रम जैसे संवेदनशील मुद्दे पर बात कही है।

भारतीय टीम अपने घर में अभी अच्छा प्रदर्शन कर रही है पर इसी तरह का प्रदर्शन यदि दक्षिण अफ्रीका में जारी नहीं रहा तो कोहली कहते हैं, “हमेशा की तरह हमारे पास समय की कमी है। मैं सोचता हूं, हमें भविष्य में आकलन करना होगा...हम यह नहीं देखते किसी जगह जाने से पहले हमें तैयारी के लिए कितना वक्त मिला। बस, सभी लोग टेस्ट का परिणाम आते ही खिलड़ियों को जज करना शुरू कर देते हैं। लेकिन यह सही तब है जब हमें उतना समय मिले जितना समय हम तैयारी के लिए चाहते हैं। इसके बाद हमारी आलोचना की जानी चाहिए।” श्रीलंका का भारत दौरा 24 दिसंबर को खत्म होगा और कुछ दिनों बाद ही टीम दक्षिण अफ्रीका रवाना हो जाएगी। वहां पहला टेस्ट पांच जनवरी से शुरू होगा।

रणनीतिः नेट पर अभ्यास के दौरान चर्चा करते भारतीय खिलाड़ीइसका मतलब साफ है कि खिलाड़ियों को इस महत्वपूर्ण और कठिन दौरे के लिए वहां की परिस्थितियों के अनुरूप ढलने और तैयारियों के लिए वक्त नहीं मिलेगा। टीम को वहां तीन टेस्ट, छह वनडे और तीन टी-20 मैच खेलने हैं। भारत अभी टेस्ट की नंबर वन टीम है लेकिन दूसरे नंबर पर मौजूद दक्षिण अफ्रीका इस दौरे के बाद कोहली की टीम से उसका स्थान छीन सकती है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा बीसीसीआइ के संचालन के लिए नियुक्त प्रशासकों की कमेटी (सीओए) के प्रमुख विनोद राय ने कोहली की बात पर हमदर्दी के साथ ध्यान दिया है। इतना ही नहीं लोढ़ा कमेटी ने भी खिलाड़ियों पर ज्यादा दबाव पर ध्यान दिया है। लोढ़ा कमेटी ने इस बात की अनुशंसा की है कि दो दौरों और आमतौर पर अप्रैल में आरंभ होने वाले आइपीएल के बीच 15 दिन का अंतराल रखा जाए। लेकिन बीसीसीआइ ने इस सलाह पर आपत्ति की है। चार साल तक राष्ट्रीय चयनकर्ता रहे पूर्व टेस्ट बल्लेबाज विक्रम राठौर कहते हैं, “इन दौरों के लिए निसंदेह आपको और समय की जरूरत होती है। अच्छी तैयारी के लिए माहौल के साथ सामंजस्य बिठाना पड़ता है। ऐसा तो तब और भी जरूरी हो जाता है जब आपकी टीम अच्छा कर रही हो और विदेशों में भी अच्छा करना उसका लक्ष्य हो। किसी दौरे के लिए दो या तीन दिन का समय काफी कम है।”

दुर्भाग्यवश, पूरी कहानी के पीछे पैसे का खेल है। पिछले कुछ दशकों से क्रिकेट में पैसे का जोर बढ़ा है। ऐसे में बीसीसीआइ का सारा जोर इस बात को लेकर है कि भारत एक सीजन में ज्यादा से ज्यादा मैच खेले। मैचों की संख्या मैचों का प्रसारण करने वाली टीवी कंपनी और बीसीसीआइ के बीच समझौते पर निर्भर है। एक बार जब बीसीसीआइ ब्रॉडकास्टर से मैचों की संख्या को लेकर वादा कर देता है तो उसे इसे पूरा करना होता है। वर्तमान में यह समझौता छह साल (2012-18) के लिए है। इसके तहत स्टार इंडिया के साथ 2012 में जो 3,851 करोड़ रुपये का समझौता हुआ है उसके अनुसार बीसीसीआइ को 96 मैच कराने हैं। इसके तहत प्रति मैच 40.11 करोड़ रुपये कमाई की गारंटी दी गई। बाद में इसमें पाकिस्तान के साथ होने वाले मैच भी जोड़ दिए गए जिससे यह आंकड़ा सौ पार कर गया। ऐसे में अगर श्रीलंका का दौरा नहीं भी होता तो कोई खास फर्क पड़ने वाला नहीं था क्योंकि बीसीसीआइ ने जितने मैचों के वादे किए थे वह संख्या पूरी हो गई थी। 2016-17 में बीसीसीआइ ने भारत में 21 अंतरराष्‍ट्रीय मैच आयोजित किए (यह संख्या एक सीजन में सबसे ज्यादा है) और 1,000 करोड़ से ज्यादा रुपये कमाए। इससे साफ है कि बीसीसीआइ की मंशा क्या है।

पूर्व टेस्ट ओपनर और राष्ट्रीय कोच अंशुमान गायकवाड़ सवाल करते हैं, “ऐसी स्थिति में क्या होगा? जिस खिलाड़ी को 15 साल खेलना चाहिए उसकी सारी ऊर्जा 10 साल में ही खत्म हो जाएगी। क्या पैसा खेल से बड़ा है? अभी भारतीय टीम अच्छा कर रही है। लेकिन यदि कल टीम खराब करने लगे तब कोई देखने वाला नहीं होगा, टीवी देखने वालों की संख्या गिर जाएगी। स्वाभाविक रूप से प्रायोजक कम हो जाएंगे और अंततः खिलाड़ी ही प्रभावित होगा। ऐसे में आप सोने का अंडा देने वाली मुर्गी को न मारें?”

बीसीसीआइ ने साफ तौर पर ही नहीं बल्कि अंहकारपूर्वक पिछले कुछ साल से यह कहना शुरू कर दिया है कि जो खिलाड़ी खुद को थका हुआ महसूस कर रहे हैं वे बाहर जाने के लिए स्वतंत्र हैं। लेकिन इस बात की गारंटी नहीं है कि जब वे वापसी करना चाहेंगे तो टीम में उनकी सीट पक्की होगी। आइपीएल गवर्निंग काउंसिल के चेयरमैन और बीसीसीआइ के वरिष्ठ अधिकारी राजीव शुक्ला आउटलुक से कहते हैं, “थकान के कारण को दिमाग में रखा जाना चाहिए। किसी खिलाड़ी को खेलने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। वास्तव में यह बीसीसीआइ की तय नीति है। कार्यक्रम सदैव बहुत कसा हुआ होता है और कई तरह के वादे भी पूरे करने होते हैं।” जिस ‘वादे’ की वह बात कर रहे हैं वह आधिकारिक ब्रॉडकास्टर से किया गया है। लेकिन इस तर्क का क्या जवाब है-उस वक्त क्या होगा यदि कोहली, अजिंक्या रहाणे, के.एल.राहुल, शिखर धवन और रोहित शर्मा एक साथ आराम चाहें या एक ही समय चोटिल हो जाएं? क्या इनके बिना भारतीय टीम समान ताकतवर रह पाएगी?

कोहली की तरह ही कई विशेषज्ञ यह महसूस करते हैं कि श्रीलंका से खेलने की तुलना में भारत में कैंप लगाना या पहले दक्षिण अफ्रीका पहुंच कर वहां कुछ प्रैक्टिस मैच खेलना ज्यादा फायदेमंद रहता। दुर्भाग्यपूर्ण है कि बीसीसीआइ ने दौरा तय करते समय न तो खिलाड़ियों की राय ली न ही चयनकर्ताओं की। पूर्व राष्ट्रीय चयनकर्ता संजय जगदाले स्वीकार करते हैं कि वे और न ही उनके सह चयनकर्ता कार्यक्रमों को लेकर ज्यादा कुछ नहीं कर सकते क्योंकि ये पहले से ही तय होते हैं। लेकिन वह बताते हैं कि नौवें दशक में आज के व्यस्त दौरों की तुलना में ज्यादा समय मिलता था। वह कहते हैं, “अभी बीसीसीआइ क्या कर रही है। दौरे बहुत ही कसे हुए हो रहे हैं, ऐसा नहीं होना चाहिए। उदाहरण के लिए, श्रीलंका के खिलाफ घरेलू सीरीज का कोई औचित्य नहीं था। इससे तो अच्छा होता कि भारतीय टीम के साथ कुछ रणजी टीमों के मैच कराए जाते। हमने हाल ही में (अगस्त-सितंबर में पांच वनडे और एक टी-20 मैच के लिए) श्रीलंका का दौरा किया था।”

बीसीसीआइ के आराम करने के प्रस्ताव को कुछ खिलाड़ियों ने ऐच्छिक रूप से स्वीकार किया। लेकिन यह आंशिक ही रहा क्योंकि खिलाड़ियों को यह डर था कि टीम में कठिनाई से हासिल स्थान कहीं वे गंवा न बैठें। इसके अलावा धन की चिंता भी एक कारण था। 2008 में महेंद्र सिंह धोनी का श्रीलंका सीरीज से हटना एक अनूठा अवसर था। तब धोनी वन डे में भारत के प्रभावशाली कप्तान थे इसलिए उन्होंने यह फैसला लिया। सचिन तेंदुलकर ने भी कुछ सीरीज से अलग होने का फैसला लिया था पर उनका कद भी बहुत बड़ा था। लेकिन कितने कम ख्याति वाले खिलाड़ी इतना बड़ा फैसला लेने के लिए सोच सकते हैं? अजिंक्या रहाणे इस मामले में एक अनूठा उदाहरण हैं। उन्हें चोट से उबरने के बाद सीधे अंतिम एकादश में शामिल किया गया। उन्हें कोहली ने फरवरी में बांग्लादेश के खिलाफ टीम में करुण नायर की जगह लिया जबकि नायर इंग्लैंड के खिलाफ हुए पिछले टेस्ट में तिहरा शतक लगा चुके थे।

आदर्श स्थिति तो यह होनी चाहिए कि खेलने और आराम के बीच सही संतुलन हो। गायकवाड़ कहते हैं, “एक साल में दो या तीन सीरीज या इसके करीब या थोड़ा कम या ज्यादा होना चाहिए। साल में खेलने के लिए 100 दिन होने चाहिए। इससे खिलाड़ियों को अपनी चोट या अन्य परेशानियों से उबरने या निपटने के लिए समय मिलेगा। इतना ही नहीं इस दौरान वे अपने खेल की गलतियों को भी सुधार सकेंगे।” ऐसे में यह सवाल उठता है कि व्यस्त कार्यक्रमों और भारी मुनाफे से जुड़े मुद्दों का सर्वमान्य हल क्या हो?

राठौर का मानना है कि टीम प्रबंधन और चयनकर्ताओं को इस बात पर सहमत होना जरूरी है कि यदि कोई आराम के बाद वापसी चाहता है तो उसकी वापसी तय हो चाहे उसकी जगह पर आए खिलाड़ी का प्रदर्शन कैसा भी रहा हो। वह कहते हैं, “ खिलाड़ियों को यह बताया जाना चाहिए कि आप टीम के लिए एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी हैं लेकिन आप को आराम की जरूरत है। ऐसा होने पर खिलाड़ी भी राहत महसूस करेंगे। लेकिन जब खिलाड़ी थोड़ा भी असुरक्षित महसूस करेगा और उसके मन में यह बात रहेगी कि अगर मुझे आराम के लिए कहा जाए और मेरी जगह आया खिलाड़ी अच्छा प्रदर्शन कर दे तो मेरा क्या?” गायकवाड़ के लिए खिलाड़ियों का सहयोग महत्वपूर्ण है। वह कहते हैं, “मेरी सलाह है कि जब कार्यक्रम तय किए जाएं तब कप्तान, कोच या कुछ वरिष्ठ खिलाड़ियों की बीसीसीआइ अधिकारियों के साथ बैठक हो जिसमें यह बताया जाए कि वे क्या चाहते हैं। इसके बाद कार्यक्रम बनाए जाएं।” जगदाले कहते हैं, “रोटेशन और आराम देने के लिए स्पष्ट और पारदर्शी नीति होनी चाहिए। यह खिलाड़ियों के आत्मविश्वास को हिलाने वाला नहीं होना चाहिए।”

श्रीलंका के खिलाफ वनडे सीरीज में आराम कर रहे कोहली ने अपनी बात कह दी है। अब गेंद बीसीसीआइ के कोर्ट में है। जब मार्च के अंत में टीवी ब्रॉडकास्टर के साथ समझौते का नवीकरण किया जाएगा तब बीसीसीआइ और सीओए को कोहली की सलाह को ध्यान में रखना होगा। आखिरकार, अभी वह सोने के अंडे देने वाली मुर्गी जैसा ही तो है।

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