बॉलीवुड और दलाल स्ट्रीट में एक बात समान है-दोनों में एक शहंशाह का सिक्का चलता है। चकाचौंध वाले बॉलीवुड में जो महत्व अमिताभ बच्चन का है, वही रुतबा स्टॉक मार्केट में अरबपति निवेशक राकेश झुनझुनवाला का है। देश भर से लाखों लोग कामयाबी की तलाश में सपनों के इस शहर में आते हैं। लेकिन 57 वर्षीय झुनझुनवाला को “बिग बुल” कहा जाता है क्योंकि “उन्होंने भारत का भविष्य पढ़ लिया था।” ऐसा उनके दोस्त और अरबपति निवेशक राधाकृष्णन दमानी का कहना है।
राकेश झुनझुनवाला, जिन्हें अक्सर भारतीय शेयर बाजार का छलिया कहा जाता है, उभरते भारत को लेकर दृढ़तापूर्वक आशान्वित रहे हैं। तब भी जब स्टॉक मार्केट घोटालों में फंसकर बदनाम हो गया था। पढ़ाई-लिखाई से चार्टर्ड अकाउंटेंट आरजे (दोस्त उन्हें इसी नाम से जानते हैं) ने जब शुरुआत की तो सेंसेक्स 150 अंकों पर हुआ करता था। आज यह 33,700 के पार पहुंच चुका है और झुनझुनवाला 3.2 अरब डॉलर की कुल संपत्ति के साथ फोर्ब्स पत्रिका की फेहरिस्त में 54वें सबसे अमीर भारतीय हैं। लगभग एक दशक से वे अरबपति हैं। 2003 में उनकी कुल संपत्ति 250 करोड़ रुपये थी जो 2007 में बढ़कर 5,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गई। कुल मिलाकर सालाना 111 फीसदी की बढ़ोतरी! जबकि इस अवधि में सेंसेक्स ने 36 फीसदी का ही रिटर्न दिया। 2003 से उनका निवेश सालाना 35 फीसदी की दर (सीएजीआर) से लगातार बढ़ रहा है।
नववर्ष विशेषांक के लिए आउटलुक मनी ने इस अरबपति निवेशक के दिमाग में झांकने का फैसला किया कि क्या उनके अजूबे तौर-तरीकों में कोई नियम तलाशा जा सकता है जो उन्हें सफलता दिला रहा है। नरीमन प्वाइंट में उनके दफ्तर में तीन घंटे से ज्यादा लंबे साक्षात्कार के दौरान झुनझुनवाला ने अपनी जिंदगी, भलाई के कामों, जीवन की सीख और पैसे कूटने की अपनी कला के बारे में विस्तार से बताया। जो लोग बाजार में उनके जैसी सफलता चाहते हैं, उनके लिए वे कहते हैं, “सिर्फ एक ही नियम है कि कोई नियम नहीं है।” उनके सभी विरोधी, दोस्त और सहयोगी कहते हैं कि वे जो भी करते हैं उसे लेकर बहुत उत्साहित रहते हैं और यही उनकी सफलता का राज है। 2015 की एक घटना को याद करते हुए उनके पार्टनर उत्पल सेठ बताते हैं कि उस समय आरजे ब्रीच कैंडी हॉस्पिटल में भर्ती थे। आइसीयू में भी वे ब्लूमबर्ग की स्क्रीन देखने को बेताब थे। यही जोश उनकी पहचान है।
झुनझुनवाला जितने उत्साही हैं, अपने स्टॉक संबंधी आइडिया को लेकर, उतने ही उदार भी। उन्हें साझा करने से उन्हें गुरेज नहीं। एक अन्य करीबी दोस्त और दिग्गज निवेशक आशीष कचोलिया को यह स्वीकार करने में जरा भी झिझक नहीं कि उन्होंने निवेश करना झुनझुनवाला से ही सीखा है। वे बताते हैं, “राकेश के मुताबिक किसी स्टॉक को चुनने से पहले तीन बातों का ध्यान रखना चाहिए—कंपनी के सामने कितना बड़ा अवसर है, प्रतिस्पर्धा में कंपनी कहां ठहरती है और स्टॉक का वैल्यूएशन। इसे सहजता से जानना एक बात है और एक प्रक्रिया के तौर पर इसका पालना दूसरी बात। '90 के दशक के दौरान प्राइम सिक्यूरिटीज में काम करते हुए कचोलिया झुनझुनवाला के संपर्क में आए थे। अचानक हुई यह मुलाकात दोस्ती में बदली और सालों-साल मजबूत होती गई। झुनझुनवाला नवी मुंबई में अपने पिता की याद में आंखों का अस्पताल बनवा रहे हैं। इसमें कचोलिया भी शामिल हैं। इस अस्पताल में हर साल 15,000 से ज्यादा आंखों के ऑपरेशन निःशुल्क होंगे।
बाजार हो या भलाई के काम, झुनझुनवाला ने अपने भरोसे को बड़े चाव से बनाए रखा है। अगर उन्हें कोई कंपनी और उसका प्रबंधन पसंद आ जाए तो उसमें बड़ी रकम लगा देते हैं। अस्सी के दशक में उन्होंने ट्रेडर के तौर पर शुरुआत की थी, लेकिन मर्जी के निवेशक बनकर उभरे हैं। सेठ के मुताबिक, यही वजह है कि टॉप कंपनियां और प्रमोटर्स उनके पीछे भागते हैं। इसकी वजह यह है कि जब झुनझुनवाला की कंपनी रेयर इंटरप्राइजेज किसी कंपनी में निवेश करती है तो उस कंपनी के हित को खुद से ऊपर रखती है। केवल मुनाफे पर नजर रखने के बजाय झुनझुनवाला और उनकी टीम मैनेजमेंट के साथ जुटती है और अपने आइडिया शेयर करती है। इसलिए जब बाजार को पता चलता है कि उन्होंने किसी कंपनी में निवेश किया है तो उसकी कीमत बढ़ जाती है।
उनकी असाधारण सफलता का जितना संबंध उनकी अनूठी शख्सियत से है, उतना ही स्टॉक चुनने की उनकी कला से। झुनझुनवाला फैसले लेना जानते हैं और जिसमें भरोसा हो, वहां पैसा लगा देते हैं। जिस कंपनी में उन्होंने निवेश किया है, उनके अधिकारी कहते हैं कि अगर उन्हें कंपनी, उसका मैनेजमेंट और स्टॉक प्राइस जंच जाए तो चेक साइन करने में समय नहीं लगाते। उनके निवेश के चर्चे अक्सर वाट्सऐप पर घूमते रहते हैं। रिसर्च एनालिस्ट भी इस पर बारीकी से नजर रखते हैं। उनके नाम पर प्रशंसकों ने वेबसाइट भी बना रखी है। हालांकि, इसमें उनकी रजामंदी नहीं है।
निवेश से जुड़े अपने फैसलों को लेकर झुनझुनवाला काफी खुले हैं। उनके मित्र और एक बड़े निवेशक कल्पराज धर्मसी बताते हैं कि राकेश जोखिम लेने से नहीं डरते और अपने निवेश पर पर्दा नहीं रखते। उन्हें इस बात की भी चिंता नहीं कि लोगों को उनके निवेश और फैसलों का पता चल जाएगा। स्टॉक चुनने में माहिर झुनझुनवाला को समझने के लिए एक इनसान के तौर पर उन्हें जानना जरूरी है। प्रशंसकों के लिए ट्रेडिंग और इंवेस्टमेंट के बारे में उनके 10 नियम सिद्धांत की तरह हैं, जो उनके ऑफिस में लगे हैं।
उनका दफ्तर दोस्तों और परिजनों के दिए हुए स्मृति चिह्नों से भरा पड़ा है। मेज पर बेटी निष्ठा की तस्वीर है, जबकि डेस्क की सबसे ऊपर वाली दराज में एक कविता रखते हैं जो उनकी शादी की 25वीं सालगिरह पर पत्नी रेखा झुनझुनवाला के लिए प्रसून जोशी ने लिखी थी। निचले दराज में उनका सिगार रहता है। कचोलिया द्वारा भेंट की गई पेंटिंग उनकी कुर्सी के पीछे शोभा बढ़ाती है। इस पेंटिंग में वे अपने मित्र राधाकृष्ण दमानिया के साथ बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) की नामी बिल्डिंग के बाहर खड़े हैं। अपने चंचल स्वभाव और अक्खड़ व्यवहार के बावजूद झुनझुनवाला जो कुछ भी करते हैं उसमें अपनी व्यक्तिगत सौम्यता की छाप छोड़ते हैं। मिसाल के तौर पर, एनालिस्ट मीट में टाइटन कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर भास्कर भट्ट के लिए खास पान ले जाना नहीं भूलते। पिछले दो दशक से झुनझुनवाला से परिचित भट्ट कहते हैं कि राकेश जानकारी और अनुभव का मिश्रण हैं। उनमें गजब का विश्वास है और उनके फैसलों में निर्भीकता नजर आती है। अपने भरोसे के साथ-साथ झुनझुनवाला विपरीत फैसलों के लिए भी जाने जाते हैं। उदाहरण के तौर पर, उनके पोर्टफोलियो में दो दवा कंपनियां-अरबिंदो और ल्यूपिन हैं। बाकी बाजार के लिए फार्मा सेक्टर भले ही पसंदीदा न हो लेकिन झुनझुनवाला को इस पर यकीन है और उम्मीद है कि इनके भी दिन आएंगे।
अधिकांश कंपनियों के फाइनेंस और रिटर्न की जानकारी उनकी अंगुलियों पर रहती है। लेकिन उनकी दिलचस्पी निवेश तक ही सीमित नहीं है। जिन लोगों के साथ वे काम करते हैं और मिलते-जुलते हैं, उनके जीवन में भी उतनी ही रुचि लेते हैं। उनके मित्र कचोलिया बताते हैं कि उनकी उदारता केवल दोस्तों तक सीमित नहीं है। वे किसी अनजान को भी टैक्स सेविंग पर ऐसी सलाह दे सकते हैं जो चार्टर्ड एकाउंटेंट के मशविरे से ज्यादा काम की हो। उनसे पूछिए कि क्या लोग लिफ्ट में भी उनसे स्टॉक टिप्स लेने लग जाते हैं? उनका जवाब होता है, “आप उधार के ज्ञान से पैसा नहीं बना सकते।” उनके दोस्तों और सहयोगियों का दावा है कि अगर आपको कोई परेशानी है तो वे बेहतरीन सलाह देंगे। चंद लम्हों में उनके साथ बातचीत भौतिक से दार्शनिक हो जाती है।
कैसे बने राकेश झुनझुनवाला?
बाजार में ऐसे कई लोग हैं, जो दावा करते हैं कि उन्होंने राकेश झुनझुनवाला से सीखा है, लेकिन झुनझुनवाला का कहना है वह जो बन गए हैं, कभी सोचा नहीं था। “मुझे नहीं मालूम आरजे कैसे बना जाता है। बाजार में सभी पैसा कमाने आते हैं। इसके सिवा दूसरी कोई वजह नहीं है।” अरबपति निवेशक वारेन बफेट से तुलना पर उन्होंने बड़ा एतराज किया। “मेरी उनसे तुलना नहीं हो सकती। मैं उनकी तुलना में बहुत मामूली हूं। उनके पास जो ज्ञान, क्षमता और अनुभव है, वह मेरे पास नहीं है।”
झुनझुनवाला ऐसे स्टॉक्स चुनने के लिए जाने जाते हैं जो आगे चलकर मुनाफा दिलाएं। लेकिन पारखी नजर सिर्फ शेयर बाजार तक सीमित नहीं है। कई कंपनियों जैसे केयर हॉस्पटिल, मेट्रो शूज, कॉनकॉर्ड बायोटक और इंवेचर्स नॉलेज सॉल्यूशंस में निवेश ने भी उन्हें बड़ा मुनाफा दिलाया है। शेयर बाजार के बाहर उनके निवेश ने इतना मुनाफा दिया है कि ट्रेडिंग से हुई कमाई को पीछे छोड़ दिया है। यह बात अलग है कि ट्रेडिंग अब भी उनके दिल के करीब है।
साल-दर-साल कई लोग भविष्यवाणी करते रहे कि शेयर बाजार में झुनझुनवाला भी अपनी दौलत गंवा सकते हैं, लेकिन वे बढ़ते गए जबकि बाजार में पैसा बनाना मुश्किल होता गया। अस्सी और नब्बे के दशक में बाजार से पैसा बनाना आसान था, इस बात को मानते हुए वे कहते हैं, “बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ी है। तीस साल पहले बाजार बेअसर थे, लेकिन अब यह कहीं अधिक प्रभावी हो गए हैं। अतीत में, सूचनाओं का ज्यादा अभाव था और प्रणालियां आज की तरह पारदर्शी नहीं थीं। हर किसी की भागीदारी नहीं थी और लोग घोटाला कर रहे थे। अब यह काफी नियंत्रित और संचालित शेयर बाजार है।
सफलता का राज
अगर कोई एक चीज जो राकेश झुनझुनवाला को शेयर बाजार का माहिर खिलाड़ी बनाती है, तो वह है उनकी जिज्ञासा। किसी कंपनी के मैनेजमेंट से लेकर मुख्यालय की साज-सज्जा और कर्मचारियों के व्यवहार तक, हरेक चीज में उनकी दिलचस्पी रहती है। कंपनियां बताती हैं कि निवेश से पहले वे हर तरह के सवाल पूछते हैं। झुनझुनवाला के मुताबिक, “जिज्ञासा और खुला दिमाग ही बाजार में मेरी कामयाबी का राज है। दौलत बनने में समय लगता है। मैं हमेशा अपने विश्वास पर अडिग रहा। विभिन्न परिस्थितियों से गुजरने और समझने से मुझे बहुत मदद मिली।"
शेयर बाजार में पैसा बनाने का हुनर आपकी बदलाव की क्षमता पर निर्भर करता है। झुनझुनवाला मानते हैं कि लोगों को यह मालूम होना चाहिए कि अलग-अलग मौकों पर उन्हें खुद की कई चीजें बदलनी होती है। जब आप बड़े बन जाते हैं तो आपके तौर-तरीके, जानकारियां और लक्ष्य प्राप्त करने में मददगार लोग बदलने चाहिए। लेकिन एक चीज जो कभी नहीं बदलनी, वह है दूसरों के प्रति सम्मान। आप चाहे कितने धनी या सफल हो जाएं, सीखने की गुंजाइश हमेशा रहती है। कभी नहीं भूलना चाहिए कि आप जो भी हैं, भगवान की इच्छा से हैं। याद रखना चाहिए कि भाग्य बड़ी भूमिका निभाता है।
शेयर चुनने की रणनीति
झुनझुनवाला के निवेश पर संस्थागत और छोटे दोनों तरह के निवेशक बारीकी से नजर रखते हैं। कुछ लोग आंख-मूंदकर उनका अनुसरण करते हैं। एक ऑनलाइन एडवाइजरी फर्म निवेजा तो उनकी तस्वीर लगाकर रखती है, ताकि यह भरोसा कायम हो कि अमुक सलाह झुनझुनवाला की रणनीति पर आधारित है।
वैसे शेयर बाजार में दांव लगाने की आरजे की तरकीब है क्या? झुनझुनवाला बताते हैं कि वे कंपनी की ग्रोथ, कीमत, तरलता और नकद प्रवाह को देखते हैं। “मैं गलत कंपनी पर दांव लगाने का नुकसान भी उठाता हूं। किसी कंपनी के शेयर खरीदता हूं तो उस कंपनी को अपना लेता हूं। अगर वह मुनाफा नहीं दे पाई तो यह मेरा गलत चुनाव है। यह सही है कि कुछ कंपनियां मेरे पास आती हैं, जिनका मैं मूल्यांकन करता हूं। बाकियों को मैं खुद चुनता हूं।” उनके कुछ दोस्त बताते हैं कि उन्हें किसी बात पर यकीन हो जाए तो अपना भरोसा और पैसा उसमें लगा देते हैं। उदाहरण के तौर पर, बाटा और मैकड्वेल्स के शेयरों का काफी बड़ा हिस्सा उनके पास था, क्योंकि इसमें उन्हें अवसर दिखा। लेकिन बगैर बड़ा मुनाफा कमाए उन्होंने ये शेयर बेच दिए। वे बताते हैं कि समय ने उन्हें हठी नहीं होना सिखाया। “हठधर्मी न होने की आदत ने मुझे बेहतर दांव लगाना सिखाया।” उनके दोस्त कल्पराज धर्मसी कहते हैं कि वह हमेशा विपरीत फैसले लेते हैं, क्योंकि अवसर वहीं छिपे होते हैं।
खुशी का मनी मंत्र
अधिकांश लोग मानते हैं कि खुशी आपके बैंक बैलेंस पर निर्भर करती है। झुनझुनवाला भी अरबपति बनने के बाद प्राइवेट जेट खरीदना चाहते थे जो उन्होंने कभी नहीं खरीदा। इस बारे में उनसे पूछा गया तो उनका जवाब था, “मैं सफर नहीं करता।” झुनझुनवाला बताते हैं कि पैसे से उनका कोई संबंध नहीं रहा। पैसे से सफलता की अनुभूति होती है, लेकिन यही आनंद का मार्ग नहीं है। किसी उद्देश्य को पाने का साधन तो है, लेकिन अपने आप में कोई उद्देश्य नहीं। पैसा आजादी देता है। देने की क्षमता देता है। जबकि खुशी का ताल्लुक संतुष्टि और सहिष्णुता से है। पैसा अपने आप में भले ही कोई उद्देश्य न हो लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उन्हें पैसा बनाना अच्छा नहीं लगता। वे कहते हैं, “शिकार से ज्यादा मजा शिकार करने में है।” उनसे उनकी संपत्ति के बारे में पूछिए, वे चहकते हुए कहते हैं, “अगर आप गिन सकते हैं, तो आप पैसे वाले नहीं हो।”
मिथक बनाम सच
एक किस्सा बहुत चलता है कि कार डिलीवरी करने आए एक आदमी को राकेश झुनझुनवाला ने स्टॉक खरीदने का आइडिया दिया और वह आदमी अमीर बन गया। इस बारे में झुनझुनवाला कहते हैं, “मुझे ऐसा कोई वाकया याद नहीं आता। बेंटले के सिवा आज तक कोई कार डिलीवर करने नहीं आया। आप उधार के ज्ञान से दौलत नहीं बना सकते, इसलिए मैं सुझाव नहीं देता।”
रिश्ते ज्यादा कीमती
पत्नी रेखा के जिक्र के बिना झुनझुनवाला से बातचीत अधूरी है। वर्षों बाद भी उनके संबंधों में बदलाव नहीं आया। वह बताते हैं, “मेरी पत्नी रेखा बहुत ध्यान रखने वाली महिला हैं। असली भगवान मेरे माता-पिता हैं। मैं जो भी हूं, उनकी बदौलत हूं।” झुनझुनवाला को जानने वाले बताते हैं कि उन्होंने अपने भाई-बहन के बच्चों को भी शेयर उपहार में दिए और उनका कॅरिअर संवारने में मदद की। सफलता के साथ-साथ उन्हें कई आलोचनाएं भी झेलनी पड़ीं। झुनझुनवाला मानते हैं कि आलोचनाओं से विचलित नहीं होना चाहिए। “सुनो मगर बुरा मत मानो। सफलता की अपनी प्रतिक्रिया होती है-कुछ अच्छी, कुछ बुरी। आलोचनाओं से गुस्सा और तारीफ से बहुत खुश नहीं होना चाहिए।”
दान से बढ़कर है भलाई
2020 में 60 साल का होने तक शेयर बाजार का यह महाबली अपनी दौलत का 25 फीसदी चैरिटी के लिए दान करने की योजना बना रहा है। इसके लिए वह ट्रस्ट बनाना चाहते हैं और फिर इसे पेशेवर बनाएंगे। भलाई के कामों में उनकी रुचि एक दशक से भी पहले सेंट जूड के साथ हुई थी जो मुंबई में कैंसर पीड़ित बच्चों को आश्रय देते हैं। इसके अलावा भी झुनझुनवाला ने परोपकार के कई कामों में मदद की है। वह कहते हैं, “मेरी सबसे बड़ी चैरिटी अगस्त्या है जिसका मकसद बच्चों को विज्ञान पढ़ाना और उनमें जिज्ञासा पैदा करना है। मैंने उन्हें 10 वर्षों के लिए 50 करोड़ रुपये दिए थे और इस साल 7.5 करोड़ रुपये दूंगा।” झुनझुनवाला को जानने वाले बताते हैं कि वह सिर्फ दान देने में ही यकीन नहीं करते बल्कि भलाई के कामों में भी शामिल होते हैं। उन जगहों पर जाते हैं। कई अन्य गतिविधियों के अलावा वे अशोका विश्वविद्यालय की भी मदद कर रहे हैं। आजकल झुनझुनवाला कोयंबटूर के शंकर आई हॉस्पिटल के साथ मिलकर नवी मुंबई में आंखों का एक अस्पताल बनवाने में जुटे हैं। इसका नाम उनके पिता के नाम पर रखा जाएगा और यहां हर साल 15,000 आंखों के ऑपरेशन मुफ्त होंगे। ओलंपिक में गोल्ड जिताऊ खिलाड़ी की तलाश और फ्रेंड्स ऑफ ट्राइब्ल सोसायटी की मदद भी वे कर रहे हैं। इंपैक्ट नामक संस्था के साथ भी सक्रिय रूप से जुड़े हैं और इसे उत्तर भारत के गांवों में लड़कियों के स्कूल खोलने में मदद करते हैं। अर्पण नाम की संस्था उनके दिल के बेहद करीब है जो बच्चों को यौन उत्पीड़न और शोषण के प्रति जागरूक करती है।
2018 का संकल्प: स्वास्थ्य सबसे जरूरी
कई वर्षों से झुनझुनवाला नए साल के संकल्प पूरा करने में बुरी तरह नाकाम रहे हैं। लेकिन अब सोच बदल चुकी है। झुनझुनवाला कहते हैं कि शेयर बाजार में 2 करोड़ रुपये कमाने से ज्यादा आनंद उन्हें रोजाना व्यायाम करने में आता है। “अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखना अब मेरा मुख्य लक्ष्य है। खानपान को नियंत्रित कर चुका हूं। हालांकि, रोजाना 15 सिगरेट पीता हूं। टांगें सूज जाती हैं, चलना मुश्किल होता है।” वह सुबह योग करते हैं और कुछ देर टहलते हैं। लेकिन रेगुलर नहीं हैं। वह कहते हैं कि आलस्य एक बीमारी है। मैं मानसिक रूप से आलसी नहीं हूं, लेकिन शारीरिक अभ्यास के मामले में तो आलसी हूं। अब नए साल में हफ्ते में छह दिन व्यायाम करने का संकल्प लिया है।
अफसोस नहीं, जो हूं सो हूं
दोस्तों का मानना है कि दरियादिल, तेज और दनादन फैसले लेना, ये तीन खूबियां राकेश झुनझुनवाला को अनोखा बनाती हैं। इन लोगों का यह भी मानना है कि उन्होंने कई बार बदलना चाहा, लेकिन वे दिल के सच्चे हैं। वह जो हैं, सो हैं। ऐसा होना व्यक्तिगत और पेशेवर दोनों रूप से अच्छा रहा। उनसे पूछिए कि वे किस रूप में परिचित होना चाहते हैं तो उन्होंने तुरंत प्रतिक्रिया दी कि मैं एक अच्छा शेयर खरीदार और एक अच्छे ट्रेडर के तौर पर लोगों के बीच प्रसिद्ध् होना चाहता हूं। मुझे अगर साफ दिल का इनसान और दूसरों की मदद करने वाला कहा जाए तो यकीनन मुझे अच्छा लगेगा। बकौल उनके दोस्त, वे कभी अपने शेयर बाजार की हुनर पर बात करना पसंद नहीं करते। यह भी उन्हें अलग बनाता है।
“2018 में बाजार चढ़ना चाहिए, भले ही रफ्तार धीमी रहे”
2018 में बाजार की दिशा क्या होगी? इससे जुड़े मालिनी भूप्ता के सवालों का राकेश झुनझुनवाला ने अपने अंदाज में पूरी साफगोई से जवाब दियाः
बाजार के लिए 2018 कैसा रहेगा?
दुनिया भर के बाजारों में तेजी है और यही हाल भारतीय बाजार का है। बेशक, भारतीय अर्थव्यवस्था सुधार की ओर है और आगे 2018 में सुधार जारी रहने की उम्मीद है। 2017 में बाजार ने तगड़ी छलांग लगाई है और 2018 में बाजार चढ़ना नहीं चाहिए, इसकी कोई वजह मुझे दिखाई नहीं पड़ती। भले ही रफ्तार धीमी रहे।
2018 में कौन-से फैक्टर बाजार को दिशा देंगे?
बाकी चीजों के अलावा अमेरिकी ब्याज दरें, आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओईसीडी) के केंद्रीय बैंकों के कदम, मानसून, बैंकों के एनपीए का निपटारा, मुद्रास्फीति, राजकोषीय प्रबंधन, राज्यों के चुनाव, स्थानीय ब्याज दरें और घरेलू तथा विदेशी पूंजी का प्रवाह ऐसे फैक्टर हैं जो मार्केट को ड्राइव करेंगे।
क्या हम तेजी के चरम पर पहुंच चुके हैं?
अभी हम चरम पर नहीं पहुंचे हैं, लेकिन बुल रन जारी है।
क्या बरसों की नीतिगत जड़ता के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था अब ऊंची विकास दर हासिल करने वाली है?
2010-2014 के बीच पूंजीगत व्यय, एनपीए, नीतिगत जड़ता और घोटालों की ज्यादतियों के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था सुस्त हो गई थी। इसमें सुधार के लिए उठाए गए कदमों का असर दिखने लगा है। मुझे अब इसमें संशय नहीं है कि हम ऊंची विकास दर के दायरे में पहुंच रहे हैं।
फर्मा और आइटी सेक्टर की चमक फीकी पड़ गई है। आने वाले साल में किन सेक्टरों में तेजी रहेगी?
मुझे लगता है आने वाले दिनों में फर्मा और आइटी सेक्टर उबर जाएंगे। भारतीय अर्थव्यवस्था से जुड़े बाकी कारोबारों से भी बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद है।
‘न्यू इंडिया’ में कौन-से सेक्टर चमकेंगे?
मैं किसी क्षेत्र-विशेष पर राय नहीं देता।
जब आप स्टॉक्स चुनते हैं तो क्या सोच रहती है? वैल्यू या ग्रोथ?
मेरा ऐसा कोई पूर्वाग्रह नहीं कि वैल्यू पर दांव लगाऊं या ग्रोथ पर। अगर कोई स्टॉक मेरे मापदंड पर खरा उतरता है, चाहे ग्रोथ हो या वैल्यू, तो मुझे वह खरीदना चाहिए। मैं मानता हूं कि हम क्या खरीदते हैं यह महत्वपूर्ण है, लेकिन हम किस वैल्यूएशन पर खरीदते हैं, यह ज्यादा महत्वपूर्ण है।
आने वाले वर्षों में आप सेंसेक्स को कहां देखते हैं?
मुझे सेंसेक्स में चढ़ाव का रुझान दिख रहा है। मैं केवल दिशा का अनुमान लगा सकता हूं। यह कहां तक पहुंचेगा, कहना मुश्किल है।
क्या राजनीति भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए जोखिम है?
राजनीति किसी भी समाज का अभिन्न अंग है। मुझे नहीं लगता कि यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए कोई जोखिम है। लेकिन हमें देश की राजनीतिक बनावट पर नजर बनाए रखनी होगी।