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पोषण आहार से पोषित होते नेता

व्यापमं घोटाले के संकट के बादल छंटे भी नहीं थे कि मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार में सैकड़ों करोड़ रुपये का एक और घोटाला सामने आया
आंगनबाड़ी में पोषण आहार

मध्य प्रदेश में 92 हजार आंगनबाड़ियों के जरिये बांटे जा रहे पोषण आहार में गड़बड़ी का मामला सुर्खियों में है। सात हजार करोड़ रुपये से ज्यादा के पोषण आहार की सप्लाई में सैकड़ों करोड़ रुपये घोटालेबाजों की जेब में चले गए हैं। कांग्रेस शासन में शुरू हुआ यह सिलसिला भाजपा काल में बढ़ता चला गया। कुसुम मेहदेले और रंजना बघेल के महिला बाल विकास मंत्री काल में यह खूब फला-फूला। मध्य प्रदेश में तकरीबन 92 हजार आंगनवाड़ियों और उपआंगनवाड़ियों में  पोषण आहार की आपूर्ति की जाती है। हर आंगनवाड़ी के रजिस्टर में दर्ज कुपोषित, अति कुपोषित बच्चों के साथ गर्भवती, प्रसूताओं और किशोरियों के नाम दर्ज होते हैं। इनकी संख्या सौ से 130 के बीच रहती है। इनमें तीन से छह साल के बच्चों को स्कूलों की मध्याह्न भोजन योजना के साथ ताजा पकाया खाना 70 हजार सांझा चूल्हों के जरिये दिया जाता है। यह काम स्व सहायता समूहों के जरिये कराया जाता है। इनमें हर सांझा चूल्हे पर दस लोगों को रोजगार भी मिलता है। इस पर स्थानीय समितियों, सरपंचों की सीधी निगरानी रहती है लेकिन तैयार खाने के मामले में व्यवस्था केंद्रीकृत है। तीन साल से कम उम्र के बच्चों, प्रसूताओं और गर्भवती महिलाओं तथा बालिकाओं के लिए तैयार खाने को घर ले जाने की व्यवस्था भी है। यही वजह है कि आंगनबाड़ियों में दर्ज संख्या और आंगनबाड़ी केंद्रों से घर खाना ले जाने वालों की संख्या में भारी अंतर रहता है। रिकॉर्ड में सभी को राशन मिलना दिखाया जाता है। इसी आधार पर आपूर्तिकर्ता को भुगतान भी होता है। इसका पैसा केंद्र से जिलों की ओर आता है।  

सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बावजूद स्व सहायता समूहों के बजाय तीन कंपनियों के पास आपूर्ति का ठेका है। मप्र सरकार के एक उपक्रम एमपी स्टेट एग्रो को मुखौटा बनाकर यह काम किया जा रहा है। स्टेट एग्रो के साथ तीन कंपनियों की संयुक्त उपक्रम कंपनियां यह सप्लाई कर रही हैं। इसमें स्टेट एग्रो की भागीदारी तीस फीसदी ही है। स्टेट एग्रो के भोपाल के पास बाड़ी  कारखाने में करार के बाद उत्पादन चार सालों में घटकर आधे से भी कम रह गया और निजी कंपनियों के कारखानों में उत्पादन दोगुना हो गया है। जाहिर है, निजी आपूर्तिकर्ताओं के गठजोड़ ने सारी व्यवस्थाओं को अपने कब्जे में ले रखा है। इन कंपनियों से स्टेट एग्रो ने जून 2012 में पांच साल का करार कर रखा है। यानी मार्च 2017 तक हर साल सात सौ करोड़ से ज्यादा के पोषण आहार की सप्लाई।

सुप्रीम कोर्ट शुरू से यह कहता आया है कि आंगनबाड़ी केंद्रों पर रेडी टू ईट मील यानी पहले से तैयार खाने की आपूर्ति करने के बजाय स्कूलों में लागू मध्याह्न भोजन की तरह ताजा खाना बांटा जाए। यह काम स्व सहायता समूहों के जरिये होना चाहिए। केंद्र से मिलने वाला पोषण आहार का पैसा आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और आंगनबाड़ी की समिति के खाते में जमा किया जाए। पूरे मामले में दिलचस्प यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2004 में स्व सहायता समूहों के जरिये ताजा पका खाना मुहैया कराने के निर्देश दिए थे लेकिन इस फैसले को लागू करने में सरकार ने पूरे सवा दो साल का वक्त लिया। लेकिन एक साल के भीतर यह व्यवस्था बदल दी गई। विभाग की तत्कालीन मंत्री कुसुम मेहदेले ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के परिप्रेक्ष्य में कैबिनेट ने जो नई व्यवस्था लागू की उसे अपने विभागीय आदेश से उलट दिया। केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट को भ्रमित करने के लिए सीधे ठेकेदारों से सप्लाई कराने के बजाय नया रास्ता खोजा गया, मध्य प्रदेश स्टेट एग्रो कॉरपोरेशन। इस मामले में ही सिर्फ सुप्रीम कोर्ट की अनदेखी नहीं की गई बल्कि केंद्रीय नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रपट को भी तवज्जो नहीं दी गई। कैग की रिपोर्ट में कहा गया था कि रेडी टू ईट मील की सप्लाई के चलते 2010 से 2013 के बीच 196 करोड़ रुपये वैट के रूप में चुकाए जाएं। विभाग यदि पकाकर भोजन मुहैया कराता है तो टैक्स की यह रकम कुपोषित बच्चों और प्रसूताओं के पेट में जाती। पोषण आहार आपूर्तिकर्ताओं का गठबंधन इतना सशक्त है कि कोई उनके खिलाफ खड़े होने की जुर्रत नहीं कर सकता। इस प्रदेश ने दलिया लॉबी के खिलाफ बोलने वाले कई अफसरों और मंत्रियों को हटते देखा है। पिछले दशक में जिस वक्त मंत्री मेहदेले ने कैबिनेट के फैसले को पलटा था उस वक्त सीनियर आईएएस अधिकारी टीनू जोशी के पास विभाग की कमान थी। उस वक्त एक अन्य महिला आईएएस अफसर कल्पना श्रीवास्तव ने व्यवस्था में बदलाव का विरोध किया था तो 3 घंटे के भीतर विभाग ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया था।

भोपाल संभागायुक्त रहते हुए मनोज श्रीवास्तव ने भोपाल की आंगनबाड़ियों का औचक निरीक्षण कराया था। तब 100 से 130 बच्चों और महिलाओं को पोषण आहार बांटने का दावा करने वाली आंगनबाड़ियों में लेने वालों की संख्या 20 से 30 ही थी। मनोज श्रीवास्तव तब तत्कालीन महिला बाल विकास अधिकारी के खिलाफ कोई कार्रवाई करते उसके पहले उन्हें दूसरे जिले में पदस्थ कर दिया।

कर्मचारी नेता चंद्रशेखर परसाई कहते हैं कि पोषण आहार सप्लाई में आयकर छापे के बाद भी सारा काम बदस्तूर जारी है। छापे के तीन दिन पहले ही रिटायरमेंट के बाद नौकरी पाए जीएम  वी आर धवल की नौकरी धड़ल्ले से संविदा नियुक्ति पर चल रही है। उधर स्टेट एग्रो के आला अफसरों का दावा है कि रेडी टू इट मील की ताजा व्यवस्था अन्य राज्यों के मुकाबले बेहतर है। आपूर्तिकर्ताओं के साथ आयकर छापे की जद में आए स्टेट एग्रो के दोनों महाप्रबंधकों के खिलाफ कार्रवाई के बारे में निगम के अफसरों को आयकर विभाग की एप्रेजल रिपोर्ट का इंतजार है। कांग्रेस प्रवक्ता केके मिश्रा कहते हैं कांग्रेस इस मुद्दे को राष्ट्रीय मुद्दा बनाने की तैयारी में है। दिग्विजय सिंह इसके बारे में संकेत दे चुके हैं लेकिन अंदर की बात तो यह है कि यह व्यवस्था कांग्रेस के जमाने से चली आ रही है।

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