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सट्टेबाजी की हिमायत

देश में जुए-सट्टेबाजी का कारोबार 60 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक का है जिसका बड़ा हिस्सा गैर-कानूनी है
कैसिनो में गैंबलिंग

देश में प्रभावशाली लोगों का एक तबका सट्टेबाजी और जुए को वैध बनाने की पुरजोर कोशिशों में जुटा है। इनमें नौकरशाही और बड़े कारोबारी शामिल हैं। बीते दिनों दिल्ली में आयोजित ऑल इंडिया गेमिंग फेडरेशन (एआईजीएफ) के उद्घाटन समारोह में इसकी एक झलक देखने को मिली जब सीबीआई के पूर्व निदेशक रंजीत सिन्हा ने सट्टे और जुए को वैध बनाने की पुरजोर वकालत की। वहीं पूर्व क्रिकेटर और लोकसभा सांसद कीर्ति आजाद ने इसका यह कहकर विरोध किया कि इससे गरीब आदमी आर्थिक तौर पर और बर्बाद हो जाएगा। कार्यक्रम में एकमात्र कीर्ति आजाद ऐसे थे जिन्होंने देश में सट्टे और जुए को कानूनी मान्यता देने का विरोध किया।

वर्ष 2010 की केपीएमजी रिपोर्ट के अनुसार, भारत में जुए और सट्टेबाजी का कारोबार 60 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक मूल्य का है जिसका एक बड़ा हिस्सा गैर-कानूनी है। हाल ही में इंटरनेशनल सेंटर फॉर स्पोर्ट्स सिक्योरिटी द्वारा पेश की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, ‘भारत में सट्टेबाजी का बाजार 130 अरब अमेरिकी डॉलर मूल्य का है।’ फिक्की के अनुमान के अनुसार कानूनी जुए और सट्टेबाजी की राजस्व क्षमता तकरीबन 20,000 करोड़ रुपये हो सकती है। एआईजीएफ के सीईओ रोलेंड लेंडर्स ने आउटलुक को बताया कि गेमिंग उद्योग में सरकारी खजाने में राजस्व बढ़ाने की अपार क्षमता है, बशर्ते कि इस पर निष्पक्ष नियंत्रण रखा जाए और इसके लिए उचित दरों पर कराधान तय किया जाए।

कौशल से जुड़े खेल (गेम ऑफ स्किल) और मौके से जुड़े खेल (गेम ऑफ चांस) के बीच एक बुनियादी अंतर है। वर्ष 1967 में आंध्र प्रदेश राज्य बनाम आर सत्यनारायण के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि रमी एक ऐसा खेल है, जिसमें पर्याप्त कौशल की आवश्यकता होती है। 1996 में के आर लक्ष्मणन बनाम तमिलनाडु राज्य के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि घोड़े की दौड़ पर दांव लगाना महज मौके का खेल है। इसी तरह पोकर को भी कर्नाटक, कोलकाता के न्यायालयों, पश्चिम बंगाल के विधान एवं हाल ही में नगालैंड में कौशल के खेल के रूप में मान्यता दी गई है। बहुत से लोग इस बात से अनजान हैं कि पोकर, रमी और फैंटेसी क्रिकेट जैसे खेलों को पहले से कानूनी तौर पर मान्यता दे दी गई है। हालांकि इनमें पैसा दांव पर लगाया जाता है।

भारत में खेल और सट्टा एक सिक्के के दो पहलू हैं। दोनों का बड़ा बाजार है। रोलेंड लेंडर्स कहते हैं कि सट्टे और जुए को कानूनी मान्यता मिलने से लाखों की तादाद में रोजगार के नए मौके पैदा होंगे, सुनियोजित अपराध कम होंगे, सरकारी खजाने के राजस्व और सकल घरेलू उत्पाद में इजाफा होगा और मनी लॉन्डरिंग पर शिकंजा कसेगा। कानूनी मान्यता न होने से बहुत से खेलों में सट्टा, जुआ और मटका खेल के जरिये काला धन लगाया जाता है जो समाज को सीधे तौर पर न केवल अपराध की काली दुनिया से जोड़ता है बल्कि सरकार को चूना भी लगाता है। इन खेलों में क्रिकेट, फुटबॉल, कैसीनो, घोड़ों की रेस, ऑनलाइन सट्टा-जुआ, क्रॉसवर्ड और पुरस्कार प्रतियोगिता, ऑनलाइन-ऑफलाइन रमी, ऑनलाइन-ऑफलाइन पोकर, ऑनलाइन-ऑफलाइन फैंटेसी खेल आदि शामिल हैं। और तो और, भारत में बड़े बजट की फिल्में रिलीज होने पर भी सट्टा लगाया जाता है। रजनीकांत की कबाली फिल्म पर दो हजार करोड़ रुपये का सट्टा लगा। सट्टा इस बात पर लगा कि क्या कबाली की कमाई बाहुबली की कमाई का रिकॉर्ड तोड़ेगी। बाहुबली ने कुल 550 करोड़ रुपये का बिजनेस किया था।

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय में जस्टिस राजेंद्रमल लोढ़ा के नेतृत्व में एक कमेटी ने जो रिपोर्ट जमा की है कि उसमें साफ तौर पर कहा गया है कि क्यों न भारत में सट्टे को कानूनी मान्यता दे दी जाए बजाय कि यह गैर-कानूनी तरीके और धोखाधड़ी से हो। हालांकि यह राज्य सरकारों के कार्यक्षेत्र में आता है। देश में कई राज्यों में सट्टे या जुए को कानूनी मान्यता मिली हुई है। जैसे गोवा, सिक्किम और पूर्वोत्तर राज्य। जुए के परंपरागत तरीकों को छोड़ दें तो अब कैसीनो, ऑनलाइन लॉटरी, ऑनलाइन रमी, घुड़दौड़ आदि में लोग पैसा लगाते हैं। भारत में कैसीनो को सिर्फ गोवा में मान्यता मिली हुई है। वह भी समुद्र में इसके लिए विशेष पानी का जहाज है। भारत से कैसीनो के शौकीन काठमांडू, मलेशिया में जेंटिंग आईलैंड, मकाऊ और बैंकॉक जाते हैं। विदेशों की बात करें तो श्रीलंका, नेपाल, मकाऊ, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में सट्टा कानूनी तौर पर मान्यता प्राप्त है। धनकुबेर यहां भी कैसीनो और दूसरे खेलों में सट्टे के लिए जाते हैं।

रोलेंड के अनुसार भारत में तटीय राज्यों की मांग है कि कैसीनो को कानूनी मान्यता मिले ताकि पर्यटन और इससे जुड़े कारोबार को बढ़ावा मिल सके। जैसे कर्नाटक और तमिलनाडु राज्य कई दफा कैसीनो खोले जाने की मांग कर चुके हैं। महाराष्ट्र ने कानून तो पास कर रखा है लेकिन आज तक उसे लागू नहीं किया। बहुत पैसे वाले लोग यूरोपियन देशों में ऑनलाइन कैसीनो खेलते हैं। सट्टे और जुए संबंधी सब सुविधाएं अब ऑनलाइन हैं। घर बैठे, बैंकॉक, हॉन्गकॉन्ग, दुबई, पाकिस्तान कहीं भी सट्टा खेला जाता है। इंटरनेट पर ऐसी ढेरो बेवसाइट्स मौजूद हैं। मुंबई में सोशल मीडिया कंसलटेंट केतन जोशी का कहना है कि ऑनलाइन लॉटरी भी काफी लोकिप्रय हो चुकी है। फोन-मोबाइल आ जाने से इस कारोबार ने दिन दुगनी रात चौगुनी तरक्की की। कोडवर्ड-ईजाद करने में भी मदद मिली। इन कोडवर्ड में सब्जी मंडी में फल-सब्जी के भाव, दूध फट जाना, दूध फैल जाना जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है। अब तो सारा धंधा मोबाइल पर ही चलता है। सट्टे में अगर उम्मीदों वाला नंबर नहीं आता है तो रकम डूब जाती है। केतन के अनुसार जहां एक सट्टे के कारोबार को कानूनी मान्यता देने की बात कही जा रही है वहीं भाजपा सांसद और पूर्व क्रिकेटर कीर्ति आजाद इसका पुरजोर विरोध कर रहे हैं। कीर्ति आजाद कहते हैं कि वर्ष 1999 में संसद में क्रिकेट में सट्टे का मुद्दा सबसे पहले मैंने उठाया था। मेरा कहना था कि बिना धुएं के आग नहीं होती है। शोर मचाने पर जांच के लिए जस्टिस चंद्रचूड़ कमेटी भी बनी लेकिन उस समय खेल मंत्री रहे सुखदेव सिंह ढींढसा ने जांच आगे ही नहीं बढ़ने दी। उस जांच का आज तक पता नहीं चला। आजाद के अनुसार देश में सट्टे और जुए को क्रिकेट ने ही बढ़ावा दिया। वर्ष 2008 में आईपीएल मैच आए तो खिलाड़ी मालिकों के नौकर बन गए। वर्ष 2009 में तो सबसे बड़ी धांधली बोर्ड ने ही की। वह बिना आरबीआई और सरकार को बताए 1008 करोड़ रुपया साउथ अफ्रीका ले गए। यह बात सभी संबंधित नेताओं और आधिकारियों को पता थी। स्पॉट फिक्सिंग में सर्वोच्च न्यायालय ने भी माना था कि आर्थिक धांधली हुई है लेकिन कभी भी मंत्री और अधिकारी नहीं फंसते हमेशा खिलाड़ी फंसते हैं। आजाद का कहना है कि यही नहीं क्रिकेट के अलावा दूसरे खेलों में भी टेलीविजन अधिकार, ग्राउंड का ठेका, उपकरण, कपड़े सहित तमाम चीजों में दलाली होती है। वर्ष 2012 में इन सब पर नकेल डालने के लिए एक कानून प्रस्तावित था लेकिन वह आज तक पास नहीं हुआ क्योंकि खेल संघों के अध्यक्ष नेता लोग हैं। बजट का 80 फीसदी प्रशासिनक मामलों पर खर्च कर दिया जाता है खिलाड़ियों को कुछ नहीं मिलता। तमाम तर्क देते हुए कीर्ति आजाद कहते हैं कि 90 के दशक में दिल्ली में सिंगल लॉटरी में बर्बाद हुए लोगों से सबक लेते हुए सट्टा और जुए को किसी कीमत पर कानूनी मान्यता नहीं मिलनी चाहिए। इससे गरीब लोग बरबाद हो जाएंगे। इस बारे में सर्वोच्च न्यायालय और बॉम्बे उच्च न्यायालय के एडवोकेट सिद्धार्थ मोरारका कहते हैं कि देश में किसी भी कीमत पर सट्टे-जुए को कानूनी मान्यता नहीं मिलनी चाहिए। मोरारका कहते हैं कि अगर इसके पक्ष वाले लोगों का यह तर्क है कि गैर कानूनी तौर पर सब कुछ हो रहा है इसलिए इसे कानूनी जामा पहना दिया तो उन्हें मेरा कहना है कि गैर कानूनी तौर पर तो बलात्कार, भ्रष्टाचार, वसूली, ड्रग्स सब कुछ हो रहा है तो क्या इन सब को कानूनी तौर पर मान्याता दे दी जाए। वह कहते हैं कि ऐसे लोग याद रखें कि देश में सट्टे और जुए को कानूनी तौर पर मान्यता देने का मतलब होगा कि खेल खेल नहीं रहेगा। सट्टे में लगे पैसों के आधार पर हार-जीत तय होगी।

 

कहां-कहां है सट्टा कानूनी

 

भारत में कई राज्य ऐसे हैं जहां विभिन्न खेलों में सट्टे और जुए को कानूनी मान्यता मिली हुई है। जैसे लॉटरी में अरुणाचल प्रदेश, असम (सिर्फ बोडोलैंड), नगालैंड, मिजोरम, सिक्किम, पश्चिमी बंगाल, महाराष्ट्र, गोवा, केरल और पंजाब शामिल हैं। कैसीनो में महाराष्ट्र में कैसीनो खोलने से संबंधित कानून तो बना लेकिन आज तक लागू नहीं किया गया, इसके अलावा सिक्किम और दमन-दीव में कैसीनो को कानूनी मान्यता मिली हुई है। ऑनलाइन गेमिंग सिर्फ सिक्किम में मान्य है। कौशल खेलों में असम और ओडिशा को छोडकर सट्टे और जुए को भारत के ज्यादातर राज्यों में मान्यता मिली हुई है। घुड़दौड़ में आंध्र प्रदेश (हैदराबाद), कर्नाटक (बेंगलुरू-मैसूर), महाराष्ट्र (पुणे-मुंबई), तमिलनाडु (चेन्नई), पश्चिमी बंगाल (कोलकाता) और दिल्ली में सट्टे और जुए को कानूनी मान्यता है। वर्ष 2014 में पंजाब विधानसभा ने भी इस संदर्भ में कानून पास कर दिया था लेकिन इसे अभी तक लागू नहीं किया गया।

 

भारत में सट्टे और जुए को कानूनी तौर पर अगर मान्यता दे दी जाती है तो इसमें कोई हर्ज नहीं है।

रंजीत सिन्हा

पूर्व निदेशक, सीबीआई

 

सट्टे-जुए को कानूनी मान्यता मिलने से अपराध कम होंगे, जीडीपी बढ़ेगा, मनी लॉन्डरिंग पर शिकंजा कसेगा।

रोलेंड लेंडर्स

सीईओ एआईजीएफ

 

सिंगल लॉटरी में बर्बाद हुए लोगों से सबक लेते हुए सट्टे-जुए को कानूनी मान्यता नहीं मिलनी चाहिए। इससे लोग बरबाद हो जाएंगे।

कीर्ति आजाद

लोकसभा सांसद

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