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शराब के जहर का कहर

बिहार में शराब पर प्रतिबंध के बाद गोपालगंज में हुई मौतों से उठ रहे ढेरों सवाल
गरीब बने नकली शराब का शिकार

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जब बिहार में शराब पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया था तब शायद वह भूल गए थे कि पहले जिन राज्यों में भी इस पर रोक लगी है वहां प्रतिबंध के साथ ही नकली शराब का धंधा भी शुरू हो जाता है और इसके साथ शुरू हो जाती है नकली शराब से होने वाली मौतें। शराब पर प्रतिबंध के बाद बिहार में इस कड़वी सच्चाई से सबसे पहले गोपालगंज जिला रू-ब-रू हुआ है। गोपालगंज में जहरीली शराब पीने से 18 लोगों की मौत हो गई। दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य यह है कि इन मौतों के बाद जिला प्रशासन पहले पूरी ताकत से इस तथ्य को झुठलाने में लगा रहा कि ये मौतें नकली या कहें जहरीली शराब से हुई हैं। बाद में मीडिया की सुर्खियां जब बढ़ने लगी तब राज्य सरकार ने माना कि ये जहरीली शराब का मामला है। 18 मृतकों के अलावा 3 की आंख की रौशनी जा चुकी है जबकि कई की हालत गंभीर है।

जिले के खजुरबानी में हुई मौत की इस कहानी ने लोगों को झकझोरा है तो जनमानस में कई सवाल भी खड़े कर दिए हैं। सवाल यह कि क्या शराबबंदी को लेकर उत्पाद विभाग व पुलिस सचेत रहती तो मौतें होतीं? यह एक स्थापित सत्य है कि जब कहीं शराबबंदी होती है तो अवैध शराब का धंधा जोरों से पनपने लगता है। इस धंधे में पुलिस, नेता और शराब कारोबारी तीनों अरबों रुपये की मलाई कटाते हैं और इसलिए सरकार और पुलिस दोनों इस धंधे से आंख बंद कर लेते हैं। बिहार में इन मौतों के लिए अगर कोई दोषी है तो वह सीधे-सीधे पुलिस और राज्य सरकार है जिन्होंने शराब के अवैध धंधे पर लगाम लगाने की कोई कोशिश नहीं की। सरकार ने भी आरंभ में कहा कि इन गरीब लोगों की मौत शराब से नहीं हुई है मगर पोस्टमार्टम रिपोर्ट में जब मौतों की वजह जहरीले पेय का सेवन बताया गया तो परोक्ष रूप से माना गया कि मौत की वजह जहरीली शराब हो सकती है।

सच्चाई जो भी हो इतना तो तय है कि शराब के आदी लोगों को अभी यह बुरी आदत छोड़ने के लिए प्रेरित किए जाने की जरूरत है। गौरतलब है कि खजुरबानी की घटना ने न सिर्फ  जनमानस को झकझोरा है बल्कि कई मांओं की गोद सूनी कर दी है। मरने वालों की उम्र 24 से 55 वर्ष की थी। हद तो यह है कि गोपालगंज के सदर अस्पताल में जहां अफरातफरी थी, वार्ड में लाशें,  दहाड़ें मारकर रोते परिजन, परिसर में जुटी भीड़ और अफसरों की आवाजाही, मौत के चश्मदीदों की चीखें, गम व गुस्सा सब था लेकिन प्रशासन यह मानने को तैयार नहीं था कि मौतों की वजह शराब है। अस्पतालकर्मी भर्ती मरीजों की जान बचाने की कोशिश कम, मौत की वजह छिपाने की जद्दोजहद ज्यादा कर रहे थे। पूरा समय पदाधिकारियों की गाड़ियां दौड़ती रहीं। वे इधर-उधर भागते रहे लेकिन मरीजों की जान बचाने की पूरी शिद्दत से कोशिश नहीं की गई। वैसे माननीयों से लेकर सचिवों का दौरा खजुरबानी में जारी है और लगातार छापेमारी की जा रही है। छापेमारी में अब तक भारी मात्रा में जौ व महुआ बरामद की गई है। देसी शराब के अलावा केमिकल की खाली बोतलें भी मिली हैं जिसमें सबसे अधिक है होम्योपैथी में इस्तेमाल की जाने वाली थूजा। जांच टीम की मानें तो जो शराब बरामद हुई है वह लगभग एक वर्ष पुरानी है। खजुरबानी में हालात यह है कि एक भी बालिग महिला पुरुष गांव में नहीं हैं। सभी घरों में ताला लटका हुआ है सिर्फ बच्चे हैं। उन्हें यह डर सता रहा है कि नए उत्पाद कानून के तहत कहीं उन्हें सजा न हो जाए। वैसे इस मामले में अब तक छह लोगों को हिरासत में लिया गया है। 25 पुलिस वालों को सस्पेंड किया गया है तथा 14 धंधेबाजों पर प्राथमिकी की गई है। साथ ही मरने वालों के परिजनों को 4-4 लाख रुपये मुआवजा देने का एलान भी किया गया है।

वैसे बिहार के लिए नासूर बन चुकी समस्या से पूरी तरह निजात पाने में अभी लंबा वक्त लगेगा। सिर्फ कानून की सख्ती से शराबबंदी कारगर नहीं होगी। शराब पीने वाले लोग वक्त के साथ सुधर जाएंगे। असली समस्या शराब कारोबारियों से हो रही है जो लोगों को शराब की लत छोड़ने नहीं देते। उन पर नकेल कसे बिना ऐसी घटनाएं होती ही रहेंगी। हालांकि इसकी उम्मीद कम है कि पुलिस अपनी कमाई इतनी आसानी से हाथ से निकलने देगी।

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