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आवरण कथा/बॉलीवुडः दिग्गज भी नहीं तोड़ पाए थे किला

दक्षिण के कई बड़े सितारे अतीत में बॉलीवुड में नाकाम रहे
रजनीकांत जैसे सितारे भी नहीं जमा पाए बॉलीवुड में सिक्का

बॉलीवुड ने भले ही आज अल्लु अर्जुन और प्रभाष जैसे गैर-हिंदी भाषाई अभिनेताओं को सिर आंखों पर बिठा रखा हो, लेकिन हिंदी सिनेमा को दशकों से दक्षिण भारतीय नायकों के लिए अभेद्य किला समझा जाता रहा है। विगत में तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम सिनेमा के दिग्गज अभिनेता भी राष्ट्रीय स्तर पर उन बुलंदियों को नहीं छू सके जहां वे अपनी भाषा की फिल्मों के जरिये पहुंचे थे। इनमें रजनीकांत और कमल हासन सरीखे धुरंधर कलाकार भी शामिल हैं। 

अस्सी के दशक में मलयालम सिनेमा के सदाबहार नायक प्रेम नजीर ने 524 फिल्मों में मुख्य भूमिका निभाने और 130 में एक ही नायिका (शीला) के साथ जोड़ी बनाने के लिए गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में जगह बनाई, पर बम्बइया फिल्म इंडस्ट्री ने उन पर ध्यान देने की जहमत नहीं उठाई। मालाबार हिल और मालाबार कोस्ट के बीच का फासला जमीन-आसमान जैसा था। 

ऐसा नहीं कि बॉलीवुड प्रेम नजीर के काम  से बेखबर था। राजेश खन्ना ने नजीर की 1967 में प्रदर्शित फिल्म, कोचीन एक्सप्रेस पर आधारित हिट हिंदी फिल्म, द ट्रेन (1970) में अपने करियर के चरम पर काम किया था, लेकिन नजीर को हिंदी सिनेमा के निर्माताओं ने तवज्जो नहीं दी।

कमल हासन की पहली फिल्म हिट रही

कमल हासन की पहली फिल्म एक दूजे के लिए चली मगर यह जादू कायम न रह सका

यही हश्र बाकी बड़े मलयालम सितारों का रहा। अपनी इंडस्ट्री के सुपरस्टार मामूटी और मोहनलाल ने हिंदी सिनेमा में कदम तो रखा, लेकिन सफलता नहीं मिली। वर्ष 1993 में मामूटी ने धरतीपुत्र के साथ हिंदी दर्शकों के बीच पैठ बनाने की कोशिश की, लेकिन फिल्म बॉक्स ऑफिस पर धराशायी हुई तो उन्होंने कदम वापस खींच लिए। मोहनलाल ने राम गोपाल वर्मा की बहुचर्चित फिल्म कंपनी (2002) और कुछ अन्य हिंदी फिल्मों में काम किया लेकिन उनका भी जादू न चल सका। दोनों मलयालम सिनेमा के शहंशाह समझे जाते रहे हैं।

दरअसल ब्लैक ऐंड वाइट के दौर से ही विंध्य पार के अभिनताओं के लिए हिंदी सिनेमा में पहचान बनाना टेढ़ी खीर रहा है, चाहे वे तमिल सिनेमा के एमजी रामचंद्रन, जेमिनी गणेशन और शिवाजी गणेशन रहे हों, तेलुगु के ए. नागेश्वर राव, एनटी रामाराव और चिरंजीवी हों या कन्नड़ के डॉ. राजकुमार या विष्णुवर्धन। इनमें कोई भी उत्तर भारतीय दर्शकों को रोमांचित नहीं कर सका।

अस्सी के दशक में तमिल सिनेमा के दो सुपरस्टार कमल हासन और रजनीकांत को शुरुआती सफलता अवश्य मिली, लेकिन वे भी इसे बरकरार नहीं रख सके। कमल हासन की पहली हिंदी फिल्म, एक दूजे के लिए (1981) बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट साबित हुई और उन्होंने सागर (1985) सहित डेढ़ दर्जन से अधिक फिल्मों में काम किया, जिनमें अधिकांश फ्लॉप हुईं। रजनीकांत ने अंधा कानून (1983), गिरफ्तार (1985) और हम (1991) में काम किया। तीनों सफल तो हुईं, लेकिन इसका श्रेय उनके सह-कलाकार अमिताभ बच्चन को मिला। नई सदी में कमल हासन ने हे राम (2000) और विश्वररूपम (2013) और रजनीकांत ने रोबोट (2010) जैसी बहुभाषायी फिल्मों से वापसी की, लेकिन उन्हें मूलतः दक्षिण भारत का ही सुपरस्टार समझा गया।

रोजा में अरविंद

रोजा फिल्म में अरविंद स्वामी

ऐसा ही चिरंजीवी के साथ हुआ, जिन्होंने प्रतिबन्ध (1990) और आज का गुंडाराज (1992) के साथ धमाकेदार शुरुआत की, लेकिन वे भी तेलुगु सिनेमा में लौट गए। मणिरत्नम की तमिल फिल्मों रोजा (1992) और बॉम्बे (1994) से चर्चित अरविन्द स्वामी ने 1998 में सात रंग के सपने से हिंदी सिनेमा में कदम रखा पर सफल न हो सके। पिछले वर्ष उन्होंने कंगना रनौत की तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे जयललिता की बायोपिक, थलैवी में एमजी रामचंद्रन की भूमिका निभाई। 

नायकों के विपरीत दक्षिण भारत की अभिनेत्रियां हिंदी सिनेमा में शीर्ष पर रही हैं। वैजयंतीमाला और हेमा मालिनी से लेकर रेखा, जया प्रदा और श्रीदेवी तक, दक्षिण की कई अभिनेत्रियों ने एक के बाद एक हिंदी फिल्मों में लोकप्रियता की ऊंचाइयों को छुआ, लेकिन उनके समकक्ष पुरुष नायक अपने सुनहरे दिनों में सफलता की वैसी कहानियां लिखने में विफल रहे।

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