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04 मार्च 2024 · MAR 04 , 2024

झारखंड: आदिवासी राज में कांटों का ताज

झारखंड के नए मुख्यमंत्री के सामने चुनौतियों का अंबार है और दो-दो चुनाव सिर पर
चुनौती बड़ीः सिद्धू-कान्हू की मूर्ति पर माल्यार्पण करते चंपई सोरेन

झारखंड मुक्ति मोर्चा के वरिष्ठ नेता ‘झारखंड टाइगर’ नाम से चर्चित चंपई सोरेन ने खुद कभी नहीं सोचा होगा कि एक दिन उन्हें इस तरह मुख्यमंत्री की कुर्सी मिल जाएगी। हेमंत सोरेन की मजबूरी से मिली कुर्सी चंपई के लिए चुनौती हो सकती है। अब उन्हें भरोसे की रस्सी पर संतुलन साधना है, जिसमें एक तरफ हेमंत हैं, तो दूसरी तरफ जनता। उन्हें हेमंत सोरेन के छूटे हुए काम पूरे करने हैं, कैबिनेट विस्तार में संतुलन साधना है, झामुमो और सोरेन कुनबे को बनाए रखना है और सबसे बड़ी बात, केंद्रीय जांच एजेंसियों की बढ़ी हुई सक्रियता से भी निपटना है। इतना ही नहीं इसी साल झारखंड में लोकसभा के साथ विधानसभा के भी चुनाव होने हैं। चुनाव में अपने पक्ष में नतीजे लाना उनका सबसे बड़ा लक्ष्य होगा। 

झारखंड में हेमंत सोरेन पर संकट के बादल मंडराते ही हर तरह हेमंत की पत्नी कल्पना सोरेन का नाम चर्चा में रहने लगा था। इंजीनियरिंग और प्रबंधन की डिग्री वाली कल्पना हेमंत की पहली पसंद थीं यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन उनके नाम की सुगबुगाहट के बीच अचानक ही चंपई सोरेन के नाम पर सहमति बनी और वे राज्य के मुख्यमंत्री बन गए। कल्पना सोरेन के नाम पर मुहर न लगने का एक कारण उनका राजनीति से वास्ता न रहना भी था, हालांकि इससे एक बात हुई कि झारखंड ने बिहार का किस्सा नहीं दोहराया और एक स्वतंत्र सोच वाले मुख्यमंत्री को कुर्सी सौंप दी।

हेमंत सोरेन के जाने के बाद तस्वीर बदल गई है। कल्पना सोरेन को मुख्यमंत्री बनाने की चर्चा जैसे ही शुरू हुई, तो सीता सोरेन ने बगावती सुर तेज कर दिए। आखिरकार कल्पना सोरेन का नाम खारिज कर दिया गया। सीता की बात को महत्व देते हुए घर का विवाद सड़क पर उतरने से रुक गया, लेकिन सोरेन परिवार सत्ता की बागडोर अपने ही हाथ में रखना चाहता था जिसके लिए बीच का रास्ता चंपई सोरेन के नाम के रूप में निकला।

अब 67 साल के चंपई सोरेन के हाथ सूबे की बागडोर है। 81 सदस्य वाली विधानसभा में 47 वोट लाकर सदन में बहुमत साबित कर चुके सोरेन ने कांग्रेस विधायक दल के नेता आलमगीर आलम और राजद के एक मात्र विधायक सत्यानंद भोक्ता के साथ मंत्रीपद की शपथ के बाद कैबिनेट में संतुलन की कुछ कोशिश की है। चंपई सोरेन के पास एक तरह बसंत, सीता सोरेन को संतुष्ट करने की चुनौती है, तो दूसरी ओर कांग्रेस को साधने की चुनौती। कांग्रेस में लंबे समय से सत्ता में हिस्सेदारी को लेकर खींचतान चलती रही है। हेमंत मुख्यमंत्री थे तब बोर्ड, कारपोरेशन, समितियों और आयोगों में हिस्सेदारी को लंबे समय तक टालकर उन्होंने कांग्रेस को दबाव में रखा था। चंपई कैबिनेट में भी हिस्सेदारी को लेकर कांग्रेस में भीतर ही भीतर जंग जैसी स्थिति है। सूची तैयार न होने के कारण शपथ ग्रहण को 8 फरवरी के बदले 16 फरवरी पर टाला गया है। इस देरी के पीछे तर्क यह दिया गया कि कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की यहां पर न्याय यात्रा आने वाली है।

हेमंत सोरेन

हेमंत सोरेन

हेमंत सरकार में रिक्त मंत्री के एक पद को लेकर भी कांग्रेस की ओर से दबाव है। दो उपमुख्यमंत्री का मामला भी अभी फंसा हुआ है। चंपई सोरेन ने मुख्यमंत्री बनने के बाद सबसे पहले हाइ लेवल बैठक कर अधिकारियों को कानून-व्यवस्था दुरुस्त करने का जिम्मा सौंपा। बाद की बैठक में जनता को राहत देने के लिए एक सौ यूनिट मुफ्त बिजली को सवा सौ यूनिट करने का फैसला किया। 20 लाख से अधिक लोगों को घर देने की महत्वाकांक्षी अबुआ आवास योजना के तहत 9 फरवरी को पूर्वी सिंहभूम में प्रमंडल के करीब 24, 827 लाभार्थियों को प्रथम किश्त का भुगतान किया गया। 50 वर्ष से कम उम्र की तमाम महिलाओं को सर्वजन पेंशन के तहत पेंशन देने की दिशा में भी कार्रवाई तेज की है। पहले दिन से वे कहते रहे कि हेमंत सोरेन के शुरू किए गए काम को आगे बढ़ाएंगे। लंबे समय से लंबित सरना धर्म कोड, ओबीसी को आरक्षण, 1932 के खतियान आधारित स्थानीयता नीति, मॉब लिंचिंग विधेयक जैसे काम को पूरा करना होगा। राजभवन में लंबित विधेयक को लेकर माना जा रहा है कि राजभवन से रिश्तों में सुधार की गुंजाइश कम दिखती है। सरकार बनाने की दावेदारी और राजभवन के आमंत्रण में विलंब से खटास तो पहले ही दिन से पैदा हो गई थी।

मुख्यमंत्री ने कहा है कि ‘आपकी योजना आपकी सरकार आपके द्वार’ कार्यक्रम को आगे बढ़ाएंगे। इसके तहत जनता से जुड़ी समस्याओं को लेकर 59 लाख 28 हजार से ज्यादा आवेदन आए हैं जिसमें 60 प्रतिशत से अधिक का निष्पादन किया जा चुका है। लोकसभा चुनाव करीब है, कम समय में घोषणा के साथ आचार संहिता लागू हो सकती है। झारखंड का बजट सत्र टल गया है। समय पर बजट पास करा जल्द आवंटन कराना भी जरूरी है।

शिबू सोरेन अब उम्रदराज हो चुके हैं, कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन न्यायिक हिरासत में हैं। ऐसे में राजनीतिक दारोमदार भी चंपई सोरेन पर ही है। चंपई सोरेन स्वच्छ छवि के जुझारू नेता हैं, मगर सरकार चलाने के साथ पार्टी और गठबंधन को कुशलतापूर्वक संभालना उनकी कड़ी परीक्षा होगी। 2019 के विधानसभा चुनाव में 81 में से 30 सीटें जीतकर हेमंत सोरेन के नेतृत्व में जेएमम का अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था। उस लकीर को कायम रखना या आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी अब चंपई सोरेन पर है। 2019 के संसदीय चुनाव में 14 सीटों में एक पर जेएमएम और एक पर कांग्रेस ने कब्जा किया था। तब पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा सिंहभूम सीट पर विजयी हुई थीं, हालांकि गीता कोड़ा की कांग्रेस से दूरी और भाजपा से निकटता की खबरें आती रहती हैं। सिंहभूम संसदीय क्षेत्र के अधीन की छह विधानसभा सीटों में पांच पर झामुमो का कब्जा है, एक पर कांग्रेस का। झामुमो इस सीट पर अपनी दावेदारी करती रही है। खुद चंपई सोरेन का सरायकेला विधानसभा क्षेत्र भी सिंहभूम संसदीय क्षेत्र में पड़ता है। यानी सियासत की कसौटी पर उनका गृह क्षेत्र भी है। भाजपा की नजर पहले से यहां गड़ी हुई है। यदि गीता कोड़ा किनारा करती हैं, तो चंपई सोरेन के सामने चुनौती बढ़ जाएगी।

राजनीतिक खींचतान के बीच वरिष्ठता और अनुभव को लेकर उन्हें खुद को साबित करने की चुनौती है। देखना यह भी है कि हेमंत सोरेन की तुलना में वे गाड़ी कहां तक खींचकर ले जाते हैं, भाजपा और केंद्रीय एजेंसियां तो घेरने के लिए तैयार बैठी ही हैं।

गरुजी का आज्ञाकारी ‘टाइगर’

चंपई सोरेन के लिए सामान्य कार्यकर्ता से लेकर मुख्यमंत्री के पद तक पहुंचने की यात्रा बहुत संघर्ष से भरी रही है। पिता सिमल सोरेन खेती करते थे, लेकिन 1974 में मैट्रिक पास कर चुके चंपई के जीवन में तब बड़ा मोड़ आया जब खरकई नदी में बाढ़ आने से फसल बर्बाद हो गई। घर में जो अनाज था वह घर में काम करने वालों को दे दिया गया। घर को फिर खड़ा करने के लिए पिता ने कहा कि अब खेत में हल चलाना होगा। मैट्रिक पास सोरेन के लिए यह थोड़ा कठिन था क्योंकि पढ़ाई के दौरान उन्होंने खेत के काम में हाथ जरूर बंटाया था लेकिन हल कभी नहीं चलाया था। चार भाई-बहनों में सबसे बड़े सोरेन पिता के साथ खेत में जुट गए।

1 नवंबर 1956 को जन्मे सोरेन कहते हैं, ‘‘भाइयों में बड़ा था तो जिम्मेदारी थी। बस खेती के लिए हल उठा लिया और पढ़ाई से किनारा कर लिया।’’ पिता-पुत्र की मेहनत से परिवार की खुशहाली फिर लौट आई। आदिवासी प्रथा के अनुसार उनकी जल्दी शादी हो गई और वे समय के साथ वे चार बेटे और तीन बेटियों के पिता बने।

गांव के पास ही डुडरा स्कूल से प्राइमरी तक की शिक्षा हासिल करने वाले सोरेन शुरू से ही जुझारू प्रवत्ति के रहे हैं। जब वे जमशेदपुर के बिष्टुपुर स्थित रामकृष्ण मिशन हाई स्कूल से मैट्रिक में पढ़ रहे थे, तभी से ही उनके भीतर आदिवासियों के हक की लड़ाई को लेकर बीज अंकुरित होने लगे थे। 1990 में उन्होंने टाटा स्टील के अस्थायी कामगारों के समर्थन में लंबी लड़ाई लड़ी। ‘गेट जाम’ नाम से हुए इस आंदोलन में उन्होंने 1700 ठेका मजदूरों को स्थायी  प्रतिनियुक्ति दिलाई थी। इसके बाद टाटा के साथ-साथ यूसीएल और एचसीएल के मजदूरों के लिए भी उन्होंने संघर्ष किया।

1990 के दौर में ही अलग झारखंड राज्य को लेकर आवाज तेज होने लगी। इस पूरे आंदोलन के अगुआ शिबू सोरेन से चंपई सोरेन बहुत प्रभावित थे। वे भी शिबू सोरेन के साथ अलग झारखंड आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल हो गए। यहीं से उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई। उनके शिबू सोरेन से प्रभावित होने के पीछे भी एक बड़ा रोचक किस्सा है। शिबू सोरेन के बड़े भाई राजाराम सोरेन की बेटी की शादी चंपई सोरेन के गांव के करीब ही हुई थी। शिबू सोरेन वहां आए हुए थे। रात में जब शिबू सोरेन के सोने का इंतजाम घर के बाहर आंगन में किया गया, तब चंपई सोरेन अपने युवा साथियों की एक टोली शिबू सोरेन की सुरक्षा में तैनात कर दी, मगर शिबू सोरेन को युवा चंपई और साथियों से आंदोलन की बात करने में इतना मजा आने लगा कि सभी रात भर जागते रहे। उनकी बातचीत ने चंपई के मन में आंदोलन की आग को और भड़का दिया।

नशाबंदी और शराबबंदी के लिए उन्होंने हब्बा-डब्बा जैसे सामाजिक आंदोलन की शुरुआत की। बाद में वे झारखंड मुक्ति मोर्चा में शामिल हो गए। धीरे-धीरे उनकी शिबू सोरेन से निकटता बढ़ती गई। शिबू सोरेन के भरोसे का ही नतीजा रहा कि उन्हें पार्टी में महासचिव और उपाध्यक्ष जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिली। 1991 में सरायकेला विधानसभा उपचुनाव से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़कर उन्होंने चुनावी राजनीति की शुरुआत की। 1995 में वे झारखंड मुक्ति मोर्चा के टिकट पर लड़े और भाजपा के पंचू टुडू को पराजित किया। बाद में उन्होंने कद्दावर नेता, उस समय सिंहभूम के सांसद रहे कृष्णा मार्डी की पत्नी मोती मार्डी को बड़े अंतर से पराजित किया। 2000 के चुनाव में भाजपा लहर को छोड़ दिया जाए, तो वे कभी चुनाव नहीं हारे। इस चुनाव में वे अनंत राम टुडू के हाथों पराजित हुए थे। इस चुनाव को छोड़कर लगातार उन्होंने सरायकेला सीट पर कब्जा बनाए रखा। इस सीट से अभी वे छठवीं बार विधायक हैं। 2000 में भाजपा के अनंत टुडू से पराजित हुए मगर 2005 में भाजपा के ही लक्ष्मण टूडू को हार का स्वाद चखाया। उन्होंने 2014 और 2019 के चुनाव में भी सरायकेला का किला फतह किया।

चंपई तीन सरकारों में कैबिनेट मंत्री रहे। झारखंड सरकार में वे परिवहन, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, श्रम, आवास, खाद्य एवं आपूर्ति, अनुसूचित जाति जनजाति एवं पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग के मंत्री रह चुके हैं।

 

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