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मध्य प्रदेश/त्रासदी पुरानी, अवसर नए

भोपाल गैस त्रासदी स्थल में दबे जहरीले कचरे का कुछ हिस्सा नष्ट करने और स्मारक बनाने के प्रस्ताव पर उठे कई सवाल
हादसा स्थल यूनियन कार्बाइड कारखाना

दशकों बाद भोपाल गैस त्रासदी एक बार फिर चर्चा में है। राज्य सरकार हादसा स्थल यूनियन कार्बाइड कारखाने और उसके बाहर आरओबी तालाब में दबे जहरीले कचरे को नष्ट करके वहां जापान के हिरोशिमा  की तरह मेमोरियल बनाने जा रही है। लेकिन सरकार की इस योजना पर गैस पीडि़त संगठनों ने गंभीर आपत्तियां उठाई हैं। उनका आरोप है कि सरकार बहुत कम कचरा नष्ट करने की बात कर रही है, जिससे खतरा बना रहेगा। यही नहीं, गुजराती कंपनियों को करोड़ों में ठेके भी सवालिया घेरे में हैं। जहरीला कचरा नष्ट करने के लिए राज्य सरकार के टेंडर पर गुजरात की दो कंपनियों चेतन कुमार वीरचंद भाइसा मल्टी सर्विस प्रा. लि. और ऑयल फील्ड एनवायरो प्रा. लि. ने दिलचस्पी दिखाई। इस काम पर सरकार 350 करोड़ रुपये खर्च करेगी। फैक्टरी परिसर में करीब 137 टन कचरा बैग में भरा है, जबकि 200 टन कचरा परिसर के बाहर तालाब में दफन है। इसे नष्ट करने के बाद 65 एकड़ जमीन पर मेमोरियल बनाया जाएगा, जिसके तहत रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट यूनिट, ओपन थिएटर, कम्युनिटी हॉल बनाए जाएंगे। इसे भोपाल मेमोरियल नाम से जाना जाएगा।

राज्य सरकार पहले भी कई बार कचरा निपटाने की योजना बना चुकी है, लेकिन कामयाबी नहीं मिल पाई। पहले जब इस तरह की योजना बनाई गई, उसमें अधिकतम 20 करोड़ रुपये की ही राशि खर्च हो रही थी। इस बार अनुमानित खर्च 350 करोड़ रुपये है।

गैस पीडि़त संगठनों का आरोप है कि कचरा हजारों टन में है, जिसमें सिर्फ 337 टन को नष्ट करने के लिए टेंडर किया गया है। बाकी कचरा यूनियन कार्बाइड कारखाने और उसके आसपास की जमीन के अंदर है, जिसे नष्ट करने को सरकार तैयार नहीं है।

भोपाल गैस पीडि़त महिला कर्मचारी संघ की अध्यक्ष रशीदा बी ने कहा कि 1990 के बाद से केंद्र सरकार की एजेंसियों की 17 रिपोर्टों में यह बात आई है कि कारखाने से 3 किलोमीटर दूर तक भारी मात्रा में कीटनाशक, भारी धातु और जहरीले रसायन हैं। सरकार स्मारक की आड़ में प्रदूषित भूमि पर कंक्रीट डालने की योजना बना रही है।

भोपाल ग्रुप फॉर इन्फॉर्मेशन ऐंड एक्शन की रचना ढींगरा ने बताया कि एजेंसियों ने भूजल में भारी मात्रा में ऑर्गेनिक पोल्यूटेंट्स पाए हैं, जो 100 साल से ज्यादा समय तक विषाक्त रहते हैं। ग्रीनपीस की रिपोर्ट में मिट्टी में पारे की मात्रा सुरक्षित स्तर से कई गुना अधिक पाई गई थी। डाव केमिकल से मुआवजे की मांग करने के बजाय राज्य सरकार कचरे की एक छोटी मात्रा स्थानांतरित करके, हजारों टन जहरीले कचरे को दबाकर कंपनियों को कानूनी जिम्मेदारियों से मुक्त करने की कोशिश कर रही है।

तीन दिसंबर, 1984 की आधी रात को यूनियन कार्बाइड की फैक्टरी से करीब 40 टन गैस का रिसाव हुआ था। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक कुछ ही घंटों के भीतर तीन हजार लोग मारे गए थे। गैर-सरकारी स्रोत मानते हैं कि संख्या 15,000 से ज्यादा थी।

जहरीले कचरे के कारण आस-पास का भूजल मानक स्तर से 561 गुना ज्यादा प्रदूषित हो गया। कारखाने और उसके चारों तरफ तकरीबन 10 हजार टन कचरा जमीन में दबा है। बीते कई साल से बरसात के पानी के साथ घुलकर अब तक 14 बस्तियों की 40 हजार आबादी के भूजल को जहरीला बना चुका है। सीएसई की शोध में परिसर से तीन किलोमीटर दूर और 30 मीटर गहराई तक जहरीले रसायन पाए गए।

कारखाने में कीटनाशकों का उत्पादन

यूनियन कार्बाइड कारखाने में कारबारील, एल्डिकार्ब और सेबिडॉल जैसे खतरनाक कीटनाशकों का उत्पादन होता था। संयंत्र में पारे और क्रोमियम जैसी भारी और जहरीली धातुएं भी इस्तेमाल होती थीं। सरकार का कृषि विभाग उन कीटनाशकों का एक बड़ा खरीददार था। भोपाल कारखाने से कीटनाशकों का निर्यात भी दूसरे देशों को किया जाता था। जानकारों का कहना है कि कीटनाशकों की आड़ में यह कारखाना कुछ ऐसे प्रतिबंधित घातक और खतरनाक उत्पाद भी तैयार करता था, जिन्हें बनाने की अनुमति अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देशों में नहीं है, जिसका खमियाजा आज भी स्थानीय लोग भुगत रहे हैं।

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