इस दौर में कंटेंट प्रधान फिल्मों की वापसी और ओटीटी के आगमन से पुरुष अभिनेताओं को ही नए अवसर नहीं मिले, बल्कि तमाम ऐसी प्रतिभाशाली अभिनेत्रियों को भी मौके मिले, जिनके लिए रास्ते पहले बंद हो गए थे। यह श्रीदेवी और रवीना टंडन से लेकर काजोल और सुष्मिता सेन जैसी बड़ी नायिकाओं तक ही सीमित नहीं रहा। इस चलन ने उन अभिनेत्रियों को भी अच्छे मौके दिए, जिन पर चरित्र अभिनेत्री होने का टैग चस्पा था। इन अभिनेत्रियों को मौका मिलने पर इन्होंने भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। जिस तरह महिलाओं ने समाज के अन्य क्षेत्रों में अपनी भागीदारी बढ़ाई है, उसी तरह हिंदी सिनेमा जगत में भी उन्होंने अपना परचम लहराया है। सत्तर के दशक में मल्टीस्टारर फिल्मों के दौर के बाद से सामानांतर फिल्मों को छोड़ दें, तो कुछ अपवादों के अलावा अभिनेत्रियों के लिए न तो मजबूत किरदार लिखे जाते थे न उन्हें कोई विशेष संवाद दिए जाते थे। लेकिन आज के दौर में कई महिला प्रधान फिल्में बॉक्स ऑफिस पर सफल हुई हैं। अब दौर पूरी तरह बदल चुका है। आज ऐसी फिल्में बन रही हैं, जिनमें मुख्य किरदार महिला है और ऐसी फिल्में भी दर्शकों द्वारा खूब देखी और सराही जा रही हैं।
शेफाली शाह
इस सूची में आज के दौर में एक चर्चित नाम अभिनेत्री नीना गुप्ता का है। नीना गुप्ता हाल ही में ओटीटी प्लेटफॉर्म पर फिल्म लस्ट स्टोरीज 2 में नजर आई थीं। नीना अपने कॉलेज के दिनों में ही रंगमंच की दुनिया में सक्रिय हो चुकी थीं। उन्होंने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से अभिनय की बारीकियां सीखीं और भारतीय टेलीविजन धारावाहिकों में काम करने साथ हिंदी फिल्मों में भी सार्थक भूमिकाएं निभाईं। नीना गुप्ता जिस समय राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से निकली थीं, उस समय उन्हें ज्यादा अवसर नहीं मिले। एक वक्त तो ऐसा आया जब, उन्हें काम मांगने के लिए ट्वीट करना पड़ा था। फिर जब उन्हें अपनी दूसरी पारी में काम मिला, तो उन्होंने पहले की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण और असरदार किरदार निभाए। बधाई हो, म्यूजिक टीचर, वध, ऊंचाई, मुल्क, पंगा जैसी फिल्मों में नीना गुप्ता ने अपने अभिनय की छाप छोड़ी है।
जाहिर सी बात है, यह सब स्टार कल्चर का प्रभुत्व कम होने के बाद हुआ। इसी दौर में जिन अन्य महिला कलाकारों ने अपनी अभिनय प्रतिभा का लोहा मनवाया, उनमें अभिनेत्री शेफाली शाह भी हैं। यूं तो शेफाली शाह ने निर्देशक रामगोपाल वर्मा की फिल्म रंगीला और सत्या से बॉलीवुड में शुरुआत की लेकिन कमर्शियल फिल्मों के प्रभुत्व ने उन्हें सार्थक काम करने के लिए इंतजार कराया। शेफाली शाह किसी भी कीमत पर दोयम दर्जे का काम नहीं करना चाहती थीं। इसलिए उन्होंने हसरतें, कभी कभी जैसे टीवी सीरियल में सार्थक भूमिकाएं निभाईं। जब समय बदला तो शेफाली शाह ने दिल धड़कने दो, वंस अगेन, डार्लिंग, अजीब दास्तान, जलसा, डॉक्टर जी जैसी फिल्मों में बेहद महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाईं। नेटफ्लिक्स के शो दिल्ली क्राइम में शेफाली शाह ने डीसीपी वर्तिका चतुर्वेदी का किरदार निभाकर साबित कर दिया कि सही किरदार मिलने पर प्रतिभा का कैसे इस्तेमाल किया जाता है।
सुनीता रजवार
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से ही अभिनय के गुर सीखने वाली अभिनेत्री सुनीता रजवार आज हिंदी फिल्मों और वेब सीरीज का जाना-पहचाना नाम हैं। नैनीताल में रंगमंच की शुरुआत करने वाली सुनीता रजवार ने अपनी जगह बनाने में बहुत मेहनत की। सुनीता रजवार को केवल एक सही अवसर की प्रतीक्षा थी। उनका यह इंतजार वेब सीरीज गुल्लक के साथ पूरा हुआ। इस सीरीज में निभाए ‘बिट्टू की मम्मी’ के किरदार के लिए सुनीता रजवार को फिल्मफेयर पुरस्कार मिला। सुनीता रजवार ने फिल्म स्त्री, बाला, शुभ मंगल ज्यादा सावधान और वेब शो पंचायत में अपने अभिनय से दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया।
सीमा पाहवा
अभिनेत्री सीमा पाहवा के काम से सभी परिचित हैं। आज हिंदी फिल्मों में मां का किरदार निभाने की बात आती है, तो सबसे पहला नाम सीमा पाहवा का होता है। सीमा पाहवा ने दूरदर्शन के लोकप्रिय धारावाहिक हम लोग में बड़की का किरदार निभाकर अपनी पहचान बनाई। इस किरदार ने उन्हें भारत के घर-घर में पहुंचा दिया। सीमा पाहवा जहां एक तरफ रंगमंच की दुनिया में सक्रिय रहीं, वहीं दूसरी ओर उन्होंने फिल्मों और टेलीविजन में सार्थक काम किया। बीते कुछ वर्षों में सीमा पाहवा ने मां के किरदार निभाकर अपनी विशेष उपस्थिति दर्ज कराई है। आंखों देखी, दम लगा के हईशा, बरेली की बर्फी, बाला, शुभ मंगल सावधान जैसी फिल्मों में सीमा पाहवा का काम देखने लायक है।
इस कड़ी में अगला नाम शीबा चड्डा का है। भारतीय दर्शक शीबा चड्ढा के काम से भलीभांति परिचित हैं। लेकिन वह शीबा चड्ढा के नाम और उनकी अभिनय यात्रा से अनभिज्ञ हैं। दिल्ली में रहते हुए, शीबा चड्ढा का रुझान अभिनय और रंगमंच की तरफ बढ़ता गया। शीबा चड्ढा ने हम दिल दे चुके सनम, दिल से, दिल्ली 6, मर्डर जैसी फिल्मों में छोटे किरदार निभाए। अपने संघर्ष को मजबूती देने के लिए शीबा चड्ढा टेलीविजन जगत में भी काम करती रहीं। साल 2015 में रिलीज हुई फिल्म दम लगा के हईशा, शीबा चड्डा के लिए अहम साबित हुई। इसके बाद बधाई हो, राजमा चावल, रईस, जीरो, गली बॉय, पगलैट, डॉक्टर जी, मजा मा जैसी फिल्मों से शीबा चड्डा आधुनिक हिंदी सिनेमा का जाना पहचाना चेहरा बन गईं।
बीते कुछ वर्षों में अभिनेत्री रसिका दुग्गल ने बेहद शानदार काम किया है। रसिका दुग्गल ने साल 2007 में रिलीज हुई फिल्म अनवर से बॉलीवुड में शुरुआत की। इसके बाद उन्होंने कुछ फिल्मों में काम किया मगर उनकी प्रतिभा से दर्शक अपरिचित रहे। रसिका दुग्गल के करियर में अमेजन प्राइम के शो मिर्जापुर से बड़ा बदलाव आया। इस शो ने उन्हें अलग स्तर की लोकप्रियता दिलाई। आज रसिका दुग्गल वेब शो दिल्ली क्राइम, मेड इन हेवन, ए सूटेबल बॉय, आउट ऑफ लव में अपने शानदार अभिनय के दम पर विशेष पहचान बना चुकी हैं।
ऐसे कई महिला कलाकार हैं, जिनके पास आज सशक्त भूमिकाओं कि कमी नहीं है। उनकी यात्रा को देखकर एक बात स्पष्ट होती है कि हिंदी सिनेमा जगत में जो बदलाव आया है, उसका बड़ा फायदा महिला कलाकारों को हुआ है। आज महिला किरदारों को केंद्र में रखकर फिल्में बनाई जा रही हैं और फिल्में बॉक्स ऑफिस से लेकर दर्शकों के दिलों में फतह हासिल कर रही हैं। हिंदी सिनेमा के 110 वर्षों में सही मायने में इसे ही संपूर्ण विकास कहा जाएगा। आज जिस पृष्ठभूमि और विचारधारा के कलाकार हिंदी सिनेमा जगत में शामिल हो रहे हैं, जिस तरह के कल्चर को बढ़ावा मिल रहा है, उससे उम्मीद लगाई जा सकती है कि आने वाले दिनों में और भी प्रतिभावान महिला कलाकार सामने आकर अपनी प्रतिभा साबित करेंगी। तभी सही अर्थों में इस दौर को हिंदी सिनेमा का लोकतांत्रिक एवं आधुनिक दौर कहा जा सकेगा।