राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) संशोधन विधेयक को संसद के दोनों सदनों से मंजूरी मिल गई। इससे इस एलीट जांच एजेंसी को खास क्षेत्रों के अपराध की अधिक पेशेवराना जांच के लिए विशेष अधिकार मिल जाएंगे। कांग्रेस और कुछ अन्य विपक्षी दलों की ओर से असहमतियां भी उठीं और विधेयक के मजमून में कुछ नुक्तों के संशोधन की मांग भी की गई। विपक्ष ने इसके राजनैतिक और अन्य तरह के दुरुपयोग की आशंकाएं व्यक्त कीं। लेकिन केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आश्वासन दिया कि किसी तरह के दुरुपयोग का कतई इरादा नहीं है।
लोकसभा में बहस के दौरान ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआइएमआइएम) के हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने विधेयक के खिलाफ दलीलें पेश कीं और कई मुद्दों पर गृह मंत्री को टोका। इससे चर्चा तीखी हो गई और मंत्री ने विधेयक के मकसद के बारे में विस्तार से बताया और पुख्ता तर्क पेश किए।
एक दशक पुरानी एनआइए का गठन मुंबई में 2008 के आतंकी हमले के बाद यूपीए सरकार ने विशेष मकसद से किया था, ताकि आतंक से संबंधित मामलों की जांच-पड़ताल को मजबूती दी जा सके। संसद में बहस के दौरान जो आंकड़े पेश किए गए उनके अनुसार, 2009 से 2014 के बीच एनआइए में सिर्फ 80 मामले दर्ज हुए। हालांकि, 2014 से यानी एनडीए सरकार के सत्ता में आने के बाद 195 मामले दर्ज किए गए और इनमें 129 मामलों में चार्जशीट दाखिल भी की गई। कागज पर तो ये आंकड़े प्रभावी दिखते हैं और इससे एनआइए के आतंक से जुड़े मामलों की पड़ताल के वादे दमदार लगते हैं और यह भी कि एजेंसी आतंकी घटनाओं की रोकथाम में भी मददगार हो सकती है।
इसमें शक नहीं कि प्रस्तावित अधिनियम महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि इसका उद्देश्य मानव तस्करी, जाली मुद्रा और प्रतिबंधित हथियारों के निर्माण और बिक्री, साइबर आतंकवाद और 1908 के विस्फोटक पदार्थ अधिनियम के तहत आपराधिक मामलों की जांच के लिए एनआइए की क्षमताओं को मजबूत करना है। एनआइए के दायरे में ये सारे आपराधिक मामले अब आ गए हैं और फिर, वह नए कानून के लागू होने के बाद संभावित आतंकवादियों पर और अधिक सख्ती कर सकती है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि एनआइए देश के बाहर भी मामलों की जांच करने में सक्षम होगी। उदाहरण के लिए 21 अप्रैल को ईस्टर संडे आतंकी हमला या 1 जुलाई 2016 को ढाका के होली आर्टेसन बेकरी धमाका जैसे जांच के मामले हमारे सामने हैं।
अब भारत प्रभावी काउंटर टेरर उपायों के जरिए संयुक्त रूप से आतंक का मुकाबला करने में पड़ोसी देशों की मदद कर रहा है। नए अधिनियम के लागू होने के बाद एनआइए के पास साइबर अपराधों की जांच करने के भी अधिकार होंगे, क्योंकि अधिकांश मामलों में कट्टरता फैलाने और प्रलोभन देने के लिए साइबर स्पेस का दुरुपयोग होता है। एनआइए को यह क्रेडिट भी देना चाहिए कि उसके आक्रामक अभियान से आइएस के खेमे में शामिल होने वाले युवाओं की संख्या कम करने में कामयाबी मिली है। भारत की विशाल आबादी के मद्देनजर अगर मालदीव या इंडोनेशिया से तुलना करें तो भारत से आइएस में शामिल होने वाले लोगों की संख्या काफी कम है।
इसके अलावा, दुनिया के विभिन्न हिस्सों में बड़े पैमाने पर मानव तस्करी के मामले सामने आए हैं, जिसमें बड़ी मात्रा में अवैध धन का इस्तेमाल होता है। फिर विभिन्न तरीके से इसका इस्तेमाल आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए किया जाता है। एनआइए को सशक्त बनाने वाला नया कानून इस खतरे को दूर करेगा। इसी तरह, अब प्रतिबंधित हथियारों के निर्माण और बिक्री को भी 1908 के विस्फोटक पदार्थ अधिनियम के तहत अपराध माना गया है। गौरतलब है कि अवैध हथियारों की खरीद-बिक्री और आतंक के लिए उसके इस्तेमाल के कई मामले सामने आए हैं। नए कानून से ऐसी गतिविधियों पर अंकुश लगाने में मदद मिलने की उम्मीद है।
जाली नोटों को नियंत्रित करना एक और अहम पहलू है, जिसका इस्तेमाल आतंकवाद समर्थक भारतीय अर्थव्यवस्था को पंगु बनाने के लिए करते हैं। कानून के जरिए प्रस्तावित कठिन उपायों से उम्मीद है कि आतंक को बढ़ावा देने के लिए जाली नोट के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए प्रभावी उपाय किए जा सकेंगे।
हमने एनआइए को हाल ही में दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में आतंकी मॉड्यूल का भंडाफोड़ करते देखा है और इसके तार श्रीलंका से भी जुड़े निकले थे। एनआइए आइएस से जुड़े आतंकवादियों को भी गिरफ्तार कर रही है। यह सबको मालूम है कि कश्मीर में अलगाववादियों विशेष रूप से हुर्रियत की गतिविधियों पर एनआइए के कठोर रुख के कारण अंकुश लगा है। नए कानून से एजेंसी को स्वाभाविक शक्तियां मिलेंगी, जो आतंकी गतिविधियों, पाकिस्तान और अन्य भारत विरोधी ताकतों द्वारा आतंक को बढ़ावा देने के लिए फंडिंग जैसी गतिविधियों पर अंकुश लगाने में प्रभावी साबित होंगी। सरकार का फोकस विशेष रूप से कश्मीर में आतंकवाद पर लगाम लगाने की कोशिशों पर होना चाहिए और ऐसे में एनआइए को अपने नए अवतार में सरकार के उद्देश्यों और लक्ष्यों को हासिल करने में पर्याप्त योगदान देने के लिहाज से सक्षम होना चाहिए।
इसलिए, यह आशा की जाती है कि नए कानूनों से लैस एनआइए लोगों की अपेक्षाओं पर खरा उतरेगी। साथ ही, अपनी विश्वसनीयता और तटस्थता को बनाए रखने के लिए एनआइए को अराजनैतिक रहना है और देश को किसी भी बाहरी या आंतरिक खतरों से सुरक्षित रखने के लिए एक पेशेवर इकाई के रूप में काम करना है।
(लेखक सेवानिवृत्त आइपीएस अधिकारी, सुरक्षा विशेषज्ञ और मॉरीशस के प्रधानमंत्री के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं)