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मोदी फैक्टर या जाति गणित!

लहर किसी ओर नहीं, जो है वह दिख नहीं रहा और जो दिख रहा है, वह है अधूरा, वोटरों के मौन ने बढ़ाया असमंजस
अजमेर में राहुल गांधी

जयपुर ग्रमीण लोकसभा चुनाव क्षेत्र में आने वाला मोलाहेड़ा गांव गुर्जर बहुल है। यहां के संजय कुमार कुछ दिन पहले तक सौतानाला स्थित जगतजीत इंडस्ट्रीज में काम करते थे, लेकिन अब बेरोजगार हैं। वजह कंपनी बंद हो गई। वे अपने जैसे लोगों का हवाला देकर कहते हैं कि नीमराणा और आसपास की कंपनियों ने करीब दो हजार लोगों को नौकरी से निकाला है। उनके साथ खड़े विजय कुमार गुर्जर कहते हैं कि नौकरी हमारे लिए सबसे बड़ी समस्या है। इस गुर्जर बहुल गांव में करीब 1,500 वोट हैं। गुर्जरों के अलावा यहां प्रजापति हैं। चुनावों की बात शुरू करने पर वे कहते हैं कि यहां किसानों की हालत अच्छी नहीं है। सरसों की खेती ज्यादा होती है लेकिन दाम समर्थन मूल्य से काफी कम मिला है। वे अपने स्थानीय सांसद राज्यवर्धन सिंह राठौर से नाराज दिखते हैं। उनका कहना है कि यहां सेना की भर्ती हुई तो उन्होंने अपनी जाति के लोगों की ही मदद की।

इसी सीट पर दिल्ली-जयपुर हाइवे से करीब 30 किलोमीटर दूर विराटनगर कस्बे के आगे है कोहाड़ा गांव, जो इलपुर पंचायत का हिस्सा है। दिन के करीब ढाई बजे 42 डिग्री तापमान में यहां एक घर के बाहर लगभग सौ स्‍त्री-पुरुष बैठे हैं। वहां कांग्रेस की उम्मीदवार कृष्णा पूनिया पहुंचती हैं। ओलंपिक में हिस्सा ले चुकीं एथलीट पूनिया यहां सीधे महिलाओं से मुखातिब हैं। महिलाएं चुनरी ओढ़ाकर उनका स्वागत करती हैं और नारे लगाती हैं। पूनिया कहती हैं कि आप लोग मेरे साथ हैं इसलिए वोट मांगने की औपचारिकता में मैं नहीं पड़ूंगी। उसके बाद वे वहीं खाना खाती हैं। वे इस संवाददाता से कहती हैं, “मैं राज्यर्धन राठौर की तरह हाई-प्रोफाइल नहीं हूं। मैं तो इन लोगों के बीच की हूं और इसलिए इनके बीच बैठती हूं। जहां तक खिलाड़ी वाली बात है तो मैं भी अंतरराष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी रही हूं।” जाति के प्रश्न पर वे कहती हैं, “मैं जाति के आधार पर नहीं, सर्वसमाज से वोट मांग रही हूं। वैसे मुझे भी अपनी जाति पर गर्व है।” असल में पूनिया जाट हैं और जयपुर ग्रामीण में सबसे अधिक जाट वोट ही हैं। यहां मदनलाल गुर्जर कहते हैं कि सीधा बंटवारा है। उनके मुताबिक, राजपूत, ब्राह्मण और बनिया का ज्यादातर वोट भाजपा को मिल रहा है लेकिन खेतिहर जातियां जाट, गुर्जर, माली और दलित कांग्रेस के साथ हैं। अधिकांश अनुसूचित जनजाति के लोग भी कांग्रेस के साथ हैं। ऐसे में मौजूदा सांसद के लिए हालात काफी मुश्किल हैं। कुछ इसी तरह की बात शाहपुरा में मिले श्रवण कुमार जाट भी कहते हैं। हालांकि वे मोदी की हवा की बात कर रहे हैं लेकिन जातिगत आधार पर वोट की हकीकत का हवाला भी देते हैं।

जयपुर शहर का एक इलाका है विद्याधर नगर, यहां एक 'मोदी भक्त' परिवार से मुलाकात होती है। उत्सव जोशी नाम का युवक एक योग स्टूडियो चलाता है। उसका साफ कहना है कि मोदी जी का कोई विकल्प नहीं है और उनको ही सत्ता में लौटना है। श्री श्री रविशंकर को गुरु मानने वाले जोशी कहते हैं कि पिछली बार उन्होंने और उनकी टीम ने राज्यवर्धन राठौर के लिए काम किया था। इस बार तो उन्होंने बुलाया नहीं। जोशी का घर जयपुर शहरी सीट के तहत आता है। स्थानीय सांसद रामशरण बोहरा को लेकर उनके विचार बिलकुल साफ हैं। वे कहते हैं कि पिछले पांच साल बोहरा न तो कहीं दिखे और न ही कुछ काम किया है। लेकिन वोट बोहरा के लिए नहीं है, वोट तो मोदी के लिए है। इनके सामने कांग्रेस की ज्योति खंडेलवाल चुनाव लड़ रही हैं, जो जयपुर की मेयर रह चुकी हैं।

जयपुर शहर से बाहर चोमू के बाद सीकर की तरफ जाते समय समोद कस्बा है। वहां चुन्नीलाल से बात होती है तो वे मोदी से बहुत प्रभावित नहीं लगते हैं। मौजूदा कांग्रेस सरकार का किसानों का कर्ज माफ करने का फैसला उनके लिए ठीक रहा है। वे कहते हैं कि मरखला, चीतवाड़ी, बांसा, मोरिजा और समोद में रैगर, सैनी, माली और जाट वोट अधिक हैं, जो कांग्रेस के पक्ष में जाएंगे। वहां तोतूराम कहते हैं कि मेरे पास दो एकड़ से कम जमीन है लेकिन प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि का पैसा अभी तक नहीं मिला।

जयपुर ग्रामीण के कोहाड़ा गांव में कांग्रेस प्रत्याशी कृष्णा पूनिया

करीब 20 किलोमीटर आगे फिर जयपुर ग्रामीण सीट शुरू हो जाती है तो गुलाब बाड़ी गांव में सुरेश चंद्र गठाला कृष्णा पूनिया के लिए काम करने की बात करते हैं। उनका कहना है कि किसान मोदी सरकार से नाराज हैं। वे कांग्रेस के वर्कर हैं लेकिन वहां मौजूद बाकी लोग भी उनकी हां में हां मिलाते हैं।

यहां से करीब 100 किलोमीटर दूर सीकर जिले की लोकसभा सीट में पड़ने वाले चला कस्बे में जब इस संवाददाता ने एक युवक नरेंद्र चौधरी से बात की तो उनका कहना था कि मोदी की ओर रुझान है। लेकिन जब वोट देने के बारे में पूछा तो साफ कहा कि वोट तो सुभाष महरिया को जाएगा, क्योंकि ज्यादातर जाट उनको ही वोट कर रहे हैं। सीकर जाट बहुल सीट है और यहां से मौजूदा सांसद सुमेधानंद के सामने कांग्रेस के सुभाष महरिया चुनाव लड़ रहे हैं। वैसे, इसी सीट से भाकपा के अमराराम भी मैदान में हैं। पूरे शेखावटी इलाके में किसानों का सफल आंदोलन चलाने वाले अमराराम पूर्व विधायक हैं। आउटलुक से बातचीत में वे कहते हैं कि कांग्रेस का उम्मीदवार दलबदलू है, उससे क्या उम्मीद की जा सकती है जबकि भाजपा सेना का दुरुपयोग करने की कोशिश कर रही है। जहां तक पाकिस्तान को सबक सिखाने की बात है तो पहले भी कई बार सिखाया जा चुका है। यहां किसानों की दुर्दशा और पानी की किल्लत बड़ा मुद्दा है। इसलिए नतीजा चौंकाने वाला होगा।

इससे आगे नीम का थाना कस्बे में रामदयाल सैनी टायर रिपेयर की दुकान चलाते हैं और 18 बीघा के किसान हैं। मोदी लहर पर साफ कहते हैं कि यहां कोई लहर नहीं है। मोदी ने किसान को बरबाद कर दिया है। काम-धंधे बंद हो गए हैं। वोट जुमलेबाजी पर नहीं काम पर मिलेगा। सैनी यहां पर कांग्रेस के साथ हैं और वह पार्टी सब को साथ लेकर चलती है जबकि मोदी लोगों को लड़ाते हैं। वे सामने खड़े मोबाइल शौचालयों की ओर इशारा कर कहते हैं कि पूरे कस्बे में जगह-जगह यह शौचालय खड़े हैं। इनका कोई उपयोग नहीं हो रहा है क्योंकि बिना पानी और रखरखाव के इनका उपयोग कैसे होगा। इसी कस्बे में एक रेस्तरां चलाने वाले सोनू शर्मा कहते हैं कि नोटबंदी से यहां काम खत्म हो गए हैं। यहां स्टोन क्रशर हैं, जो कंस्ट्र्क्शन के लिए स्टोन तैयार करते हैं और सिरेमिक इंडस्ट्री में काम आने वाला स्टोन पाउडर भी यहां निकलता है जो गुजरात के मोरबी में टाइल इंडस्ट्री को जाता है। नोटबंदी के बाद यहां काम 20 फीसदी भी नहीं रह गया है। पहले आसपास के रोजाना करीब पांच हजार लोग काम करने आते थे, अब कभी पांच सौ तो कभी हजार ही आते हैं।

इससे थोड़ा आगे अलवर सीट शुरू हो जाती है। यहां जनकसिंह पुरा में महेंद्र सिंह यादव से बात होती है तो वे कहते हैं कि मोदी लहर है। अहीरों की 14 पंचायतें हैं, सभी वोट भाजपा को जाएगा। यहां कांग्रेस के भंवर जितेंद्र सिंह के सामने बाबा बालकनाथ भाजपा के टिकट पर लड़ रहे हैं। उपचुनाव में यह सीट कांग्रेस ने जीत ली थी। गाय को लेकर मॉब लिंचिंग की घटना में यहां मारे गए एक अल्पसंख्यक समुदाय के व्यक्ति को लेकर देश भर में आलोचना हुई थी। अलवर की इस मॉब लिंचिंग की घटना को लेकर देश भर में तीखी प्रतिक्रिया हुई थी। बालकनाथ यादव हैं और हरियाणा की बोहर गद्दी उनकी है। उनके लिए यहां रामदेव भी प्रचार करने के लिए आए थे। लेकिन मुकाबला कड़ा है।

असल में 29 अप्रैल को राजस्थान की 13 सीटों पर चुनाव हो चुका है। यहां की सभी सीटें 2014 में भाजपा ने जीत ली थी। लेकिन दिसंबर, 2018 में भाजपा विधानसभा चुनाव हारकर सत्ता से बाहर हो गई है। इसके बावजूद कांग्रेस और भाजपा के बीच वोट प्रतिशत का अंतर बहुत अधिक नहीं रहा है। इसलिए यहां मुकाबला हर सीट पर कड़ा है। इसमें कई सीटें हाइप्रोफाइल हैं। मसलन, जोधपुर की सीट पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत और केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के बीच कड़ा मुकाबला है। यह सीट दोनों दलों के लिए प्रतिष्ठा की सीट बन गई है। इसलिए जहां भाजपा ने राज्य में सबसे अधिक ताकत इस सीट पर लगाई है, वहीं मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पार्टी  और सरकार को पूरी तरह यहां झोंक दिया था। राज्य के कई मंत्री यहां डेरा डाले रहे जिसके चलते दूसरी सीटों पर प्रचार पर असर पड़ा। इसी तरह पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता रहे जसवंत सिंह के पुत्र मानवेंद्र सिंह बाड़मेर से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। यहां भाजपा ने मौजूदा सांसद कर्नल सोनाराम का टिकट काटकर नए उम्मीदवार को उतारा है।

जयपुर रैली में अमित शाह के साथ वसुंधरा

राजस्थान में दोनों दलों के अंदर भी सब कुछ सहज नहीं है। जहां कांग्रेस खींचतान की शिकार रही है और प्रत्याशियों के चयन को लेकर इसका असर साफ दिखा। वहीं भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को लगभग नजरअंदाज करता दिखा। उनके धुर विरोधी हनुमान बेनीवाल से पार्टी ने समझौता किया, ताकि जाट वोट मिल सकें और उसे नागौर की सीट दी। उसी तरह किरोड़ी लाल मीणा को वसुंधरा के विरोध के बावजूद पार्टी में लिया। उनके करीबी लोगों को टिकट नहीं मिले। इसका नतीजा यह रहा कि वसुंधरा ने बड़ी मीटिंगों में तो हिस्सा लिया लेकिन बाकी सक्रियता नहीं दिखाई। वहीं, मोदी और शाह की मीटिगों में भी वे केंद्र के बजाय अपने कार्यकाल की राज्य सरकार की उपलब्धियों पर ही चर्चा कर रही हैं। बाड़मेर की एक सभा में जब वे बोलने लगीं तो वहां मोदी-मोदी के नारे लगे, जिससे वे असहज तो हुईं लेकिन केवल अपनी सरकार के कामकाज की बात की। इस तरह के वाकये यह साबित करने के लिए काफी हैं कि केंद्रीय नेतृत्व द्वारा तरजीह नहीं दिए जाने से उनकी नाराजगी का नुकसान पार्टी को हो सकता है।

जहां तक अभी तक का आकलन है, तो राज्य की अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों पर कांग्रेस का पलड़ा भारी दिख रहा है। राजस्थान की राजनीति की नब्ज पहचानने वाले वरिष्ठ पत्रकार नारायण बारेठ कहते हैं कि अलवर, भरतपुर, करौली,  दौसा, जयपुर ग्रामीण और बाड़मेर में कांग्रेस की स्थिति कुछ बेहतर है। नागौर की तसवीर धुंधली है। यहां कांग्रेस की ज्योति मिर्धा और भाजपा के सहयोगी हनुमान बेनीवाल में मुकाबला है। जयपुर शहर, गंगानगर, बीकानेर में भाजपा मजबूत दिख रही है। पहले चरण की सीटों में जोधपुर और पाली में बहुत कांटे की लड़ाई है। जालौर, उदयपुर, झालावाड़ में भाजपा मजबूत दिख रही है जबकि राजसमद, भीलवाड़ा और कोटा में कांग्रेस की स्थिति बेहतर है।

दिलचस्प बात यह है कि सैकड़ों किलोमीटर की दूरी तय करने के बावजूद राजस्थान के वोटरों की नब्ज पहचानना टेढ़ा काम है। यहां किसी की लहर तो नहीं है लेकिन मोदी फैक्टर हर जगह दिखता है, जिसके सहारे भाजपा स्थानीय सांसदों की एंटी इंकंबेंसी को ढकने की कोशिश कर रही है। पार्टी 'मोदी का कोई विकल्प नहीं' जैसे जुमले को भुनाने की कोशिश कर रही है। जहां तक राष्ट्रवाद और बालाकोट की बात है तो उस पर लोग शुरू में तो बात करते हैं लेकिन उसके बाद बेरोजगारी और स्थानीय मुद्दों पर आ जाते हैं। हर सीट पर जातिगत गणित की बात होने लगती है और लगता है कि अंततः चुनाव का नतीजा भी यही तय करने वाला है, क्योंकि देश के इस हिस्से में भी जाति की जड़ें अभी बहुत गहरी हैं।

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