अमेरिका की बाइडन सरकार ने इस बार भारत के ऊपर भरोसा जताते हुए बड़ा दांव खेला है। मिलिटरी जेट इंजन से लेकर अंतरिक्ष अन्वेषण, आपूर्ति शृंखला, कारोबारी गठजोड़ और लचीली वीजा सुविधाओं तक के तमाम क्षेत्रों में अमेरिका अब अपनी अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी को भारत के साथ न केवल साझा करने को तैयार है, बल्कि संयुक्त उत्पादन भी करेगा। इस सिलसिले में अमेरिकी कंपनी माइक्रॉन टेक्नोलॉजी गुजरात के साणंद में सेमिकंडक्टर चिप की असेंबली और परीक्षण के 2.5 अरब डॉलर के एक कारखाने में 82.5 करोड़ डॉलर निवेश करेगी। बाकी रकम केंद्र और गुजरात सरकार लगाएगी, जिससे प्रत्यक्ष और परोक्ष 20000 रोजगार पैदा होंगे। हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के बीच हुई आधिकारिक बातचीत के अंत में जारी 58 सूत्रीय संयुक्त बयान में इन समझौतों का विवरण दर्ज है। दोनों नेताओं ने दुनिया में अमेरिका और भारत के करीबी रिश्ते के नजरिये को साझा किया। यह दो ऐसे लोकतंत्रों का गठजोड़ होगा, जो उम्मीद, महत्वाकांक्षा और आत्मविश्वास के साथ इक्कीसवीं सदी को देख रहे हैं।
भारत-अमेरिका समग्र वैश्विक और रणनीतिक साझेदारी नए भरोसे और आपसी समझदारी पर टिकी है, जिसमें दोनों देशों को जोड़ने वाली आपसदारी और दोस्ती की गरमाहट है। संयुक्त बयान में कहा गया, “हमारी यह साझेदारी दुनिया के हित में होगी, खासकर जब हम एकाधिक बहुपक्षीय और क्षेत्रीय समूहों के साथ काम कर रहे होंगे- विशेष रूप से क्वाड के साथ- जिससे हिंद-प्रशांत क्षेत्र को और ज्यादा मुक्त, स्वतंत्र, समावेशी और मजबूत बनाने में हम योगदान दे सकेंगे। दोनों महान देशों के बीच की यह साझेदारी समुद्र से लेकर आकाश तक व्याप्त है जिससे मानवीय उद्यम का कोई भी कोना अनछुआ नहीं रह जाएगा।”
इन समझौतों के विवरण अब तक सार्वजनिक नहीं हैं क्योंकि इन तमाम समझौतों का अनुमोदन अभी अमेरिकी कांग्रेस से होना बाकी है। इनमें से कुछ बड़ी परियोजनाओं पर प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा से पहले ही चर्चा हो चुकी थी। अमेरिकी अधिकारियों ने खुलकर बयान दिए थे लेकिन भारत इस मामले में सतर्कता के साथ काम लेता रहा और उन समझौतों पर टिप्पणी करने से बचता रहा जिन पर दस्तखत नहीं हुए थे। प्रधानमंत्री की पहली राजकीय यात्रा के दौरान हुए ये समझौते भारतीय जनता पार्टी को चुनावी साल में फायदा देंगे।
अमेरिकी कांग्रेस में
दोनों देशों के बीच ताजा गर्मजोशी के पीछे उभरती हुई वैश्विक परिस्थितियां हैं। इनमें यूक्रेन का युद्ध, चीन का उभार और महामारी के दौरान ध्वस्त हो चुकी आपूर्ति शृंखलाएं प्रमुख कारक हैं। अमेरिका द्वारा भारत को चारा डालने के पीछे रूस के साथ भारत के रिश्तों को तोड़ने की मंशा काम कर रही है। चीन और भारत की सैन्य क्षमताओं के बीच भारी अंतर को पाटना भी एक उद्देश्य है। अमेरिका चाहता है कि भारत को वह चीन के खिलाफ खड़ा कर दे। अमेरिका भविष्य में चीन को सबसे बड़ा खतरा मानता है इसलिए वह तानाशाह चीन के खिलाफ भारत पर दांव लगा रहा है। हालांकि खुद भारतीय लोकतंत्र के उदारवादी चरित्र में गिरावट आ रही है लेकिन इससे
अमेरिका को कोई दिक्कत नहीं है। बाइडन ने चीन से रिश्ते सुधारने के लिए अपने विदेश मंत्री एंटन ब्लिंकेन को वहां भेजा था, लेकिन चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को ‘तानाशाह’ कहकर उन्होंने अपने ही मंत्री के किए-धरे पर पानी फेर डाला। चीन ने बुरा माना और इसे ‘राजनीतिक उकसावा’ करार दिया।
प्रधानमंत्री के दौरे के समानांतर जेट इंजन के संयुक्त उत्पादन का रक्षा समझौता किया गया, जब हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स ने अमेरिका की जनरल इलेक्ट्रिक के साथ दस्तखत किए। ये जेट इंजन भारतीय फौज के लिए बनाए जाने हैं। इसे बड़ा समझौता माना जा रहा है क्योंकि बहुत-से देशों के पास ऐसी तकनीक नहीं है। मोदी के आत्मनिर्भर भारत वाले नारे में भी यह फिट बैठता है। तीस अरब डॉलर की लागत से 31 एमक्यू9बी ड्रोन की खरीद भी इसी रक्षा पैकेज का एक हिस्सा है।
भारत को महाशक्ति बनाने की सारी क्षमताएं मुहैया करवाने के लिए बाइडन प्रशासन ने पूरी ताकत लगा दी है। क्या इसे भारत के लिहाज से अतीत की नीतियों से एक प्रस्थान माना जाए? क्या रक्षा संबंध मजबूत करने और हर क्षेत्र में अमेरिका के साथ रिश्ता कायम करने से भारत उसके पाले में चला जाएगा? इतनी जल्दी कुछ भी नहीं कहा जा सकता। भारत रूस के साथ भी अपने रिश्तों को खतरे में नहीं डालना चाहेगा, जो उसका परंपरागत साझेदार है। अमेरिका के बरअक्स भारत की स्थिति जापान या ऑस्ट्रेलिया वाली नहीं है, जो उसके सामरिक साझेदार हैं और उसी के पाले में रहते हैं। भारत बहुध्रुवीय दुनिया में यकीन करता है और हर उस देश के साथ मिलकर काम करता है जो उसके हितों को पूरा करता हो। इसके लिए वह अमेरिका का मुंह नहीं देखता है। इसलिए मुश्किल लगता है कि भारत अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को गिरवी रख देगा।
संयुक्त वक्तव्य में यूक्रेन का भी जिक्र आया हैः “प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति बाइडन ने यूक्रेन में जारी संघर्ष पर गंभीर चिंता जताई है और उसके भयावह व त्रासद मानवीय परिणामों पर दुख जताया है। दोनों नेताओं ने वैश्विक आर्थिक तंत्र सहित खाना-पानी, ईंधन, ऊर्जा सुरक्षा और अहम आपूर्ति शृंखलाओं के ऊपर युद्ध के गंभीर प्रभाव को रेखांकित किया। युद्ध से पड़ने वाले प्रभावों को खासकर विकासशील जगत में रोकने के लिए और प्रयास करने की जरूरत पर बल दिया गया। दोनों देशों ने यूक्रेन के लोगों को मानवीय सहयोग जारी रखने का संकल्प लिया। दोनों नेताओं ने अंतरराष्ट्रीय कानूनों, संयुक्त राष्ट्र के घोषणा-पत्रों और भूक्षेत्रीय अखंडता व संप्रभुता का सम्मान करने का आह्वान किया है।”
बयान में रूस का जिक्र किए बगैर ही भूक्षेत्रीय अखंडता व संप्रभुता की बात कही गई है। जाहिर है, जब तक राष्ट्रपति पुतिन रूस की सत्ता में हैं, भारत पूरी तरह वहां से अपने को काट नहीं सकता।