शहर: भोपाल
नाम: नाहरसिंह बघेल
कद: करीब पांच फुट
पेशा: भोपाल म्युनिसिपैलिटी में नाकेदार
नाहरसिंह जिंदादिल शख्सियत के मालिक तो थे ही, साथ ही गंगा-जमुनी संस्कृति के प्रतीक भी थे। एक बार भोपाल के सोफिया कॉलेज की हॉकी टीम ग्वालियर में सिंधिया गोल्ड कप खेलने गई। एक मुकाम पर जाकर ग्वालियर की टीम हारने लगी। तभी दर्शकों में नारेबाजी शुरू हो गई कि पाकिस्तानी है, मारो इन्हें। तब नाहरसिंह ने असली भोपाली अंदाज में नारेबाजी करती भीड़ को ललकारा और गंगा-जमुनी तहजीब की आन-बान-शान में ऐसा भाषण पिलाया कि मिनटों में नारेबाज खामोश हो गए।
अतीत के पन्नों सेः नाहर सिंह की तस्वीर के साथ भतीजी मंजू सिंह
लोग उन्हें प्यार से काले मामा कहा करते थे। काले मामा का गुस्सा हमेशा उनकी नाक पर रहता था। गाहे-बगाहे हफ्ते में दो-तीन बार वे बहस की हदें पार कर देते और हाथापाई पर उतर आते। ऐसे में दोस्तों को उनकी इज्जत बचानी पड़ती और खुद भी मैदान में आना पड़ता। उनकी इसी हाथापाई के नतीजे से झल्ला कर लोग उन्हें सूरमा कहने लगे और यही खिताब आगे जाकर सूरमा भोपाली हो गया। अपनी हाथापाई वाली झड़पों के किस्सों को वे इस अंदाज में सुनाते थे कि हर आदमी को यकीन हो गया कि सूरमा तो सूरमा है। भोपाल के लोग उन्हें सूरमा की तरह ही मानते थे और उनका एहतराम करते थे।
शोले लिखते समय जब जावेद अख्तर ने सूरमा भोपाली नाम जगदीप को दिया तो सूरमा का गुस्सा फिर तूफान बन गया। उन्होंने अपने दोस्त मोहम्मद अली वकील के जरिए जावेद अख्तर पर मुकदमा करना तय किया। ये तो भला हो जावेद अख्तर के कॉलेज के दिनों के दोस्तों का कि ये केस वकील की टेबल से आगे नहीं बढ़ा, वरना शोले अदालतों में भी चक्कर लगाती नजर आती।
हिंदुस्तान के मध्यमवर्गीय शहरों के समाज में अनगिनत सूरमा भोपाली और काले मामा जिंदा हैं और रहेंगे। सूरमा भोपाली तो बस एक मिसाल है।