देश की अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने में कृषि की अहम भूमिका है क्योंकि कृषि और उसके अनुषंगी उद्योगों में ही सबसे अधिक रोजगार मिलता है। खेती-किसानी में सुधार से 70 फीसदी आबादी की न केवल जीवनशैली में बदलाव लाया जा सकता है, बल्कि न्यू इंडिया के सपने भी साकार हो सकते हैं। इस दिशा में सरकार क्या कदम उठा रही है, उसके लिए क्या योजनाएं हैं, बजट में क्या अहम प्रावधान किए गए हैं, इस पर केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से संपादक हरवीर सिंह और प्रशांत श्रीवास्तव ने विस्तार से बातचीत की। प्रमुख अंशः
आपके पास कृषि और ग्रामीण विकास जैसे अहम मंत्रालय हैं, जो अर्थव्यवस्था के न केवल इंजन हैं, बल्कि सामाजिक रूप से बेहद अहम हैं, इस चुनौती को आप कैसे देखते हैं?
भारतीय अर्थव्यवस्था में गांव और किसान दोनों की बेहद अहम भूमिका है। ये दोनों एक-दूसरे के पूरक भी हैं। पैदावार चाहे कितनी भी ज्यादा हो अगर ग्रामीण इन्फ्रास्ट्रक्चर मजबूत नहीं है, तो किसान को फसल का उचित मूल्य नहीं मिल सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूरदृष्टि का ही परिणाम है कि उन्होंने कृषि एवं ग्रामीण विकास और पंचायतीराज मंत्रालय को एक साथ रखा है, जिससे ठीक प्रकार की योजना बन सके। इसी का परिणाम है कि इस बार के बजट में दोनों मंत्रालयों को 2.83 लाख करोड़ रुपये का बजट आवंटित हुआ है। अगर अप्रत्यक्ष मदों को भी शामिल कर लें, तो यह तीन लाख करोड़ रुपये से ज्यादा हो जाता है। सरकार का लक्ष्य है कि उसे 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करनी है।
कृषि नीतियों को लेकर एक अहम बदलाव आया है, सारा फोकस उपज बढ़ाने की जगह किसान की आय बढ़ाने पर शिफ्ट हो गया है?
एक समय था जब देश की नीति का जोर उपज बढ़ाने पर होता था। लेकिन आज हम खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर हैं। अब किसान की आय दोगुनी करने की बात होती है। इसके लिए पारंपरिक उपज के अलावा हमारा फोकस इस बात पर है कि किसान की फसल उन्नत हो, वह बागवानी, फलों की खेती पर जोर दे। वह सिंचाई के लिए ड्रिप तकनीक का इस्तेमाल करे, उसे खाद और बीज आसानी से मिले, रासायनिक उवर्रक का इस्तेमाल किसान कम से कम करे, छोटी जोत के आधार पर कृषि उपकरण विकसित हों। सरकार जीरो बजट खेती पर भी फोकस कर रही है। हमनें यह भी लक्ष्य तय किया है कि 2022 तक कृषि निर्यात को दोगुना कर दिया जाए। बजट में हमने किसान रेल और किसान उड़ान स्कीम को भी लांच करने का ऐलान किया है। इसके जरिए किसानों को अपने उत्पाद बेचना आसान होगा, साथ ही उनके खराब होने की आशंका कम हो जाएगी। सरकार इसके अलावा जैविक मार्केट भी विकसित करने की तैयारी में है।
इस साल मौसम खेती के लिए अनुकूल रहा है, उपज बढ़ने की संभावना है। किसान को उचित कीमत मिले, इसकी क्या तैयारी है?
देखिए, सरकार कुल 22 फसलों को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदती है। इसके अलावा हम लगातार दूसरे कदम उठाते हैं। मसलन, हमने जम्मू-कश्मीर में नेफेड को सेब खरीदने के लिए कहा था। मकसद यही था कि किसान को कोई नुकसान नहीं हो। ई-नैम के तहत सरकार ने 550 मंडियों को जोड़ दिया है। कुछ महीनों में 450 मंडियां और जुड़ जाएंगी। इसका भी फायदा किसानों को उचित कीमत मिलने के रूप में मिलेगा।
किसानों की लंबे समय से मांग है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य में फसलों की संख्या बढ़ाई जाए, क्या इसमें कुछ बढ़ोतरी की योजना है?
देखिए, एमएसपी प्रणाली लाने का आशय यह नहीं है कि सभी फसलों की खरीदारी सरकार करे। इसका मकसद यह है कि जब फसलों के दाम गिरें, उस परिस्थिति में किसान को नुकसान नहीं होने पाए। 22 फसलों के अलावा हम मार्केट इंटरवेंशन स्कीम के जरिए भी उचित दाम दिलाने की कोशिश करते हैं। इसके लिए हम ग्रामीण क्षेत्रों में कोल्ड-स्टोरेज, वेयरहाउस में तकनीकी इस्तेमाल पर खासा जोर दे रहे हैं, जिसमें नाबार्ड की अहम भूमिका होगी।
बजट में कम जलस्तर वाले 100 जिलों की पहचान की गई है, इसको लेकर क्या योजना है?
देश की प्राकृतिक व्यवस्था बहुत चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि कहीं बहुत बारिश होती है, कहीं लोग सूखे से परेशान होते हैं। ऐसे में, रिसर्च की भूमिका बहुत अहम है। इस दिशा में आइसीएआर बहुत अच्छा काम कर रहा है। उदाहरण के तौर पर, बुंदेलखंड में रिसर्च का फायदा किसानों को मिल रहा है। जहां तक जलस्तर बढ़ाने की बात है, तो इसका एकमात्र तरीका है कि वर्षा के जल का कैसे भंडारण बेहतर किया जाए। इसमें मनरेगा के जरिए काम किए जा रहे हैं। जल शक्ति अभियान की इसमें अहम भूमिका है।
मनरेगा का बजट में आवंटन कम किया गया है, दूसरी बात इसमें औसत रोजगार 50 दिन से भी कम है, इसकी क्या वजह है?
सबसे पहले हमें यह समझना होगा कि मनरेगा एक वैकल्पिक रोजगार की व्यवस्था देती है। दूसरी बात यह समझनी जरूरी है कि यह मांग आधारित योजना है। एनडीए की सरकार में लगातार मनरेगा के लिए आवंटन बढ़ा है। यूपीए सरकार के पांच साल की तुलना करें, तो हमारे समय में करीब एक लाख करोड़ ज्यादा आवंटन हुआ है। मनरेगा से दो तरह से फायदा मिलता है। एक तो लोगों को इससे रोजगार मिलता है। दूसरे इसके जरिए संरचना निर्माण भी होता है। इसको पारदर्शी बनाने के लिए 99 फीसदी भुगतान डीबीटी के जरिए किया जाता है। इसके अलावा जॉब कार्ड वेरिफिकेशन, जियो टैगिंग भी की गई है।
‘पीएम किसान’ के लिए बजट में 75,000 करोड़ का आवंटन हुआ है। लेकिन अभी तक सभी किसानों तक इसका लाभ नहीं पहुंचा है?
पीएम किसान योजना एक वृहद कार्यक्रम है। सभी जानते हैं कि प्रधानमंत्री जी की इच्छा रहती है कि किसी भी योजना में पारदर्शिता रहे और उसमें बिचौलियों की भूमिका खत्म हो। आज इस योजना का 8.35 करोड़ किसानों तक लाभ पहुंच चुका है। हमारी कोशिश है कि सभी किसानों के बैंक खातों को आधार से लिंक कर दिया जाए, जिससे कोई इसका दुरुपयोग न कर पाए। पश्चिम बंगाल को छोड़कर सभी राज्यों के किसान स्कीम से जुड़ गए हैं। जल्द ही सारे किसान इस योजना से जुड़ जाएंगे।
कोऑपरेटिव क्षेत्र और फॉर्मर्स प्रोड्यूसर ऑर्गनाइजेशन (एफपीओ) पर क्या योजना है?
बजट में कोऑपरेटिव सेक्टर पर लगने वाले कारपोरेशन टैक्स को कारपोरेट के समकक्ष कर दिया गया है जिसकी काफी समय से मांग थी। इसके अलावा 10 हजार एफपीओ बनाने का लक्ष्य रखा गया है। इसके लिए राज्य सरकारों से कहा गया है कि जो किसान कोऑपरेटिव नहीं बनाना चाहते हैं उन्हें एफपीओ बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।
लैंड लीजिंग एक्ट, एपीएलएम एक्ट, मॉडल कॉन्ट्रैक्ट आदि को लागू करने में कई राज्यों का रुख सहयोगात्मक नहीं है। बजट में राज्यों को इंसेंटिव देने की बात भी कही गई है?
लैंड लीजिंग एक्ट और कृषि उपज से जुड़े जो भी कानून हैं, इनको लेकर नीति आयोग ने एक मॉडल एक्ट बनाने का प्रस्ताव दिया है। प्रधानमंत्री के नेतृत्व में मुख्यमंत्रियों की एक समिति भी बनाई गई है, जिसकी बैठक भी हो चुकी है। संघीय व्यवस्था में राज्यों की अनदेखी नहीं की जा सकती और ऐसा करने का सवाल भी नहीं उठता है। ऐसे में, उन्हें समझाने की कोशिश की जा रही है कि अगर इन कानूनों को लागू करते हैं, तो इसका फायदा उन्हीं के राज्यों के किसानों को मिलेगा।
नए साल में 15 लाख करोड़ कृषि ऋण का लक्ष्य है, लेकिन सभी किसानों के पास किसान क्रेडिट कार्ड नहीं है। साथ ही, दूसरे कृषि संबंधित कर्जकाफी महंगी हैं?
किसान क्रेडिट कार्ड के लिए स्पष्ट रणनीति तैयार की है। अभी छह से 6.5 करोड़ किसान क्रेडिट कार्ड दिए जा चुके हैं। बाकी किसानों को भी जल्द से जल्द दिया जाएगा। जहां तक बैंकों के नियमों की बात है, तो उसमें बैंकों का भी एक पक्ष होता है, क्योंकि वह जब कर्ज देते हैं, तो उनकी चिंता यही होती है कि कर्ज डूबने न पाए। इस दिशा में क्या सुधार हो सकता है, उसकी संभावनाएं तलाशेंगे।
क्या फसल बीमा योजना से किसानों से ज्यादा प्राइवेट सेक्टर को फायदा हो रहा है?
भारत में कई चीजें धारणाओं पर चलती है। विपक्ष ऐसी धारणा बनाने की कोशिश करता है कि फसल बीमा योजना किसान के फायदे के लिए नहीं, बल्कि प्राइवेट सेक्टर को फायदा देने के लिए है। लेकिन ऐसा नहीं है। किसानों को यह समझना होगा कि यह एक इंश्योरेंस मॉडल है, जिसमें आप मुआवजा तभी पाओगे जब फसल का नुकसान होगा। अभी तक 58 हजार करोड़ रुपये का मुआवजा दिया जा चुका है। योजना को और कैसे बेहतर किया जा सकता है, उस पर हम काम कर रहे हैं।
नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती बन गया है, क्या सरकार लोगों का रुख को नहीं भांप पाई?
मैं समझता हूं कि सीएए और एनआरसी का जो विरोध हो रहा है, इसके पीछे कानून में कोई त्रुटि है, यह वजह नहीं है। बल्कि यह शुद्ध रूप से राजनीति से प्रेरित है क्योंकि विपक्ष को लगता है कि इससे उसे फायदा मिल सकता है। जो विरोध कर रहे हैं, वे इस कानून की अच्छाई को अच्छी तरह से जानते हैं। लेकिन विरोध के पीछे राजनीतिक लाभ, घुसपैठियों का फायदा और संकीर्णता छुपी हुई है। मुझे लगता है कि यह खुद-ब-खुद खत्म हो जाएगा।