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24 जून 2024 · JUN 24 , 2024

जनादेश ’24 /ओडिशा: पुराने हुए ‘नवीन’

ढलती उम्र और बाहरी को सत्ता सौंपने की अफवाहों की कीमत
नवीन पटनायक

रामलला की धरती अयोध्या और उत्तर प्रदेश में गहरा झटका लगने के बाद जगन्नाथ स्वामी की जमीन ओडिशा से आए नतीजों पर प्रधानमंत्री और भाजपा ने राहत की सांस ली होगी, लेकिन उम्र के आख‌िरी पड़ाव पर खड़े राज्य के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के लिए यह किसी बुरे सपने के जैसा है। छठवीं बार ओडिशा का मुख्यमंत्री बनकर वे देश के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री बने रहने का रिकार्ड बनाने का सपना संजोए हुए थे। यह रिकॉर्ड तो अब नहीं बनेगा क्योंकि राज्य की सत्ता भी उनके हाथ से फिसल गई है। अभी वे सिक्किम के मुख्यमंत्री पवन चामलिंग के रिकॉर्ड के बाराबर थे। विधानसभा चुनाव के नतीजों से पटनायक का किला ढह गया है।

भाजपा ने संसदीय चुनाव में पटनायक के किले में सेंध लगाते हुए 21 में से 20 संसदीय सीटों पर कब्जा कर लिया है। 2000 से ओडिशा में बीजू जनता दल (बीजद) की सरकार है, तब से नवीन पटनायक लगातार मुख्यमंत्री हैं। ओडिशा के दो टर्म मुख्यमंत्री रहे बीजू पटनायक के पुत्र नवीन पटनायक 77 साल के हो चुके हैं। अटल बिहारी बाजपेयी सरकार में इस्पात एवं खान मंत्री रहे पटनायक गठबंधन से अलग रहने के बावजूद राष्ट्रीय मुद्दों पर एनडीए के स्टैंड का लगातार समर्थन करते रहे। फिर चाहे वह राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति का चुनाव हो, नोटबंदी, अनुच्छेद 370 हटाने, जीएसटी बिल या नागरिकता संशोधन कानून जैसे मुद्दे। वे लगातार केंद्र को समर्थन करते रहे हैं।

ओडिशा में लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव भी हुए, मगर लोकसभा और विधान चुनाव में सीटों के सवाल पर समझौता नहीं हो सका। अयोध्या में जब रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम हो रहा था उसी दौरान पटनायक ने भी पुरी में जगन्नाथ कॉरिडोर का शुभारंभ करते हुए जगन्नाथ उत्सव के नाम पर देश भर के संतों को राज्य में बुलाया था। 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी की लहर के बावजूद पटनायक की पार्टी ने 21 में से 20 सीटों पर कब्जा किया था। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजद 12 सीटों पर सिमट गई और भाजपा ने यहां की आठ सीटों पर कब्जा कर लिया था। कांग्रेस के हिस्से एक सीट आई थी। दरअसल कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाते हुए भाजपा बढ़ती चली गई। 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा का वोट प्रतिशत क्रमश: 32.7 और 16.9 था जो 2019 के चुनाव में बढ़कर 13.8 और 38.4 हो गया।

सीटों की हिस्सेदारी

1997 में क्षेत्रीय पार्टी के रूप में बीजू जनता दल के गठन के बाद पार्टी कभी सत्ता से बाहर नहीं रही। नवीन ने करीब 50 साल की उम्र में राजनीति में प्रवेश किया। सन 2000 में मुख्यमंत्री बनने के बाद नवीन पटनायक लगातार पांच बार मुख्यमंत्री रहे। भाजपा ने ताजा चुनाव में सूबे की सत्ता पर कब्जा कर लिया है। भाजपा एक तरफ लगातार आक्रामक तरीके से घेराबंदी करती रही, तो दूसरी तरफ नवीन पटनायक की सेहत उनका साथ छोड़ने लगी। करीब 15 वर्षों तक एनडीए का घटक दल होने के बाद 2009 में नवीन पटनायक ने गठबंधन से किनारा कर लिया। राष्ट्रीय राजनीति के बदले उनका फोकस राज्य पर ही केंद्रित रहा। ताजा चुनाव में एनडीए के साथ गठबंधन के लिए कदम बढ़े थे मगर लोकसभा और विधानसभा की सीटों पर सहमति कायम न होने के कारण बीजद ने एकला चलो का मार्ग अपनाया। यही नुकसान का सौदा साबित हुआ।

जानकार मानते हैं कि बीजद भाजपा को लोकसभा में बड़ा भाई और विधानसभा में छोटा भाई बनाने पर एक हद तक सहमत हो गया था मगर भाजपा को यह फार्मूला रास नहीं आया। प्रधानमंत्री ने 5 मार्च को अपनी ओडिशा यात्रा में नवीन पटनायक की तारीफ की थी, हालांकि बाद में वे व्यक्तिगत हमले करते भी नजर आए। एक चुनावी रैली में उन्होंने कहा था कि नवीन बाबू को बिना कागज देखे ओडिशा के जिलों के नाम और उनका मुख्यालय बताने के लिए कहा जाए, तो वे बता नहीं पाएंगे। प्रधानमंत्री सहित भाजपा, पूर्व तमिल ब्यूरोक्रेट और सलाहकार वीके पांडियन को पटनायक के उत्तराधिकारी के रूप में पेश करती रही। पटनायक की सेहत पर सवाल उठाते हुए कहा गया कि राज्य का शासन बाहरी व्यक्ति चला रहा है। पांडियन से जनता भी बिदकी हुई थी।

महिलाओं को स्थानीय निकायों में 50 प्रतिशत और संसदीय चुनाव में 33 प्रतिशत आरक्षण दिया गया। इसी के तहत विधानसभा चुनाव में 35 महिला उम्मीदवारों को बीजद ने मैदान में उतारा, 70 लाख महिलाओं को एसएसजी से जोड़ने, 10 लाख रुपये तक बीजू स्वास्थ्य कल्याण योजना कवरेज व अन्य कल्याणकारी योजनाएं जनता खासकर महिलाओं में लोकप्रिय थीं, मगर अपने कार्यकर्ताओं की उपेक्षा और बड़ी संख्या में बाहर से आए लोगों को विधानसभा में टिकट देने के कारण पार्टी के भीतर गहरा असंतोष था। लोकसभा सीटों पर बीजद का सूपड़ा साफ करने के बाद भाजपा ने बीजद को विधानसभा से भी बेदखल कर दिया।

ताजा चुनाव में हाई प्रोफाइल सीट पुरी से भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा ने जीत हासिल की है। पात्रा 2019 में भी चुनाव लड़े थे मगर बीजद के पिनाकी मिश्र से करीब 11 हजार मतों से हार गए थे। इस चुनाव में बीजद से पूर्व वरिष्ठ पुलिस अधिकारी अरूप पटनायक को बीजद ने उतारा था। वहीं संबलपुर से केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने लंबी बढ़त के साथ जीत दर्ज की। विधानसभा के साथ लोकसभा के चुनाव में भी कांग्रेस और भाजपा से आयातित बड़ी संख्या में उम्मीदवारों को टिकट दे दिया गया था। इससे पार्टी में उम्मीद लगाए लोगों में नाराजगी थी, लोग खुलकर असंतोष भी जाहिर कर रहे थे। अनेक असंतुष्ट नेताओं ने भाजपा का दामन थाम लिया था। तमिलियन पूर्व अधिकारी वीके पांडियन के कारण भी बीजद को नुकसान उठाना पड़ा। ढलती उम्र के बीच पांडियन को नवीन पटनायक का उत्तराधिकारी के रूप में देखा जाने लगा था। भाजपा ओडिशा की अस्मिता और बाहरी के हाथ में कब्जे को लेकर पांडियन पर आक्रमण करती रहती थी। बाद में पटनायक ने उनके पर कतरे, मगर तब तक देर हो चुकी थी।

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