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बिहार: लालटेन में लौटी रोशनी

सहयोगी पार्टी कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी पर राजद प्रमुख की टिप्पणी से खड़ा हुआ नया विवाद
लंबे समय बाद बिहार लौटे पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव

लगभग साढ़े तीन साल बाद राष्ट्रीय जनता दल के सिरमौर लालू प्रसाद के बिहार लौटने से उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं में नए जोश का संचार हुआ है, लेकिन पटना आगमन से पहले ही उन्होंने एक नए विवाद को जन्म दे दिया है। दिल्ली से अपने गृह राज्य रवाना होने से पहले उन्होंने कांग्रेस के बिहार प्रभारी भक्त चरण दास के लिए एक बिहारी गंवई शब्द ‘भकचोन्हर’ का प्रयोग किया, जिससे बड़ा बखेड़ा खड़ा हो गया।

विवाद बढ़ता देख राजद ने कहा कि इस ठेठ बिहारी शब्द का अर्थ ‘शून्यचित्त और खोया-खोया’ है। हालांकि इस टिप्पणी के बाद भी दास ने कहा कि वे लालू का आदर करते रहेंगे, लेकिन उनकी पार्टी के नेताओं को यह टिप्पणी नागवार गुजरी। कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अनिल शर्मा ने कहा कि लालू का जन्म ही दलितों का अपमान करने के लिए हुआ है। पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने इसे एससी/एसटी एक्ट की अवहेलना कहा। हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा-सेक्युलर के प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने पूछा, लालू बार-बार दलितों का अपमान क्यों करते हैं? भाजपा के राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी ने कांग्रेस पर तंज करते हुए कहा कि इसके बाद भी कांग्रेस लालू के साथ बनी रहेगी। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि ऐसे शब्दों का प्रयोग पब्लिसिटी के लिए किया जाता है।

संवाददाताओं ने जब लालू से उनकी पार्टी पर लगाए गए आरोप के बारे में पूछा, तो उन्होंने दास को ‘भकचोन्हर’ कह दिया। दास ने कहा था कि बिहार में दो विधानसभा क्षेत्रों में हो रहे उपचुनावों से पहले राजद ने भाजपा से समझौता कर लिया है।

राजद और कांग्रेस महागठबंधन में सहयोगी हैं और दोनों ने साथ मिलकर पिछला विधानसभा चुनाव लड़ा था। लेकिन कुशेश्वरस्थान और तारापुर में हो रहे उपचुनाव में दोनों दलों ने अपने-अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं। 2020 में राजद ने तारापुर और कांग्रेस ने कुशेश्वरस्थान से चुनाव लड़ा था और दोनों हार गए थे। इस बार राजद ने अपनी सहयोगी पार्टी को दोनों में से कोई भी सीट देने से इनकार कर दिया। कांग्रेस का कहना है कि कुशेश्वरस्थान उसकी परंपरागत सीट रही है। इसके बाद दास ने अगले लोकसभा चुनाव में बिहार की सभी 40 सीटों से लड़ने का ऐलान किया और राजद पर भाजपा से सांठगांठ का आरोप लगाया।

आकलन है कि पिछले चुनाव में कांग्रेस के स्ट्राइक रेट को देखते हुए राजद ने यह निर्णय लिया है। नवंबर 2020 में हुए चुनाव में राजद ने कुल 243 में से कांग्रेस के लिए 70 सीटें छोड़ी थीं जिसमें कांग्रेस को 19 सीटों पर ही सफलता मिली। राजद का मानना है कि एनडीए के साथ कांटे की टक्कर में इसका खामियाजा उसे भुगतना पड़ा। राजद को लगता है कि तेजस्वी की लोकप्रियता से वह कांग्रेस के बिना भी सफलता प्राप्त कर सकती है। कन्हैया कुमार के कांग्रेस में आने से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उनसे गठबंधन कर सकते हैं।

दूसरी ओर, प्रदेश कांग्रेस के नेताओं को लगता है कि तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाने के लिए लालू भाजपा के साथ भी समझौता कर सकते हैं। उनका मानना है कि नीतीश भाजपा और राजद दोनों से सामान दूरी बनाकर एक तीसरे गठबंधन में कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों के साथ मिलकर अगला चुनाव लड़ सकते हैं। हालांकि, भाजपा नेता इन कयासों को कोरी कल्पना करार देते हैं। वरिष्ठ भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी का कहना है कि लालू प्रसाद बिहार में लंबे कुशासन, सामूहिक पलायन और भ्रष्टाचार के ‘जीवंत आइकॉन’ हैं, इसलिए लोगों की नाराजगी के डर से राजद ने पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी के पोस्टर से उन्हें गायब कर दिया था। उन्होंने एक ट्वीट कर कहा, “अब उपचुनाव में उनके प्रचार करने से कोई जिन्न निकलने वाला नहीं। जब वे सीधे जनता के सामने होंगे, तब उनके राज में हुए नरसंहार, अपहरण, लूटपाट, घोटाले के डरावने दौर की याद दिलाने के लिए किसी को कुछ कहना नहीं पड़ेगा.”

सुशील ने कहा कि कांग्रेस के राज्य प्रभारी पर लालू की टिप्पणी सीधे सोनिया गांधी और राहुल गांधी के नेतृत्व का अपमान है। कांग्रेस को लालू प्रसाद से अपमान सहने की सीमा खुद तय करनी होगी। “कांग्रेस में हिम्मत है, तो सोनिया गांधी पार्टी के दलित नेता पर लालू प्रसाद की भद्दी टिप्पणी के बाद राजद से संबंध तोड़ने की घोषणा करें।”

लेकिन राजद और कांग्रेस में कोई बेचैनी नहीं दिखती है। एनडीए के कुछ नेताओं का तो कहना है कि कांग्रेस उम्मीदवारों को दोनों सीटों से इसलिए खड़ा करवाया गया है ताकि मतदाताओं में भ्रम फैला कर उनके वोटों का विभाजन किया जा सके।

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